बस मुँह बन्द

रमेश सुनो तो एक बार मेरी भी रमेश ने झापड़ मारते हुए कहा अब क्या सुनु ,सुनने सुनाने का खेल अब खत्म हो गया। माँ सही कहती है तुझे घर से बेघर कर देना ही बेहतर होगा। मगर रमेश मैं कहा जाऊँगी।रमेश माया को घसीटते हुए माया रमेश के पैर पकड़ रोने लगती है नही रमेश समझो मैं इस हालत में ,अब हमारे घर मे तुम्हारे लिए कोई जगह नही है। समझी तुम ,अब तमाशा न लगाओ निकलो घर से माया को धक्का देते हुए रमेश ने दरवाजे बंद कर लिए। माया रोती रही दरवाजे पर दस्तक देती रही पिटती रही उसे लगा अब खुल जाएगा मगर दरवाजा नही खुला शायद इस घर के दरवाजे उसके लिए सदैव के लिए बन्द हो गए थे। सवाल ये उठता है कि आखिर क्यों रमेश माया को इतनी बर्बरता से पिट रहा था?आख़िर क्यों माया के मुँह को बार बार बन्द रखने को बोला जा रहा था? क्यों माया आज के समय मे उससे भीख की तरह मांग रो रही थी वो लात मारकर स्टैंड भी तो ले सकती थी? आखिर न सब की वजह कौन थी ? घर के सभी सदस्य मौजूद होते हुए भी माया के साथ क्यों नही थे? आज इन्ही सवालों के बीच पनप रही कहानी आपको सुनाने की कोशिश कर रही उम्मीद करती हूँ कि आप जरूर समझेंगे और फिर ऐसी कोई दर्दनाक हादसा घटित नही होगा। 

 सीतापुर की रहने वाली माया जो कि बचपन से ही काफी चुलबुली थी। हर चीज में अवल रहना उसकी आदत हो जैसे ,माँ को परेशान करना बाबूजी के ऑफिस जाते वक़्त उनकी रोज धोती छुपाना। भाई को आंख में पट्टी बांध उसे धप्पी देना। माया की चर्चा पूरे घर मे रहती। जिस दिन वह बीमार हो जाती पूरा घर तब तक वही आसपास रहता जब तक वह फिर उसी तरह सबको परेशान न करती । शायद आदत हो गयी थी घर के लोगो को। माया ने डबल एम .ए किया। टीचर बनना चाहती थी मगर माँ की अचानक तबियत बिगड़ने से सबने सोचा कि उसकी शादी कर दी जाए। मगर ऐसे वक्त पर लड़के मिलते ही कहा वो भी भला अच्छे। मगर इसी बीच माँ की अचानक  मौत हो गयी। पिता को हर पल ये चिंता रहती न जाने कब मुझे भी कुछ हो जाए कौन जाता है प्रभु की माया। माया की माँ को भी तो सिर्फ तेज ज्वर आया और काल बनकर ले गया। भला इस तरह कभी किसी की मौत सुननी है तुमने डमरू। डमरू जो कि माया के गांव के दूर के पाटीदार थे,जिनका घर गांव का गिर जाने से सब यही आ कर बस गए थे,लोग उन्हें डमरुआ वाले भैया बुलाते।बात तो सही कह रहे भैया लेकिन भगवान किसी को ले जाने से पहले कभी किसी को ये नही कहते कि गलती मेरी है कुछ न कुछ कर बहाना दे ही जाते है और हम मनुष्य इसी में उतराते रहते है कि न जाने क्या किया हमने ये करना था वो करना था। देखो डमरू हमको बहुत चिंता है अब देख रहे हो माया की माँ बीच सफर में हम सबको यू छोड़ चली गयी कि क्या बताऊँ ,तुमसे एक बात कहू तुम तो घर जैसे हो सब जानते हो। माया हमारी एक ही तो बच्ची है,बड़े ही प्यार से पाला हमने कभी किसी चीज की कमी नही होने दी मगर अब वक्त आ गया है उसे ब्याह देने का,जिम्मेदारी है मेरी अपने रहते पूरा कर दू।