पतिदेव की जलेबियाँ

लॉक डाउन goship

लॉक डाउन भारत मे यदि कोई फसा है तो वो है पति-पत्नी। पत्नी तो सदा किचन में लॉक रहती है,पतिदेव ही थे जो आज़ाद रहते थे। आजकल कोरोना आने से उनको भी पत्नी जी की बातों पर डाउन होना पड़ रहा है ,हो भी क्यों ना घरवाली जो ठहरी! ऐसी ही कुछ चुलबुले पल को आपके तक पहुचाने का प्रयास कर रही हूँ उम्मीद है आपको पसंद आएगी। 


कहानी -१ 

                     पतिदेव की जलेबियाँ


आए-हाए देखो तो सबके पति कैसे अपनी पत्नियों को खुश कर रहे ,प्यार का इजहार कर रहे। श्रीमती जी मोबाइल पर उंगली फेरते हुए अचानक बिन बुलाए बारिश की तरह कड़क पड़ी। 

एक आप हो जिसको कभी अपनी पत्नी का ख्याल नही आता। अरे कम से कम इस लॉक डाउन में तो ख्याल रखों। मेरे तो कर्म ही फूटे है ,भगवान ने मेरी सभी सखियों को पति चुन चुनकर दिया है और एक आप हो जो मेरे मत्थे आ पड़े। मुझे तो सुख लिखा ही नही भगवान ने। ऊपर वाला भी ना चुन चुन कर रिश्ता बनाता है । मोबाइल को बिस्तर पर पटकते हुए। यह देख पतिदेव समझ गए। उन्होंने झटपट माया को समझाने की कोशिश की। माया-माया-माया....सौ बार कहा हूँ कि इतनी ऊँचे स्वर में ना बोला करो माता श्री सुन लेवेंगी तो बाल का खाल उधेड़ेगी। आए-हाए बोल तो ऐसे रहे हो जैसे मैं अपने पतिदेव से नही किसी और के पतिदेव की चर्चा कर रही,जो आपको इतनी डर पड़ी है। 

पतिदेव- माया डर नही पड़ी है मगर अभी माता श्री सुन लेवेंगी तो आपकी ही आन पड़ी है। 

माया- हा तो उधेड़ ने दो उनको ,दो ही तो काम है। एक माला जपना दूसरा माया माया जपना। अब बस भी करो जी हर पल माता जी का नाम लेकर आप मुझे यू ना परेशान किया करो। माता जी नही परमाणु बम हो गयी। लेकिन अब चाहे जो भी हो,कुछ तो काम आपको करना ही पड़ेगा,बोल दे रही हूं हा। मुझे भी कभी सुख का अनुभव प्राप्त होगा या बस पूरे घर मे सिर्फ माया माया गूँजेगा। 

पतिदेव- क्या करूँ कैसे समझाऊँ। 

माया- मुझे नही समझना। जाती हूं और अभी ये बात माता जी से कहती हूं। 

पतिदेव-अरे माया रूको। माँ पुराने ख्यालों की है तुम काहे अपना दिन बुला रही हो। अभी सुन लेगी तो दिक्कत कर बैठेगी। 

माया- भुनभुनाते हुए कमरे से निकलती है और किचन में खटरपटर करके खाना बनाने लगती हैं। 

इधर पतिदेव श्रीमती के बातों में कुछ यू उलझ गए कि बिचारे परेशान हो गए है। लेटे लेटे बिस्तर पर पतिदेव को ख़्याल आता है कि - ठीक है आज माया को जलेबियां खिलाता हू बना कर। 

पतिदेव झट से उठे और रसोई घर मे पहुंच गए।

 माया तेवर दिखाते हुए बोली - अब क्या है।

पतिदेव बिन बोले किचन का रैक खोले और चावल का डिब्बा निकाले और फिर क्या एक कटोरी भिंगो कर निकल पड़े।

