यहाँ विराज्यमान है छप्पन रूपी गौरी पुत्र गजानन

मंगलकामना के मंगलमूर्ति जिन्हें स्वयं यह नाम ब्रम्हा जी ने प्रदान किया। गौररूपी गौरी के उबटन से सुंदर पराक्रमी ,और शिव के द्वारा उन्हें पुनःजन्म देने के लिए ; ....गजानन गणेश है जो सर्व शक्तिशाली,सर्व विधमान,सर्वश्रेष्ठ,है। इसीलिए गजानन को मंगलमूर्ति ,गणपति बप्पा ,गजानन गणेश और मेरा प्रिय मित्र,प्रिय भाई गन्नू को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं!



सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची
सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची  
कंठी झलके माल मुक्ता फलांची

जय देव जय देव जय देव जय देव
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।
दर्शन मात्रे मन कामना पूर्ती ,
जय देव जय देव जय देव जय देव।

देवाधिदेव,महादेव के क्रोध और गौरीपुत्र का हठ,और अहंकार,और माता का अपने पुत्र को खो उसको पुनः पाने की चेष्टा और विलाप ही ; इस मंगलमूर्ति बालक का पुनःजन्म हुआ।


                    कैसे जन्म हुआ मंगलमूर्ति का




शिवपुराण में मंगलमूर्ति के जन्म का वर्णन पढ़ने को मिलता है कि,  देवी पार्वती ने अपने उबटन से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। उन्होंने इस प्राणी को द्वारपाल बना कर बैठा दिया और किसी को भी अंदर न आने देने का आदेश देते हुए स्नान करने को चली गईं। संयोग से इसी दौरान भगवान शिव वहां आए। उन्होंने अंदर जाना चाहा, लेकिन बालक गणेश ने उन्हें रोक दिया। नाराज शिवजी ने बालक गणेश को समझाया, लेकिन उन्होंने एक न सुनी।


 उन्होंने महादेव की घोर अपमानित किये।उनके इस अंहकार ओर हठ को देखते हुए महादेव  क्रोधित हो उठे और उन्होंने त्रिशूल से गणेश का सिर काट दिया। पार्वती को जब पता चला कि शिव ने गणेश का सिर काट दिया है, तो वे कुपित हुईं।


माता पार्वती ने प्रचंड रूप धर देवी दुर्गा का रूप धर चौसठ योगिनियो के साथ धरती पे समस्त प्राणियों को निगलना शुरू कर दिया यह देख शिव जी ने पार्वती की नाराजगी को दूर करने के लिए शिवजी ने समस्त देवगण लोग को एक नवजात बच्चे का मुख लाने को कहा....दो पहर की अवधि में उन्हें एक गज का नवजात शिशु मिला जिसका जीवन मात्र 1दिन ही था। यम देव के प्राण लेते ही देवगण ने उस शिशु का मस्तक धड़ से अलग कर कैलाश पहुँचे।


वहाँ भगवान शिव ने इस मस्तक को जोड़ने के लिए अश्विनीकुमार वैध को बुलाया उन्होंने  गणेश के धड़ पर हाथी का मस्तक लगा,शिव ने उन्हें प्राण दे जीवनदान दे दिया। तभी से शिवजी ने उन्हें तमाम सामर्थ्य और शक्तियां प्रदान करते हुए प्रथम पूज्य और गणों का देव बनाया।


 गणेश के पास हाथी का सिर, मोटा पेट और चूहा जैसा छोटा वाहन जरूर  है, लेकिन इन समस्याओं के बाद भी वे विघ्नविनाशक, संकटमोचक की उपाधियों से नवाजे जाते हैं। कारण यह है कि उन्होंने अपनी कमियों को कभी अपना नकारात्मक पक्ष नहीं बनने दिया, बल्कि उसे अपनी ताकत बनाया। उनकी टेढ़ी-मेढ़ी सूंड बताती है कि सफलता का पथ सीधा नहीं है।


 यहां दाएं-बाएं खोज करने पर ही सफलता और सच प्राप्त होगा। हाथी की भांति चाल भले ही धीमी हो, लेकिन अपना पथ अपना लक्ष्य न भूलें। उनकी आंखें छोटी लेकिन पैनी है, यानी चीजों का सूक्ष्मता से विश्लेषण करना चाहिए। कान बड़े है यानी एक अच्छे श्रोता का गुण हम सबमें हमेशा होना चाहिए।


जब ब्रम्हा ने बताया गज मुख गणेश के बारे में.........गणेश भगवान के कानों में वैदिक ज्ञान, मस्तक में ब्रह्म लोक, आंखों में लक्ष्य, दाएं हाथ में वरदान, बाएं हाथ में अन्न, सूंड में धर्म, पेट में सुख-समृद्धि, नाभि में ब्रह्मांड और चरणों में सप्तलोक है।


                         गणेश नाम ही क्यों ?


