फोब् का ख़ौफ़ ?

आख़िर क्या है ये फोब् का ख़ौफ़? क्या आप भी फोब् के ख़ौफ़ से जूझ रहे ?क्या आपको भी फोब्  नाम से डर लगता है?बड़ा सवाल यह है कि आख़िर ये फोब् का ख़ौफ़ कौन सा नया भूत है?आइए आज हम आपको इसी विषय पर गंभीर चिंतन करने का मौका देंगे। जिसे आप भी इसे समझें न तो खुद हिचकिचाए न ही डरे। बल्कि खुल कर इस पर बात करे। अपनो के करीब रहे।

फोब् सुनने में भले ही थोड़ा अटपटा हो लेकिन जिसे जकड़ लेता है ,तो वो शख्श जल्द इन परेशानियों से निकल भाग नही पाता। कभी कभी परिवारजन भी साथ देते देते हाथ छूटा लेते है जो सही नही है।


आज मैं इसी ख़ास विषय पर आप सभी से चर्चा करने जा रही हूं, और इस विषय को गहराई तक जानने के लिए आपको एक लघुकथा के माध्यम इसके बारे में बताने जा रही हूँ।


छोड़ दो मुझे मैं पागल नही हु,दूरर.....ररररर रहो मुझसे मैंने कहा दूर रहो मैं पागल नही हूँ ,मैं पागल नही हूँ,पागल नही हु...नर्स ने मानसी को बेहोशी का इंजेक्शन दिया। थोड़ी देर बाद वो बेहोश हो कर सो गयी। ये सब उसकी दादी दरवाजे के बाहर से देख रही थी और अपने आँचल से आंसू को पोछती जा रही थी। उसकी दादी वही पास के कुर्सी पे बैठकर मानसी के बचपन मे गोते लगाने लगी। तभी डॉ कार्तिक ने दादी को आवाज लगाया,उनसे जानना चाहा कि आख़िर आप इतनी परेशान क्यों है,मुझसे अपनी बात कहिए? मानसी की दादी डॉ के आगे फुट फूट कर रोने लगी।


बेटा मेरी मानसी पागल नही है,उसे न जाने क्या हो गया है?वो तो बचपन से ही बहुत मस्त रहती थी,डांस का बहुत शौक था मानसी को हर पल डांस करती रहती,उसकी कमर और पैर कभी नही रुकते हर पल थिरकते।


मानसी की माँ तो उसके होते ही छठे दिन ही गुजर गई,मेरा बेटा मानसी से हमेशा चिढ़ता ये कह कर की मनहूस है ये लड़कीं मगर मानसी अपने मे खुश रहती।


बात उन दिनों की है जिस दिन मानसी संध्या मेरे पड़ोसी की  बेटी आशी के साथ डांस की प्रैक्टिस कर रही थी। बहुत खूबसूरत,दोनों की जोड़ी ...दोनों लड़कियां फुर्सत हुई नही की बस...शुरू हो जाती थिरकना,मुझको हुई न खबर चोरी चोरी छुप छुप कर जब प्यार की पहली नजर ....अचानक से मानसी की चीखने की आवाज आई मैं नीचे उन दोनों बच्चियों के लिए मैग्गी बना रही थी। मैंने देखा आशी रूम से तेजी से निकलती है और मुझसे बिना कुछ कहे सीढ़ियों से उतर कर सीधे,अपने घर को भागती है। ये देख मैं सकपका गयी,क्योंकि उस समय घर पर कोई नही था।


आशी थरथरा रही थी, उसकी हालत को देख मैं गैस तुरंत बंद करके ऊपर की तरफ भागी क्योंकि मानसी बाहर नही आई और न ही आशी ने कुछ कहा....! धीरे धीरे जब मैं कमरे की ओर बढ़ी तो मैंने जो देखा वो.....डॉ कार्तिक वो क्या ,क्या हुआ था उस दिन,बोलिए?


