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तुम्हरी माँ ऐसी। तुम्हारी माँ वैसी। ...................................................................................................................................................................................................................................हा है बुरी मेरी माँ!बहुत बुरी...जिसने अंधेरी ठंड की घनघोर कुहासे वाली रात अपने बच्चों को लेकर रोती रही घर के दरवाजे पे। हा है बुरी मेरी माँ...जिसने खुद अन्न जल ग्रहण न किया मगर अपने बच्चों को दूध न सही पानी पिला के बड़ा किया। हा है बुरी मेरी माँ...जिसने खुद की जिंदगी और तमाम छोटी बड़ी खुशियों को दफना अपने बच्चों को बड़ा किया। हॉ है बुरी मेरी माँ...जिसने अपने आँखों की रोशनी अपने बच्चों की जीवन मे रोशनी लाने के लिए गवा दिए।                         हा है बुरी मेरी माँ...जिसने कभी दुःख का दुखड़ा न रोया,बल्कि दुसरो के दुख को समझा। हा है बुरी मेरी माँ...जिसने अपने शौख अरमानों को बंद बक्से में कैद कर दिया। हा है बुरी मेरी माँ...जिसने अपने बच्चों में किसी चीज की कमी न की।  हा है बुरी मेरी माँ....जिसने दिन भर स्कूलों में पढ़ा...शाम को ट्यूशन पढ़ाते हुए घर की कमान संभाली। हा हा है बुरी मेरी माँ....जिसने लू के थपेड़े में शास्त्री ब्रिज पैदल पार किया।  हा है बुरी मेरी माँ...जो आज भी अपने बच्चों के लिए जान न्यौछावर कर रही। हा हा है बुरी मेरी माँ...जो घुट घुट कर रोती है।                    हा है बुरी मेरी माँ ....जिसने ठंडी हवाओं में वही स्वेटर से सालो गुजार दिए..बच्चों को कभी किसी चीज की कमी न की। हा है बुरी मेरी माँ....जिसने तमाम ठोकर खाने के बावजूद उन तमाम रिस्तेदारों के फिजूली अपशब्द सुनने के बाद उन्हें आज भी प्रेम स्नेह से सम्मान करती है,उनके आने की खुशी पर क्या से क्या न कर दे उसके लिए हैरत में रहती है।  हा है बुरी मेरी माँ...जो तीन सौ रुपए में अपने बच्चों का पालन पोषण कर उनके ख्वाहिश ख्वाब को संजोती है। हा है बुरी मेरी माँ ....जो आज भी तमाम कष्टो से जूझते हुए उफ्फ तक नही करती। हा हा है बुरी मेरी माँ ...क्योंकि उसने सब सह लिया...।                हा है बुरी मेरी माँ..क्योंकि आज उसने अपने बच्चों को अपनी आँखों की रोशनी बना खुद की निगाहें कमजोर कर दी। हा है बुरी मेरी माँ....जिसने कभी किसी से शिकवा शिकायत नही की। हा है बुरी मेरी माँ...शायद बहुत बुरी जो खुद बीमार है मगर खुद को कहती है "मैं बिल्कुल ठीक हूँ"।                           हा है बुरी मेरी माँ...जिसने अपने बच्चों को न खाने में कमी की न रहन सहन में। हा है बुरी मेरी माँ....जो खुद कभी खुल कर रो न सकी।हा हा है बुरी मेरी माँ....जो अपने बच्चों को सबके आगे डॉट लगाती है।              हा है बुरी मेरी माँ...जिसने एक बेटी,एक पत्नी,एक माँ होने का फर्ज ही नही अदा किया बल्कि ...अपनी नन्ही परियो को जिंदगी के मायने ओर उसके इम्तिहान से जीतने का हौसला ओर डर का डट कर सामना करना सिखाया। मुझे गर्व है इस बुरी माँ पर...जिसने अपनी कोख से समझदार नन्ही परियो को जन्म दिया।गर्व है अपनी माँ पर...❤️

aakhir jimmedar kon?

रिवाज़ो के दुनिया मे कुंडली का मिलान

अब बस...

