बात एक रात के प्रेमी की



एक रात थी मैं सोई हुई


खवाबो में थी खोई हुई,


पास आके किसने गुनगुनाया


मुझको हौले से जगाया

मैंने धीरे से बस मुस्कुराया

उसने मुझको फिर सताया,

कानों में हौले से फुसफुसाया

थी बड़ी मधुर गीत पर,

नीद थी उस  घड़ी मेरी मीत

आके धीरे से उसने छुआ मुझे,


मेरे दिल के तार थे रुझे
मैंने जवाब में कसमसाया,
अपने को संभाल सिर्फ सिर हिलाया

रातभर की छेडख़ानी उसने ,

मैंने करवटे बदली थी पल पल में

रात बीती भोर होने को आई,

पर मैं उसकी बाहों में ना समाई

जाते जाते फिर भी उसने चूम मुझे,

खिसियाके मैंने भी अब खूब कूटा उन्हें

चोट लगी उसे दर्द क्यों हुआ मुझे,

आँखे खुल चुकी थी ये सोच के

सामने वो खून से लथपथ पड़े थे

“मच्छर जी” राजकुमार जो सपनो का था,

प्रेम में अमर हो आख़िरी साँसे गिन रहे था!

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