हिंदू पुराण के अनुसार, छन्दशास्त्र में कुल आठ गण होते हैं और गणेश इन्हीं आठों गणों के देवता हैं। इन आठ गणों के नाम हैं- नगण, भगण, मगण, जगण, यगण, रगण, सगण, तगण। गणेश अधिष्ठाता देवता हैं, इसीलिए उन्हें गणेश नाम दिया गया।

   

काशी में विराजमान है गौरीपुत्रं गणेश के छप्पन रूप



काशी में विराजमान है गौरीपुत्रं गणेश अपने माता पिता के पूर्ण सुरक्षा में। बाबा विश्वनाथ ओर माता अन्नपूर्णा (पार्वती) के साथ उनके प्रिय पुत्र गणेश आज भी सिंह द्वार पर खड़े हो अपने माता पिता की सुरक्षा कर रहे। जिनका नाम है.... ढुंढिराज विनायक ।

आज भी वे अपने समस्त 56 रूपो में काशी में विद्यमान है। जिनके दर्शन पूजन से समस्त पाप नही अपितु हमसे हुई समस्त भूलो को सुधारने में मदद करते हैं।

जिनके समस्त रूपी दर्शन मैंने किये...ओर आप भी कर सकते है। छप्पनभोग के बारे मे आप सभी बखूबी जानते है, मगर छप्पन विनायक के बारे में शायद ही जानते हो।

भारत के उत्तरप्रदेश राज्य के वर्तमान पहचान वाराणसी ओर प्रख्यात पहचान काशी में समस्त देवी देवताओं के आगमन के बारे मे आपने भी सुना और हो सकता है आप मे से किसी ने देखने की चेष्टा भी की हो।

लेकिन अपने स्वयं के इस रिसर्च काशी ढूंढे में काशी के समस्त भगवानों में से महज 260 मंदिरो को ढूंढने में मैं सफल हुई।


अनेको कठनाइयों का सामना करते हुए भी भूखे प्यासे,इन मंदिरों तक पहुँचने का लक्ष्य महज सिर्फ और सिर्फ अपनी नही अपितु अपने माता पिता के कष्ट और बचपन के अनेको दुःखो तकलीफों से लड़ने की हिम्मत देने की प्रार्थना मात्र से ही जुड़ा था। परंतु ऐसा होने के बजाए, मैं सिर्फ भगवान के चरण छू ,कभी न कुछ मांगा न ही कभी कुछ अपने दिली संकट को कह पाई।
दूसरा,कुछ जानने की चेष्टा से हमे बहुत सारे ज्ञान प्राप्त होते है। एक पत्रकार होने के नाते मुझें किसी भी चीज को ढूंढने की चेष्टा अत्यंत ही रहती हैं।




यहाँ तक कि उनको इस विशाल सुंदर मुख को जान देने वाले , उन्हे जीवित करने वाले महादेव ही क्यों न हो ,लेकिन बड़ा और मुख्य काम जो महादेव ने अश्वनीकुमार को सौपा उनके दर्शन काशी के मन्दिरो में पाकर अत्यंत मन गदगद हो गया।


ये शुभ अवसर मुझे संकठा जी जाते समय ,पंचनदी यानी पंचगंगा घाट पर प्राप्त हुआ। जो कि गंगा महल के ठीक सामने है।


आइये आपको लेकर चलती हु ...गौरी के लाल ओर मंगलमूर्ति के समस्त छप्पन रूपी गज विनायक के दर्शन कराने ...!


