क्या यही प्यार हैं पार्ट -1

ओह्ह पापा को क्यों नही दिखता उसका अथाह सागर वाला प्यार मेरे लिए। सुमेधा बेचैन हो उठ रही थी कि आखिर क्यों वो बार बार ,हर बार जाति पाती के सागर में गोते खाने लगते है। क्या प्यार में जाति पाती मायने रखता है। किसी का टूट कर मानना खुश रखना मायने नही। किसी बात की हद होती है। कैसे समझाऊँ पापा को मैं प्रवीण को बहुत ज्यादा प्यार करती हूँ।उसके सुख दुख की छाया बनना चाहती हूं। वो प्यार जो उसे नसीब नही हुआ।

प्रवीण के घर का कोई भी नही था। प्रवीण के माता पिता की मृत्यु गांव से आते समय रोड एक्सीडेंट में हो गयी थी। प्रवीण बहुत छोटा था, अपनी मौसी के साथ कुछ दिन बिताए वक़्त के पत्थरों ने चुभन और कठोर बना दिया। शायद यही उनकी जिंदगी का वो मोड़ था जब प्रवीण अपने कमाए हुए पैसों से अपनी पढ़ाई को पूरा करने के लिए कॉलेज में एडमिशन लिया। और फिर हमारी मुलाकात।







क्या माता पिता के न होने से पापा इस रिश्ते को नकार रहे,ये बात सुमेधा के दिमाग मे आते ही उसने कमरे से दौड़ती हुई खटपट खटपट करती हुई सीढ़ियों से उतरी और पापा के पास पड़ी कुर्सी को खिंचते हुए बोली-कुछ पूछने आयी हु आपसे।पापा ने बड़े अनमने तरीके से जवाब दिया पूछो। सुमेधा ने पापा का हाथ पकड़ते हुए मक्खन लगाने की कोशिश शुरू की...मगर कहा बुजुर्गों को मक्खन चढ़ने वाली। सुमेधा बड़ बड़ बोलती रही। पिता उसे सुनते रहे। सुमेधा कुछ देर रुक गयी शांत हो देखने लगी ।फिर टपाक से बोली अगर आज प्रवीण के मां बाबा होते तो आप शादी कर देते ना। लेकिन मेरी भी तो माँ नही है। अगर आज मैं प्रवीण होती और प्रवीण सुमेधा होता और मैं आपकी बेटी का हाथ मांगने आती तब। पापा शांत हो जैसे मेरा एक्टिंग देख रहे हो,सुमेधा हिलाते हुए बोली बस यही सब अच्छा नही लगता।
खुद को कुछ बोलना ही नही है। बक। मैं भाग जाऊंगी आपको छोड़ कर बहुत दूर प्रवीण के साथ अपनी  दुनिया मे रहिएगा आप अकेले अपने ऐंठ में सुमेधा बड़बड़ाते हुए सीढ़िया चढ़ी जा रही थी। आकर कमरे को बंद कर लेट गयी। प्रवीण का फोन आया-हेल्लो ,कैसी जो? ठीक हु सुमेधा मुरझाए हुए बोली। अरे हमारी शादी हो जाएगी डोंट वरी प्रवीण ने समझाते हुए कहा कुछ न कुछ तरीका होगा उनकज मनाने का। सुमेधा खींज कर बोली यार पापा रिटायर आर्मी है । उनकी अकड़ कहा इतने जल्दी झुकने वाली अब हमें ही कुछ करना होगा। 

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