स्त्री हूँ ,कठपुतली नही

स्त्री हूँ ,कठपुतली नही


उफ़्फ़फ़ ये कठपुतली सी जिंदगी..... ! 
जिंदगी का हर एक गहरा पल आने वाले समय के लिए कहानी ही तो है। फिर चाहे वो काल्पनिक हो या वास्तविक।क्या फर्क पड़ता है लोगो को तो हर चीज में टांग अड़ाना ही है कि कौन सही है कौन ग़लत। बात विस्तार में पता हो या संछिप्त में क्या फर्क पड़ता है उन्हें तो पूरे कॉलोनी की बस बात पता करके फुस फुसाना ही तो है। 

कितना अजीब है न सब मेरे और आरव के बीच...मैं आरव को हर एक पल देना चाहती हूं तो वो उसपे भी राजी नहीं। पता नही क्या दिक्कत है उनकी। क्यों करते है ऐसा क्या जो टाइट जिस शर्ट टॉप पहनता है वही स्मार्ट है। क्या जो छोटे कपड़े ऊंची हिल नही पहनता वो स्मार्ट नही लगता। क्या साड़ी में स्मार्टनेस नही। शादी के पहले तो चिंकी दीदी कहती थी कि साड़ी ही वो परिधान है जो आदमियों को मोह लेती हैं, मगर यहाँ तो क्लेश हो जाता हैं। समझ नही आता कैसे रहू ,कैसे जीऊँ।साँस बोलती है साड़ी पहनो ,ननद बोलती है सूट पहनो,पति बोलता है शार्ट ड्रेस पहनो किसकी किसकी सुनु प्रभु। 
                यही सोचते सोचते उसकी आंख लग जाती है। तभी फोन की घण्टी बजती है। आरव ,हा आरव बोलिए?कहा थी तुम कबसे फोन कर रहा हूँ। सॉरी वो आँख लग गयी थी।ठीक है कोई नही आज बॉस के यहाँ उनके बेटी का बर्थडे है सो तुम भी तैयार हो जाओ और हाँ स्मार्ट वाली कोई ड्रेस डाल लेना मैं आधे घण्टे में ही आजाऊँगा ठीक। आराध्या अलमीरा खोल कर ये सोचने लगी कि क्या पहनू ,फिर उसने अपने इंगेजमेंट की गाउन निकाला वही पहन ली। उधर आरव आधे घंटे के अंदर घर आ जाते है नीचे से ही आवाज लगाते है,आराध्या आराध्या जी आई। आप नही बदलेंगे। नीचे सोफे पर सासुमां बैठी थी, उन्होंने तंज कसते हुए कहा- हे भगवान आजकल की लड़कियां... कोई शर्म लिहाज़ नाम की तो चीज ही नही है। देखो अभी शादी के दो महीनों ही बीते है और कैसे सर से पल्लू हट गया। अरे माना २१वा सदी चल रहा मगर इसका मतलब ये तो नही कि साड़ी पहनना बन्द कर दे। आरव माँ को टोकते हुए माँ मैंने ही कहा है उसे ये पहनने को वहाँ बीवी के साथ जा रहा हूँ माँ के साथ नही। आराध्या को आज अच्छा लगा जब आरव ने खुद जवाब दिया। लेकिन घर से निकलते निकलते सासुमां फिर टोकी हां हां रीतिरिवाज और समाज तो झूठा है। पूरी दुनिया कॉलोनी थूकेगी  कल  को मेरे ऊपर। यहाँ किसको सुननी है मेरी। चार दिन की आई लड़की बेटे की सोच बदल दी। 

