नव दिन माई के दसम दिन विदाई के

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्ध कृतशेखराम् ।

वृषारूढाम् शूलधराम् शैलपुत्रीम् यशस्विनीम् ॥


नमस्कार ,
आप सभी को और आपके पूरे परिवार को मेरी तरफ से नवरात्र की ढेरों शुभकामनाएं! आज की यात्रा में मैं घुमक्कड़ लड़कीं आपको लेकर चल रही हूं ,उत्तर प्रदेश के मिनी बंगाल।

तो चलिए फिर देर क्यों ....हम चल रहे काशी के मिनी बंगाल के उन नव देवियों के दर्शन करने जो स्वयंभू यहाँ विराज्यमान है। तो मैं निकल पड़ी हू कैंट से राजघाट मार्ग की ओर,जहाँ से आपको तीन बार ऑटो बदलनी होगी। फिर वहां से 2 किलोमीटर अंदर जाने पर माता शैलपुत्री का धाम है।

एक अलग ही अहसास जहां लम्बी - लम्बी कतारे,और चहुँ ओर मातारानी के जयघोष,कोई फेरी लगाता, तो कोई देवी गीत। हर कोई माता के धाम में माँ के रंग में रंगा हुआ।आज नवरात्रि के पहले दिन देवी दुर्गा का प्रथम स्वरूप - माता शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। 


काशी खण्ड के अध्याय 70 के अनुसार मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। जिनकी मन्दिर शैलेश्वर महादेव के निकट माता शैलपुत्री देवी विराज्यमान है। इन्हें प्यार से लोग शैलेश्वरी भी पुकारते हैं।

मन्दिर के महंत बताते है कि माता शैलपुत्री ऐसे भक्तों  के साथ होती है जो कि गलत संगत की वजह से फँस जाते है,समस्याग्रस्त होते है , तो देवी अपने दाहिने हाथ के कनिष्ठा अंगुली से ऐसे लोगो का कष्ट हर लेती हैं।

पुराणों के मान्यता अनुसार,  देवी के इस रूप ने ही शिव की कठोर तपस्या की थी। ऐसा कहा जाता है कि इनके दर्शन मात्र से सभी वैवाहिक कष्ट मिट जाते हैं।

इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं।

वही माता शैलेश्वरी की एक मार्मिक कहानी है.....

एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। 


 
सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। 

 
वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। 

 
पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।

तो आपको कैसी लगी  आज की  यात्रा जरूर बताएं और हो सके तो आप भी काशी के मिनी बंगाल जरूर घूमे और देवी दुर्गा के नवोस्वरूपो का दर्शन प्राप्त करे।


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