मनहूस

अरे राजू सुन इधर आ तो,का भवा माई, अभ्यने खेती से चला आत हई मुँह हाथ तो तनिक धो लेवे दे। चुप कर मुन्नी की अम्मा पेट से है क्या?राजू चौक के शांति ? ..... हमके नाही पता। ई तो खुशी वाला बात हव न। अरे खुशी की बात तो हव लेकिन उसे ज़्यादा कहु फिर लड़कीं बिया गई तब। कहु मुँह दिखाए के लायक नही रहब।

शांति भीतर के कमरे से ये सारी बातें सुन रही थी। उसने आँसू को पोछते हुए किचन में पढ़ रही मुन्नी को गले से लगा लिया। मुन्नी - माई का हुआ..तू काहे रोवत हऊ। कुछो नाही।

तब तक राजू किचन की ओर बढ़ा,सुलगते हुए अंगारे की तरह उसने मुन्नी की किताबें देखते ही आग बबूला सा हो गया। ये क्या है मुन्नी? मना किया था न ये पोथी पतरी न दिखे अब इस घर मे। एक तो मनहूस कही की घर को डाहने के लिए जन्म ले ली ऊपर से पढेंगी। ई सब न करना है तुमको,मगर बापू में तो बड़ी हो कर कलेक्टर  बनना चाहती हूं।
चुप कर तू तेरा ब्याह न किया न तो तू यू ही सर पे चढ़कर डाहति रहेगी हम लोग के ,और तू...अम्मा कह रही थीं कि तू पेट से है। जी शांति ,नरम आवाज से बोली। देख शांति तुझे मैं अभी से बता दे रहा हूं,अगर इस बार फिर बेटी हुई न तो तू इस घर मे न रहेंगी।अम्मा ने सख्त हिदायत दी है।

धीरे धीरे शांति के नवमाह पूर्ण हुए और गाँव की काकी को बुलाया गया जो जच्चा बच्चा को बेहतर तरह से नॉर्मल डिलेवरी करा लेती। कांकी को आते आते काफ़ी देर हो गया। तब तक शांति दर्द से कहराती रही। तभी गांव के बबलू चाचा ने बाहर से आवाज़ लगाई अरे राजू कांकी आ गयी है। कांकी गुस्से में थी। उनके सर के पास से खून निकल रहा था हल्का हल्का। अरे चाची ये क्या हुआ,सब खैरियत तो। कांकी बिन बोले अंदर चली गयी।

अंदर आते कांकी गर्म पानी और ब्लेड माँगी, शांति अंदर औसला में तड़प कहरा रही थीं। उसने चाची को देखते हाथ जोड़ लिया बिन बोले अपने दर्द को भी बया कर दी। कांकी ने पूछा का हुआ बहुरिया , शांति कांकी का हाथ पकड़ रोने लगी, ओर बोली कांकी लड़का हुई तभी सबके बताऊँ लड़कीं होई तो अपने घर ले जाया। शांति ये बोलते रोने लगी।

कांकी को तकलीफ हुई बहुत , भगवान का संजोग देखिए ...भगवान ने राजू के घर एक बार फिर से लक्ष्मी को जन्म दिया। कांकी बेह्द खुश हुई और बाहर आकर बोली मुबारक हो लक्ष्मी आई है। राजू ओर उसकी अम्मा को तो काटो न खून नही वाला हाल हो गया। पूरे गांव खुशी की लहर दौड़ गयी,राजू ओर उसकी अम्मा को मुबारक बाद मिलने लगे।


लेकिन अभी भी उन्हें कोई खुशी नही,मानो जैसे मातम हो गया हो। गांव के सभी लोग ये देख शांत हो गए। कांकी ने ज्यो राजू की अम्मा को बिटिया थमाने चली वो खड़ी हुई और कमरे की ओर जाने लगी। कांकी को ये देख बेह्द तकलीफ हुए और गुस्से में बोली, अरे ओ राजू की अम्मा कांकी ने बड़े जोर से गुस्से में बोला।