बेटे की लालसा

एक कप चाय

तो क्‍यों न एक कप चाय हो जाए! चाय की परम्परा टी-टॉक से शुरू हुई । चाय की चुस्कियों का असली मजा मसाला चाय के साथ हीआता है। ये वो है जो आलस को दूर भगाती है,गपशप का मजा बढ़ती है।प्यार को पास लाती है जो अपनेपन का अहसास दिलाती है वह चाह है चाह वाली चाय । चाय पर हमारे देश मे बड़े बड़े काम होते रहे है। जब समय होता है तभी,नही होता तभी। नुक्कड़ों पे लगने वाली चाय की चुस्की ओर उसके साथ चुटीले ठहाके,कभी कभी तो राजनीति वाद विवाद भी चुस्की में घुल जाती हैं। कभी मिट्ठी टकरार,तो कभी व्यंग्यात्मक चहास। सरकारी काम काज भी 1कप चुस्की से जुड़ी होती हैं। आज भारत का कार्य भी एक चाय की चुस्की पे डिपेंड है। दफ्तर हो या चाय की दुकान लोकचर्चा की चौपाल हर जगह गूंजती है। इस बार तो देश के प्रधानमंत्री चाय की चुस्की के साथ ही लोकतंत्र पर चर्चा कर डाले। देखा जाए तो आज चाय चौपाल यूनिवर्सिटी के बाहर ,नुक्कड़ पर,घाटों,नदियों पर,चुस्की पे डिपेंड है। जरा से समय मे एक चाय की चुस्की न जाने कितने समस्याओं को हल कर देती है। घर आए लड़के वाले भी लड़की के बनाए चाय से ही रजामंद हो जाते हैं,वाह क्या चाय है। जो जरा सी नोक झोंक को भी चाय के माध्यम शांत की जाती हैं। हिंदुस्तान का रिवाज वाकई खूब है ,घर पे कोई आए तो उसे पानी से पहले ये कहकर सम्बोधन करेंगे "भाई साहब बस एक कप चाय हो जाए"।चाय का एक प्‍याला पीने के लिए वैसे दुनिया में बहानों की कमी नहीं है। कुछ लोगों को आपस में बात करनी हो तो चाय का बहाना अच्‍छा है। किसी को मिलने के लिए बुलाना हो तो, 'आइए, एक-एक कप चाय हो जाए'। अब आप इसे एक कप चाय के बजाए एक कप दोस्‍ती का भी कह सकते हैं। जब बात इतने सारे बहानों को आसान बनाने वाली चाय की हो तो कोई भला आज के दिन 'अंतरराष्‍ट्रीय चाय दिवस' को कैसे भूल सकता हैं।

