असुरक्षित समाज में नरभक्षीयो का डेरा




ये कैसी तरक्की ,ये कैसा विकास?जहाँ हर रोज,हर पल हो रही इंसानियत शर्मसार? ये कैसा दौर, ये कैसा देश,कैसा समाज ,जहां हर पल बेटियों पर बुरी नज़र है? ये कैसी है सभ्यता, ये कैसी है संस्कृति, जहाँ एक महिला का स्त्री मात्र होना ही दोष है?

अक़्सर सुनने में आता है .....

" मार दी जाती है बेटियां कोख में तब,
जब-जब धरती पर कलियुगी रावण का जन्म होता है।
सुला दी जाती है वो मासूम बच्चियां थपकी देकर कोख़ में,
दफ़न कर देती है वो माए आए-दिन कोख़ में। "

सुना था पुरनिये बेटी होने पर मुँह छिपाया करते थे, आज देश मे बेटी असुरक्षित होने के नाते ,कलंकित का ठप्पा न ठुकने के नाते लोग बेटियों को पहले ही दफन कर देना ठीक समझते हैं। याद कीजिए बात बात पर संस्कृति और इतिहास को दोहराने वाले....जब भरी सभा मे द्रौपदी का चीरहरण हुआ था तब भगवान विष्णु ने अपने अवतार में उनके लाज को बचाने की कोशिश की लेकिन आज लाज बचाने वालों की संख्या न के सामान हो गयी हैं।
         जब एक महज़ छ साल की बच्ची अपने पिता चाचा के साथ सुरक्षित नही तो इस दुनिया मे पनप रहें,रावणी रूप से बेटियां कैसे सुरक्षित रहेंगी?

मगर रावण भी इतना बड़ा राक्षस नही था, उसने भले ही सीता का अपहरण कर लंका ले गया,मगर पुराणों के अनुसार उसकी छवि भी धूमिल नही। उसने कभी सीता के साथ यौन शोषण नही किया? मगर इस बात में कितना दम है कितनी सच्चाई,कितना मापदंड .....वो तो सिर्फ़ सीता व रावण ही बता सकते हैं।

सुना तो ये भी है पूरे धौस के साथ हम हमेशा जो भी कुछ सीखते है तो अपने से बड़ो से ही सीखते हैं। तो क्या इस समाज मे रह रहे,पुरूष प्रधान यही सीखें है? उन्हें शायद ये ज्ञात नही कि इस धरती पर द्रौपदी और सीता के अलावा और भी स्त्रियों का जन्म हुआ...वो थी जगदंबिका व काली जो दुष्टों का नाश करने के लिए ही जन्म ली।

जिस दिन इस कलयुगी युग में एक बार फिर माँ जगदम्बिका का जन्म होगा,उस दिन शायद इस धरती पर एक बार फ़िर नया अध्याय जन्म ले गा।

आख़िर क्यों आज एक स्त्री को सिर्फ़ भोग के रूप में देखा जाता हैं। जब एक महज छ साल की बच्ची अपने पिता से ये पूछती है कि पापा मैं बड़ी कब होऊँगी ? तब क्यों चुप रहता है ये समाज? जब एक बेटी अपने घर मे यौनउत्पीड़न से जूझ रही होती हैं तब कौन उसके दर्द को समझ सकता हैं।
आज स्त्री मात्र चर्चा रूपी हो गयी हैं।

पापा मैं बड़ी कब होऊँगी? तुम तो छोटी में ही बहुत प्यारी हो अपने पापा के साथ खेलती हो घूमती हो फिर क्यों बड़ा होना। रिया ये सब सुन चुप हो गयी। उफ़्फ़फ़! यू मासूम जिंदगीयो का तार तार होना,ओर जिंदगी के हर रोज बेमौत सा महसूस करना, न खुशी न गम सिर्फ़...... शोषण।

सुन अटपटा लग रहा न ,महज  छ साल की बच्ची रिया जो हर रोज अपने ही घर मे यौन शोषण की शिकार होती है। जिसका शिकारी उसका खुद का पिता और चाचा है। शर्मशार करते ये आज के रिश्ते जो समाज को शर्मसार कर रहे,साथ ही ऐसे हैवानों को न तो उन्हें अपने रिश्ते की पड़ी है न समाज की।

महज़ इतनी छोटी उम्र की रिया को इतनी समझ तो नही उसके साथ क्या सही और क्या गलत हो रहा, मगर इतनी समझदारी जरूर थी कि उसके साथ कुछ तो गलत हो रहा जो शायद ठीक नही।

एक सभ्य समाज की डिमांड रखने वाले,बात बात पर सभ्यता का पाठ पढ़ाने वाले , और अनपढ़ पढ़े लिखें का विस्तार वर्णन करने वालों के बीच बसे ऐसे लोग जो आज भले ही ऊँची मीनारों के कॉलोनियों में रहते हो लेकिन उन दीवारों के भीतर हो रहे जुर्म का अहसास सिर्फ उन्हें है जिनके साथ गुजरती हैं। पूछिये उन मासूम बच्चियों से क्या वो कभी खुल कर रो पाए या चीखों को दबा दिया गया?

