दफ़्तरी इश्क़


टू... टू ...फोन पर मैसेज आया बेटा माही फोन पर कुछ भी आने पर रोज की तरह आज भी उसी स्पीड में दौड़ता हुआ आया मानो फोन की बत्ती बुझने से पहले वो वहाँ पहुँच जाए। माही भागते हुए किचन में आया अपनी तोतली भाषा मे माआआआ.....माँ फोन को मेरे ओर करते हुए। क्या हुआ माही इति बार समझाई हूं मिल्खा सिंह की तरह मत भागा करो अभी कही भीड़ जाओगे तो चोट लग जायेगी न मैंने पकौड़ो को तलते हुए कहा। उसने अपना उतरा हुआ चेहरा नीचे गर्दन में गड़ा लिया,मैंने झुक कर पूछा; अच्छा बाबा सॉरी मेरे जनाब जरूर फोन लेकर इसलिए आए है कि फोन पर कुछ आया होगा है न ,उसने सर हिलाया। मैंने पकौड़ो को प्लेट में निकाल उसे दादी को दे आने की ओर इशारा किया और,कढ़ाई में पकौड़े काढ़ उन्हें मधम आँच पर रख दिया,और सीधे हाथ धोकर फोन को खोला। स्क्रीन खुलते मेरी आँखें खुली की खुली रह गयी,उसपे एक लम्बा चिट्ठा आया हुआ था,मैंने फोन को लॉक करते हुए आंखों भिचा उफ़्फ़फ़ ये छः साल पुरानी किताब फिर कहा से खुल गयी अचानक से.....जिसे,जिसे मैंने खुद मन के भीतर दफनाया था। पकौड़े की जलने की गंध मिलते सासूमाँ की आवाज आई,इस कलमुँही से एक काम ठीक से न होता है, सब राख करने में ही उतारू रहती है। हे भगवान, कौन से पाप की थी जो इसे अपनी बहू बना ली हाय्यय। मेरे आँखों से आंसू टपक पड़े,रोज की ये तंज मेरे जीवन का हिस्सा जरूर बन गए थे ,मगर फिर भी एक बार गहरे सदमे जरूर दे जाते। किचन के सारे काम निपटा जब रात को खाली हुई तो मेरा दिमाग मोबाइल पर गया। मैंने माही को खिला पिला के उसे सुलाने की कोशिश करने लगी। माही को लोरिया बहुत पसंद थी,उसे बिन सुने उसे नीद ही नही आती। ख़ैर माही सो गया था उसे गोद से उतार मैंने बिस्तर पर लिटाया। फिर जुट गई मैसेज पढ़ने में उसपे लिखा था,

डियर काव्या,
कैसी हो तुम? आज बहुत बुरा महसूस कर रहा हूं, जब से ये जाना हूं  कि अमित अब। मुझे पता है काव्या तुम बहुत टूट गयी हो। सच काव्या जब मैंने ये सुना तो मेरे पैर के नीचे से जमीन खिसक गयी दो पल को लगा ये सब झूठ है मगर। तुम नही समझोगी काव्या मुझे आज कितनी बेचैनी हो रही ये तुम नही समझोगी। मुझे इस तरह तुम्हारा साथ नही छोड़ना था,बीच सफर में मैंने तुम्हें तकलीफ दी और तकलीफ मुझे मिलने के बजाय तुम्हे मिल गयी । सजा मुझे मिलने के बजाय तुम्हे क्यों। काव्या देखो अभी भी समय है तुम शादी कर लो । ऑन्टी अंकल सब बहुत परेशान है। माना जो होना था होगया मगर हमारे हाथ  में भी बहुत कुछ होता हैं। तुम अब बच्ची नही हो काव्या । पूरी उम्र अभी बची हुई है और तुम उसे यू मत खोने दो। न जाने कितनी बाते लिख दी रूपेश ने।नीचे लिखा था- तुझे पा तो लिया था, मैंने पर अपना न बना सका। दो पल को लगा दुनिया घूम रही। मैंने सिर को तकिए पे टिकाए अमित को शांत मन से देखती रही।


अमित मेरे हसबैंड,जिनका कार एक्सीडेंट में मौत हो गया। हमारा छोटा सा गोद मे दिया हुआ बच्चा माही जिसने अपने पापा को आज तक न देखा। उसकी दादी जो हर पल ये ताने मारती कि मैंने अमित को....काव्या घिघि बांधते हुयी रोई अमित मेरे वजह से आज दुनिया में नही। मैं जो करती हूं सब ख़ाक हो जाता है,सच तो कहती है सासुमां क्या गलत है,मेरी दुनिया क्या थी क्या हो गयी। क्या बिगाड़ी थी जिसकी सज़ा इतनी बड़ी। ऊपर से ये रूपेश....

रूपेश का यू लौट कर आना एक बार फिर मेरे जीवन मे क्या मकसद है। रूपेश मेरा सबसे अच्छा दोस्त और दफ्तर का साथी था। हम दोनों के बीच कब प्यार उमड़ा पता ही नही लगा। प्यार की लड़ी तो तब टूटी जब अमित से माँ बाबा ने शादी तय कर दी। उस पल को मैं कभी नही भूल सकती जब हम दोनों माँ बाबा को मना रहे थे ,गिड़गिड़ा रहे थे उनसे अपनी खुशी मांग रहे थे मगर उन्होंने अपने आगे हमारी एक न सुनी। तब उन्हें पूरी दुनिया याद आ रही थी। लोगो की हजार तरह की बाते,ताने तज की पड़ी थी। मगर जब मैंने अपने दिल पे पत्थर रख सबकुछ भूल माँ बाबा की बात मानी तो,पीहर का आंगन बेहद सजावटी जरूर था मगर अंदर से उतना ही भयावह। कभी सोची नही थी कि मेरे साथ इस तरह .....माँ बाबा ने तो लड़का घर देख कर ब्याह दिया मगर उसके आगे की जमात मैं झेलती रही तब तक जब तक अमित थे,आज भी झेल रही। शादी हुए महीने भी न हुए होंगे सासु माँ लला चाहिए थे। किसी भी हाल में,ये सुनने पर मैंने अमित को समझाने की हर तरीके से पुरजोर लगा ली ,मगर अमित तभी तक समझते जब तक हम एक साथ होते माँ के सामने आते भींगी बिल्ली से भी बद्दतर स्थिति हो जाती उनकी। मैंने एक बार तो इस बात पर स्वयं  सासु माँ के पास गयी और बोली,माँ क्या इतने जल्दी बच्चे की जरूरत है,अगर कुछ दिन ...उन्होंने फटकारते हुए कहा बच्चे चाहिए तो चाहिए बस। मैंने शादी इसीलिए की ताकि मेरे आँगन में बच्चो की किलकारियां गूँजे, कान खोल कर सुनलो तुम बच्चो के बिना घर सुना होता है। तुम इसीलिए यहाँ आई हो समझी। मैं उल्टे पाव लौट आई। अमित अपनी मां की वजह से कुछ न बोलते। धीरे धीरे सब चलता रहा ,जब एक दिन उन्हें पता चला कि मैं गर्भ से हु पूरे हर एक मंदिरों में मिठाई बंटवाने लगी। उनकी खुशी में ही हम दोनों की अब खुशी थी। सभी खुश थे, जिसदिन मेरी डिलीवरी थी उसी दिन अमित का कार एक्सीडेंट हो गया। ये मुझे तब पता चला जब मैं होश में आई और उन्हें पूछती तो सब मुह फेर लेते माँ जी भी कही नजर न आती,दो पल को लगा था कि शायद मुझे बेटी हो गयी हैं इसलिए माँ जी यहाँ नही,उन्हें तो लला चाहिए था। मगर शाम होते होते जीवन मे कुछ ऐसा होगा ये न सोची थी। जब सुनी तो लगा दुनिया बंजर हो गयी। उन्होंने माही को देखा भी नही की वो बेटी है या बेटा। मैंने माही नाम इसलिए रखा क्योंकि अमित को न बेटी में दिक्कत थी न बेटे होने पर उनकी इच्छा थी कि माही नाम रखा जाए। किसी तरह वक्त गुजरते गए सासु माँ के तंज बढ़ते गए हर छोटी बात पर मुझे कोसती। दूसरी ओर मेरे जीवन मे माही खड़ा था। अमित और हमारा चिराग। यही सोच जिंदगी चलती रही । मगर ये रूपेश कहा से आ गया। अब नही क्यों करू शादी। क्या सुख मिलता है शादी से। कुछ भी तो नही।
मैंने आंसू को पोछते हुए रूपेश को जवाब दिया- मैं जैसी भी हालात में हु खुश हूं रूपेश। मुझे शादी की जरूरत नही। और हां..., तुमने लिखा ना तुझे पा तो लिया था ,मगर अपना ना बना सका। अग्नि के सात फेरे लेकर अमित ने तो बीच मझधार में छोड़ दिया तो तुम तो बस एक पल थे जो बीत गया, बढ़िया होगा तुम खुद की लाइफ देखो। मेरी जिंदगी में अमित न सही तो क्या हुआ, माही है। सासुमां है मुझे इससे ज्यादा अब कुछ नही चाहिए रूपेश। अच्छा होगा,अपने दोस्ती के इस पैगाम को तुम अपने तक रखो। मुझे भूल जाओ।

नही चाहिये ये राय मशवरे जो चील कौवो की तरह नोच रहे। जब सम्भलने की किसी की जरूरत थी तब खुद को अकेले ही संम्भाल ली अब जीवन बहुत ठोकर खा चुकी हैं उसे किसी के सहारे की मोहताज नही।


काव्या। 

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