नव दिन माई के दसम दिन विदाई के - पार्ट 5
सिंहासनगता नित्यं पदमाश्रितकरद्व्या |
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी ||
https://youtu.be/Lyx_nxSp1NU
नमस्कार ,
आप सभी को और आपके पूरे परिवार को एक बार फिर मेरी तरफ से नवरात्र की ढेरों शुभकामनाएं! आज की यात्रा में मैं घुमक्कड़ लड़कीं आपको लेकर चल रही हूं ,काशी के मिनी बंगाल में जैतपुरा।
सही सुना आपने आज की यात्रा हम निकल पड़े है देवी दुर्गा के पाँचवे स्वरूप माँ स्कंदमाता के दर्शन करने।जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि काशी में अपने नव स्वरूप में स्वयंभू यहाँ विराज्यमान है देवी दुर्गा।
तो हम निकल पड़े है कैंट से सीधे मैदागिन , और मैदागिन के थोड़ा पहले पड़ता हैं लोहटिया आप अगर ऑटो से कह देंगे कि हमको जैतपुरा रोक देना वो वही रोक देगा महज 10रुपए में आप यहाँ तक आ जाएंगे। उसके बाद आपको 20-25 मिनट का सफ़र पदयात्रा ही करनी पड़ सकती है जैसे कि मुझें।
दरसल आज माई का दिन है जिसे वाहन जैतपुरा के लिए नही जा रहे,नवरात्र के बाद आएंगे तो जरूर वाहन मिल जाएगा या आप अपने साधन से। ख़ैर एक लम्बी दूरी, दो चौराहें हुए पार फिर कुछ दूरी पर पुलिस बल की भीड़ और भक्तगण की लम्बी लम्बी कतार।
किसी तरह हम पहुँचे माता के दरबार, आपको बता दें कि माता को वागेश्वरी माता के भी नाम से जाना जाता है,जो कि गुफ़ा के भीतर है। स्कंदमाता ऊपर ही है,एक बड़े से आँगन में उनका शेर कुछ यूं दिखता है मानो दहाड़ रहा है।
वहाँ मुलाकात हुई मन्दिर के पुजारी जी से जिन्होंने बताया कि नवरात्र के खास दिन ही गुफ़ा के दर्शन प्राप्त होते है। जिन्हें वागेश्वरी देवी के नाम से जानते हैं। ऊपर स्वयम्भू देवी स्कंदमाता विराज्यमान है नीचे गुफा में वागेश्वरी देवी।
आपको बता दे कि काशी खण्ड में दानव दुर्गासुर एवं माता दुर्गा के मध्य हुई भीषण युद्ध का वृस्तित वर्णन लिखा है।
काशी खण्ड में उल्लेखनीय है कि काशी के सुरक्षा हेतु माता काशी के विभिन्न स्थानों पर विभिन्न शक्तियों व देवियों के रूप में विराज्यमान है। उन्ही में देवी स्कंदमाता नवस्वरूपा शक्तिशाली देवी है।
इसीलिए
माँ के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से पूजा जाता है। ये भगवान स्कन्द " कुमार कार्तिकेय " नाम से भी जानी जाती हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति के साथ खड़ी हुई। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्तिधर भी कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया जाता हैं। आपको बता दें कि माता के गोद मे भगवान कार्तिकेय एक शिशु के रूप में विराज्यमान है। इनका वाहन भले ही मयूर जरूर हो लेकिन प्रचंड शक्ति होने के कारण ये सिंह पर भी सवारी करती है।
काशी खण्ड के
शास्त्रों में वर्णित है कि इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है।
इनकी
पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है। यानी चेतना का निर्माण करने वालीं। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं।
आपको बता दे कि यही मन्दिर के बाहर यानी मैदान में हर वर्ष देवी दुर्गा का पण्डाल भी लगता हैं। तो कैसे लगी हमारी आज की यात्रा आपको जरूर बताएं ओर अपनी राय जरूर दे। आप भी माँ के दर्शन एक बार अवश्य करें।
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