वो मैंने देखा कि मानसी कमरे के सभी सामान अस्त व्यस्त कर दी है और उसकी खुद की हालत और हरक़त भयभीत कर देने वाली थी।


पहले मैं डरी ,मगर हिम्मत के साथ आगे बढ़ी ,उसे आवाज दी,बेटा मानसी क्या कर रही हो। आपकी मैगी नूडल्स तैयार है। मेरी गुड़िया ,पास आओ ....मानसी का चेहरा बिल्कुल उस वक्त लाल था,उसने बुरी तरह से अपने बालो को बिखरे हुई ,हहूऊऊ हूऊ करके अजीब सी आवाज निकाल रही थी।


दो पल को बिल्कुल डर गई थी मैं। मगर हिम्मत करके उसके पास गई। मानसी,बेटा आप को  क्या हुआ। बस मेरे छूते ही बेहोश हो गयी। ये पहली बार हुआ था मानसी के साथ।


आशी के घर वालो से ये बात पूरे मोहल्ले में फेल गयी। कोई न खेलता उसके साथ, न ही अपने बच्चो को उसे बात करने देता। लोग हर पल ये कहते कि इस पर भूत प्रेत का साया है। इस तरह मानसी बिल्कुल अकेली हो गयी। अब न तो पहले की तरह डांस करती न ही थिरकती।


मानसी के पिता हैदराबाद में एक कंप्यूटर सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करते है। मैंने सोचा की क्यों न कुछ दिन मानसी को हैदराबाद ले चलू ,उसका मन भी बदलेगा ओर थोड़ा तबियत भी।


गर्मियों की छूटी में ओर मानसी हैदराबाद आ गए। कुछ दिन खुश थी वहां मानसी। वापस से उसका मस्ती करना,खाना पीना सबकुछ पहले की तरह हो रहा था कि....उस रात मेरा बेटा जब कंपनी से देर रात लौटा तो शराब के नशे में चूर था। उसने मानसी को नाचते हुए देखा तो अपने  बेल्ट से उसको पीटना शुरू कर दिया।


गन्दी गन्दी गालियों के साथ । मैं मानसी को बचाते हुए उसको कमरे में लेकर चली गयी। उस दिन से मानसी अपने पिता से ही भयभीत हो गयी। जब भी वो देखती मेरे पीछे छिप जाती या तो मुझे इस कदर जकड़ लेती मानो भूचाल आने वाला हो। मैं समझ गयी थी कि मानसी अरुण से यानी अपने पिता से डर रही है।


क्योंकि हर रोज मानसी का पिता घर आते मानसी को बर्बरता से पिटता। इस तरह से मानसी अपने पिता को देखते ही या तो कमरे में छिप जाती या तो बाथरूम में।

मैं उसे वापस घर ले आयी।


मानसी कुछ दिन तक तो खुश थी,मैंने प्रण कर लिया कि अब ही मानसी की दोस्त,दादी,माँ,पिता सबकुछ बन कर रहूंगी। दिनोरत हम खेलते,एक साथ खाते पीते,सोते,डांस करते मानसी को जो भी कुछ पसन्द होता वो सबकुछ मैं करती।


मानसी धीरे धीरे स्वस्थ और बड़ी होने लगी। उसका एडमिशन मैंने एक महिला कॉलेज में करवाया। रोज मैं उसे छोड़ने - लेने जाती। एक रोज मेरी तबियत अचानक बिगड़ गयी,मैं सुबह हिम्मत करते हुए मानसी को छोड़ने को जब तैयार हुई तो मानसी ने बड़े प्यार से कहा...दादी माँ अब मैं बड़ी हो गयी हूँ। मैं भी सबके तरह आ जा सकती हूँ। आप घर पे ही रहिये आपको बहुत तेज बुखार है,मगर मुझे खुशी से ज्यादा उसकी चिंता थी। न जाने क्यों?

मगर कुछ दिनों तक मानसी खुद आती ,जाती,मेरा भी ख्याल रखती,बाते ऐसे करती मानो मेरी नानी हो। मगर एक रोज मानसी आई तो उसने बेल के बजाए दरवाजा पीटना शुरू कर दिया। मैं घबड़ा गई,की कही मानसी.....!दरवाजा खोलते मानसी मुझसे लिपट कर रोने लगी। मैं घबरा गई उसको देख कर ,आख़िर कर बात क्या हुई,मैंने मानसी से जानना चाहा,वो मुझे अभी भी जोर से लिपटी ही हुई थी। मैंने उससे कहा...मानसी मेरी गुड़िया को क्या हुआ।

