क्या यही प्यार है पार्ट-3


अब आगे..
प्रवीण कुछ दिन कब तक ऐसे चलेगा तुम समझते क्यों नही। घर की हालत देखो। घर मे कुछ भी खाने पीने को ढंग से नही रहता । कभी दूध नही तो काली चाय पियो। ये कैसी जिंदगी हो गयी है मेरी प्रवीण जब तुम्हे नौकरी मिल रही तो पकड़ लो। मंहगाई में मैं घर का किराया दु या खाना खाने के लिए पैसे जुटाउ सुमेधा मायूस होकर बोली। प्रवीण आज समझ गया सुमेधा इस जिंदगी से उफ्फ कर चुकी है। प्रवीण घर से तुरत निकला और लौटकर नही आया। सुमेधा रात  भर प्रवीण के याद में अब तक के प्यार में सारी बातों को सोच सोचकर उधेड़बुन कर रख डाली। क्या यही प्यार है? जिंदगी संघर्ष की तरह हो जाती है।पापा सही थे। मगर प्रवीण भी तो मेरे जीवन का हिस्सा है वो तो बिल्कुल न बदले फिर मैं क्यों नही कम में ही खुश हूं। क्यों उन्हें हर रोज ताने मारती हूँ। सोचते सोचते सुमेधा चौकी से सर टिकाए कब सो गयी उसे पता न लगा। किसी ने दरवाजे पर जोर से दस्तक दी दरवाजे को पीटते हुए सुमेधा चौक कर उठी लगता गया प्रवीण है। दरवाजा खोली तो सामने प्रवीण हाथों में झोला थामे खड़े थे। ये क्या है प्रवीण सुमेधा ने पूछा। घर का राशन है तुम अब परेशान मत हो प्रवीण ने झोले को रखते हुए कहा। मगर सुमेधा को कहा चैन होना था,उसने शक भरे नजरो से जोर आवाज में बोला कहा से लाये ये सब । पैसे कहा से आए रातोरात जनाब आपके पास। तब प्रवीण ने मुस्कुराते हुए उसके हाथ मे पैसे थमाए जान ये मेरी मेहनत का पैसा है। तुमने ही कहा न कि कोई काम छोटा बड़ा नही होता काम काम होता है। बस मैंने भी ठान लिया और एक रात ट्रक चलाकर गोदाम का सारा सामान उतरवाया । उससे मेरे पैसे मुझे मिल गए। 

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