नवदिन माई के दसम दिन विदाई के -पार्ट 9

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥




नमस्कार ,


आप सभी को और आपके पूरे परिवार को एक बार फिर मेरी तरफ से नवरात्र के आखिरी पहर की ढेरों शुभकामनाएं! आज की यात्रा में मैं घुमक्कड़ लड़कीं आपको लेकर चल रही हूं ,मिनी बंगाल के सिद्धमाता गली


सही सुना आपने आज की यात्रा हम निकल पड़े है देवी दुर्गा के अंतिम नवे स्वरूप के दर्शन को......माँ सिद्धदेश्वरी देवी धाम। जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि काशी में अपने नव स्वरूप में स्वयंभू यहाँ विराज्यमान है देवी दुर्गा।

दुर्गा माता के नवे सिद्धि और मोक्ष देने वाले स्वरूप को सिद्धिदात्री कहते हैं। नवरात्र के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।


तो हम निकल पड़े है कैंट से मैदागिन की ओर और वहाँ से पदयात्रा करते सिद्धदेश्वरी गली। मैं आपको बताना चाहूँगी कि माई का दो दरबार है ,लेकिन जो असली दरबार है वो संकठा मन्दिर के पास है। दूसरा कालभैरव के निकट।


आज की यात्रा में मैं आपको दोनों मन्दिर के दर्शन जरूर कराऊंगी। जहाँ माँ का विग्रह व दरबार है। तो चलिए पहले चलते है , संकठा मन्दिर की ओर।


एक बड़ा सा भवन, भवन में बड़ा सा आँगना चारों तरफ हरियाली,बीच मे चन्द्रकूप।  सीढ़ी से चढ़ते एक छोटा आँगन जिसमे माई का कमरा,गर्भगृह में देवी की चमक देखने लायक। उनके बगल में चन्द्रेश्वर लिंग।


आपको बता दु की ये एक सिद्धपीठ मन्दिर है,जिन्हें सिद्धदेश्वरी देवी व सिद्धिदात्री दुर्गा के नाम से भी विख्यात हैं। काशी खण्ड में वर्णित है कि माँ की पूजा पूरे विधि-विधान से यदि करे तो मां सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। देव, यक्ष, किन्नर, दानव, ऋषि-मुनि, साधक और गृहस्थ आश्रम में जीवनयापन करने वाले भक्त सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं। मां की पूजा से यश, बल और धन की प्राप्ति होती है।

माई

अपने भक्तों को महाविद्या और अष्ट सिद्धियां प्रदान करती हैं। मान्यता है कि सभी देवी-देवताओं को भी मां सिद्धिदात्री से ही सिद्धियों की प्राप्ति हुई। अपने इस स्वरूप में माता सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान, हाथों में कमल, शंख, गदा, सुदर्शन चक्र धारण किए हुए हैं।

सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप हैं, जो श्वेत वस्त्रालंकार से युक्त महाज्ञान और मधुर स्वर से अपने भक्तों को सम्मोहित करती हैं।

कहते है कि जिनका चन्द्र कमजोर होता है तो वो इस मंदिर पूजा करले तो ग्रह शान्त हो जाता हैं। वही यह भी बताया जाता हैं कि यहाँ का चन्द्रकूप मणिकर्णिका घाट तक जुड़ा हुआ है। ऐसा इसलिए जब यदि किसी का काल आने वाला है या जो इस कूप में झांके और उसकी परछाई दिखे तो उसका काल नही आने वाला,जिसकी परछाई न दिखे तो उसकी मौत निश्चित है।

तो चलिए फ़िर फटाफट से ...देवी माई के दूसरे दरबार सिद्धमाता गली,कालभैरव की ओर। हम पहुँच चुके है, माँ के दूसरे दरबार जो कि अत्यंत पुरानी इमारत में जहां देवी माँ विराज्यमान है। ऊँची ऊँची ,छोटी छोटी सीढ़ीया, बड़ा सा आँगना ओर सामने माँ का गर्भगृह।




यहाँ के पुजारी जी बताते है कि ,नौवें दिन सिद्धिदात्री को मौसमी फल, हलवा, पूड़ी, काले चने और नारियल का भोग लगाया जाता है,जो भक्त नवरात्रों का व्रत कर नवमीं पूजन के साथ व्रत का समापन करते हैं, उन्हें इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

इस दिन दुर्गासप्तशती के नवें अध्याय से मां का पूजन करें। मां की पूजा के बाद छोटी बच्चियों और कुंवारी कन्याओं को भोजन कराना चाहिए। भोजन से पहले कन्याओं के पैरा धुलवाने चाहिए। उन्हें मां के प्रसाद के साथ दक्षिणा दें और उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें। नवमी के दिन पूजा करते समय बैंगनी या जामुनी रंग पहनना शुभ रहता है। यह रंग अध्यात्म का प्रतीक कहलाता है।

तो आज की यात्रा आपको कैसी लगी ,जरूर बताएं साथ ही देवी के धाम एक बार जरूर दर्शन करें। 

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