बड़ी मशक्कत के बाद वह खुद को संभालते हुई बोली,जब मैं कॉलेज से लौट रही थी,तब सड़क पर खुश अधेड़ उम्र के लड़के मेरा पीछा करने लगे। मैं कदमो को तेज की ओर बिल्कुल डर गई थी....,मुझे कुछ भी न समझ आ रहा था।

तभी अचानक पीछे से आरहे वो लोग दौड़ कर आगे मेरा रास्ता रोक लिए। मैं सहम गए थी बिल्कुल। फिर बोलते बोलते मानसी का गला रुंध गया,मैंने हिम्मत के साथ उससे पूछा क्या हुआ मेरी बच्ची बोल ....? क्या हुआ मानसी ..,उसने हिम्मत के साथ बोला दादी वो लोग मेरा बैग छीने की कोशिश करने लगे,ओर दूसरा शख्श मेरा हाथ पकड़ने लगा,मैंने हिम्मत के साथ उसके हाथ पर अपने दाँत गड़ा दिए और तेजी से भागते हुए आगे जा कर एक मोटर साइकिल से भिड़ गयी।

उसके बाद वो लोग भाग गए। मगर मैं उस मोटरसाइकिल वाले को भी देखकर बिल्कुल भयभीत हो गयी थी ,लग रहा था कि कही हर लड़की के साथ जो होता है वो कहि मेरे साथ.....बस मानसी रोने लगी ।

उसने कॉलेज आना जाना भी छोड़ दिया। मैंने बहुत समझाया। लेकिन वो नही मानी । मैं जब सब्जी लेने जाती तो मानसी साथ मे जाती लेकिन धीरे-धीरे वो सब्जी मंडी भी जाना बंद कर दी।

मैंने देखा कि उसे हर शख्स से डर लग रहा। धीरे धीरे मानसी फिर से उसी गम्भीर हालत में जाने लगी जिससे मैं उसे 20साल पहले वापस लाई थी।

मगर हद तब हो गयी जब भी कोई घर आता मानसी की हरकतें लोगो को डरा देती। मानसी धीरे धीरे अपने कमरे तक ही सिमट गई। उसे हर पल लगता कि उसे कोई डरा रहा। भयभीत कर रहा।

वो अपने बाथरूम तक मे जाने से डरती। कभी उसे लगता कि कोई उसका घर मे पीछा करता ,तो कभी उसे लगता कि कोई उसके कमरे में गया,तो कभी उसे लगता कोई उसे बुलाया,तो कभी कभी उसे अपने गुड्डे से ही डर लग जाता मानो वो बोल पड़ेगा अभी को।

धीरे धीरे मानसी की हालत बिगड़ने लगी,मैं भी हिम्मत करती मगर अब वो बच्ची नही जो मैं उसे सम्भाल लू।

उसे हर एक चीज से भय होता,अक्सर ऐसी हरकत करने मानो सचमुच भूत प्रेतों का साया हो। मैंने पास के पंडित जी को मानसी की सभी बाते बताई...उन्होंने कहा शांत हो जाएगी वो उसकी माँ प्रेत योनि में मरी है। इसीलिए वो अपनी बच्ची को अपने पास रखना चाहती हैं।

मैं ये सब सुनकर बहुत भयभीत हो गयी। मैंने उनसे पूछा कैसे ठीक होगी कोई उपाय बताए...डॉ हकीम के चक्कर से इतना त्रस्त हो चुकी थी कि मुझे भी अब लगने लगा था कि मानसी पर बुरे साया का प्रभाव हैं।

उसकी हरकतें मुझे हर रोज भयभीत करती। लेकिन पंडित ओर तांत्रिक के चक्कर मे पड़कर मेरी गुड़िया ठीक होने के बजाए,ओर बद्दतर होती चली गयी। एक समय ये आ गया कि आज वो ...मानसी की दादी फुट फूट कर रोने लगी,आज वो पागलखाने में सिकड़ो से बंधी हुई है। मुझे तकलीफ हो रही उसकी हालत को देख कर, पता नही मुझसे क्या गलती हो गयी। बहुत अरमान थे मेरे मैं जीते जी अपनी मानसी की शादी एक ऐसे लड़के से करूंगी जिसके साथ वो डरे सहमे नही।

मगर हालात ने सबकुछ बदल दिया। डॉ कार्तिक,मैं करूंगा आपकी बेटी ,आपकी लाडली,आपकी दोस्त आपकी गुडिया से शादी। दादी आपने वाक़ई बहुत किया एक उम्र के हिसाब से ओर अब आप अकेले नही मैं भी साथ हु।

