ससुराल के व्यंग्यबाण | कहानी -2
आखिर मेरा कसूर ही क्या था?क्यों मुझे बात - बात पर हीन भावना से देखा जाता हैं?क्यों मुझे इस तरह पराया?इन्ही सवालो में उलझी प्रीति बिस्तर के सिलवटों को ठीक कर रही थीं। तभी फोन पर उसकी प्रिय मित्र सारिका का फोन आ गया। दोनो के बीच बातचीत शुरू हुई।प्रीति ने भी अपने मन की सारी भड़ास बात ही बात में सारिका से खुद के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को कह डाला।
पता जब से शादी हुई सबकुछ अच्छा ही चल रहा था। माँ के हर अमल बात को ससुराल में फॉलो करती आई हूं,ताकि कभी कोई मेरे माँ पापा पर उँगली ना उठाए। लेकिन ऐसा कहा होना है,सबकुछ अलग ही तो बीत रहा मेरे साथ। अभी शादी को दो साल ही होने को है और इतना फ़र्क। जब से इस घर मे आई हूं ,सबकुछ सम्भाल रही हूं। पति की हर बात,सासूमाँ की हर बात,ससुरजी की हर चटोरी फरमाइश, देवर की छेडख़ानी। इतना सा ही तो मेरे परिवार का हिस्सा है वो भी अच्छा खासा सब ठीक चल रहा था। महीने भर के भीतर मैंने खुद को सबके हिसाब का तैयार कर लिया। सबकी पसंद,ना पसंद। सबकी जरूरत कब किसे किस चीज की जरूरत पड़ती है। पतिदेव की फरमाइश, और ससुरजी का चटखारा ना जाने कितने यूट्यूब वीडियो से मैंने तरह तरह के नाश्ते बनाना सीख लिया। देवर की बात बात पर छेड़छाड़, उनकी हर बात की कद्र करना ,और तो और एक दोस्त की तरह बाते बताना,कितनी जल्दी घुल गयी मैं।सासूमाँ के हर बात को फॉलो करना और माँ की दी हुई सिख से घर को खुश रखना यही तो दो साल से मेरी जिंदगी का हिस्सा था। दिनभर कोई ना कोई मुझे पुकारता ही रहता।
मगर देवर जी की शादी होते घर का माहौल बदल गया। हर बात पर जहाँ मेरी तारीफ होती छोटी देवरानी झगड़ पड़ती। मैं उसे हर बार यही समझाती एक दिन तू भी लाडली होगी। अभी तो चन्द दिन ही हुए हैं। वैसे भी तू मेरी बहन जैसी है। मगर कहा आज के समय मे कोई आपकी कदर करता है। बल्कि अवहेलना करके सदैव नीचा दिखाना ही आज की रीत बन गयी है। बात बात पर छेड़छाड़ करने वाले देवर जी आज मुँह पर ताला मारे बस अपनी भाभी में कमी ढूंढ कर अपनी पत्नी के साथ मिलकर घर मे क्लेश करते हैं। सासूमाँ जो कल तक मुझे घर को स्वर्ग कैसे बनाते है सिखाती थी।आज वो खुद देवरानी जी को बढ़ावा देती हैं और ससुरजी जिनका बिन चटखारा लगे दिन की जबतक शुरुआत ना हो उनका तो दिन ही नही शुरू होता ,आज उनके भी जुबान पर ताला लग चुका है।अब बचे पतिदेव उनका कहना है क्या फर्क पड़ता है कोई बोले ना बोले। दिनभर घर के केचाहिन से तो मुक्त हो। मगर मैं अभी भी उसी घर को जोड़ने में लगी रहती हूं। लेकिन किसी को यह बात अच्छी नहीं लगती। एक हस्ता बोलता परिवार आज अपनी अपनी कोठरियों तक मे ही सीमित हो गया है।सासूमाँ का हर बात पर ताना मारना और देवरानी को रह रहकर झगड़े की ओर उकसाना ही तो परिवार के स्तंभ को दिन पर दिन तोड़ रहा। सारिका ने हिम्मत देते हुए कहा- प्रीति तू परेशान मत हो देखना एक दिन यही दो आँख करने वाली सॉस ही तुझे याद करेगी।
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