1). ढूंढीराज विनायक - यह मन्दिर विश्वनाथ मंदिर के गेट नम्बर एक पर ही घुसते समय है। जो अपने माता पिता की  रक्षा कर रहे।


2).दुर्ग विनायक - दुर्गविनायक जो कि देवी पार्वती की महाशक्ति देवी दुर्गा के प्राचीन दुर्गा मंदिर में आज भी उनके पुत्र उनके पास मौजूद है।दुर्गा कुण्ड के नाम से प्रचलित देवी दुर्गा को कुष्मांडा के नाम से भी जाना जाता है।


          जैसा कि आप सभी जानते है माता पार्वती को अपने पुत्र अत्यंत प्रिय थे,वो उनसे तनिक भी दूरी नही पसन्द करती ।मान्यता है कि दुर्गविनायक की परिक्रमा करने मात्र से ही समस्त लंबे दिनों के संकट समाप्त हो जाते हैं।


3). चिंतामणि विनायक- यू तो काशी में विराज्यमान छप्पन विनायक मौजूद है उन्ही में से एक अत्यंत शक्तिशाली चिंतामणि विनायक को माना जाता हैं। कहा जाता है कि इनके दर्शन मात्र से सभी असमर्थ कार्य सुलझ जाते है। यह मन्दिर केदारखण्ड यानी केदारेश्वर जाते समय पड़ता हैं।


4).त्रिसंध्य विनायक - इस मंदिर में गौरी पुत्र गणेश अपने पिता के साथ उपस्थित है। यह  मन्दिर ललिताघाट पर मौजूद है। इनका त्रिसंध्यं नेत्र चारो दिशाओं में हो रहे समस्त प्राणियों के विपदा ओर उन पर आने वाले संकट को दूर करने की सूक्ष्म कला है।


5).अर्क विनायक - इनके दर्शन करने से एक असीम ऊर्जा मिलती है। भगवान गणेश अपने इस रूप में अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।


6). अभय विनायक - ये सभी भयो से मुक्त करते है जिनका मन्दिर दशाश्वमेध घाट पर है।


7).आशा विनायक - जैसे की इनके नाम से ही आपको प्रतीत हो रहा होगा कि आशा आपकी जो भी मन मे आशा हो या मन अत्यंत विचलित है तो इनसे कह देने से उस समस्या का हल जल्द ही निकाल देते है आशा विनायक जी।


8).अविमुक्त विनायक - कहा जाता हैं कि ये समस्त परेशानी से मुक्त कर देते है इनका मन्दिर ज्ञानवापी के पास है।


9). भीमचण्डी विनायक- ये यहाँ भीमकाय रूप में मौजूद है ,जिनके दर्शन मात्र से ही समस्त रुके हुए कार्य भीमरूपी हो शुरू हो जाते हैं।


10). चक्रदन्त विनायक - इनके माथे पर चक्र का निशान है जिसे विष्णुरूप का छाया भी कुछ लोग कहते हैं। यह मन्दिर नई सड़क पर मौजूद हैं।


11). चित्रघण्ट विनायक -  देवी चित्रघन्टा के मन्दिर में ही उनके पुत्र विराज्यमान है। यह मन्दिर चौक में स्थित हैं।


12).दंतहस्त विनायक - यह मन्दिर लोहिटया में ही स्थित है। इस मंदिर के बारे में ज्यादा नही बता सकती क्योंकि मेरी मन्दिर के पुजारी जी से मुलाकात नही हो पायी।


13). देहली विनायक - यह मन्दिर वाराणसी शहर से 20 किलो मीटर दूर गांव में स्थित है। कहते है कि ये वाराणसी की रक्षा करते है।


14). द्वार विनायक - यह मन्दिर मणिकर्णिका घाट पर स्थित हैं। इन्हें स्वर्गद्वारेश्वर भी कहा जाता है ,ऐसा इसीलिए क्योंकि यह मोक्ष के द्वार पर खड़े हैं। इसलिए मान्यता अनुसार लोग चिता जलाने के बाद इनके दर्शन जरूर करता है जिससे मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिले।


15).द्विमुख विनायक - यह मन्दिर सूरजकुण्ड पर स्थित है।


16).एक दन्त विनायक - ये काशी को समस्त बुरे शक्तियों से बचाते है। यह मन्दिर पुष्पदन्तेश्वर बंगाली टोला में स्थित हैं। हिंदू धर्म में प्रचलित कथाओं के अनुसार एक बार जब भगवान परशुराम गणेश के पिता शिव से मिलने के लिए कैलाश पर्वत पर आए, तो गणेश ने उन्हें शिव से मिलने से रोका।
     इसकी वजह यह थी कि शिव अपने ध्यान में मग्न थे और वे नहीं चाहते थे कि उस समय शिव को कोई भी ध्या‍न में विघ्न पहुंचाए। लेकिन इस बात पर परशुराम को गुस्सा आ गया और उन्होंने गणेश पर कुल्हाड़ी से वार किया।इस वार में भगवान गणेश का एक दांत टूट गया और वे तभी से एकदंत कहलाए।


