"जो तुम आ जाते एक बार _महादेवी वर्मा " किताबें बोलती है

महादेवी वर्मा हिंदी की स्वतंत्रता सेनानी के साथ वो एक प्रतिभावान कवियत्रियों में से ...एक है।


जिनकी मशहूर कहानियों में से एक कहानी है,गिल्लू  जो मुझे बेहद पसंद है। शायद आपने भी पढ़ी होगी। जिसमें उन्होंने एक गिलहरी का मनुष्य के प्रति प्रेम भाव का वर्णन किया है। यह उनके एक निजी जीवन के असल घटना पर भी आधारित है।


उन्होंने कई संस्मरण भी लिखा लेकिन उन में से मुझे एक बेहद भावुक लगी....मेरा परिवार। इसमें उन्होंने अपने पालतू पशुओं के संस्मरण लिखे हैं।


आज हम हर आए दिन लोगो को लिखते पढ़ते देख रहे,महिलाओं के ऊपर उन पर चर्चा होते देख रहे ,लेकिन महादेवी वर्मा ने अपने निबन्ध के सहारे बहुत पहले ही इस चर्चा पर कर दी थी। जिसका जिक्र उन्होंने एक निबंध के माध्यम किया। शृंखला की कड़ियाँ जिसमें उन्होंने स्त्री-विमर्श पर चर्चा की।यह पढ़कर  हम कह सकते है कि इसके लिए उन्होंने बहुत पहले ही पृष्ठभूमि तैयार कर ली थी।


            सन्‌ 1942 में प्रकाशित उनकी कृति श्रृंखला की कड़ियाँ सही अर्थों में स्त्री-विमर्श की प्रस्तावना है जिसमें तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों में नारी की दशा, दिशा एवं संघर्षों पर महादेवी ने अपनी लेखनी चलायी। इसमें ऐसे निबंध संकलिक किये गये हैं जिनमें भारतीय नारी की विषम परिस्थिति को अनेक दृष्टि-बिन्दुओं से देखने का प्रयास किया गया है।


युद्ध और नारी नामक लेख में उन्होंने युद्ध स्त्री और पुरुष के मनोविज्ञान पर गंभीर, वैश्विक और मौलिक चिंतन व्यक्त किया। इसी प्रकार नारीत्व और अभिशाप’ में वे पौराणिक प्रसंगों का विवरण देते हुए आधुनिक नारी के शक्तिहीन होने के कारणों की विवेचना की।




मुझे आज भी बेह्द अच्छे से याद है ,मेरी माँ हमेशा बताया करती कि ...प्रयाग महिला विद्यापीठ में जब वो पढ़ती थी तब


उस समय की प्रधानाचार्या महादेवी वर्मा जी थी। जिनके साथ स्कूल के समस्त बच्चे और मेरी मम्मी महादेवी वर्मा मौजूद है। वो तस्वीर भले ही ब्लैक एंड व्हाइट हो मगर जब भी मम्मी जिक्र करती है मानो सबकुछ रंगीन सपष्ट दिख रहा हो।


ये एक रोचक मुलाकात रही होगी,एक ऐसे शख्शियत के साथ पढ़ाई का अनुभव करना व उन्हें इतने करीब से देखने का।


           आइए जानते हैं महादेवी वर्मा के बारे में


       

    (26 मार्च, 1907 — 11 सितंबर, 1987



सबसे पहले आपको बता दू की आज मैं इनकी इतनी चर्चा क्यों कर रही। क्योंकि आज ही के दिन हमने एक महान मशहूर शख्सियत को खोया था...जिन्होंने हमें अपनी रचनाओ से आज तक बाँध रखा है। ऐसी महान शख्सियत को मेरा नमन🙏


महादेवी वर्मा जी जो कि .... सात पीढ़ियों बाद उनके परिवार में किसी लड़की का जन्म हुआ था इसलिए उनका नाम घर की देवी या महादेवी रखा गया। क्योंकि उनके पिता बेह्द खुश हुए उन्हें देख।

इनका

जन्म फ़र्रूख़ाबाद, उत्तर प्रदेश के एक संपन्न परिवार में हुआ। इस परिवार में लगभग २०० वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद महादेवी जी के रूप में पुत्री का जन्म हुआ था। अत: इनके बाबा बाबू बाँके विहारी जी हर्ष से झूम उठे और इन्हें घर की देवी- महादेवी माना और उन्होंने इनका नाम महादेवी रखा था।

