इस यात्रा हम चल रहे......पितृकुण्डा

एक पीपल का पेड़, जहां कैद की जाती हैं प्रेत आत्माएं।जहाँ


प्रेतात्माओं को किलों में बांधकर पेड़ में ठोक दिया जाता है...


क्या वाक़ई यहाँ होती है प्रेत आत्माओं की मुक्ति...?जहन के सवाल कभी कम नही होते ज़नाब।


वाक़ई रहस्यों से सिमटी हुई .......जिधर नजर घुमाओ उधर ही धर्म और संस्कृति से लिप्त।अगर आप भी भटकती आत्माओं से परेशान है, या उनके शांति के लिए परेशान है तो, हम आपको लेकर चल रहे है ,भारत के उत्तर प्रदेश के धर्म आध्यत्म की नगरी काशी........जहां पितरों के ऋण से मुक्ति के लिए लोग काशी आना शुरू कर दिए हैं। 


कैंट से पितृकुण्डा ...तक का सफऱ बेह्द करीब रहा,और दिलचस्प भी। पितृकुण्डा ,दरसल पिशाचमोचन को ही कहते है। यहाँ पितृकुण्ड होने की वजह से पितृकुण्डा मोहल्ले का नाम ही पड़ गया। जहाँ भोर से सूर्य अस्त तक चलता है कर्मकांडी पूजा,जिससे पितरों को मुक्ति मिलती हैं।


आपने भी सुना होगा, प्रयाग मुण्डे, काशी ढूंढे, गया पिण्डे।वाक़ई लोग इन्ही तीनो जगह के दर्शन करके व श्राद्ध और तर्पण करके अपने पितरों के मंगलकामना करते हैं। काशी ढूंढे राज के पीछे ये छिपा है कि यहाँ समस्त देवी देवताओं का वास ही नही, उनका घर भी है। जहाँ आज भी उसी तरह सब कुछ चल रहा,जो शायद पूरे विश्व मे देखने को न मिले।


धर्म और आध्यात्म की नगरी काशी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है। यहां प्राण त्यागने वाले हर इन्सान को भगवान शंकर खुद मोक्ष प्रदान करते हैं।जो लोग काशी से बाहर या काशी में अकाल प्राण त्यागते हैं, उनके मोक्ष की कामना के लिए काशी के पिशाच मोचन कुण्ड पर त्रिपिंडी श्राद्ध द्वारा उनकी आत्मा को शांति व मोक्ष की प्राप्ति के लिए श्राद्ध किया जाता है।


कहते है कि एक लंबे अरसे से व्यक्ति जब बेह्द परेशान रह जाता हैं तब ,लोग तमाम तरह के पुरजोर कोशिशों के बाद, जब पुरखों के शांति के बारे में सोचते हैं तब उनके द्वारा किया गया श्राद्ध व तर्पण, जब पुरखों को मिलता हैं तब उनके आत्माओं का आशीष इंसान को जिंदगी भर मिलता रहता है। उसके जीवन में खुशियां और संपन्नता बनी रहती है।
यू तो गया पिंडदान के लिए अत्यंत मशहूर है मगर,

देश भर में सिर्फ काशी के ही अति प्राचीन पिशाच मोचन कुण्ड पर यह त्रिपिंडी श्राद्ध होता है ,जो पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति दिलाता है। इसीलिए पितृ पक्ष में तीर्थ स्थली पिशाच मोचन पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है।

पिसाचमोचन...........भटकती आत्माओं की शांति के लिए पिसाचमोचन पर लोग कर्मकांडी ब्राम्हणों की देखरेख में पूजा-पाठ कर पुरखों के शांति के लिए अनुष्ठान करते हैं।  खासतौर पर पिसाचमोचन पर दक्षिण भारत और सटे देश नेपाल से भी लोग यहाँ भारी संख्या में पहुँचते है। पूर्वजों के श्राद्ध और तर्पण के अलावा भटकती आत्माओं को शांति के लिए लोग 'त्रिपिंडी श्राद्ध' करते है। इससे पितरों की प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है।
     बताया जाता है कि इस श्राद्ध कार्य में तीन मिटटी के कलश की स्थापना की जाती है। जो काले, लाल और सफेद झंडों का प्रतीक होता है। प्रेत बाधाएं तीन तरह की मानी जाती हैं। सात्विक, राजस, और तामस।

इन तीनों बाधाओं से पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए काले, लाल और सफेद झंडे लगाये जाते हैं। जिसको कि भगवान शंकर, ब्रह्मा, और कृष्ण के प्रतीक के रूप में मानकर तर्पण और श्राद्ध का कार्य किया जाता है।

काशी के कर्मकांडी सरोज पाण्डेय बताते है कि पिशाचमोचन तीर्थ स्थली का वर्णन गरुण पुराण में भी वर्णित है कि पिशाच नाम का एक ब्राम्हण था जो कि दान लेता था उसके शरीर मे एक दिन प्रेत आत्मा प्रवेश कर गयी,तब वह उससे मुक्ति के लिए ढूढते ढूढते काशी आ गया, यहाँ आने पर उसने देखा कि वाल्मीकि जी त्रिकन्ध संध्या की पूजा कर रहे,वो उन्हें देख वही खड़ा हो गया।जब वह पूजा कर आंखे खोले तो उस ब्राह्मण को देख पूछे यहाँ क्यों आये हो ,उसने अपनी समस्त बाते बताई , वाल्मीकि जी ने उसे पिशाचकुण्ड में उतरकर स्नान करने को कह दिया,ऐसा करते कुण्ड सुख गया। यह देख वाल्मीकि जी भी आश्चर्य कर गए तब उन्होंने भगवान शिव की आराधना की जब भगवान शिव प्रकट हुए तब उन्होंने कारण पूछा ,तो वाल्मीकि जी ने सबकुछ बता दिया। तब भगवान ने उस पिशाच को मुक्ति दी , इसे ब्राम्हण अत्यंत खुश हुआ, तब ब्राम्हण ने भगवान शिव से कहा कि आज मैं परेशान हु आने वाले समय मे हर कोई इस बाधा से पीड़ित होगा,तब भगवान शिव उसकी मंशा समझ गए और बोले तुम जाओ आज से इसका नाम पिशाचमोचन विमलोदत्त कुण्ड पड़ गया,जो भी लोग इस बाधा से पीड़ित होंगे उनको यहाँ मुक्ति मिलेगी।
       तभी से पिशाच मोचन के साथ ये मान्यता जुडी हुई है कि यहां तर्पण कर कर्मकांड करने के बाद ही गया में पिंडदान किया जाता है, ताकि पितरों के लिये स्वर्ग का द्वार खुल सके।