17).गजकर्ण विनायक-  यह मन्दिर कोतवालपुरा ईशानेश्वर में स्थित हैं।


18).गज विनायक - यह मन्दिर चौक स्थित राजा दरवाजा भूतेश्वर मन्दिर के पास स्थित हैं।


19).गणनाथ विनायक - यह मन्दिर ढुंढिराज विनायक के समीप है।


20). ज्ञान विनायक - ज्ञान विनायक के दर्शन अगर छोटे बच्चों को कराया जाए तो कहते है कि भगवान अपनी त्रिकन्ध शक्ति से बच्चो के कोमल मस्तिष्क में ज्ञान का भंडार भर देते है। यह मन्दिर खोवा गली में मौजूद है।


21).ज्येष्ठ विनायक - यह मन्दिर सप्तसागर मोहल्ले में स्थित है यहाँ भगवान शिव की ज्येष्ठऐश्वर लिंग होने से इनका नाम ज्येष्ठ विनायक पड़ा।


22). काल विनायक - यह मन्दिर रामघाट पर स्थित है । कहा जाता है कि जिस व्यक्ति को काल का भय हो वह इनकी आराधना करें उसे काल भय से मुक्ति मिलती है।


23).कलिप्रिय विनायक - यह मन्दिर साक्षी विनायक मन्दिर के ठीक पीछे है। मनपरकेश्वर मन्दिर के पास मौजूद है।


24).खर्व विनायक - यह मन्दिर राजघाट किले के पास स्थित है । आदि विष्णु मंदिर में मौजूद है।


25).उदण्ड विनायक- यह मन्दिर रामेश्वर में विराज्यमानहै। ये जब किसी बात पर रूष्ट हो जाते है तब ही  उदण्ड रूप धारण करते है।


26).पाशपाणी विनायक - यह मन्दिर कैंटोमेंट क्षेत्र में है।


27).लंबोदर विनायक- यह मन्दिर केदारघाट पर स्थित है। गणेश पुराण अनुसार, समुद्रमंथन के समय मोहिनी रूप देखकर भगवान शिव मोहित हो जाते है और उनके काम से एक दैत्य क्रोधासुर उत्पन्न होता है। क्रोधासुर सूर्य की घोर तपस्या करके शक्ति प्राप्त करता है और त्रिलोक में उसके नाम का डंका बजने लगता है। देवता विध्न हरण गणेश की स्तुति करते है और लम्बोदर अवतार लेके श्री गणेश क्रोधासुर का संहार कर देते है।


28)कुटदन्त विनायक -यह मन्दिर क्रिकुण्ड पर मौजूद है।


29).शालकाण्ड विनायक -यह मन्दिर मंडुआडीह पर है।


30).कुण्डण्ड विनायक -ये मन्दिर फुलवरिया में स्थित हैं।


31).सिद्धि विनायक- यह मन्दिर मणिकर्णिका घाट मणिकर्णिका कुण्ड के पास ऊपर टीले पे है । जो कि नीचे से ठीक सामने दिखते हैं।


32).मुण्ड विनायक- यह मन्दिर सदर बाजार में स्थित है।


33).विकटद्विज विनायक- यह मन्दिर धुपचण्डी क्षेत्र में स्थित हैं।


34).प्रणव विनायक- यह मन्दिर त्रिलोचन घाट त्रिलोचनेश्वर मन्दिर में विराज्यमान है।


35).राजपुत्र विनायक- यह मन्दिर राजघाट पर स्थित है। ये  वरुणा ओर अस्सी यानि वरुणा पर पंचकोशी यात्रा समाप्त होती है और इसीलिए इन्हें राज पुत्र के नाम से जाना जाता है।


36).सुमुख विनायक- ये मन्दिर अब ही हाल में ही टूट गयी है , यह ज्ञानवापी के पास है ।


