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वर्णमाला से कविता

बावरी खुशी

75years india

कैंची से भी तेज चले बहू की जुबां

उफ़्फ़फ़ ये इश्क़ बांवरा सा मन!

चलो एक बार फिर माँ को याद कर लिया करते है

उफ़्फ़फ़ ये इश्क़ बांवरा सा मन!

माँ भी गलत हो सकती है#मैं माँ हूं बेहतर जानती हूं

वो बूढ़ी माँ

आख़िर ये खतरे की घण्टी बजाई किसने?