नव दिन माई के दसम दिन विदाई के - पार्ट 3

या देवी सर्वभूतेषु चन्द्रघंटा रूपेण संस्थिता.


नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:


https://youtu.be/aofLnOgA6Es


नमस्कार ,

आप सभी को और आपके पूरे परिवार को एक बार फिर मेरी तरफ से नवरात्र की ढेरों शुभकामनाएं! आज की यात्रा में मैं घुमक्कड़ लड़कीं आपको लेकर चल रही हूं ,मिनी बंगाल के चन्द्रघंटा गली चौक। 


सही सुना आपने आज की यात्रा हम निकल पड़े है देवी दुर्गा के तृतीय स्वरूप के दर्शन करने......माँ चन्द्रघंटा। जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि काशी में अपने नव स्वरूप में स्वयंभू यहाँ विराज्यमान है देवी दुर्गा।


       पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता। 
          प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥



नवरात्रि में तीसरे दिन चन्द्रघंटा देवी की पूजा का महत्व है। इस देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं।इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है।


हम निकल पड़े है कैंट से गोदौलिया की ओर और वहाँ से चौक की तरफ़,किसी से भी पूछे कि यूको बैंक चौक शाखा किधर है आपको कोई भी बता देगा या


चित्रघन्टा गली या माँ का नाम पूछे आप वहाँ तक सरलता पूर्वक पहुँच जाएंगे। 

टन टन घण्टो की आवाज़ ओर शंखों से गुलजार चित्रघन्टा गली ,हाथों में फूलों की डलिया ओर सुहाग का सामान लिए हुए महिलाएं कामना करती हुई। चारो तरफ चुनरी से बंधे मंगलकामना। 

वहाँ पर पहुँच मुलाकात हुई ,मन्दिर के महंत उनके बेटे वैभव से वे बताते है कि माता चन्द्रघंटा का वर्णन काशी खण्ड में भी उल्लेखनीय है। यहां चित्र कूप में स्नान करके पूर्ण श्रद्धा भाव से चित्रगुप्तेश्वर और चित्रघन्टा देवी की पूजा करने से श्रद्धालुओं का नाम चित्रगुप्त की पोथी से समाप्त हो जाती हैं। उसके ज्ञात एवं अज्ञात समस्त पाप धूल जाएंगे। 

इन्हें चन्द्रघंटा इसलिए कहा जाता है कि मां का यह स्वरूप परम शांतिदायक एवं कल्याणकारी है। इनके मस्तष्क में घंटे के आकार का अर्धचन्द्र है, इसी कारण मां को चन्द्रघंटा भी कहा जाता है। स्वर्ण की कांतिवाली मां की 10 भुजाएं हैं। इनके शरीर का रंग सोने के समान बहुत चमकीला है।वे खड्ग और अन्य अस्त्र-शस्त्र से विभूषित हैं। सिंह पर सवार दुष्‍टों के संहार के लिए हमेशा तैयार रहती हैं। इसके घंटे से भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य और राक्षस कांपते रहते हैं।खड्ग, बाण, गदा, त्रिशूल आदि अस्त्र- शस्त्र से सुसज्जित मां सिंह पर सवार युद्ध में जाने को उद्यत दिखती हैं।

इनके पूजन से साधक के समस्त पापादी एवं बाधाएं भवानी की कृपा से स्वत: ही दूर हो जाती हैं। प्रेत बाधा आदि से भी मां मुक्ति देती हैं।

मान्यता है कि जब असुरों के बढ़ते प्रभाव से देवता त्रस्त हो गए तब देवी चंद्रघण्टा रूप में अवतरित हुई। असुरों का संहार कर देवी ने देवताओं को संकट से मुक्त करा दिया। इसका वर्णन काशी खण्ड के अध्यय 70 में पढ़ने को मिलता हैं कि 
जब

देवताओं और असुरों के बीच लंबे समय तक युद्ध चला। असुरों का स्‍वामी महिषासुर था और देवाताओं के इंद्र। महिषासुर ने देवाताओं पर विजय प्राप्‍त कर इंद्र का सिंहासन हासिल कर लिया और स्‍वर्गलोक पर राज करने लगा।


इसे देखकर सभी देवतागण परेशान हो गए और इस समस्‍या से निकलने का उपाय जानने के लिए त्र‍िदेव ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश के पास गए।


देवताओं ने बताया कि महिषासुर ने इंद्र, चंद्र, सूर्य, वायु और अन्‍य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और उन्‍हें बंधक बनाकर स्‍वयं स्‍वर्गलोक का राजा बन गया है।


देवाताओं ने बताया कि महिषासुर के अत्‍याचार के कारण अब देवता पृथ्‍वी पर विचरण कर रहे हैं और स्‍वर्ग में उनके लिए स्‍थान नहीं है।


यह सुनकर ब्रह्मा, विष्‍णु और भगवान शंकर को अत्‍यधिक क्रोध आया। क्रोध के कारण तीनों के मुख से ऊर्जा उत्‍पन्‍न हुई। देवगणों के शरीर से निकली ऊर्जा भी उस ऊर्जा से जाकर मिल गई। यह दसों दिशाओं में व्‍याप्‍त होने लगी।


उसी क्षण वहां एक देवी का अवतरण हुआ। भगवान शंकर ने देवी को त्र‍िशूल और भगवान विष्‍णु ने चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्‍य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों में अस्‍त्र शस्‍त्र सजा दिए।


इंद्र ने भी अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतरकर एक घंटा दिया। सूर्य ने अपना तेज और तलवार दिया और सवारी के लिए शेर दिया।


देवी अब महिषासुर से युद्ध के लिए पूरी तरह से सक्षम थी। उनका विशालकाय रूप देखकर महिषासुर यह समझ गया कि अब उसका काल आ गया है,महिषासुर ने अपनी सेना को देवी पर हमला करने को कहा.....अन्‍य देत्‍य और दानवों के दल भी युद्ध में कूद पड़े।


देवी ने एक ही झटके में ही दानवों का संहार कर दिया। इस युद्ध में महिषासुर तो मारा ही गया, साथ में अन्‍य बड़े दानवों और राक्षसों का संहार मां ने कर दिया. इस तरह मां ने सभी देवताओं को असुरों से अभयदान दिलाया।


वही यह भी कहा जाता है कि इनके दर्शन मात्र से ही समस्त बन्धनों से मुक्ति मिलती हैं।


तो ये थी हमारी आज की यात्रा आपको कैसी लगी।जरूर बताएं और हो सके तो आप सभी दर्शन को जरूर आए।

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