डमरू हम सोचते है भैया बात करके देखते है। माया ये सब साफ साफ दरवाजे के पीछे खड़े हो सुन रही थी। आंखों में आंसू लिए माया ने हिम्मत जुटा रात को पिता जी को खाना देते वक्त कहा,पिता जी मैं टीचर बनना चाहती हूं, इसी बहाने घर का काम व छोटू की पढ़ाई पूरी हो जाएगी। कब तक आप जिम्मेदारी ले कर चलेंगे मैं नही जिम्मेदार बन सकती। पिता जी क्यों तुझे किसी चीज की कमी हो रही है या छोटू को। पिता जी मगर, अगर मगर कुछ नहीं देख माया शादी हो जाएगी तो तेरी जिंदगी भी सुधर जाएगी। वरना कल को यही दुनिया कहेगी माँ के मरते बाप ने बेटी की जिम्मेदारी न समझी,और भेज दिया नौकरी के लाने को। माया शांत हो गयी वो समझ गयी कि पिता जी नही चाहते कि वो बाहर निकलें। माया शांत हो कर कमरे में चुप चाप आ कर लेट गयी। छोटू माया का छोटा भाई जो अभी कक्षा आठ में पढ़ता था। उसने माया के आंसू को पोछते हुए कहा सब ठीक हो जाएगा। दोनों भाई बहन लिपट रोने लगे। उधर पिता जी अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने में यू जुट गए कि मानो झट मंगनी पट ब्याह हो जावे। ख़ैर, डमरुआ वाले चाचा जी रिश्ता लेकर आए एक महीने के भीतर पिता जी काफी खुश थे,लड़का हाई प्रोफाइल वाला था। रेलवे में कर्मचारी था। किस पोस्ट पर इससे उन्हें मतलब ही नही था। अच्छा खासा घर और सबसे बड़ी बात लड़के का घर भी सीतापुर में ही था। पिता जी प्रसन्न हो गए। उन्होंने माया को बुला रमेश की तस्वीर दिखाई ,माया समझ चुकी थी कि वो कुछ भी कहे न कहे पिता जी तो ब्याह ही देवेंगे, तो क्या फर्क पड़ता है तस्वीर देखने का। उसने बस हा कह दिया। उसी साल उसकी शादी कर दी गई। 

माया नए घर मे प्रवेश की कुछ दिन वाकई सब कुछ इतना लोभवनित था कि उसने कभी सपनो में भी नही सोचा था कि कभी उसके साथ कुछ ऐसा घटित हो जाएगा कि वो! परिवार के सभी लोग बड़े अच्छे से आदर आते मगर सासु माँ का रुख थोड़ा ठीक न था। हर पल बासी भोजन ही खाने को बोलती। माया कुछ न बोलती और खा लेती एक रोज वो किचन में काम करते करते गिर गई। सास को लगा बहु पेट से है उन्होंने सबको बुला लिया सब आनन फानन में हॉस्पिटल ले गए। मगर वहाँ कुछ और ही राज खुला ,माया पेट से नही अपितु ब्रेन कैंसर की शिकार हो गयी। सभी उसे वही छोड़ घर चले आए। माया किसी तरह वहाँ से घर आई। अभी घर पे दहलीज़ ही रखी होगी कि सास ने फ़रमान सुना दिया। नाष्पीटी जितना दहेज न लाई उतना तो हमे लूटने के लिए बीमारी लेती आयी। आज ही बुलाओ इसके बाप को मैं भी तो पता करू भला इतना बड़ा राज क्यों बना कर भेजा। माया रोती रही। शाम होते होते पिता जी घर आ गए आज पहली बार पिता जी माया के ब्याह के पूरे एक वर्ष होने को ही थे बस कुछ तीन ही माह तो थे एक साल लगने में तब आए उसके पहले कभी नही आए, बहुत दिनों के बाद उन्हें देख रही थी। माया की सास स्वागत कुछ यूं कि की वो कभी सपने में भी नही सोची थी। उनकी