माँ भी गलत हो सकती है#मैं माँ हूं बेहतर जानती हूं
तुम एक काम ठीक से नही कर सकते निकम्मा ,नकारा,नासमझ कही का।दिमाग खराब कर के रख दिया है इसने।सोसायटी में कोई इज्ज़त नही बची। मिसेज भाटिया सोसाइटी के उन सभी बच्चों से हमेशा नुकुल की बराबरी किया करती थी,जो पढ़ने में अव्वल और खेलकूद ,प्रतियोगिता में भाग लिया करते।कम नम्बर आने पर मिसेज भाटिया नुकुल से कहती-" तुम जीवन मे कभी कुछ नही कर सकते।सीखो अन्य बच्चो से कितने ब्रिलियंट दिमाग के है वो और एक तुम हो नालायक।इस तरह से नुकुल से थोड़ी भी भूल चूक होती मिसेज भाटिया डाँटना शुरू कर देती की तुमसे एक भी काम ठीक से क्यों नही होते। तुम्हे दिमाग मे कुछ घुसता भी है या घास चर के पैदा हुए। अरे हद है ऐसे बच्चे होने का जो माँ बाप का नाम ना रोशन कर सके। देखो अपने सोइइटी के दोस्तो को तुमसे हर चीज में फिट एंड फाइन है। एक तुम हो तुमसे तो जैसे ईर्ष्या हो रही। मिसेज भाटिया के गुस्से का लेवल हर रोज ही हाई रहता था। नुकुल नुकुल नुकल से ही सारा घर गूँजता था। पूरे दिन भाटिया उसे सुधारने की कोशिश में लगी रहती इधर इससे आहत नुकुल जो कि कम उम्र में ही मानसिक तनाव से गुजर रहा था। जिसका ख्याल शायद मिसेज भाटिया दे तो सकती थी मगर दे नही पा रही थी।उन्हें इस समय अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चो से करना ज्यादा जरूरी सा हो रहा था।
ठीक वैसे ही जैसे हर माँ बाप अपने बच्चो की तुलना दूसरे के बच्चो से किया करते है। ठीक वैसे ही मिसेज भाटिया भी अपने बच्चे को हर चीज में परफेक्ट और अपनी अपेक्षाओं पर खरा उतारने की कोशिश करती। देखा जाए तो उनकी अपेक्षा भी कम नही। सोसाइटी के हर छोटे बड़े बच्चो से नुकुल की तुलना करना कही ना कही भारी सा हो रहा था।मिसेजभटिया कि लिए नही अपितु नुकुल के लिए।
वक़्त बीतता गया और नुकुल धीरे धीरे डरा हुआ भय खाए सबकुछ करता। लोग भी उसे डराने के लिए मिसेज भाटिया का ही नाम लेकर डरा देते और काम भी निकाल लेते।धीरे धीरे नुकुल की तबियत बिगड़ने लगी। जब भी परिवार के अन्य सदस्य नुकुल को लेकर चिंतित रहते मिसेज भाटिया एक एक्शन के रूप में खड़ी हो कर कहती उसे कुछ नही हुआ है निकम्मा है और कुछ नही। नाटक है इसके बस।
मिसेज भाटिया को शायद नही पता था कि उनका यह व्यवहार उनके घर के लिए क्या मुसीबत ला रहा। डाँट फटकार तो जायज है लेकिन क्या हद से अधिक भी?शायद नही! ठीक उसी तरह जायज नही जिस तरह हम अपनी क्षमता से ज्यादा खा ले तो अपच हो जाता है,बदहजमी हो जाती है। ठीक वैसे ही एक बच्चे को उम्मीद से ज्यादा उम्मीदवार बनना मुसीबत हो जाता है। हर समय जबरदस्ती करना जायज़ नही। अनावश्यक बोझ लादना सही नही।नुकुल एक रोज अचानक से बेहोश हो गया। घर परिवार के लोग उसे सीधे डॉक्टर के पास ले गए। मगर नुकुल की हालत जस तस बनी रही।तमाम जाँचो के बाद ये साफ हुआ कि नुकुल ठीक है उसे कोई बीमारी नही। लेकिन अक्सर नुकुल अचानक बेहोश हो जाता। गुमशुम रहता। तब तब मिस्टर भाटिया ने निर्णय लिया कि नुकुल को एक बार किसी अच्छे मनोचिकित्सक को दिखाया जाए। इस बात पर मिसेजभटिया बेहद नाराज हुई और नाराजगी भरे लहजे में कही नाक में दम कर के रखा है इसने इसको कुछ नही हुआ है ये सब इसके ड्रामे है ताकि मैं कुछ ना बोलू। मिस्टर भाटिया मिसेज भाटिया का यह स्वभाव देख कर रुष्ट हो चुके थे। उन्होंने निर्णय लिया और मनोचिकित्सक के पास पहुँचे। तब डॉक्टर ने मनोचिकित्सक ने बताया कि- बच्चो को ऊर्जावान सक्रिय बनाए लेकिन दबाव ना डाले क्योंकि ये जरूरी नही की हर बच्चा एक सा हो। बच्चो के साथ इस तरह का व्यवहार करने से उन पर नकारात्मक व्यवहार का बुरा असर पड़ता है। उनकी मनःस्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। वे अपने माता पिता से नफरत करने लगते है और ये धारणा बना बैठते है कि हम