रिया जैसी न जाने कितनी बच्चियां या तो यौनउत्पीड़न की शिकार हुई या तो व्यपार में शामिल कर दिया गया। ये मासूम कोमल मस्तिष्क के बच्चे ये नही जानते कि क्या सही क्या गलत अगर गलती है तो हमारे समाज की जिसने सेल्फ सेल्फ कह कर एक संयुक्त परिवार को तोड़ा और एकांकी परिवार को जन्म दे दिया।

जिसे बच्चें अकेले हो गए और माँ पिता ऑफिस, किसी को इतना समय नही की वो अपने बच्चो को सुने ,समझे, उनके साथ बातचीत करे। ऐसे में बच्चे भी उन्हें करीब समझते है जो उनसे थोड़ा घुला मिला हो चाहें वो गलत भावना से ही क्यों न जुड़ा हो।

रिया जो कि छ साल की जरूर थी मगर शरीर से इतनी स्वस्थ की लोग उसे बड़ा मानते। रिया की माँ नर्स थी, रिया के पिता एल आई सी एजेंट उसके चाचा चुनु जो कि अक्सर ही मुंबई रहा करते कभी अपने काम के बारे में बात तक न कि उन्होंने की वो क्या करते है। ख़ैर पूरा परिवार ठीक चल रहा था। इधर चाचा कुछ दिनों से मुंबई से आ यही रुके थे, रिया के पिता और चाचा दोनों ही रिया को स्कूल लेने छोड़ने जाते। रिया भी अपने पिता से बेहद लगाव रखती जिस प्रकार हर बेटी का अपने पिता के ओर ज्यादा लगाव होता हैं।

बात उन दिनों की है जब रिया के साथ  पहली बार यौन शोषण हुआ,रिया बिल्कुल सुदबुद पड़ी हुई थी,उसके पिता के बाद उसके चाचा की बारी थी...ये पूरा मामला सिर्फ़ एक डेयर गेम पर आधिरत जिसमे जो हारेगा उसको सजा दी जाएगी, उसकी सजा क्या ये होनी चाहिए जो रिया के साथ ?

लिखने में भी ऐसी कई बातें शब्द से निःशब्द हो जाते है।रिया पूरे तरह से थकी हुई, आँखे सूजी हुई और हाथ पैरों में सूजन बुखार से लिप्त...बिस्तर पर चित पड़ी माँ का इंतजार करती रही। घड़ी में नो बजा,कॉल बेल बजी ... हर रोज माँ के आने पर रिया चहक कर दरवाजे को खोलती लिपट जाती मगर आज रिया उस हालत में नही थी। रिया के चाचा ने दरवाजा खोला अरे रिया कहा है वो भाभी उसको थोड़ा बुखार है दवा लेकर सो रही। बुखार कैसे आ गया मेरी गुड़िया को ... कमरे में घुसते हुए सविता रिया की माँ बोली , रिया अरे मेरी गुड़िया को बहुत तेज बुखार है। रिया की तबियत को देख उसने छुट्टी लेने की सोची क्योंकि बुखार कम नही हो रहा था न ही आंखों और हाथों पैरों के सूजन।