37).मोदक विनायक- ये मन्दिर काशी करवट के पास है।


38).प्रमोद विनायक- ये मन्दिर भी ज्ञानवापी के पास है।


39).मित्र विनायक- ये मन्दिर सिंधिया घाट पर मौजूद है।


40).यक्ष विनायक-ये मन्दिर कोतवालपुरा में है।


41).मंगल विनायक- बाला घाट पर स्थित है।


42).सृष्टि विनायक-इनकी मन्दिर कालिका गली में है।


43).नागेश विनायक- यह मन्दिर भोसले घाट पर स्थित है। वामन माधव के बगल।


44).स्थूलदण्ड विनायक-इनका मन्दिर मानमंदिर के पास है।


45).पिचडिला विनायक-इनका मन्दिर प्रहलाद घाट पर है।


46). प्रसाद विनायक- ये मन्दिर पितृकुण्डा पे है।


47).कुणीताक्ष विनायक- ये मन्दिर लक्ष्मीकुण्ड पर स्थित हैं।


48).सिंहतुण्ड विनायक- ख़ालिसपुरा में यह मन्दिर है।


49).वरद विनायक- ये मन्दिर प्रहलाद घाट पर है।


50).विघ्न हरण विनायक- ये मन्दिर चित्रकूट इलाके में है दूसरा संकठा मन्दिर ।यह गणेश जी का सातवा अवतार है जो ममासुर दैत्य के वध के लिए गणेश ने लिया था,जिसका वर्णन गणेश पुराण में मिलता हैं। 


51).हेरम्ब विनायक- ये मन्दिर मलदहिया पर एक मकान में स्थित हैं। जो मुझे अभी भी नही मिले है।


52).पंचास्य विनायक-यह  मन्दिर पिशाचमोचन में स्थित हैं।


53).त्रिमुख विनायक- यह मन्दिर सिगरा पर स्थित है।


54).दुर्मुख विनायक- यह मन्दिर काशी करवट व ज्ञानवापी के  बीच मे है।


55).सप्तवर्ण विनायक- यह मन्दिर मणिकर्णिका घाट पर है। कहते है कि जब भी किसी शव को लेकर आया जाता है तो इनको आवाज लगाई जाती है ,मतलब इस मंदिर के पास राम - नाम सत्य की आवाज तेज कर दी जाती है ,हम कह सकते है कि यहाँ पर जैसे हाजरी लगानी पड़ती है। साथ ही इन्हें जौ विनायक भी कहते है। क्योंकि यही पर पंचकोशी यात्रा भी पूर्ण होती हैं।


56).बड़ा गणेश - दरसल यह मन्दिर गणेश जी के समस्त मंदिरो का हेड माना जाता हैं,इसीलिए इसको बड़ा गणेश कहा जाता हैं। इन्हें वर्कतुण्ड के नाम से भी जाना जाता है। इनका यह विशाल स्वरूप मैदागिन के लोहटिया में स्थित है। खासबात यह है कि गर्भ गृह में पूरे परिवार समेत रिद्धि सिद्धि भी मौजूद है। बाहर एक बड़ा सा मूषकराज है जो कि हाथों में लड्डू थामे हर दम अत्यंत तैयार है। उन्हें देख प्रतीत होता है कि  बस मौका मिलते ही वह अंदर की ओर लपक लेंगे।

आपको बता दु की इनके दर्शन मात्र से समस्त रुके हुए कार्य  जल्द ही पूर्ण होने लगते हैं। कहा जाता है कि इनसे सच्चे मन से मानी हुई मन्नत पूर्ण होती है।




वही गणेश अवतार में पढ़ने को मिलता है कि, भगवान श्री गणेश का यह पहला अवतार था वक्रतुंड अवतार। उन्होंने मत्सरासुर नामक दैत्य और उसके दो असुर पुत्रो को मारने के लिए लिया था।मत्सरासुर  ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और महाशक्तियो की प्राप्ति की।उसने फिर जगत में अत्याचार करना शुरू कर दिया। उसका इसमे साथ उसके दो पुत्र भी दे रहे थे।देवी देवताओ ने शिव से अपनी व्यथा बताई थी शिव ने गणेश के अवतार लेने की बात बताई।देवी देवताओ के आहान पर गणेशजी ने वक्रतुंड धारण किया और मत्सरासुर  और उसके पुत्रो का वध करके विध्नो का नाश कर दिया ।




तो ये थे काशी के छप्पन विनायक जिनका वर्णन आपको काशी के शिवपुराण में वर्णित है। आप भी काशी आए तो पंचकोशी यात्रा जरूर करें,इसे समस्त भूल चूक ,पाप मिट जाएंगे।


बच्चों के बेस्ट फ्रेंड;  ओह माय फ्रेंड गणेशा 



यू तो बच्चो को बेस्ट बड्डी गणेशा है लेकिन जब बॉलीवुड की एक मूवी ओह मायं फ्रेंड गणेशा आई तभी से बच्चो के सबसे क़रीब भगवान का यह अत्यंत बाल रूप बच्चो को  बहुत जोड़ लिया।