उन्होंने बताया कि अपने जजमानो का बाकायदा बहिखाता यहां रखा जाता है। प्रेतो को कीलो में बांध पीपल के पेड़ में ठोका जाता है। श्राद्ध के बाद गुनी प्रेतो को कील में बांध कुण्ड पर मौजूद पीपल के पेड़ में ठोंक देते हैं। माना जाता है कि फिर प्रेत बाधा से उन्हें छुटकारा मिल जाती है और प्रेत को मुक्ति भी।

लेकिन यह सुन लेने से संतुष्ट होना इंसान की फ़ितरत नही। थोड़ा और टटोलना जरूरी था, मान्यताये कहती है कि पिशाचमोचन पर श्राद्ध कार्य करवाने से अकाल मृत्यु में मरने वाले पितरो को प्रेत बाधा से मुक्ति के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है।

यहाँ के बुजुर्ग हीरामणि जी बताते है कि इस धार्मिक स्थल का उद्भव गंगा के धरती पर आने से पूर्व हुआ।यहां पर पितरों की आत्मा के शान्ति के लिए पिंडदान होता है,क्योंकि भगवान शिव का धाम होने के साथ साथ वाराणसी भगवान विष्णु की नाभि है। इसलिए गया से पहले बनारस में किये गए पिंड दान का महत्व बहुत ज्यादा माना गया है। जिस प्रकार प्रयाग में बाल मुड़वा कर पितरों की आत्मा को शांति के लिए मुण्डदान यानी बालो को मुंडवाना पड़ता है उसी प्रकार , गया का काफी महत्व है लेकिन जो भी श्राद्ध करने की इच्छा रखता है वो पहले काशी आता है और उसके पश्चात ही गया प्रस्थान करता है।

एक बात तो साफ हो गयी कि

पितरों के लिए पिंड दान का महत्व जितना बनारस में है उतना कहीं नहीं।


पितरों को प्रसन्न करने और उनके मोक्ष के लिए श्राद्ध कर्म शुरू है।पितृपक्ष के पहले दिन से ही मोक्षनगरी काशी में सैकड़ों लोग से ऊपर लोग पहुंच रहे। पौराणिक पिशाचमोचन कुंड का अलग ही महत्व है जहाँ दिनोरत यही कार्य मात्र पितृपक्ष में ही नही बल्कि सालों भर चलता रहता है।



आपको बता दे कि

पिशाचमोचन तीर्थ पर चार प्रकार के श्राद्ध कराए जाते हैं।पहला

अकाल मृत्यु को प्राप्त होने वाले व्यक्ति के लिए नारायण बलि और त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है। जबकि दूसरा सामान्य मृत्यु को प्राप्त होने वाले व्यक्ति के निमित्त पारवण और तिथि श्राद्ध का विधान है।दो ही खास है,क्योंकि प्रेत योनि को छुटकारा दिलाने के लिए यही कारगर साबित होते हैं।


पिंड दान की प्रक्रिया कर्मकांडी ब्राम्हणों के आचार्यत्व में होती हैं।  पितरों को जौ के आटे की गोलियां, काला तिल, कुश और गंगाजल आदि से विधिविधान पूर्वक पिण्ड दान, श्राद्धकर्म व तर्पण किया जाता है।


        मान्यता अनुसार परिवार के मुख्य सदस्य क्षोरकर्म (सिर के बाल, दाढ़ी व मूंछ आदि मुंडवाना) मंत्रोच्चार की ध्वनि के साथ पितरों का श्राद्धकर्म करते हैं। श्राद्धकर्म के पश्चात गौ, कौओं और श्वानों को आहार दिया जाता है।


पिशाच मोचन में पिण्डदान की सदियों पुरानी परम्परा रही है। इसी के निमित्त आस्थावानों द्वारा हर वर्ष यहां कुण्ड पर पिण्डदान व श्राद्धकर्म कर, गया में श्राद्धकर्म का संकल्प लिया जाता है।



यहाँ आने वालों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है। सिर्फ पिशाचमोचन तीर्थ पर ही दो लाख से अधिक लोग पिंडदान करने आते हैं।बाकी काशी के अस्सी, दशाश्वमेध, मणिकर्णिका और राजघाट पर भी बड़ी संख्या में लोग पिंडदान करने पहुचाते हैं। इन स्थानों को भी जोड़ लें तो यह संख्या पांच लाख के पार हो जाती है। पिशाचमोचन तीर्थ पर विदेशियों के भी श्राद्ध करने की पुरानी परंपरा है।यहां के पंडित जी बताते है कि अब तक करीब सौ विदेशियों ने भी पिंडडान किया है।

तो कैसी लगी आपको आज की यात्रा ...जरूर बताएं। और आप हमारे वीडियो को भी जरूर देखें।

https://youtu.be/0a7IbHJ41Kg







 


 


 


 


 














 


 

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट