तो क्‍यों न एक कप चाय हो जाए! चाय की परम्परा टी-टॉक से शुरू हुई । चाय की चुस्कियों का असली मजा मसाला चाय के साथ हीआता है। ये वो है जो आलस को दूर भगाती है,गपशप का मजा बढ़ती है।प्यार को पास लाती है जो अपनेपन का अहसास दिलाती है वह चाह है चाह वाली चाय । चाय पर हमारे देश मे बड़े बड़े काम होते रहे है। जब समय होता है तभी,नही होता तभी। नुक्कड़ों पे लगने वाली चाय की चुस्की ओर उसके साथ चुटीले ठहाके,कभी कभी तो राजनीति वाद विवाद भी चुस्की में घुल जाती हैं। कभी मिट्ठी टकरार,तो कभी व्यंग्यात्मक चहास। सरकारी काम काज भी 1कप चुस्की से जुड़ी होती हैं। आज भारत का कार्य भी एक चाय की चुस्की पे डिपेंड है। दफ्तर हो या चाय की दुकान लोकचर्चा की चौपाल हर जगह गूंजती है। इस बार तो देश के प्रधानमंत्री चाय की चुस्की के साथ ही लोकतंत्र पर चर्चा कर डाले। देखा जाए तो आज चाय चौपाल यूनिवर्सिटी के बाहर ,नुक्कड़ पर,घाटों,नदियों पर,चुस्की पे डिपेंड है। जरा से समय मे एक चाय की चुस्की न जाने कितने समस्याओं को हल कर देती है। घर आए लड़के वाले भी लड़की के बनाए चाय से ही रजामंद हो जाते हैं,वाह क्या चाय है। जो जरा सी नोक झोंक को भी चाय के माध्यम शांत की जाती हैं। हिंदुस्तान का रिवाज वाकई खूब है ,घर पे कोई आए तो उसे पानी से पहले ये कहकर सम्बोधन करेंगे "भाई साहब बस एक कप चाय हो जाए"।चाय का एक प्‍याला पीने के लिए वैसे दुनिया में बहानों की कमी नहीं है। कुछ लोगों को आपस में बात करनी हो तो चाय का बहाना अच्‍छा है। किसी को मिलने के लिए बुलाना हो तो, 'आइए, एक-एक कप चाय हो जाए'। अब आप इसे एक कप चाय के बजाए एक कप दोस्‍ती का भी कह सकते हैं। जब बात इतने सारे बहानों को आसान बनाने वाली चाय की हो तो कोई भला आज के दिन 'अंतरराष्‍ट्रीय चाय दिवस' को कैसे भूल सकता हैं।

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