कसौटी आध्या की पार्ट -2

       

कैसी है ये बेबसी,कैसी है ये मज़बूरी, कैसी है ये दास्तां जहाँ हम पास होकर भी बहुत दूर थे। दस-बारह साल बाद आज मनन से टकरार हुई वो भी ऐसे वक़्त पर जब मैं खुद को सम्भालती हुई एक नई दिशा में कदम बढ़ाने जा रही थी। जयमाल के स्टेज पर बैठी आध्या की नज़र भीड़ को चीरते हुए बार बार सिर्फ मनन पर जा रही थी। मनन आज भी वैसे ही दिखते है ,जैसा पहली बार देखी थी उन्हें।हमारी मुलाकात कितना खास पल था वो,जब पहली नज़र में एक दूसरे के लिए कोई फीलिंग्स आने लगे मानो बरसो की मुलाकात हो। न उनको चैन न हमको चैन नजरें भीड़ में भी टटोल ही लेती एक दूसरे को,वो पल थे जब हम ओर मनन मिले।आज भी चेहरे पे मुस्कान आ जाती हैं। वो कहते है न प्यार में थोड़ा टकराव लाज़मी है,न हुआ तो फीका-फीका सा लगता हैं। हम दोनों के बीच भी कुछ ऐसा हुआ....टकरार की पहली मुलाकात बेहद खट्टी मीठी थी।हमारी मुलाकात एक शादी में हुई,जिसके मुख्य मनन खुद थे। दरसल लड़की के भाई जो थे हर कुछ उनको सम्भालना था।सबके आवभगत में उनकी टकरार मुझसे हो गयी,होती भी क्यों नहीं जिंदगी उनके साथ जो चलनी थी। मगर पता नही न था जिंदगी के भागमभाग में कुछ यूं गोते खाएंगे की दोनों अलग अलग तट पर पहुँच जाएंगे।
मनन के साथ बिताया हर एक लम्हा मेरी जिंदगी का सबसे अहम हिस्सा है। चाह कर भी मनन को भूल नही पा रही। कैसे भूलूँ उन बीते घड़ी को आध्या के दिमाग तेजी से उन बीते लम्हों को फ्लैशबैक की तरह घुमा रहे थे। तभी मिहिर ने आध्या आध्या को हिलाते हुए कहा,कहा गुम हो सब तुमसे...मिहिर की नज़र आध्या के नज़रों के ठीक सामने खड़े  मनन पर पड़ गयी।मनन सुन हो अपनी बीवी दीक्षा के साथ खड़ा हो चुपचाप आध्या को टुकर टुकर देख रहा था। मानो दो बिछड़े आज सदैव को कचोटते हुए बिखरने वाले हो। मिहिर ने फिर एक बार आध्या को देखा ,आध्या अभी भी मनन को देखे जा रही थी।मानो सपनो का राजकुमार उससे कोसो दूर खड़ा हो, अभी भी अपने राजकुमारी का इंतजार कर रहा हो। आध्या के आँखों स्व आँसू छलक पड़े,कल तक जो सपने वो मनन के साथ बुन रही थी,आज वो सपने मिहिर के हाथों सदैव बँधने जा रही थी। 

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