सविता को कुछ सही नही लगा उसने अपनी सास को कुछ दिन के लिए आने को कहा ,रिया की दादी तीन दिन बाद आ गयी , अब तक रिया काफी कवर हो चुकी थी मगर उसकी हँसी कहि छूट गयी हो जैसे,सविता को कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने रिया को स्कूल छोड़ने के बहाने रिया से रास्ते मे पूछा ,रिया तुम्हारे क्लास के बच्चे कैसे है अच्छे हैं, तुम को परेशान तो नही करते नही माँ। सविता को लगा शायद वायरल बुखार रहा हो, कुछ दिनों के बाद एक बार फिर रिया के चाचा ने स्कूल से लौटते समय अपने दोस्त के घर गाड़ी घुमा ली कि मुझे उनसे कुछ लेना है रिया बेटा हम अंकल के यहाँ से सामान लेते हुए चले, ओके चाचू..रिया ने स्माइल देते हुए कहा... कुछ देर के बाद चाचू आये कार के पास रिया आओ अंकल के घर वो आपके लिए मैगी बना रहे,आपको बहुत याद कर रहे, अरे वाह मैगी, रिया खुशी खुशी कार से उतर गई और चाचू के साथ उनके मित्र के घर दाखिल हो गयी। मैग्गी खाते उसे चक्कर सा अभाव हुआ। उसके चाचा रिया के स्कर्ट को ऊपर उठा उसके योनि को सहलाते हुए उसके मुंह को दबाया ओर पूरी घटना को एक बार फिर अंजाम दे दिया। जब उसे होश आया तब तक वो कुछ समझने के हालत में नही थी।

रिया की हालत गंभीर होती रही और एक दिन बुखार की हालत में ही वो माँ के पास गई और लिपट रोने लगी,सविता रिया क्या हुआ तुम किचन में क्यों आई तुमको कितनी तेज बुखार है। रिया को गोदी में उठा जब सविता रिया के कमरे में आई तब रिया ने माँ से कहा माँ मुझे बहुत दुख रहा, ह्म्म्म तुम्हे बुखार जो है मना की थी न स्कूल में अभी मत खेलना , माँ मैं तो सिर्फ चाचू और पापा  के साथ खेलती हु हार भी जाती हू तो मुझे सजा भी मिलती है। रिया के आंखों से आंसू गिरते रहते है माँ बहुत दुख रहा।

सविता को रिया की ये बात कुछ समझ नही आया तभी उसकी नजर घड़ी की ओर पड़ी अरे बाप रे रिया तुम्हारे चक्कर मे देखो ऑफिस लेट हो रहा, सविता उठ कमरे से निकलती है तभी विनय रिया का पिता कमरे में दाखिल होता हैं अरे रिया का बुखार उतरा की नही ,रिया का बदला बिहेव ओर एक चद्दर में सुकड़ते ओर दूरी बनाते हुए देख सविता को सोचने पर मजबूर कर दिया। उसने निर्णय लिया कि  रिया भी हॉस्पिटल में रहेगी ।


रास्ते में सविता ने रिया से पूछने का प्रयास जुटाया पापा चाचू कौन सा गेम खेलते है रिया मेरे साथ भी खेल कर बताओ। रिया माँ बहुत दुःखेगा।
नही दुःखेगा रिया बताओ तो रिया तो बच्ची थी मगर सविता उसके कम शब्दों को ही समझ गयी उसने हॉस्पिटल जाते रिया के टेस्ट करवाए मैटर क्लियर हो गया। सविता रोती रही जागृति उसकी असिस्टेंट ने हिम्मत देते हुए कहा, अब चुप मत रहो सविता। आज तक हर मासूम की जान बाहर वाले मगर यहाँ तो घर के आंगन में ही कली सुरक्षित नही। जिसकी सजा उसे कभी आठ माह तो कभी तीन साल,कभी आठ साल की उम्र तक मे माँ तक बनकर अपनी जान गवाई है। अगर आज तुम भी नही बोलोगी तो ऐसे ही ये क्रम बढ़ता जाएगा।

सविता जागृति की बात समझते हुए, उठती है और सीधे रिया को उसके टेस्ट को लेकर पुलिस स्टेशन पहुँचती है। पूरे मामले को सुन पुलिस भी सन रह जाती है। आज रिया के पिता और चाचू जेल में है जहाँ इनकी जगह है।

कभी कभी हम समझ ही नही पाते कि हमारे साथ क्या हो रहा। कभी कभी हम समझ कर भी नही बोलते की लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे। लेकिन सविता ने जो किया सही किया।
आए दिन बलात्कर अखबार चैनल इसी से रंगे हुए, हैवानियत आज इस कदर बढ़ गयी कि रिश्ते के मायने खत्म हो गए।

अब आप बोलये दामिनी ने तो कपड़े सही नही पहने थे उसके बाद के जितने केस हुए उन सभी ने कपड़े सही नही पहने ....कपड़े एक स्त्री के खराब नही ,बल्कि आपकी नजर खराब है। हर आये दिन छेड़छाड़ जो होते है हर समय कपड़े, नही नजरो का दोष है।