बोली भाषा कुछ यूं बदल गए जानो कितनी दुश्मनी हो पिता जी से। सुन लीजिए हम आपकी यहां ख़ातिरदारी के लिए नही बुलाए है बल्कि ये बताने के लिए बुलाए है कि - आपकी बेटी। बाबू जी बिन बात सुने ही बोल पड़े हाथ जोड़कर बच्ची है अगर इससे कोई गलती हुई है तो हम माफ़ी मांगते है दरअसल इकलौती होने से थोड़ी चुलबुली है। माया दूर खड़े ही रोने लगती है आज वो ये नही समझ पाती की अपने पिता से क्या कहे। उन्होंने सासूमाँ की बात को काटते हुए कहा मेरी तरफ़- माया ये सब क्या सुन रहा हूँ अब तुम बड़ी हो गयी हो अपनी चुलबुली हरकत बन्द सासूमाँ बीच मे टोकते हुए अरे भाई साहब पहले सुन तो लीजिए तब बोलिए अभी तक आप कुछ सुने ही कहा- पिता जी सासुमां को देखने लगे। सासुमां आपकी ये करमजली बेटी हमारी और हमारे बेटे की तो जिंदगी ही खराब कर डाली है अरे बाधना ही था तो सच बोल कर बाँधा होता हमारे गले। देखो कैसे भोला बने फिर रहा ,इसकी बेटी भी बाप को ही गयी है। आपकी बेटी की आज तबियत बिगड़ी मुझे लगा खुशखबरी है मगर यहाँ तो हमारे घर मे किलकारी नही मातम गूँजेगा ऐसा लगता है। माया के पिता हाथ जोड़ बोले ऐसा क्या हुआ आप ऐसे न बोले,आपकी बेटी को ब्रेन कैंसर है आपने क्यों छिपाया । क्यों छुपा कर ब्याह दिया। मुझे तो लगता है इसकी माँ को भी वही रहा होगा झूठ बोल हमारे सर मथ दिया। कान खोलकर सुन लीजिए ये यहाँ तभी रहेगी जब आप इसके इलाज के लिए पैसे देंगे। नही तो अपनी बेटी लेते जाओ यहाँ से वैसे भी दहेज भी बहुत नही दिए कि हम इसका इलाज उसी से करले। मगर ,अब अगर मगर आपके हाथ है सोच लीजिए। पिता जी दामाद जी की ओर देखते हुए बोले,मैं कहा से करूँगा बाबू आप तो समझो। आप तो इतना पा ही रहे हो कि कुछ मैं कुछ आप मिलाकर बेटी माया का इलाज करवा दे। माया रोने लगी, सास ने तंज कसते हुए कहा आए हाय बेटी शेर बाप सवा शेर ही ठहरा। मेरा बेटा अपने लिए कमाता है हमारे लिए कमाता है न कि तेरी बेटी के लिए। मगर पत्नी तो रमेश आपकी भी है। अब बस भी कीजिए जब पैसे नही थे तो क्यों हमारे घर ब्याह दिया। कही झोपड़ी वाले के साथ ब्याहना था। सब हँसने लगे। माया को गुस्सा आ गया इस तरह उसके पिता की बेज्जती होते देख उसने गुस्से में रमेश की पोल आज पिता जी के आगे खोल दी। बोल पड़ी पिता जी गलती आपकी नही गलती तो इनकी है। भिखारी आप नही भिखारी तो ये लोग है जो अपना घर दहेज से भरते है। पिता जी माया को डांटते हुए चुप। नही पिता जी आज बोलूंगी ये आपका दामाद कोई रेलवे में कर्मचारी नही अपितु ठेकेदार साहब म घर जाकर खाना बनाते है। सासुमां ने आवाज को तेज करते हुए  कहा- बहु। क्या बहु मार डालेंगी न मार दीजिए मुझे। मगर सच तो बोल कर रहूंगी। झूठे है ये सबलोग इन्हें तो बस पैसे चाहिए। सब भीख मांगते लोग है पिता जी और वो आपके डमरुआ वाले भाई साहब उन्होंने तो तोला मोला है मुझे झूठ बोल यहाँ ब्याह करवा दिया। एक नंबर के पैसे खोर है वो आधा आपसे पैसा लिए शादी तय कराने का तो आधा इनसे। बात यहाँ मेरी बीमारी का नही बात यहा इनकी औकात की है। इन सबने मिलकर मुझे बहुत पीड़ा दी है। जिसे आप माँ कहकर यहाँ भेजे वो तो सौतेली माँ से भी बदतर है।