ये आप क्या कह रहे,वही जो आप सुन रही। दादी डॉ  के हाथ जोड़ते,मेरी गुड़िया आपके लायक नहीं। ऐसा नहीं है दादी। मानसी वापस से नॉर्मल हो जाएगी। उसे कुछ नही हुआ है। न ही उसे कोई उपरी बाधा है। आप इतना क्यों सोच रही।

पहले आप पानी पीजिए,अब सास लीजिए और रोना बन्द कर दिजीए। मैं हु न ,आपको मुझपर भरोसा नही ? नही नही बेटा ऐसा नही है। मैं तो बस यही कहना चाहती थी कि मेरी मानसी पागल नही है उसे सीकड़ से मत बांधो....मैं जानता हूँ दादी जी वो पागल नही है। वो बिल्कुल ठीक है,बस उसे अधिक प्यार और स्नेह की जरूरत है क्योंकि वो एक ऐसे बीमारी से जूझ रही जो उसके जीवन को नासूर बना देगा।

भय,डर,सोचना,जरा जरा सी बात पर सहम जाना,सर में दर्द,ये सब भूत प्रेत नही बल्कि फोब् का ख़ौफ़ है ,फोबिया।  मानसी की दादी फोबिया ये क्या होता है?

दरअसल फोब् एक बीमारी है , जिसका नाम फोबिया है। ये एक ऐसी  बीमारी है जो अक्सर महिलाओं में पाई जाती है। कभी कभी अधिक चिंतन ही हमारे लिए सर दर्द बन जाता है। हम सभी ने यह कहावत तो सुनी होगी,"चिंता चिता के समान है"।वाक़ई अधिक चिंता से भी दिक्कतें कम नही बल्कि अनेको बीमारियों को दावत दे देती हैं।

आज फोबिया नाम की इस बीमारी ने भारत भर में सिर्फ महिलाएं को ही नही बल्कि 25%पुरूष प्रधान को भी अपने से जकड़ लिया है।मैं चाहूंगी की यदि आप या आपका कोई अपना इस बीमारी से जूझ रहा हो तो उसे तुरंत एक न्यूरो चिकित्सक के पास ले कर जाएं,जिसे वो समझ सकें सही समय पर इलाज हो सके।


क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है कि आप कभी कमरे में हो या किचन में , तो आपको किसी के जाने की शंका हुई हो...उस वक़्त घर पर कोई भी न हो। ऐसे हालात में हम अक्सर भयभीत ही हो जाते हैं। या फिर डर जाते है।


अक्सर हमें यू लगता है कि किसी ने यानी हमारे अपनो ने आवाज दी,मगर पूछने पर अक्सर ऐसा होता है कि आपको किसी ने भी आवाज नही दी।


अक्सर ऐसे मामलों में लोग भूत- प्रेतों का साया मानकर डर जाते है,ओर जादू टोना,भूत प्रेत,ऊपरी बाधा जैसी बातों में फस कर उलझ जाते है,जो शायद सही नही।


क्योंकि फोबिया एक गंभीर बीमारी है ,जिसको समझना बेह्द  जरूरी है, क्योंकि दुर्भीति या फोबिया एक प्रकार का मनोविकार है।  जिसमें व्यक्ति को विशेष वस्तुओं, परिस्थितियों या क्रियाओं से डर लगने लगता है। यानि उनकी उपस्थिति में घबराहट होती है जबकि वे चीजें उस वक्त खतरनाक भी नहीं होती।


कभी कभी कुछ न होते हुए भी उसे उस चीज का भय होता है,जिससे जूझ रहा व्यक्ति अत्यंत परेशान हो उठता है। जैसा कि मैंने आपको पहले ही कहा कि यह एक गम्भीर विषय है जिसे हम चिन्ता की बीमारी भी कह सकते है।


इस बीमारी में पीड़ित व्यक्ति को हल्के अनमनेपन से लेकर डर के भयावह दौरा तक पड़ सकता है।


दुर्भीति की स्थिति में व्यक्ति का ध्यान कुछ एक लक्षणों पर केन्द्रित हो सकता है, जैसे-दिल का जोर-जोर से धड़कना या बेहोशी लगना। इन लक्षणों से जुड़े हुए कुछ डर होते है जैसे-मर जाने का भय, अपने उपर नियंत्रण खो देने या पागल हो जाने का डर।


इस विकार से रोगी अधिकतर लोग अपने विकार पर पर्दा डाले रहते हैं। उन्हें लगता है कि इसकी चर्चा करने से उनकी जग हंसाई होगी। वे उन हालात से बचने की पूरी कोशिश करते हैं जिनसे उन्हें फोबिया का दौरा पड़ता रहता  है।


इसे बचने के लिए साइकोथेरेपिस्ट की सहायता से मन में बैठे फोबिया को मिटाने की कोशिश की जा सकती है। जिससे जैसे-जैसे रोगी का आत्मविश्वास लौटता जाता है, वैसे-वैसे उसका भय घटता जाता है। यह डीसेंसीटाइजेशन थैरेपी रोगी में फिर से जीने की एक बार और ललक पैदा कर देती है। इस तरह से अस्वाभाविक भय की हार और जीवन की जीत होती है।

दादी ये कई प्रकार के होते है,

आइए जानते है कि फोबिया की बीमारी अन्य डरों से किस प्रकार अलग है? इसकी सबसे बड़ी विशेषता है व्यक्ति की चिन्ता, घबराहट और परेशानी यह जानकर भी कम नहीं होती कि दूसरे लोगो के लिए वही परिस्थिति खतरनाक नहीं है।


यह डर सामने दिखने वाले खतरे से बहुत ज्यादा होते हैं। व्यक्ति को यह पता रहता है कि उसके डर का कोई तार्किक आधार नहीं है फिर भी वह उसे नियंत्रित नही कर पाता। इस कारण उसकी परेशानी और बढ़ जाती है।


इस डर के कारण व्यक्ति उन चीजों, व्यक्तियों तथा परिस्थितियों से भागने का प्रयास करता है जिससे उस भयावह स्थिति का सामना न करना पड़े। धीरे-धीरे यह डर इतना बढ़ जाता है कि व्यक्ति हर समय उसी के बारे में सोचता रहता है और डरता है कि कहीं उसका सामना न हो जाए। इस कारण उसके काम-काज और सामान्य जीवन में बहुत परेशानी होती है।


तभी डॉ कार्तिक- मानसी के पास जाते है और उसके सीकड़ को खोलवा कर उसको ये समझाने की कोशिश करते है कि  ,मानसी तुम पागल नही हो तुम्हे सिर्फ़ भय ने जकड़ लिया है और तुम्हारे इसी भय ने तुम्हारे अपनो से दूर कर दिया।


आज मैं आप सभी से इस छोटी कहानी के माध्यम इस बीमारी के बारे में आप तक जागरूकता पहुँचा रही हूँ, यदि आप भी किसी ऐसे शख्श को जानते है तो उसे न्यूरो चिकित्सक को दिखाने का पहले प्रयास करे।


क्योंकि अक्सर ,पागल वाली हरकत जरूरी नही की वो पागल ही हो।


डॉ कार्तिक - मानसी की दादी से क्योंकि यह बीमारी कई प्रकार से सामने आती है। जैसे बच्चे हो या वृद्ध किसी को भी अक्सर खुली जगह का डर होता हैं। जिसे हम मनोचिकित्सक अगोराफोबिया कहते है। इससे पीड़ित व्यक्ति को घर से बाहर जाने में, दुकानों या सिनेमाघरों में घुमने, भीड़-भाड़ में जाने, ट्रेन में अकेले सफर करने, या सार्वजनिक जगहों में जाने, में घबराहट होती है।


यानि ऐसी जगह से जहाँ से निकलना आसान न हो, व्यक्ति को घबराहट होती है और वह उससे बचने का हर दम प्रयास करता है।


दूसरा इसका रूप है, सामाजिक दुर्भीति इसमें व्यक्ति किसी सामाजिक परिस्थिति जैसे-लोगों के सामने बोलना या लिखना, स्टेज पर भाषण देना, टेलीफोन सुनना, किसी उँचे पद पर आसीन लोगों से बातें करने में परेशानी होना। हर वक़्त भय का डर होना की कही कुछ गलत न हो जाए।


ऐसे लोगों को अक्सर विशेषतौर पर उँचाई से डर, पानी से डर, तेलचट्टा, बिल्ली, कुत्ते, कीड़े से डर आदि से डर लगना।


