कसौटी आध्या की पार्ट-1

    

सब खुश थे,मेरे और मिहिर के रिश्ते से। मिहिर भी नेचर के बहुत अच्छे थे।पहली मुलाकात हमारी मन्दिर में हुई थी।सब कुछ साफ साफ कह देना चाहती थी मिहिर से,क्योंकि भगवान के दरबार मे आजतक झूठ किसने बोला है।न्याय का अदालत जो ठहरा। अगर मिहिर मना भी कर देते इस रिश्ते से तो मैं दुखी भी ना होती,क्योंकि मैं सच के अस्तित्व के साथ जीना चाहती थी। अपने पल को कुचल कर आगे नही बढ़ना चाहती थी। हिम्मत करके मैंने सबकुछ साफ साफ मिहिर से कह डाला। दो पल को लगा हम आज पहली दफ़ा नही कई बार मिल चुके हो। मिहिर ने मेरे बातों को सुनने के बाद हाथ पकड़ बस इतना ही कहा था,मुझे तुम बहुत पसन्द हो। पता क्यों क्योंकि तुम दिल की साफ हो।बिना किसी हिचक के तुमने वो सब कह दिया जो तुम्हारे दिल मे था। मैं मिहिर को देखती रही। मैंने हाथ जोड़कर माफ़ी भी मांग ली,और सिर्फ़ इतना कही कभी टकरार हो गयी उन यादों से तो तुम मुझे छोड़ तो नही दोगे। मिहिर ने हँस कर जवाब दिया था,अफ़सानों की परियों को कोई छोड़ता भी है क्या भला! मैं प्यार भले नही ,मगर जीवनसाथी जरूर रहूँगा।नीचे आकर उन्होंने रिश्ते के लिए हा कह दिया। सब कुछ ठीक था। मैं भी सबकी खुशियों में अपने को तलाश रही थी, कि कही तो मैं भी खिलखिलाती मिल जाऊंगी।

हमारी शादी जल्द ही हो गयी। इंगेजमेंट के बाद मिहिर कई बार बाहर चलने को बोले,मगर मन नही हुआ। कुछ ही दिनों के बाद तो शादी है फिर घुमलेंगे ये कहकर मैं हर बार ,बार- बार मिहिर को मना कर देती। देखते -देखते वो दिन आ ही तो गए थे हमारी शादी के.... रीति-रिवाजों के रश्म,सहनाई, ढोल नगाड़ों की आवाज़, सबके चहकने की मुस्कान।सब मुझसे ही तो जुड़े थे। मगर मैं उलझी हुई शांत बैठी हुई थी,बस सोच रही थी कि आज से मेरा दिल मेरा अस्तित्व सबकुछ बट जाएगा। मैं अब सिर्फ मैं नही रहूँगी।

धूम धड़ाके के साथ मिहिर का आना मेरे लिए कोई ख़्वाब नही बल्कि सवाल खड़े कर रहा था। कही उन रिश्तेदारों के लिस्ट में वो भी आ गए तो!  क्या मैं ठीक हाल में रहूँगी? पास खड़ी बुआ ने झकझोरते हुए बोला- अरे देखो तो भला अभी से ही खवाबों को पिरो रही है।चलो जल्दी से चावल फेंकना है,और हाँ चुपके से देख भी लेना। ठीक दिख रहा या नही।खुद के मकड़जाल से निकल मुस्कुराते हुए अक्षत लेकर बारजे पे खड़ी हो गयी और मिहिर को बिन देखे अक्षत गिरा वापस आ गयी।सब मेरे मन को टटोलना चाह रहे थे,कैसे लग रहे जीजू?हैंडसम हंक ना। कोई कुछ कोई कुछ। क्या बोलती मैं चुप रह कर बस लिपिस्टक की ओर इशारा कर दी खराब हो जाएगा।

थोड़ी देर में जयमाला के लिए जाना था,जयमाल लिए सखिया बहने सब खूब खुश थी।स्टेज के नजदीक पहुँचते पहुँचते उन गानों और धुन शोर में गुम हो गयी। मिहिर खुद स्टेज से नीचे उतर कर रोमांटिक मूड में डांस करते हुए आ गए,धुन बज रहा था....एक्को हील दे नाल में कट्टेया एक साल वे,मैनु कदेय ता लई जेया कर तू शॉपिंग मॉल वे,मेरे नाल दियाँ सब पार्लर साज दियाँ रेहंदियाँ,हाये हाई लाइट करा दे मेरे काले वाल वे,वे कीथो सज़ा तेरे लयी सारे सूट पुरानेआ,हाये पुरानेआ,मैनु लेहेंगा ले दे महँगा जां मर्ज़ानेया,आइने पैसे दस्स तू कीथे लेके जानेआ!सबके सामने मिहिर ने घुटनों के बल मेरे हाथ मे गुलाब का फूल थमाया।सब कुछ वैसा ही था जो कभी सपनों के मकड़जाल में बुनी थी,बस अलग था तो मनन के जगह मिहिर।एक तरफ जहाँ खुशी भी थी वही मन में बैचैनी भी। मिहिर ने मेरे हाथ को पकड़ते हुए मुझे डांस की ओर अग्रसर किया,मैं भी मटक ली,पूरा ग्राउंड तालियों से गूंज रहा था। फिर क्या मिहिर गोद मे उठा स्टेज पर लेकर गए। ज्यो मैं जयमाला के लिए तैयार हुई मेरे सामने वो खड़ा था,जो अतीत हो चुका था। मैं उस भीड़ भरी जगहों में भी उसकी नजरो से रूबरू हो गयी,दो पल को एक अजीब सी उलझन,बेचैनी महसूस होने लगी,लगा दौड़ कर जाऊ और गले लग जाऊ। मगर ये कहा मुमकिन था। एक तरफ़ प्यार एक तरफ जीवनसाथी कैसी घड़ी थी,जिसे मैं समझकर भी समझ नही पा रही थी। मिहिर ने मुझे चुटकी बजाते हुए कहा ,कहा खो गयी सपनो की रानी। जयमाला का वक़्त निकलता जा रहा है,जल्दी करो। मैं आँखों को भिंच गहरी सांस लेते हुए मनन के आगे आज खुद को मिहिर के हवाले सौप दी। मेरे आँखों से आँसू टपक पड़े...मिहिर मेरी उलझन समझ रहे थे,मगर मैं अजीब बटखरे पे खड़ी थी जहाँ एक तरफ मनन मेरा प्यार,मेरी धड़कन, मेंरा अतीत खड़ा था। वही दूसरी ओर बगल में मेरा जीवनसाथी। 

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट