औरत हू ,रोबोट नही ?

अरे बहु जरा मेरी चाय लाना,अदरक कम दूध ज़्यादा। अरे बहु ज़रा पानी गर्म करके देना ससुरजी की डिमांड। अरे छोटी बहू नाश्ता बना की नही। अरे भाभी मुझे देर हो रहा , टिफिन अभी तक आपने पैक नही किया। इन्ही सब के बीच टपक पड़े देवर जी भाभी जी आप जल्दी से 2ऑमलेट बना दो। बहुत भूख लगी है। कॉलेज के लिए भी देर हो रहा। बहू एक,  फरमान हजार।

तभी किचन में आकर चाची ने ठोकी गाली जंगरचोर कही की जब कपड़े धोने नही रहते तो , बोल तो दिया कर की चाची जी मुझसे न धोया जाएगा आपका कपड़ा। ये देख मैं बिल्कुल अचंभित रह गयी।

ज्यो सासु माँ को चाय नाश्ता देके लौटी । देवर जी ने ढेरो काम किचन में बढ़ा दिया आमलेट को तेज आंच कर खाक कर दिया, दोषी कौन हुई मैं। हर कोई बहु को दिनोरत यू बुलाता मानो बहु नही रोबोट लाए हो,मन चिचिलट हो उठा।

तभी कमरे से आवाज आई ,अरे राधिका मैं ऑफिस जा रहा तुम किचन को छोड़ मेरे करीब आओगी की नही। बस किचन में ही समय व्यतीत करोगी। बहाने से बुलाने वाले पतिदेव के ये लफ्ज़ थे। अब उनकी भी गजब की फरमाइश थी, रोमांटिक होने के चक्कर मे हर समय मूड बनाए रखते, चूमते चमते थोड़ा सा कमर को अपनी तरफ खिंच कर कहते, जान आई लव यू, मैं भी थकी हारी इस काम को भी जल्द से निपटा देती मी टू।

पतिदेव भी खुश हो जाते, तभी भर में फिर आवाज आती। अरे बहु बिस्तर झटक दो बहुत चींटी हो गयी। पतिदेव तो मुस्कुराते हुए निकल गए और मैं बहु फस गयी रोबोट बन कर।

हर किसी की अलग अलग फरमाइश,सबकी निगाहें, सबकी बोली आवाजें। मानो बहु नही रोबोट ले कर आए हो।



बुरा तो तब लगता है जब थोड़ी भी 

इधर से उधर हुआ तो,


बात मायके तक पहुँच जाती है। साथ ही साथ दो - चार डायलोग के साथ, अरे अपने बाप के घर से कुछ सिख कर न आई क्या। कोई संस्कार ही न दिए है माँ बाप ने।
आंसुओ को घोट अपनी ओर अपने माँ बाप के इज्जत का सोच ये भी जख्मी घूट पी जाती।

जब भी आप कहते शाम को दफ्तर से लौटू तो धोड़ा सजसंवर कर मेरा स्वागत करो ,आते गर्म चाय से पहले नरम होठो की प्याली दो। अब आप ही बताओ कैसे करूँ मैं इतना सब।

सुबह को तीन बजे से उठ जाती हूं, नारी धर्म निभाती हु। सासु माँ के बताए धर्म कर्म के पाठ को रोज नित चार बजे दोहराती हू। सुबह के पांच बजे से कमरे कमरे चाय पहुँचाती हु , किसी की शुगर किसी की फीकी। छ बजे से नाश्ते में लग जाती हूँ। दस बजे तक इन्ही में फ़सी रह जाती हूं। दोपहर को खाना खा कर रोज पैर दबाती हु। फिर भी मैं अवगुण कहलाती हु।


चन्द मिनट को जब खुद के कमरे में सास लेने बैठती हु,घर का कोई न कोई सदस्य आराम को भी हराम में व्यतीत कर देता है। लगते है जबर्दस्ती के ठहाके। इन्ही बीच बज जाते है चार ओर शुरू होती है एक बार फिर किचन लीला। फिर वो रात को दस बजे ही खाली हो कमरे में पसीना पोछने आती हु। तो आप अपनी शिकायत की पोटली प्यार के इज़हार के साथ उलट देते हो। अब आप ही बताओ मैं बहु हु  या रोबोट।


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