बहुत से लोगों को डर होता है कि वो भीड़ में बेहोश होकर गिर जाएँगे। ये युवावस्था और स्त्रियों में अधिक पाया जाता है।


अधिकतर इसका मतलब है कि यदि किसी सामान्य परिस्थिति में व्यक्ति के साथ कुछ घटित हो जाए या दुर्घटना घट जाए ,तो उस घटना के घटने के बाद अगली बार कोई खतरा न होने पर भी व्यक्ति को उन सभी परिस्थितियों में पुनः घबराहट होने लगती है।


बच्चों में कभी भी उसके आत्मविश्वास की कमी और आलोचना न करे किसी के भी आगे क्योंकि अक्सर इन्ही आलोचना ओर आत्मविश्वास की कमी के भय से कई बार डर के लोगो के सामने नही आते खुद को असहज महसूस करते है। जो कि इस रोग को जन्म देता है।


      इसके अलावा यह जैविक या अनुवंशिक कारणों से भी हो सकता है।


तीसरा किसी भी प्रकार का फैसला करने से असमर्थ व्यक्ति हो सकता है कि डिसायडोफोबिया से पीड़ित हो। यह एक ऐसा फोबिया है जिसमें पूरी परिस्थिति को समझ लेने के बाद भी व्यक्ति आखिर में फैसला करने से घबरा रहा हो। उसके मन में अनगिनत विकार घूमते हैं जो उसे फैसला ना लेने पर मजबूर करते हैं।


चौथा अचानक कमरे में अकेले होते हुए भी यह महसूस करना कि आपके आसपास कोई है, कोई ऐसा जरूर है जो खतरनाक है। रात को सोते समय भी डर से नींद खुल जाना और यह आभास होना कि आपके पास से कोई गुज़रा। यह एक प्रकार का फोबिया है, जिसे मनोचिकित्सक पैनफोबिया कहते हैं।


पाँचवा ,क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आप अपने कमरे से निकलकर नीचे वाले माले पर जाने के लिए सीढ़ियों की ओर बढ़े थे और पहली सीढ़ी पर पहुंचते ही अचानक रुक गए,ऐसा क्यों?


ऐसा तब होता है जब किसी इंसान को सीढ़ियां उतरने या साथ ही में चढ़ने से भी डर लगता हो। इसे डिसेंडोफोबिया कहा जाता है।


छठवें में, कॉलरोफोबिया एक ऐसा फोबिया है जिसमें इंसान को बेवजह सर्कस के जोकर से डर लगता है। ऐसा जोकर जो लोगों को हंसाने के लिए आता है, लोगों का मनोरंजन करता है,लेकिन कुछ लोग इसे भयभीत होते हैं।चाहे वो बच्चे हो या वृद्ध। 


सातवां, जब आप अपने रसोईघर से कुछ दूरी पर खड़े हैं और रोशनी कम होने के कारण दूर पड़े एक चीज़ को पहचानने की कोशिश कर रहे हैं। अधिकतर लोग ऐसे परिस्थितियों में भयभीत हो जाते है और लाइट जलाने के लिए दौड़ते हैं।


लेकिन जब लाइट जलती है तो वह आपका कोई जरूरी सामान या आप किचन में है तो कोई किचन का सामान हो सकता है,जो कि अंधेरे में आपको अधिकतर भयभीत कर देता हैं। इस प्रकार के डर को मनोचिकित्सक ओइकोफोबिया के नाम से बताते है।

कुछ ऐसा ही हुआ मानसी के साथ, इसके भय ने ही इसको हर बार भयभीत किया, जिसके कारण आप परिवार वालो ने इसे पागल समझ पागलखाने में रख दिया, लेकिन यह इसके लिए ओर भी खतरनाक है। क्योंकि उसे अकेले की नही सहयोग की जरूरत है, अपनो के सहयोग की जरूरत। इसे वो जल्द ही परिस्थितियों से लड़ना सिख जाएगी।


जल्द ही हम आप जैसे सामान्य तो नही मगर हालात के साथ कुछ कदर लड़ने को तैयार हो जाते है। आज मानसी एक गूंगे बहरे स्कूल में बच्चों को चित्रकला सिखाती है,उसने तो अपने जीवन के भय को दूर कर लिया आप कब कर रहे...!


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