कमाई का साधन बने भगवान

क्या आपने कभी सोचा...बुरा मत मानियेगा! पूछना तो बनता है.... क्या कभी भगवान ने आपसे कहा मुझे सोना चढ़ाओ,चांदी चढ़ाओ, साड़ी पहनाओ, तमाम चीजें बताइए............क्या कभी कहा भगवान ने आपसे खुद?

नही न ! कभी नही कहा....क्यों क्योंकि मैं भी आपका जवाब जानती हूँ ,जो हम समस्त प्राणियों के अंदर विद्यमान है कि ये हमारी श्रद्धा है ,हमारी खुशी है।

तो हमारी खुशी किसी गरीब के पेट भरने में क्यों नही ?


● हमारी खुशी किसी गरीब की बेटी के शादी में धन दौलत से खड़े हो जाने के लिए क्यों नही?

● हमारी खुशी किसी असहाय की सहायता करने में क्यों नही?

● हमारी खुशी उन वृद्धाश्रम में पड़े वृद्व लोगो के साथ बैठकर बातचीत करने व उनके दुख को कम करने में क्यों नही?

● हमारी खुशी उन अनाथ बच्चों और विकलांग बच्चो में क्यों नही?

● हमारी खुशी उन बेजुबान बच्चो ओर लोगो के साथ क्यों नही?

● हमारी खुशी हमारे खुद के माता पिता और परिवार में स्नेह के लिए क्यों नही जिसे परिवार सुखमय रहे?

आख़िर मंदिरो में चढ़ने वाले चढ़ावा ...हमारी मन्नतों के परिणाम होते है , जिससे हम आप खुश होकर चढ़ावा चढ़ाते है। लेकिन क्या भगवान ने आपसे खुद कहा कि ....ये मन्नत तभी पूरी होगी जब तुम मुझे चढ़ावा में सोना ,चांदी, कपड़े चढ़ाओगे।

ऐसा कभी नही कहा..? क्योंकि ये हम आप बेहतर तरीके से जानते है कि किसी की मदद करना,उसके सुख और दुख में खड़े होना एक मन्नत के बराबर है।

जिसका पुराणों में भी वर्णन मिलता हैं। कि भगवान खुद ये बताए है कि लोगो की मदद करना ही हमारी खुशी हमारी श्रद्धा है। क्योंकि जब हम किसी असहाय की मदद पूर्ण श्रद्धा से करते है तो हम उसके भगवान के रूप में कहलाते है।

उस असहाय की ख़ुशी का कोई ठिकाना नही होता,ओर यही भगवान भी कहते है। यदि हम किसी की मदद करे उसके जीवन की मंगल कामना करें तो हमे हमारे जीवन के आधे दुख खुद ब खुद कम लगने लगेंगे। न कि मंदिरो में चढ़ावा चढ़ाने से।

आज मंदिरों में चढ़ावा भले ही भगवान के नाम क्यों न हो...लेकिन उसका सुख भगवान नही कमाई के दुकानदार उठा रहे। आज न तो भक्तों को दर्शन ढंग से मिल पाता है न ही आप अपनी बात भगवान से कह पाते है, लाइन में लगे तमाम लोग धक्का खा कर बाहर आ जाते है,और चढ़ावा आपके हाथों से लेकर भगवान के तले रख दिया जाता है।

क्या आपने कभी देखा कि भगवान आपका दिया हुआ ग्रहण किये की नही ? नही न , क्योंकि आज सबकुछ महज एक बिज़नेस हो चुका है,मंदिरो में चढ़ने वाले चढ़ावा का दुकानों से कांटेक्ट होता है। जो भी चढ़ा वो वापस फिर बाहर।

तो क्या ऐसा करने से भगवान खुश हुए ...मुझे जरूर बताइएगा आपसे निवेदन करती हूँ।

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