अगर आप अपनी नजर साफ कर ले तो बेहतर है। बेटी को बेटी , ही रहने दे बहन को बहन ,उसे नरभक्षी बन न नोंचे। एक सवाल तो पूछुंगी अगर ऐसा जब हमारे परिवार या बहन के साथ होता है तो हम जान लेने पर उतारू हो जाते है मगर जब दूसरे के साथ राह चलते छेड़छाड़ का मामला करते है तब क्यों भूल जाते है वो भी किसी की बेटी किसी की बहन किसी की अमानत होगी ।

पूजा जो कि आईएस की तैयारी कर रही, उसके साथ भी वही हो ने की कोशिश हो रही थी जो आज हर लड़की उसे पीड़ित है। शारीरिक उत्पीड़न छेड़छाड़ हर रोज का जीवन के हिस्सा जैसा हो चुका था। उसने ये सारी बाते अपनी माँ को बताई मगर उसकी माँ ने भी उसके कपड़े को लेकर सवाल कर दिए।

लोग कहते है जमाने के साथ चलो मगर सोच पुरानी ही रखो। ये गलत है जिस दिन हम अपनी सोच बदलेंगे उस दिन हम जमाने के साथ चलते हुए नजर आएंगे। पूजा सुबह उठते रोज की तरह तैयार हो ज्यो निकली माँ ने उसे टोका ओर घसीट कर कमरे में ले जाकर उसके हाथ मे अनारकली सूट थमाया जो कि पाव तक ढका हुआ था। पूजा ने गुस्से में माँ को देखा ,और फिर आंखे बंद कर दो मिनट गहरी सांस के साथ आंखे खोली सूट पहन निकली । माँ ने दुप्पटा कुछ यूं ओढ़ाया मानो बेटी पूरी तरह सुरक्षित है। पूजा माँ से बहुत कुछ बोलना चाहती थी मगर वो समझ गयी कि ये नही मानेंगी मेरी बात न समझेगी मेरी मनोदशा को। पूजा चुप चाप निकल पड़ी। आज उसने तय किया था कि ये कपड़े मेरे लिए सुरक्षित नही मुझे खुद को कैसे सुरक्षित रखना होगा अब ये सोचना जरूरी है।

ज्यो वो चौराहे तक पहुँची उन लड़कों की सीटी ओर गन्दे गन्दे भद्दे भद्दे कमेंट सुन पूजा चुप चाप बढ़ती रही। चौराहे तक पहुँचते पहुँचते उनमे से एक बाइक वाले ने पूजा की चुन्नी उसके शरीर से खिंचते हुई आवारा स्टाइल में किस देते हुए बोला अरे देखो तुम्हारी भाभी क्या बनकर आई है आज।
गजब क्या लग रही हो जानेमन। उतने देर में वो बाकी लड़के भी उसे घेर लिए, क्यों अबला नारी कल तो बड़ी स्टंट दिखा रही थी ,आज क्या हुआ ? जोर जोर से हंसने लगे। अगल बगल काफी लोग इकट्ठा हो गए तमाशा को मगर आगे क्यों नही बढ़े क्योंकि उनके घर की इज्ज़त थोड़ी थी।

ज्यो पूजा ने आगे बढ़ने की कोशिश की एक लड़के ने उसका कुर्ता अपने जूते से दबा लिया और कुर्ता वही फटने लगा। फिर भी उसने अपने कदम आगे के लिए बढ़ाये...एक ने कुर्ते को कुछ यूं खींचा की उसका आधा कुर्ता शरीर पर आधा फट जमीन पर ज्यो गिरा ....पूजा ने अपने मुठी को खोलते हुए ढेरो लाल मिर्च उन हैवानों की ओर झोंक दिया। वहाँ खड़े तमाशबीन से पूछा , आज आप जैसे समाज के आगे एक लड़की की इज़्ज़त को लोग लूटने को तैयार खड़े हैं और आप सभी तमाशबीन बने हुए? धिक्कारती हू ऐसे समाज को जिसे दूसरे की इज्ज़त नही अपने इज्जत की पड़ी होती है और आप वहाँ खड़ी कुछ महिलाओं से बोली आप भी तो कभी किसी की बेटी , बहन और आज बहु हो आप एक लड़की होते हुए उसकी रक्षा के लिए आगे न बढ़कर तमाशबीन बने हुए हो ?

पूजा के इतना बोलते वहाँ खड़ी भीड़ तो उन लड़कों को कूट दी, मगर अगली पूजा को कौन सुरक्षित करेगा? 

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