जिंदगी का बदलता कैनवास





आज सुबह मोतीलाल चौराहे पर एक बहुत बुरा सड़क हादसा हो गया,जिसे देखकर लोगो की रूह कांप जानी चाहिए थी, मगर ऐसा नहीं हुआ। बल्कि हर कोई अपने कैनवास हाथ में थामे उस पूरी घटना को क़ैद कर सोशल साइट्स पर अपनी पब्लिकसिटी बटोरने के लिए,जुटा हुआ था। यह देख मन अत्यंत दुखी हो गया। आज के घटना स्थल पर खड़े लोगो ने इंसानियत जैसे शब्द को ताखे पर वाकई रख दिया। इस बदलते सामाजिक स्वरूप को देख कर एक आईना तो जीवन को जरूर दिख गया कि आज वाक़ई इंसानियत, मानवता, ये सब सिर्फ और सिर्फ़ शब्द है इस्तेमाल के लिए। असल मे तो इसका चेहरा ये है जो मैं आज देख रही हूं। 

वास्तव में आज पत्रकारिता की डिग्री लेना फालतू सा लगा।क्योंकि आज के बदलते परिवेश में हर कोई खुद को पत्रकार समझता है मानो अपनी ड्यूटी निभाता हो जैसे। कोई उस घटना के साथ खुदखेचु बना पड़ा था तो कोई वीडियो ग्राफर। देखा जाए तो इंसानियत लेकर चलने में फायदा ही कहा है ज़नाब! इंसानियत दिखाएंगे तो वीडियो कैसे बनाएंगे।
समय ने आज हर जेब को बड़े बड़े कैनवास को जगह दे दिया और कैमरा छोटा हो या बड़ा, लेकिन हर किसी की जेब बुक कर लिया है। मगर कमाल की बात तो यह है कि ये जनादेश पत्रकारिता के पत्रकार जितनी तेजी से तस्वीरे उतारते है उतनी ही तेज से वायरल कर देते है, जो शायद यही गतिविधि उनके जीवन के लिए खतरनाक भी साबित हो सकती हैं।

बहरहाल ,लोगो की गतिविधियां देखकर आज यही समझ आ रहा कि कैमरे के बड़े होते कैनवास ने हर किसी को निशाना बना लिया है। मोबाइल ने जहाँ जनादेश पत्रकारिता को जन्म दिया वही लोगो की जिंदगी के कैनवास को भी बड़ा कर दिया। हम कह सकते है कि आने वाले समय में ये थिरकती उंगलियां एक बार फिर दुनिया को नई पहचान दिलाने में कामयाब जरूर होगी ओर शायद एक नई विधा की शुरुआत भी।

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