ससुराल के व्यंग्यबाण | कहानी -1


आजकल की बहुएं एक काम करने में ही थक जाती है।हे भगवान देखो तो पूरा घर कैसे बिखरा पड़ा है। अरे बहू थोड़ा साफ सफाई का भी ख्याल रखा करो।बस एक काम पकड़ कर खाना बना ली खा ली सोगयीं। हे भगवान!मुझे ऐसी बहू क्यों दे दी। सरला की बहू देखो,और एक हमारी। हमारी तो किस्मत ही फूट पड़ी है।

माया यह सब सुनते सुनते पक चुकी थी। कुछ नया नहीं था उसके लिए हर रोज का आलाप था ये,माया बुदबुदाती हुई कमरे से निकली बस बहुत हो गया अब बर्दाश्त नही। आए दिन के ये ताने नसों को फाड़ देंगे। मम्मी जी आप बुला रही थी माया ने सासुजी से पूछा। अरे हा ये क्या हाल बना रखा है मेरे घर का,जिधर देखो उधर गन्दगी। मम्मी जी मे भी तो इंसान हूं। पूरे दिन कितना लगी रहू। सुबह भोर से ही किचन में जुट जाती हूं, नास्ता ,खाना,ऊपर से इस भयानक गर्मी में सबकी फरमाइश का नाश्ता बनना आसान तो नही। मैं भी इंसान हूँ रोबोट नही जिसे गर्मी ना लगे  या थकान।

जब से लॉकडाउन लगा है हर कोई घर पर ही है कभी कोई कुछ फेक देगा या कभी कोई कहि खा कर फेंक देगा। ननद जी के बच्चे तो पूरा सोफा काउच सब तहस नहस कर देते है। मैं कितना समेटु आप बताइए। कभी कोई खाकर चिप्स का पैकेट बिस्तर के नीचे दबा देगा या तो सोफे के गद्दों के नीचे अरे दिन भर तो मेरा आपके लोगो के आवभगत ,खान पान,तानो में बीत जाता हैं। पूरे दिन झाड़ू पोछा किसके घर लगता है लेकिन यहाँ दिनभर एक ही काम। कभी कोई मेरे बारे मे सोचता है मैं भी थक जाती हू। खड़े खड़े काम करते करते।

माया की सासूमाँ सुनाते हुए बोली आए -हाए देखो तो कैसे जुबा चला रही। औरत जात का धर्म ही यही है। जवाब देना धर्म नही। मम्मी जी जब अति होती है तभी अंत होता है,वैसे भी इस घर मे मैं अकेले ही तो औरत जात नही। फिर घर की बाकी औरतों को क्यों नही ये बताया।वो क्या मर्द है। माया ने अपनी ननद और देवरानी की तरफ इशारा करते हुए बोली।सासूमाँ तिलमिला कर ऊंची आवाज में बोली तुझे क्यों चुभ रहा। अपने ससुराल में वही काम किया करती
है तू नही।बेटी अपने घर मे आराम करती हैं। माया ने बीच में ही टोकते हुए कहा-हा सही तो आज आपने कहा है मैं तो बहू हू, बहू भी कहा आपके घर की बाई हु। अच्छे से याद है मुझे सब जब आप पुनीत पापा जी रिश्ता लेकर हमारे घर आए तो यही बोले हमे तो बहू नही बेटी चाहिए। ये तो हमारी बेटी है हमारे आँगन की कली अब बहू कैसे हो गयी मम्मी जी। माया की सास बड़बड़ाते हुए कमरे में चली गई आजकल बहुए राम बचाए। इधर हॉल में खड़ी माया अपने आँसू को पोछ कर वापस से काम मे लग गयी। लेकिन उसे बस इतना सुकून मिला कि आज तक वो जो घुट घुट कर सुन रही थी आज भड़ास बाहर निकल गयी। 

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