जानकारी ही बचाव विश्व भर में हर साल विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है,लोगो को एक्वायर्ड इम्युनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम के बारे में जागरूक किया जाता है। इसके बावजूद भारत मे हर साल10 लाख से ज्यादा मामले देखने ,सुनने को मिलते हैं। वैसे तो मौजूदा समय में इस बीमारी के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है। मगर अब भी समाज में इससे जुड़े कई ऐसे भ्रम फैले हुए हैं जिसे जानकारी के अभाव में सच मान लिया जाता है। अब जैसे कि एचआईवी पॉजिटिव होने का मतलब लोग जीवन का अंत समझने लगते हैं, उन्हें लगता है कि एड्स हो गया, मगर यह पूरा सच नहीं है। एचआईवी पॉजिटिव का मतलब एड्स नहीं  ए.आर.टी.सेंटर बताती है कि एचआईवी पॉजीटिव होना और एड्सग्रस्त होना दोनों अलग बातें हैं। उपचार द्वारा एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंशी वायरस) को रोका जा सकता है। जबकि एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनोडिफिसिएंशी सिंड्रोम) एचआईवी संक्रमण के कारण होता है।उनका कहना है कि एचआईवी वायरस, एड्स एक बीमारी। एचआईवी के शरीर में दाखिल होने के बाद शरीर की प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है और शरीर पर तरह तरह की बीमारियां व संक्रमण पैदा करने वाले वायरस हमले करने लगते हैं। वे बताते है कि एचआईवी स्थांंतरित होता है, एड्स नहीं। लोग एड्स मरीजों से दूरी बनाकर रखते हैं। कहते हैं 'मुझे एड्स मत दो।' मगर यह जान लेना जरूरी है कि एचआईवी एक इंसान से दूसरे इंसान में स्थांतरित होता है, ना कि एड्स। शारीरिक संबंध, संक्रमित खून व इंजेक्शन से एड्स नहीं एचआईवी होता है। उनका मानना है कि एचआईवी को नियंत्रित कर सकते हैं, एड्स को नहीं। एचआईवी को नियंत्रित किया जा सकता है, इसमें इंसान के जीने की अधिक संभावनाएं होती हैं। मगर एड्स की स्थिति में प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह से खत्म हो जाती है। यह लाइलाज है और दुनिया की खतरनाक बीमारियों में शामिल है। देखा जाए तो एड्‌स’ एक जानलेवा बीमारी है जो धीरे-धीरे समूचे विश्व को अपनी गिरफ्त में लेती जा रही है । दुनियाभर के चिकित्सक व वैज्ञानिक वर्षों से इसकी रोकथाम के लिए औषधि की खोज में लगे हैं परंतु अभी तक उन्हें सफलता की कुंजी नहीं मिल सकी। पूरे विश्व में ‘एड्‌स’ को लेकर तरह-तरह की चर्चाएँ हैं।बाल में खाल उखाड़ने की आदत इस देश को सदा से रही है,इसे बेहतर होगा कि स्वास्थ्य रहे ,सुरक्षित रहे।ज्यादा से ज्यादा जानकारी ले लोगो को जागरूक करे क्योंकि अंधविश्वास की ज्वालामुखी में लाखों की जान जा सकती हैं,सतकर्ता ही ,बचाव है। एड्स वर्तमान युग की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है यानी कि यह एक महामारी है। जिसके मुख्य तीन कारण है- असुरक्षित यौन संबंध,रक्त आदान-प्रदान,माँ से शिशु में संक्रमण। आमतौर पर दूषित इंजेक्शन इस्तेमाल करने से भी संक्रमण बढ़ रहा। बीबीसी की हालिया रिपोर्ट में पढ़ने को मिला" एड्स को चौथा खम्भा जाने वाले सतर्क, बताया की आज यही चौथा खम्भा मृत्यु दर का सबसे बड़ा कारण बन गया है। "जिसमे करोड़ो लोगो की जान गयी,जिसमे बच्चों की दर ज्यादा पाई गई। ए.आर.टी.सेंटर का मानना है कि अधिकतर जान गलत अवधारणाओ से जाती है।जिसका मात्र कारण पूर्ण जानकारी का न होना। बीएचयू अस्पताल बताते है कि एचआईवी वही मरीज आते हैं, जिनको चिकित्सक रेफर करते हैं। लेकिन कुछ यहां पर जांच के लिए ज्यादातर मरीज खुद चल कर भी आ रहे हैं। इस वर्ष स्त्री पुरुष और बच्चे मिलाकर अब तक 2749 मरीजों की जांच की जा चुकी है।एआरटी सेंटर के आंकड़ों पर गौर करें तो इस सेंटर का शुभारम्भ वर्ष 2011 में हुआ उस दौरान लगभग पांच सौ मरीजों का पंजीकरण किया गया था, जो समय के साथ बढ़ते हुए नवम्बर 2017 तक 3171 पहुँच गया। जिनका पंजीकरण कर इलाज किया जा रहा है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अभी तक एचआईवी संक्रमित महिला व पुरुष ही होते थे लेकिन इस महामारी जनित बीमारी में अब थर्ड जेण्डर भी शामिल हो चुके हैं। जिन मरीजो की रिपोर्ट एचआईवी पाजिटिव है,उनका एआटी और बेस लाइन सीडी-4 टेस्ट किया जाता है।जांच के बाद ही रिपोर्ट के मुताबिक उनका इलाज चलता है। ए.आर.टी.सेंटर का मानना है कि लोगो को एचआइवी के लक्षण के बारे में ज्यादा से ज्यादा जागरूक करे, खासतौर पर उन लोगो को जो एड्स जैसी बीमारी से घबराते या शरमाते है। आइए जानते है इसके कुछ लक्षण- कई-कई हफ्तों तक लगातार बुखार रहना,हफ्तों खांसी रहना, वजन का घटना, मुँह में घाव होना,भूख खत्म  हो जाना,दस्त  लगना,गले या बगल में सूजन भरी गिल्टियों का हो जाना,त्वचा पर दर्द भरे और खुजली वाले दोदरे या चकत्तेश हो जाना,सोते समय पसीना आना। आइए अब जानते है एचआइवी सुरक्षा के उपाय- अगर आप एचआईवी से संक्रमित हैं और गर्भधारण करना चाहती हैं, तो चिकित्सक से परामर्श ले,असुरक्षित संबंधों से बचें,डिस्पोज़ेबल सिरिंज या सूर्इ का ही प्रयोग करें।  