कुछ भी क्यों ना कर ले उन्हें दोष तो हमे देना ही है। नुकुल के साथ भी ठीक वैसे ही हुआ है। इससे इनका आत्मविश्वास कमजोर हो जाता हैं और खुद को हीन समझने लगते है। नर्वस महसूस करने लगते हैं। कभी कभी कुछ बच्चे ऐसे मनोभाव में गुस्सा, दांत भिचना ,अवसाद के शिकार होना सामान्य है। बल्कि ऐसे दशा में खुद को सामान्य करे,खुद में बदलाव लाए। बच्चो की हर गलतियों पर टिका टिप्पणी करने से बचे। संयम रखें। छोटी छोटी गलतियों पर उसे डांटे नही प्यार से समझाए। आज मिसेज भाटिया को अपने गलती का अहसास हो चुका था। एक माँ होना और बेहतर से ज्यादा बेहतर बनने लगना मुश्किल खुद के लिए ही होता है।
ठीक वैसे ही जैसे हर माँ बाप अपने बच्चो की तुलना दूसरे के बच्चो से किया करते है। ठीक वैसे ही मिसेज भाटिया भी अपने बच्चे को हर चीज में परफेक्ट और अपनी अपेक्षाओं पर खरा उतारने की कोशिश करती। देखा जाए तो उनकी अपेक्षा भी कम नही। सोसाइटी के हर छोटे बड़े बच्चो से नुकुल की तुलना करना कही ना कही भारी सा हो रहा था।मिसेजभटिया कि लिए नही अपितु नुकुल के लिए।
वक़्त बीतता गया और नुकुल धीरे धीरे डरा हुआ भय खाए सबकुछ करता। लोग भी उसे डराने के लिए मिसेज भाटिया का ही नाम लेकर डरा देते और काम भी निकाल लेते।धीरे धीरे नुकुल की तबियत बिगड़ने लगी। जब भी परिवार के अन्य सदस्य नुकुल को लेकर चिंतित रहते मिसेज भाटिया एक एक्शन के रूप में खड़ी हो कर कहती उसे कुछ नही हुआ है निकम्मा है और कुछ नही। नाटक है इसके बस।
मिसेज भाटिया को शायद नही पता था कि उनका यह व्यवहार उनके घर के लिए क्या मुसीबत ला रहा। डाँट फटकार तो जायज है लेकिन क्या हद से अधिक भी?शायद नही! ठीक उसी तरह जायज नही जिस तरह हम अपनी क्षमता से ज्यादा खा ले तो अपच हो जाता है,बदहजमी हो जाती है। ठीक वैसे ही एक बच्चे को उम्मीद से ज्यादा उम्मीदवार बनना मुसीबत हो जाता है। हर समय जबरदस्ती करना जायज़ नही। अनावश्यक बोझ लादना सही नही।नुकुल एक रोज अचानक से बेहोश हो गया। घर परिवार के लोग उसे सीधे डॉक्टर के पास ले गए। मगर नुकुल की हालत जस तस बनी रही।तमाम जाँचो के बाद ये साफ हुआ कि नुकुल ठीक है उसे कोई बीमारी नही। लेकिन अक्सर नुकुल अचानक बेहोश हो जाता। गुमशुम रहता। तब तब मिस्टर भाटिया ने निर्णय लिया कि नुकुल को एक बार किसी अच्छे मनोचिकित्सक को दिखाया जाए। इस बात पर मिसेजभटिया बेहद नाराज हुई और नाराजगी भरे लहजे में कही नाक में दम कर के रखा है इसने इसको कुछ नही हुआ है ये सब इसके ड्रामे है ताकि मैं कुछ ना बोलू। मिस्टर भाटिया मिसेज भाटिया का यह स्वभाव देख कर रुष्ट हो चुके थे। उन्होंने निर्णय लिया और मनोचिकित्सक के पास पहुँचे। तब डॉक्टर ने मनोचिकित्सक ने बताया कि- बच्चो को ऊर्जावान सक्रिय बनाए लेकिन दबाव ना डाले क्योंकि ये जरूरी नही की हर बच्चा एक सा हो। बच्चो के साथ इस तरह का व्यवहार करने से उन पर नकारात्मक व्यवहार का बुरा असर पड़ता है। उनकी मनःस्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। वे अपने माता पिता से नफरत करने लगते है और ये धारणा बना बैठते है कि हम कुछ भी क्यों ना कर ले उन्हें दोष तो हमे देना ही है। नुकुल के साथ भी ठीक वैसे ही हुआ है। इससे इनका आत्मविश्वास कमजोर हो जाता हैं और खुद को हीन समझने लगते है। नर्वस महसूस करने लगते हैं। कभी कभी कुछ बच्चे ऐसे मनोभाव में गुस्सा, दांत भिचना ,अवसाद के शिकार होना सामान्य है। बल्कि ऐसे दशा में खुद को सामान्य करे,खुद में बदलाव लाए। बच्चो की हर गलतियों पर टिका टिप्पणी करने से बचे। संयम रखें। छोटी छोटी गलतियों पर उसे डांटे नही प्यार से समझाए। आज मिसेज भाटिया को अपने गलती का अहसास हो चुका था। एक माँ होना और बेहतर से ज्यादा बेहतर बनने लगना मुश्किल खुद के लिए ही होता है।
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