सासुमां बीच में टोकते हुये आए हाए देख तो करमजली कैस बक रही है जिस घर का खाती है उसी घर मे छेद कर रही। छेद तो आपने कर दिया मेरी जिंदगी में,रमेश किसी और के साथ रहते है उसी महिला को क्यों नही अपनी बहू सिवकार की आप क्योंकि वो छोटी जात की है इसलिए। बहु से उम्मीद लगा ली पोता हो बेटे को क्यों नही समझाया ।रमेश ने तेज आवाज़ में बोला अब बस मुँह बन्द। क्यों बन्द क्योंकि आज आपकी करतूतों का पर्दा उठ रहा। बुरा लग रहा न रमेश तुम सबने मिलकर आज तक मुझे पडताडित किया मैं शांत रही मगर आज मेरे पिता को भरी सभा मे  बेइज्जत किया है तो कैसे चुप रहू। पिताजी आंसू को पोछते हुए- माया बेटी तो शांत हो जा ऐसे नही बोलना चाहिए तुझे इस घर ही रहना है। सासुमां के आगे हाथ जोड़कर कहा हम जल्द ही पैसों का इंतेजाम कर देवेंगे। हमे न तेरे पैसे चाहिए न कुछ अपनी बेटी लेते जा। रमेश ने पटांहि क्या सोचते हुए अपनी माँ को टोका नही माँ इनको करने दो इंतेजाम, इसे तो मैं देख लूंगा। पिता जी हाथ जोड़ छोटू को हाथ पकड़ निकल गए। उधर माया को रमेश ने बेल्ट से जमकर पिटाई की। बोलेगी अब बोल तेरी ज़बान तोड़ दूंगा। सासूमाँ के कहने पर रमेश ने छोड़ दिया। अधमरी सी माया पलँग के एक कोने को पकड़ सुबक रही थी। बस ये सोच रही थी कि पिताजी कैसे सब करेंगे। समझ नहीं आ रहा। क्या करू उधर पिता जी और छोटू की सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी। जब ये खबर माया को पता लगा तो माया बलभर रोने लगी।अब उसका कोई नही था यहाँ। उसने रमेश को झकझोरते हुए कहा खा गए ना मेरे पिता को भी तुमलोग। इससे अच्छा तो मुझे ही मार डालते। माया फूट फूट कर रोने लगी। मेंरा मासूम सा भाई उसकी भी बलि चढ़ा दिए तुम सब। माया रोती रही । सास ने रमेश को टोकते हुए कहा इसका कुछ करना ही होगा। दोपहर तक होते होते पुलिस घर पे आ गयी। माया से सब कुछ जानना चाहती थी। रमेश ने बात को काटते हुए कहा - इंस्पेक्टर यहाँ से तो भलीभाँति ही गए थे न जाने अचानक से क्या हुआ कि देखिए हम सभी ऐसे ही अभी बहुत परेशान है और आप अब कुछ मत पूछिए। माया तो ऐसे ही सदमे में है। माया पुलिस से बहुत कुछ कहना चाहती थी, मगर न जाने क्यों न बोल पा रही थी। इंस्पेक्टर देखिए आपके साथ जो हुआ उसके लिए हम भी परेशान है मगर होनी को कौन टाल सकता है। खैर चलता हूँ। माया बूत होकर वही बैठी रही उसके सर में भयंकर पीड़ा हो रही थी,एक तरफ उसकी तकलीफ दूसरी तरफ ये ससुराल वाले,तीसरा उसका मायका सदैव के लिए उजड़ चुका था। 