हर कोई गणेशा को ही अपना मित्र बनाना चाहता है। हर साल बड़ी धूमधाम से उनके आने का इन्तेजार करता है खासतौर पर बच्चे। कुछ ऐसे बच्चो से बात हुई जिन्हें उनके आने से इन दस दिन मौजो के दिन हो जाते है। कोई भी उन्हें लड्डू खाने से नही रोकता।

उनके विभिन्न स्वरूप ही बच्चो को अधिक मोहते है । कोई बच्चे को बैट के साथ वाले गणेश पसन्द है तो किसी को कार पे बैठे वाले,किसी को बुलेट पर सवार गणेशा चाहिए तो किसी को गिटार वाले । वाक़ई गणेशा के जितने रूप है सब अनेक है,जो किसी का भी मन मोह ले।

       क्या आप जानते है विनायक के 108 नाम

गणपति बप्पा.....आप सभी जानते है कि  भगवान श्री गणेश को हिन्दू धर्म में प्रथम पूजनीय माना जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार प्रत्येक शुभ कार्य से पहले सर्वप्रथम भगवान गणेश के पूजन का विधान है।

इनकी सवारी मूषक यानि चूहा और प्रिय भोग मोदक (लड्डू) है।हाथी जैसा सिर होने के कारण भगवान गणेश को गजानन भी कहा जाता है।


शिवपुत्र, गौरी नंदन जैसे नामों के साथ गणेश जी को विभिन्न जगह अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है जैसे मुंबई में गणेश जी को गणपति बप्पा मोरया के नाम से जाना जाता है।


तो हम आपको बता रहे आज गणेश जी के 108 नाम के बारे में ..जो उन्होंने अपने माता -पिता के 108 बार परिक्रमा करके पाया है।


