हिंदी युग- योगदान "सर्वेश्वर दयाल सक्सेना" किताबें बोलती हैं

जाने माने हिंदी क्षेत्र के महान शख्सियत सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जो कि मूलतः कवि एवं साहित्यकार थे।लेकिन जब  उन्होंने अपनी लेखनी की क़लम पत्रकारिता के  दिनमान में चलाया ओर कार्यभार संभाला तब समकालीन पत्रकारिता के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को उन्होंने समझा और सामाजिक चेतना जगाने में अपना अनुकरणीय योगदान भी दिया।


        सर्वेश्वर मानते थे कि जिस देश के पास समृद्ध बाल साहित्य नहीं है, उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं रह सकता। सर्वेश्वर की यह अग्रगामी सोच उन्हें एक बाल पत्रिका के सम्पादक के नाते प्रतिष्ठित और सम्मानित करती है।




(

जन्म 15सिंतबर,1927             मृत्यु 26सिंतबर,1986)


15 सितंबर 1927 को बस्ती में विश्वेश्वर दयाल के घर हुआ।इन्होंने इलाहाबाद से बीए और सन 1949 में एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की।


उसके बाद कार्यक्षेत्र में उतर गए,इन्हें हिंदी में लिखने का शौक था। लेकिन लेखनी के साथ ही साथ इन्होंने संघर्षपूर्ण जीवन को भी जिया....सन 1949 प्रयाग में उन्हें एजी आफिस में प्रमुख डिस्पैचर के पद पर कार्य मिल गया। यहाँ वे 1955 तक कार्यरत रहे।


इसके बाद वे

आल इंडिया रेडियो के सहायक संपादक (हिंदी समाचार विभाग) पद पर नियुक्ति हुए। इस पद पर वे दिल्ली में 1960 तक रहे।


सन 1960 के बाद वे दिल्ली से लखनऊ रेडियो स्टेशन आ गए। 1964 में लखनऊ रेडियो की नौकरी के बाद वे कुछ समय भोपाल एवं रेडियो में भी कार्यरत रहे।


सन 1964  में जब दिनमान पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ तो वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' के आग्रह पर वे पद से त्यागपत्र देकर दिल्ली आ गए और दिनमान से जुड़ गए।

वहाँ ये सन 1982 में प्रमुख बाल पत्रिका पराग के सम्पादक बने। नवंबर 1982  में पराग का संपादन संभालने के बाद वे मृत्युपर्यन्त उससे जुड़े रहे।दिल्ली सन 23 सिंतबर,1983 सक्सेना जी हम सभी को छोड़ हमेशा हमेशा के लिए अलविदा ले लिए।


             हिंदी युग मे योगदान ..एक पैनी नज़र


काव्य के क्षेत्र में .....

● तीसरा सप्तक – सं. अज्ञेय, 1959
● काठ की घंटियां – 1959
● बांस का पुल – 1963
●एक सूनी नाव – 1966
●गर्म हवाएं – 1966
●कुआनो नदी – 1973
● जंगल का दर्द – 1976
●खूंटियों पर टंगे लोग – 1982
●क्या कह कर पुकारूं – प्रेम कविताएं
● कविताएं (1)
● कविताएं (2)
● कोई मेरे साथ चले
● मेघ आयेकथा-साहित्य
●पागल कुत्तों का मसीहा (लघु उपन्यास) – 1977
●सोया हुआ जल (लघु उपन्यास) – 1977
●उड़े हुए रंग – (उपन्यास) यह उपन्यास सूने चौखटे नाम से 1974 में प्रकाशित हुआ था।
● कच्ची सड़क – 1978
●अंधेरे पर अंधेरा – 1980
●अनेक कहानियों का भारतीय तथा यूरोपीय भाषाओं में अनुवादसोवियत कथा संग्रह 1978 में सात महत्वपूर्ण कहानियों का रूसी अनुवाद।

कई नाटक भी लिखे....

◆ बकरी – 1974 (इसका लगभग सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद तथा मंचन)
◆लड़ाई – 1979
◆ अब गरीबी हटाओ – 1981
◆ कल भात आएगा तथा हवालात –(एकांकी नाटक एम.के.रैना के निर्देशन में प्रयोग द्वारा 1979 में मंचित
◆रूपमती बाज बहादुर तथा होरी धूम मचोरी मंचन 1976यात्रा संस्मरण
◆ कुछ रंग कुछ गंध – 1971बाल कविता
◆ बतूता का जूता – 1971
◆महंगू की टाई – 1974बाल नाटक
◆ भों-भों खों-खों – 1975
◆ लाख की नाक – 1979

इन्होंने संपादन कार्य मे भी अपनी लेखनी को ओर पुरजोर से मजबूत किया....

● शमशेर (मलयज के साथ – 1971)
● रूपांबरा – (सं. अज्ञेय जी – 1980 में सहायक संपादक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना)
●अंधेरों का हिसाब – 1981
●. नेपाली कविताएं – 1982
●रक्तबीज – 1977अन्य

दिनमान साप्ताहिक में चरचे और चरखे नाम से चुटीली शैली का गद्य – 1969 से नियमित।
●दिनमान तथा अन्य पत्र-पत्रिकाओं में साहित्य, नृत्य, रंगमंच, संस्कृति आदि के विभिन्न विषयों पर टिप्पणियां तथा समीक्षात्मक लेख।
● सर्वेश्वर की संपूर्ण गद्य रचनाओं को चार खण्डों में किताबघर दिल्ली ने छापा है।

बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया व उठ मेरी बेटी सुबह हो गयी ...जो अत्यंत लोकप्रिय है। अगर देखा जाए तो हिन्द के बिंद ने हमें  अनेको लेखक दिए। जिन्होंने हिंदी की पहचान हर क्षेत्र में की।


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