बोल की "लब आजाद है?" अगर चुप्पी नही तोड़ी तो अत्याचार कभी नही थमेगा। आवाज उठाने से मतलब यह नही कि तुरन्त एक्शन हो आवाज उठाने का मतलब उन तमाम महिलाओं से जुड़ा है जो आए दिन घरेलू हिंसा की शिकार हो रही।फिर भी चुप्पी का घूंघट लिए बैठी है।

तर्क-वितर्क की दुनिया मे विचार प्रकट करना जरूरी जहाँ खुल के विचार प्रकट करने का अवसर मिले तो बात होनी चाहिए...बार बार होनी चाहिए। मुझे नहीं लगता कि इसे समाज को कोई आहात पहुँचता है। महिलाओं के विरुद्ध यौन उत्पीड़न, फब्तियां कसने, छेड़खानी, वैश्यावृत्ति,महिलाओं और लड़कियों को ख़रीदना-बेचना आदि जैसे शर्मनाक अत्याचार के खिलाफ महिलाएं आगे नही आती। जिसका मुख्य कारण समाज है। एक ऐसा समाज जो खुद उसी नीतियों पर चलता है मगर दूसरों पर तंज कसते बाज नही आता। जब किसी महिला पर अत्याचार होता है तब यही समाज कुछ नही करता लेकिन पड़ोस की महिला के साथ छेड़छाड़ या यौन उत्पीड़न जैसे मामले सामने आ जाएं तो यही समाज अख़बार से भी तेज खबरों का प्रसारण करने लगता है। महिलाओं पर बढ़ रहे अत्याचार के खिलाफ जब तक वे स्वयं आगे नहीं आएंगी, तब तक उन्हें न्याय के लिए दूसरों पर ही आश्रित रहना पड़ेगा। ऐसे में अत्याचारों पर जल्द लगाम लगाने की बात केवल चर्चाओं तक ही सीमित रह जाएगी। समाचारपत्र,चैनल घटनाओं से पटे पड़े रह जाएंगे। हर वर्ष 25 नवंबर को महिलाओं के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय हिंसा उन्मूलन दिवस के रूप में मनाया जाएगा। जहाँ संयुक्त राष्ट्रसंघ के लिए महिलाओं के प्रति बढ़ते हिंसा का गंभीर चिंता का विषय है, वही उसे रोकने के लिए जघन्य कदम।लेकिन सवाल तो यह उठता है कि क्या इसे चिंता का विषय बनाया जाना चाहिए या ठोस आधार वाला कानून? आज भी हमारे सामने पीड़ित महिलाओं के उदाहरणों में कमी नही है। समाचार पत्र, समाचार चैनल, वेब चैनल, रेप, दहेज़ के लिए हत्या, भ्रूण हत्या की घटनाओं से भरे पड़े मिलते हैं।इन आंकड़ों में दिन पर दिन बढ़ोतरी हो रही। महिलाओं पे होने वाली हिंसा और शोषण की घटनाएं खत्म होने का नाम नही ले रही। आज हर क्षेत्र में पुरुष के साथ ही महिलाएं भी तमाम चुनौतियों स्वीकार रही है,कई क्षेत्रों में तो महिलाएं पुरुषों से भी आगे हैं। लेकिन दुर्भाग्य... यह है कि समाज के कुछ पुरुष प्रधान मानसिकता वाले यह मानने के लिए तैयार नही कि महिलाएं भी उनकी बराबरी करें।दिन पर दिन सेक्सुअल क्राइम व रेप केस बढ़ रहे। ये तभी था जब महिलाएं चुप थी और ये आज भी है जब महिलाएं आवाज उठा रही।घरेलू हिंसा कि जड़े आज भी हमारे समाज व परिवार को जकड़े हुई हैं। सच्चाई तो यह है कि आज भी महिलाएं अपनी बात रखने में संकुचाती है। वही कुछ महिलाओं को अपनी बात रखने का मौका सोशल साइट्स ने दे दिया है, जिसपर आए दिन बहस का अवसर भी मिलता हैं।फेसबुक जैसी साइट्स पर महिलाएं यौन उत्पीड़न,घरेलूहिंसा,छेड़छाड़,मुद्दों पर जबरदस्त बेबाक बोल रही है। आज तमाम नारी सशक्तिकरण मोर्चा अभियान चलाने वाले महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को रोकने का कार्य कर रहे। सरकार तमाम अभियान चला रही लेकिन सारे मुहिम नक्कारा साबित होता नजर आता है।