महादेवी जी के माता-पिता का नाम हेमरानी देवी और बाबू गोविन्द प्रसाद वर्मा था। श्रीमती महादेवी वर्मा की छोटी बहन और दो छोटे भाई थे। क्रमश: श्यामा देवी (श्रीमती श्यामा देवी सक्सेना धर्मपत्नी- डॉ॰ बाबूराम सक्सेना, भूतपूर्व विभागाध्यक्ष एवं उपकुलपति इलाहाबाद विश्व विद्यालय) श्री जगमोहन वर्मा एवं श्री मनमोहन वर्मा। महादेवी वर्मा एवं जगमोहन वर्मा शान्ति एवं गम्भीर स्वभाव के तथा श्यामादेवी व मनमोहन वर्मा चंचल, शरारती एवं हठी स्वभाव के थे।


महादेवी वर्मा के हृदय में शैशवावस्था से ही जीव मात्र के प्रति करुणा थी, दया थी। उन्हें ठण्डक में कूँ कूँ करते हुए पिल्लों का भी ध्यान रहता था। पशु-पक्षियों का लालन-पालन और उनके साथ खेलकूद में ही दिन बिताती थीं।


चित्र बनाने का शौक भी उन्हें बचपन से ही था। इस शौक की पूर्ति वे पृथ्वी पर कोयले आदि से चित्र उकेरा करती थीं। उनके व्यक्तित्व में जो पीडा, करुणा और वेदना है, विद्रोहीपन है, अहं है, दार्शनिकता एवं आध्यात्मिकता है तथा अपने काव्य में उन्होंने जिन तरल सूक्ष्म तथा कोमल अनुभूतियों की अभिव्यक्ति की है, इन सब के बीज उनकी इसी अवस्था में पड़ चुके थे और उनका अंकुरण तथा पल्लवन भी होने लगा था।


1912 इंदौर के मिशन स्कूल से प्रारम्भ हुई साथ ही संस्कृत, अंग्रेजी, संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा अध्यापकों द्वारा घर पर ही दी जाती रही। 1916 में विवाह के कारण कुछ दिन शिक्षा स्थगित रही। विवाहोपरान्त महादेवी जी ने 1919 में बाई का बाग स्थित क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद में प्रवेश लिया और कॉलेज के छात्रावास में रहने लगीं। महादेवी जी की प्रतिभा का निखार यहीं से प्रारम्भ होता है।

1921 में महादेवी जी ने आठवीं कक्षा में प्रान्त भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया और कविता यात्रा के विकास की शुरुआत भी इसी समय और यहीं से हुई। वे सात वर्ष की अवस्था से ही कविता लिखने लगी थीं और 1925 तक जब आपने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी, एक सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं।

पाठशाला में हिंदी अध्यापक से प्रभावित होकर ब्रजभाषा में समस्यापूर्ति भी करने लगीं। फिर तत्कालीन खड़ीबोली की कविता से प्रभावित होकर खड़ीबोली में रोला और हरिगीतिका छंदों में काव्य लिखना प्रारंभ किया। उसी समय माँ से सुनी एक करुण कथा को लेकर सौ छंदों में एक खंडकाव्य भी लिख डाला। कुछ दिनों बाद उनकी रचनाएँ तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं।

मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पूर्व ही उन्होंने ऐसी कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था, जिसमें व्यष्टि में समष्टि और स्थूल में सूक्ष्म चेतना के आभास की अनुभूति अभिव्यक्त हुई। उनके प्रथम काव्य-संग्रह 'नीहार' की अधिकांश कविताएँ उसी समय की है।

             सुनो, ये कविता भी लिखती हैं।" 

सुभद्रा कुमारी चौहान की मित्रता कॉलेज जीवन में ही जुड़ी थी। सुभद्रा कुमारी चौहान महादेवी जी का हाथ पकड़ कर सखियों के बीच में ले जाती और कहतीं- "सुनो, ये कविता भी लिखती हैं।"


     

सुमित्रानंदन पंत और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला उनसे राखी बंधवाते थे।



उनका बाल-विवाह हुआ परंतु उन्होंने अविवाहित की भांति जीवन-यापन किया। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ साथ एक कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं।


उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। वे भारत की 50 सबसे यशस्वी महिलाओं में भी शामिल हैं। महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाओं में अतीत के चलचित्र, क्षणदा, शृंखला की कड़ियाँ, यामा, गिल्लू आदि को कभी भूला नहीं जा सकता।

उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अंतिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं।


आपको बता दे कि महादेवी वर्मा को आधुनिक हिन्दी साहित्य की मीरा भी कहा जाता है....


हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से एक। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है।

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