1. बालगणपति : सबसे प्रिय बालक


2. भालचन्द्र : जिसके मस्तक पर चंद्रमा हो


3. बुद्धिनाथ : बुद्धि के भगवान


4. धूम्रवर्ण : धुंए को उड़ाने वाला


5. एकाक्षर : एकल अक्षर


6. एकदन्त : एक दांत वाले


7. गजकर्ण : हाथी की तरह आंखें वाला


8. गजानन : हाथी के मुख वाले भगवान


9. गजनान : हाथी के मुख वाले भगवान


10. गजवक्र : हाथी की सूंड वाला


11. गजवक्त्र : जिसका हाथी की तरह मुँह है


12. गणाध्यक्ष : सभी गणों के मालिक


13. गणपति : सभी गणों के मालिक


14. गौरीसुत : माता गौरी के पुत्र


15. लम्बकर्ण : बड़े कान वाले


16. लम्बोदर : बड़े पेट वाले


17. महाबल : बलशाली


18. महागणपति : देवो के देव


19. महेश्वर : ब्रह्मांड के भगवान


20. मंगलमूर्त्ति : शुभ कार्य के देव


21. मूषकवाहन : जिसका सारथी चूहा


22. निदीश्वरम : धन और निधि के दाता


23. प्रथमेश्वर : सब के बीच प्रथम आने वाले


24. शूपकर्ण : बड़े कान वाले


25. शुभम : सभी शुभ कार्यों के प्रभु


26. सिद्धिदाता : इच्छाओं और अवसरों के स्वामी


27. सिद्दिविनायक : सफलता के स्वामी


28. सुरेश्वरम : देवों के देव


29. वक्रतुण्ड : घुमावदार सूंड


30. अखूरथ : जिसका सारथी मूषक है


31. अलम्पता : अनन्त देव


32. अमित : अतुलनीय प्रभु


33. अनन्तचिदरुपम : अनंत और व्यक्ति चेतना


34. अवनीश : पूरे विश्व के प्रभु


35. अविघ्न : बाधाओं को हरने वाले


36. भीम : विशाल


37. भूपति : धरती के मालिक


38. भुवनपति : देवों के देव


39. बुद्धिप्रिय : ज्ञान के दाता


40. बुद्धिविधाता : बुद्धि के मालिक


41. चतुर्भुज : चार भुजाओं वाले


42. देवादेव : सभी भगवान में सर्वोपरी


43. देवांतकनाशकारी : बुराइयों और असुरों के विनाशक


44. देवव्रत : सबकी तपस्या स्वीकार करने वाले


45. देवेन्द्राशिक : सभी देवताओं की रक्षा करने वाले


46. धार्मिक : दान देने वाला


47. दूर्जा : अपराजित देव


48. द्वैमातुर : दो माताओं वाले


49. एकदंष्ट्र : एक दांत वाले


50. ईशानपुत्र : भगवान शिव के बेटे


51. गदाधर : जिसका हथियार गदा है


52. गणाध्यक्षिण : सभी पिंडों के नेता


53. गुणिन : जो सभी गुणों के ज्ञानी


54. हरिद्र : स्वर्ण के रंग वाला


55. हेरम्ब : माँ का प्रिय पुत्र


56. कपिल : पीले भूरे रंग वाला


57. कवीश : कवियों के स्वामी


58. कीर्त्ति : यश के स्वामी


59. कृपाकर : कृपा करने वाले


60. कृष्णपिंगाश : पीली भूरि आंख वाले


61. क्षेमंकरी : माफी प्रदान करने वाला


62. क्षिप्रा : आराधना के योग्य


63. मनोमय : दिल जीतने वाले


64. मृत्युंजय : मौत को हरने वाले


65. मूढ़ाकरम : जिनमें खुशी का वास होता है


66. मुक्तिदायी : शाश्वत आनंद के दाता


67. नादप्रतिष्ठित : जिसे संगीत से प्यार हो


68. नमस्थेतु : सभी बुराइयों और पापों पर विजय प्राप्त करने वाले69. नन्दन : भगवान शिव का बेटा


70. सिद्धांथ : सफलता और उपलब्धियों की गुरु


71. पीताम्बर : पीले वस्त्र धारण करने वाला


72. प्रमोद : आनंद


73. पुरुष : अद्भुत व्यक्तित्व


74. रक्त : लाल रंग के शरीर वाला


75. रुद्रप्रिय : भगवान शिव के चहीते


76. सर्वदेवात्मन : सभी स्वर्गीय प्रसाद के स्वीकर्ता


77. सर्वसिद्धांत : कौशल और बुद्धि के दाता


78. सर्वात्मन : ब्रह्मांड की रक्षा करने वाला


79. ओमकार : ओम के आकार वाला


80. शशिवर्णम : जिसका रंग चंद्रमा को भाता हो


81. शुभगुणकानन : जो सभी गुण के गुरु हैं


82. श्वेता : जो सफेद रंग के रूप में शुद्ध है


83. सिद्धिप्रिय : इच्छापूर्ति वाले


84. स्कन्दपूर्वज : भगवान कार्तिकेय के भाई


85. सुमुख : शुभ मुख वाले


86. स्वरुप : सौंदर्य के प्रेमी


87. तरुण : जिसकी कोई आयु न हो


88. उद्दण्ड : शरारती89. उमापुत्र : पार्वती के बेटे


90. वरगणपति : अवसरों के स्वामी


91. वरप्रद : इच्छाओं और अवसरों के अनुदाता


92. वरदविनायक : सफलता के स्वामी


93. वीरगणपति : वीर प्रभु


94. विद्यावारिधि : बुद्धि की देव


95. विघ्नहर : बाधाओं को दूर करने वाले


96. विघ्नहर्त्ता : बुद्धि की देव


97. विघ्नविनाशन : बाधाओं का अंत करने वाले


98. विघ्नराज : सभी बाधाओं के मालिक


99. विघ्नराजेन्द्र : सभी बाधाओं के भगवान


100. विघ्नविनाशाय : सभी बाधाओं का नाश करने वाला


101. विघ्नेश्वर : सभी बाधाओं के हरने वाले भगवान


102. विकट : अत्यंत विशाल


103. विनायक : सब का भगवान


104. विश्वमुख : ब्रह्मांड के गुरु


105. विश्वराजा : संसार के स्वामी


105. यज्ञकाय : सभी पवित्र और बलि को स्वीकार करने वाला


106. यशस्कर : प्रसिद्धि और भाग्य के स्वामी


107. यशस्विन : सबसे प्यारे और लोकप्रिय देव


108. योगाधिप : ध्यान के प्रभु


                      

गणपति बप्पा से जुड़े राज




       
आखिर क्यों इनको मोरया बुलाया जाता है,क्या आप जानते है। मैं तो नही जानती थी, पता लगाने पर पता चला कि गणपति बप्पा मोरया ,मंगलमूर्ति मोरया ।
मोरया उनके भक्तों के नाम से जुड़ा हुआ है। यह राज है एक गणेश भक्त की।