जब किसी महिला को लाचार बना दिया जाता है उसे विवश कर दिया जाता है। घर के चार दिवारी के पीछे होने वाली हिंसा घरेलू हिंसा ही कहलाती हैं।जहाँ न बोलने की सलाह दी जाती है। कन्या भ्रूण हत्या, नवजात कन्या शिशुओं की हत्या, एसिड अटैक, मानव तस्करी, ऑनर किलिंग व दहेज से संबंधित हिंसा व शोषण। एक ओर जहां यौन हिंसा की घटनाएं सुर्खियां बटोर रही,वहीं एक बड़ी समस्या ‘मानव तस्करी’ की ओर हर साल बिहार, झारखंड व छतीसगढ़,केरल से लाकर हजारों लड़कियां बड़े शहरों में बेच दी जाती हैं या उन्हें देह-व्यापार के दल-दल में धकेल दिया जाता हैं। मुझे गर्व है कि मैंने एक लड़की के रूप में जन्म लिया है। नारी, ममता और त्याग की मूरत जरूर है,लेकिन मेरी माँ ने मुझे हर गलत का विरोध करना सिखाया है। हमें आवाज उठानी चाहिए।चार दिवारी के भीतर हमें अधिकार मांगने की जरूरत नहीं।अत्याचार तभी रूकेंगे जब हम आवाज उठाएंगे। मेरा मानना है कि अब वक़्त तभी बदलेगा जब बेरोजगारी सुधरेगी।तभी समाज का नजरिया व सोच। आज तमाम नारी सशक्तिकरण मोर्चा अभियान तो चलाए जा रहे लेकिन यहाँ भी एक सवाल उठता है कि क्या यह है महिला सशक्तिकरण ? सोचना होगा कि कहीं हम सशक्तिकरण के नाम पर अराजकता तो नही फैला रहें। कहीं हम समाज में प्रचलित रीति-रिवाज और प्रथाओं का उलंघन तो नही कर रहे। हम नारी  स्वतंत्रता का गलत फायदा तो नही उठा रहे। ऐसा इसलिए कह रही क्योंकि सशक्त होने का मतलब ही मन-मर्जी से जीना और सामाजिक रीतियों को तोड़कर अपनी अच्छी-बुरी हर ख्वाहिशों को पूरा करने की कोशिश करना। समय आ गया है हम इसकी परिभाषा को समझें और सशक्त बने। असल मायनों में परिभाषित करें तो हम यह कह सकते हैं कि महिलाओं को अपनी जिंदगी के हर छोटे-बड़े काम का खुद निर्णय लेने की क्षमता होना ही सशक्तिकरण है। खासकर हमारे पारंपरिक ग्रामीण समाज की महिलाएं जो अपनी इच्छा शक्ति, स्वतंत्रता और स्वाभिमान को दबाकर जीने के लिए मजबूर हैं।अब सवाल यही है कि ऐसे समाज में नारी का सशक्त होना कितना आसान है और कितना कठिन? कहने को तो बेटियाँ घर की लक्ष्मी होती है लेकिन घर के बाहर हर जगह वह मानसिक लोगो व हिंसा की शिकार होती है, लांछित होती है। बड़े बुजुर्गों को तो याद ही होगा कि एक समय महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा जाता था, न ही कोई रोजगार करने दिया जाता था, उन्हें घर की चार दिवारी में कैद कर दिया जाता था। यह सच है कि अब हालात पहले जैसे नही हैं महिलाएं शिक्षित होने लगीं हैं, हर क्षेत्र में आगे बढऩे लगी हैं, लेकिन फिर भी हालत वहीं की वही है क्या महिलाओं का शोषण बन्द हो गया है? क्या महिलाओं पर होने वाली हिंसा रुक गई है? चर्चा तो होती है लेकिन चिंतन नही होता, प्रयास तो होते हैं लेकिन सुधार नही होता।

ganga arti at tulsi ghat....dev deepawali

मोक्ष कामना से जुड़ा है ...आकाशदीप

स्वच्छता को हम आप कितना तवज्जो दे रहे। गंगा स्वच्छता अभियान

agomoni part 2

Agomoni A short documntry.2017