दो जून की रोटी

दो जून की रोटी तुम क्या जांनो सरकारी बाबू

बढ़ती महंगाई.....ओर घटती रोजगारी,उससे बढ़ती बेरोजगारी....अब दो जून की रोटी की कीमत न तो घरे का मर्द समझे न ही शहर का सांसद,न ही देश के समस्त बड़े राजनीतिक दल। उन्हें तो बस दल दल करने में फुर्सत नही। सब एक दूसरे पे इस कदर कीचड़ उछाल रहे ...मानो अब तो कमल खिला कर ही मानेंगे।

लेकिन इसे क्या जनता को बेरोज से रोजगारी मिलेगी? आज बेरोजगारी इस कदर पनप गयी है मानो सुबह का निवाला तो मिलगया अब रात को हो पाएगा या नही? आज भी देश आजाद नही ...सोने की चिड़िया जुगलबंदी में फसी पड़ी हैं।

दो जून की रोटी बड़ा ही कीमती शब्द है ये वाक़ई....!हम सब दिनोरत मेहनत आखिर किसके लिए करते है इसी दो जून की रोटी के लिए मतलब साहब, बात साफ साफ है कि बिन निवाला पेट न भरने वाला।

बिन मेहनत ,बिन इनकम, बिन लागत। लेकिन जब ये सब कुछ कर रहे तभी क्यों हम बेरोगार है। मन मे ये सवाल तब आया जब टीवी पर चुनावी मैदान का दंगल देखने को मिला.....।

समझ नही आता हर कोई ,अरे भइया हर कोई अपनी अपनी रोटी सेकने में लगा है, फिर भी ,फिर भी देश भुखमरी से भरा पड़ा है।
           जहाँ लोगो को खाने के लिए कमाना पड़ता है, अब कमाई के लिए ठोस होना पड़ता है। सुना था घुस दूर दूर तक नही दिखता,मगर ये यूपी है न भइया ...किसी को किसी का भी डर नही है। सब अपने में दबंग ओर मस्त है।

दो जून की रोटी के लाले तो उनको पड़ रहे जिनके घर चूल्हों को जलाने के लिए सोर्स नही। आज भी ऐसे लोग है जो भूख से तड़प रहे। आज भी ऐसे युवा पीढ़ी है जो रोजगार के लिए सुबह के गए शाम को खाली हाथ मुँह झुलाए चले आ रहे,मालूम ऐसा क्यों क्योंकि निकले थे रोजगार ढूंढने,मगर लौटे बेरोजगार हो कर।

इस रोटी की कीमत कोई नही समझ रहा कोई भी। सब रोटी सेंक रहे,मगर धुंए की चिंता किसी को भी नही। आज देश में हर क्षेत्र आगे बढ़ रहा, मैं देश के पीएम जी से आग्रह करना चाहूँगी की इन जुमलों बाजी के मुँह पर ताला लगाइए मत लगाइए ,मगर इस देश की जनता पर सिकती रोटियों पर रोक लगाइए।

आज वो जनता दर बदर नौकरी के तलाश में घूम रही। कितने घर भूखे पेट सो रहे। आपसे नीचे वाले सब देख कर भी अनसुना कर दे रहे।

व्यवसाय हो या नौकरी की चिंता दो चार होने के बाद ही जीवन को भली प्रकार समझ पाता है। यह बात तब ही समझा दी जाती है जब बच्चा किसी भी चीज को यानी माँ बाप के छमता के ऊपर की चीज मांगले तो उसे यह शिक्षा दी जाती है जन्म से ही, चाहे लड़का हो या लड़कीं , जिसमें लड़कों को रोटी कमाने और लड़कियों को रोटी बनाने की बात बतायी जाती है।

आए दिन बढ़ती महंगाई आम आदमी के लिए अब दो जून की रोटी का जुगाड़ करना भी कभी कभी बहुत मुश्किल हो रहा है। महंगाई दिन पर दिन बढ़ रही है, लेकिन इंसान की कमाई सीमित।
       ऐसे में गरीब व मध्यमवर्गीय आदमी की चिंता लगातार बढ़ती जा रही है। उसे चिंता है तो सिर्फ अपनी दो जून की रोटी की।

बच्चों को भगवान का दर्जा दिया जाता है, लेकिन जब वो ही बच्चे दो जून की रोटी के लिए कारखानों, बस स्टैंडों, रेलवे स्टेशनों, होटलों, ढाबों पर काम करने से लेकर कचरे के ढेर में कुछ ढूंढते मिले तो ये 21वीं सदी में भारत की आर्थिक वृद्धि पर एक काला चेहरा पेश करता है।

आज भी आजादी के करीब 7 दशकों बाद भी सभ्य समाज की उस तस्वीर पर सवाल उठाता है, जहां हमारे देश के बच्चों को सभी सुख सुविधाएं एक ओर मिल रही हो और दूसरे ओर उन गरीबो को नही। जिनके दो जून की रोटी ने आज बचपन को इतना लाचार और बेबस बना दिया कि वो हर पल रोटी का ठिकाना ढूंढ रहे। भारत के बड़े व छोटे शहरों में आपको कई ऐसे बच्चे मिल जाएंगे जो कि बाल मजदूरी की गिरफ्त में जकड़े हुए हैं।

सरकार चाहें जिसकी भी हो ,हर बार भले ही गरीबों के हितों के बारे में काम किए जाने के तमाम दावे करती हो, लेकिन आज भी गरीब लोगों को 2 जून की रोटी मिलना मुश्किल साबित हो रहा।
           लगातार दैनिक उपयोग की चीजें महंगी हो रहीं। जिससे आम आदमी का बजट गड़बड़ा गया। अब दो जून की रोटी कमाने के लिए लोगों को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। खासकर नौकरीपेशा और मध्यम वर्ग का, उनके लिए काफी मुश्किल हो रही है।सच कहूं तो आज दो जून की रोटी सरदर्द की रोटी बनकर रह गयी है।


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