वही यह भी सुनने को मिलता है कि चौदहवीं सदी में पुणे के समीप चिंचवड़ में मोरया गोसावी नाम के सुविख्यात गणेशभक्त रहते थे। चिंचवड़ में इन्होंने कठोर गणेशसाधना की। कहा जाता है कि मोरया गोसावी ने यहां जीवित समाधि ली थी। तभी से यहां का गणेशमन्दिर देश भर में विख्यात हुआ और गणेशभक्तों ने गणपति के नाम के साथ मोरया के नाम का जयघोष भी शुरू कर दिया।

लेकिन संतुष्टि कम में होती ही कहा है, थोड़ा यदि इतिहास के पन्ने ओर पलटिए तो एक ओर कहानी सामने आ खड़ी हो जाती हैं। दूसरा कहानी यह कहता है कि 'मोरया' शब्द के पीछे मोरगांव के गणेश हैं। मोरया गोसावी के पिता वामनभट और मां पार्वतीबाई सोलहवीं सदी (मतांतर से चौदहवीं सदी) में कर्नाटक से आकर पुणे के पास मोरगांव नाम की बस्ती में रहने लगे। वामनभट परम्परा से गाणपत्य सम्प्रदाय के थे। प्राचीनकाल से हिन्दू समाज शैव, शाक्त, वैष्णव और गाणपत्य सम्प्रदाय में विभाजित रहा है।

गणेश के उपासक गाणपत्य कहलाते हैं। इस सम्प्रदाय के लोग महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक में ज्यादा हैं। गाणपत्य मानते हैं कि गणेश ही सर्वोच्च शक्ति हैं। इसका आधार एक पौराणिक सन्दर्भ है। उल्लेख है कि शिवपुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया। उसके तीनों पुत्रों तारकाक्ष, कामाक्ष और विद्युन्माली ने देवताओं से प्रतिशोध का व्रत लिया।

तीनों ने ब्रह्मा की गहन आराधना की। ब्रह्मा ने उनके लिए तीन पुरियों की रचना की जिससे उन्हें त्रिपुरासुर या पुरत्रय कहा जाने लगा। गाणपत्यों का विश्वास है कि शिवपुत्र होने के बावजूद त्रिपुरासुर-वध से पूर्व शिव ने गणेश की पूजा की थी इसलिए गणपति ही परमेश्वर हुए।

मोरगांव प्राचीनकाल से ही गाणपत्य सम्प्रदाय के प्रमुख स्थानों में रहा है और शायद इसीलिए दैवयोग से प्रवासी होने को विवश हुए मोरया गोसावी के माता-पिता की धार्मिक आस्था ने ही गाणपत्य-बहुल मोरगांव का निवासी होना कबूल किया। इस आबादी को मोरगांव नाम इसलिए मिला क्योंकि समूचा क्षेत्र मोरों से समृद्ध था। यहां गणेश की सिद्धप्रतिमा थी जिसे मयूरेश्वर कहा जाता है।

गणेशा से जुड़े ये अनमोल ओर रोचक बातें अपने बच्चो को जरूर बताएं।

                 कैसे हुआ गणेशा का दो विवाह


 जी हां, पुराणों के अनुसार हिंदू देवता गणेश विवाह नहीं करना चाहते थे, लेकिन उन्होंने दो विवाह किए। इसके पीछे एक कथा है। कथा एक श्राप की......

            पुराण के अनुसार एक बार गणेश जी गंगा के तट पर तप कर रहे थे।तभी तुलसीदेवी वहां से गुजरीं। गणेश को देखकर तुलसी उनकी ओर आकर्षित हो गईं और उनसे विवाह की इच्छा जाहिर की। लेकिन गणेश ने विवाह से इंकार कर दिया। इस तरह अपने प्रस्ताव को ठुकरा दिए जाने पर तुलसी ने गुस्से में गणेश को दो विवाह करने का श्राप दिया था।

             एक ही बार में लिखी दी......महाभारत


 महाभारत भले ही महर्षि वेदव्यास के मुख से निकली कथा हो, लेकिन उसे लिखने वाले हाथ गणेश के थे। महाभारत का लेखन भगवान गणेश ने किया था,लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि महाभारत लिखते समय न तो महर्षि वेदव्यास का मुख और न ही श्री गणेश का हाथ एक बार भी रुका। महर्षि वेदव्यास ने एक ही बार में पूरी कथा भगवान गणेश को सुनाई और उन्होंने भी इसे बिना रुके लिखा।




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