बेटी हुई तो इतना नफ़रत, तू हो तो एक बेटी हऊ। राजू की अम्मा, अरे वंश न बढ़े तो ई मनहूस को लेकर का करब। ये देख हर कोई अपने अपने घर जाने लगा। तब कांकी ने जोरदार आवाज में बोला, सही कहा राजू की अम्मा हम तू ओर इ हा खड़ी हर औरत बच्ची मनहूसे तो हव।

हर कोई कांकी का मुंह देखने लगा। आजतक मैं घूम घूम कर सबके घर बच्चों की डिलिवरी कराती आई हूं। हर घर मे अधिकतर बेटों का जन्म करवाया। 


आज जो मेरे  सर से खून गिर रहा, उसकी वास्तविकता सुन हर महिलाओं को पीड़ा होगा,कि मैंने ऐसे बेटे को नवमाह कोख़ में रखा,और मैंने ऐसे बेटों का जन्म। पूरे गाँव के अलावा अन्य गांवों में भी लोग मुझे यह कह कर सम्बोधित करते आए है कि काकी के हाथ से हुआ बच्चा हमेशा बेटा ही होता आया है। मगर आज जो हुआ वो मैं पूरे जीवन नही भूल सकती।


कांकी अईसन का भवा....कांकी अरे राम बच्चन जब हम ई हा के लिए निकले तो रास्ते मे फुल्लन चाचा के खेत के लगें चार लड़कन एक बेटी के साथ रेप करत रहलन। ओकरे चीख सुनकर हम खेत मे घुसली उ सबन ने हमके मेड़ी की ओर धकेल देंनन। हमार सिर जाकर पत्थर से लड़गड़। तबे ई देख हम उठली ओर आज तक जिस बलेडे से नारा काटिला ओहि से एक लड़के के हाथ पर ब्लेड से मार देली, ई देख तीनो लड़कन भाग लेनन। ओर चौथा आपन हाथ पकड़ उहे चीखे लगल। वाहू भाग लियस। उ बेटी... बे जान की तरह तड़पत रहे। अब तू बता वा राम बच्चन के निक बा । बेटी या बेटा? के मनहूस बा बेटी या बेटा ?


नफ़रत हो गल हो आज से , आज से कांकी अब बेटा नाही बिटिया पैदा करहिये। ऐसे बेटों को जन्म देकर ही क्या जब ओहे एक स्त्री की पीड़ा न समझ आए।


ऐसे बेटे को जन्म देने से क्या जब वो एक स्त्री का सम्मान न कर पाएं। आखिर हर संस्कार बेटी के काहे। बेटी जन्म लियस तो मनहूस,ओर दूसरे का लड़का रेप , छेड़छाड़ करे तो गुरुर वाह रे वाह.....!


एक जख्म को अपनी मुस्कुराहट से भर देती है बेटी। अगर किसी की बहू भी है तो वो भी तो किसी की बेटी हव राम बच्चन। फ़र्क त हम सबलोग करत हई। वरना बेटों से ज्यादा सम्मान आज बेटी करत हव। कहा से कहा तक पहुँचत हव।

कांकी की बात सुनकर हर स्त्री कांकी के हाथ को पकड़ एक चैन बना ली।कहा बेटी के बिना समाज की कल्पना नही की जा सकती बेटी ही माँ है, बेटी ही पत्नी है, बेटी ही बहन है,फिर बेटी से इतनी नफरत क्यों?


क्या सिर्फ नारे तक सिमट कर रह गयी है बेटियां। बेटियां शर्म नही सम्मान है। गर्व है आपकी। कांकी की बात सुन राजू ने अपनी दोनों बेटियों को गले से लगा लिया।


राजू तो समझ गया मगर आपको कब समझ आएगा ?बेटियां मनहूस नही।



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