माया- मन ही मन बुदबुदाते हुए अब ये क्या नया होने वाला है।माया मन ही मन  खुश हो गयी ,लगता है पतिदेव को असर हो गया,कुछ करने वाले है। 

दोपहर को सब खाना खाकर अपने अपने कमरे आ गए। इधर माया भी अपने कमरे में आ गयी। माया के आते पतिदेव कुछ यूं झट से उठे और कमरे के बाहर निकले मानो क्या छूट गया हो उनका बाहर।

 माया बोली- अरे ये कहा जा रहे। माया ज्यो बिस्तर पर पड़ी तभी मिक्सी की आवाज आई। माया सर को ठोकते हुए- हे भगवान। ये मिक्सी चलाकर क्या बना रहे हमारे पतिदेव। माया थक चुकी थी,फिर क्या उठ कर किचन में गयी। अब क्या नया कारनामा है पतिदेव!


श्रीमती जी आपको बिन खुश किये भला हमारी कभी जीवन की गाड़ी कहा चलने वाली,तो ऐसे में हम आपको नाराज़ कैसे कर दे भला। माया मुस्कुराई अब हो गया हो तो बताइए मैं कुछ मदद कर दू।
 
पतिदेव - नही नही श्रीमती जी अब आप क्रेडिट लेने की कोशिश ना करे। जाइए बस आप आराम कीजिए ठीक है। 

माया- कमरे में आ तो गयी थी मगर मन किचन में खड़े पतिदेव के ऊपर ही लगा था। लेटे-लेटे माया को कब आँख लग गयी उसे पता ही ना चला। तभी सासुमां की बड़बड़ाते हुए आवाज़ आई। आए-हाए अब यही सब देखने को रह गया था। बेटा किचन में काम करे,बहू महारानी बन आराम। राम..राम..राम!

पतिदेव- अरे माता जी आप शांत रहे। 

माता जी- चुपकर तू,पच्चास वर्ष का हो गया है और तू गुलामी कर रहा बीबी की। 

पतिदेव- अरे माता जी इसे गुलामी नही कहते इसको। ये तो प्यार का इज़हार है। अब देखिए ना सदैव तो किचन में माया ही होती है। अगर मैं भी उसे कुछ बना कर खिला दिया तो क्या हो गया। 
          माँ किचन के भीतर आई और चश्में को बार- बार कुछ यूं ऐसे उठा उठा कर देख रही थी मानो लेंस से जूम कर रही हो। मैं किचन के बाहर खड़ी हो ये सब देख रही थी। 

माता जी- अरे वाह जलेबियाँ ! कितने दिनों बाद। 

पतिदेव- हा माता जी आपको पसंद है ना। तो आप जाइए और हॉल में बैठिए। 

माता जी- ठीक है मैं माया को उठा देती हूँ ,वो ठीक से चाशनी का तार बना देवेंगी।तू ठीक से चाशनी का तार ना बना पावेगा। 

माया- माता जी मैं यही हूँ। 

माता जी- देख बहू आज मेंरा बेटा तेरे लिए जलेबियाँ बना रहा। 

माया- अरे वाह माता जी पतिदेव तो कमाल कर दिए। देर से ही सही ,मगर कर तो दिए माया भौहें सिकोड़ते हुए बोली। फिर क्या माया की ड्यूटी आराम के बजाय चाशनी में लग गयी। माया के पतिदेव जलेबियों में खुश थे।माया बुदबुदाते हुए कही पता ना था कि मेरी जिंदगी मेरी किस्मत इस किचन के वास्ते ही लिखा है। इस तरह से चाशनी और जलेबियाँ तैयार हो गयी। सभी ने चार बजते बजते जलेबियों का लुत्फ़ उठाया। मैंने भी खुश होकर व्हाट्सएप के ग्रुप में डाला-   मेरे पतिदेव द्वारा बनाई गयी  जलेबियाँ!

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