जैसे तैसे एक हफ्ते कटे। माया की पीड़ा उसे बर्दाश्त न होती। सास की बोली पति का मार ही उसके जीवन का दिनचर्या हो चुका था। आए दिन ये होता रहता जहाँ उसका इलाज करवाना चाहिए वही उसका इलाज कुछ इस रूप में होता कि वो अधमरी की तरह हो चुकी थी। एक दिन तो तब हद हो गयी जब रमेश शराब पीकर आया और माया को जबरदस्ती घसीटते हुए किचन से कमरे में ले गया और जबरदस्ती उसके साथ यौन संबंध बनाने लगा। माया चीखती रही चिलाती रही,लगातार रमेश ने एक दिन मे ही उसके साथ यौन संबंध बनाए। माँ से कहा ले तेरी खुशी के लिए कर दिया मगर बच्चे को भी कोई दिक्कत होगयी न तो तू समझना एक तो झेला नही जा रहा और दूसरे को न्योता दे दिया। इस तरह रोज माया के साथ यौन सबन्ध बनाता उसके बाद उसकी गलती हो न हो उसे बलभर बेल्ट से पिटता।माया समझ चुकी थी अब उसकी जिंदगी इसी नरक में ही है। एक रोज फिर सास की नोकझोक रमेश को भर दी, और फिर क्या एक ऐसा इल्जाम लगाया मेरे माथे पर की इसका चक्कर तो हमारे छोटे बेटे सुजीत से चल रहा। सुजीत चुपके चुपके माया को उसके बीमारी कि दवा ला ला कर दिया करता था। उसकी माँ ने गलत समझ लिया। माया ने झुंझला कर कहा बस । बहुत हो गया जब मन किया पिट लिया जब मन किया जो बोल लिया। अरे घिन आती है मुझे आपको माँ कहने में कुछ तो शर्म करिए। रमेश ने माया को हाथ उठा कर मार दिया और बोला सही बोल रही थी माँ इसे भी न कब का घर से निकाल देना था। निकल हमारे घर से। रमेश छोड़िए मुझे। मैं इस हालत में कहा जोऊंगी रमेश रमेश..रमेश। रमेश ने घर से धक्का मारते हुए बाहर निकाल दिया। माया रोती रही दरवाजा पिटती रही लेकिन आज उसे उस घर मे कोई सुनने वाला न था। माया ने तय कर लिया कि आज वो खुद को सड़क हादसे को सौप देवेंगी। बस खुद को किसी तरह सम्भालते हुए निकल गयी सड़क की ओर हर कोई उसे ध्यान से देख रहा था। कुछ लोग कह रहे थे अरे ये तो उनकी बहू है इसको क्या हुआ। कैसे पागल जैसी हालत बनाई फिर रही। कोई कहता अरे लगता है गर्भ से है। इसके तो पिता भी नही है अब तो ये कहा जा रही। माया सुध हुए चुपचाप सबकी सुनती रही,न हाथ मे पैसे न सर पे छत। चप्पल भी उसकी काफी टूट चुकी थी। कभी पत्थर उसके पाव में चुभते तो कभी कुछ। एक रात बस स्टैंड पर ही गुजर गए। अजीब अजीब तरह के लोग उसे देख हरकत करते उसने तय कर लिया यू ठोकर खाने से बेहतर है कि सदैव को ही खत्म कर दू, उसने भी ट्रक के सामने आ अपने जीवन को अंतिम कड़ी दे दी। 

यह कहानी बहुत अजीब है  मगर सच उस लड़की की पीड़ा को पूछिए जो आज माया जैसी कितनी लड़किया आज भी झेल रही। बिन कुछ कहे । क्या दहेज ही सब कुछ है। क्या रमेश की कोई जिम्मेदारी नही बनती थी,की वो माया का इलाज करवा सके। उसने तो माया का इलाज कुछ यूं कर दिया कि माया क्या कभी उसके पिता भी न सोचें होंगे। लड़की घर का कोई सामान नही जो जिसे मन चाहा दे दिया,वो जिम्मेदारी है तो खुद के बल पुख्ता जानकारी लिए बगैर शादी न करे। आखिर आज क्या हाथ लगा। लड़किया जिम्मेदारी है तो उसे एक जिम्मेदार के हाथ ही सौपे। 

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