आराध्या के आंखों में आंसू आ जाते है। उसने खुद को संभालते हुए गाड़ी में बैठ गयी। उसने तय कर लिया कि आज के बाद वो वही पहनेंगी जो उसे मन है जिसमे उसे ठीक लगे। कोई कठपुतली हूं क्या ?जिसका जो मन वो बोले मैं ऐसे रहू वैसे रहू। हद हो गयी है। दोनों पार्टी में शामिल होते है, सभी आराध्या की तारीफ करते है। अरे वाह क्या बात है भाभी तो जलवा बिखेर रही है। बहुत सुंदर लग रही। पतिदेव इसी में फुले समा रहे थे। मानो उन्हें किसी ने ट्रॉफी दे दी हो। उधर आराध्या का सारा दिमाग घर पर ही लगा हुआ था कि गगर पहुचकर न जाने कितने तरह की बात सुननी पड़ेगी हे भगवान। दोनों पार्टी से लौटते है। आरव की बहन दरवाजा खोलते ही बोलती है अरे भाभी  आए हाए मम्मी की बहू तो मॉडर्न होगयी भाई। निकल गयी चिड़िया कैद से!वैसे भाभी आज आप जलवा बिखेर रही हो। आप काफी अच्छी लग रही हो। आराध्या हल्की मुस्कान देकर रूम की और बढ़ गयी। थोड़े देर में नीचे से रोने की आवाज आने लगी,हे भगवान मुझे ये सब दिखाने से पहले उठा ही क्यों न लिया। आराध्या और आरव दौड़ते हुए माँ के कमरे में पहुंचे माँ माँ क्या हुआ, देख आरव ये सब ठीक नही है इसे तू समझा दे वरना हम अपने तरीके से समझाएंगे। हुआ क्या माँ आरव ने पूछते हुए। अरे सोसायटी में मेरी कोई इज्ज़त भी है या नहीं। चंद्रा की बहू देखो ऐसे ही घूमने लगी थी,देखा सब कैसे चंद्रा का मजा लेते है। 

आरव माँ लोगो को बोलने दो ना उनका काम है बोलना तुम मत सुनो और आराध्या मेरे कहने पर ही पहनी थी। मैं ही उसे जबरदस्ती पहने को बोला था। तुम ये क्यों नही समझती माँ। अरे चुप कर क्या समझू,मेरी सास ने तो कभी साड़ी के अलावा कुछ न पहनने दिया,ऊपर से कभी सर से पल्लू भी न गिरा। ठीक है ,माँ तो क्या आप भी वही करना चाहती है कि जो आपकी सास ने किया आप भी वही करो,वक़्त बदल गया है माँ। समय के साथ चलना भी जरूरी है। आराध्या के आंख से आंसू गिर जाता है। कुछ दिन तो सब ठीक रहता है,मगर एक दिन तब होती है जब सासुमां उसके घरवालों को फोन कर घर बुलाती है। 

देखिए बहन जी ये सब ठीक नही है। आप समझ क्यों नही रही है,आपकी बेटी तो हमारे घर के बारे में सोच ही नही रही क्या बताए। हुआ क्या भाभी जी-आराध्या की माँ। 
अरे अभी तो शादी के दो तीन महीने ही हुआ है और बहू का सर से पल्लू अभी से हट गया है। आराध्या ये मैं क्या सुन रही हूं। आराध्या रोते हुए,माँ मैं तो परेशान हो गयी हूं। सच तो ये गया कि माँ यहाँ आपने अपनी बेटी नही ब्याही है गुड़िया ब्याह दी है। सब उसे अपने तरीके से सजा सवार कर रखना चाहते है। सासुमाँ कहती है कि साड़ी पहनो भारतीय महिला की पोशाक व हमारी संस्कृति है,भर माँग चटक सिंदूर लगाओ। समाज मे इज्जत व कॉलोनी में मान सम्मान बना रहता है।वही ननद कहती है कि भाभी ये क्या दस मीटर के कपड़े को लपेट लेती हो,अरे स्मार्टनेस नाम की भी चीज है भाई स्मार्टनेस तो सूट से आती है।आपके पास न हो तो मैं ले आऊ वो पहनो,मांग में सिंदूर इतना कौन लगता है भाभी हल्का सा लगाओ,आराध्या की ननद का सर नीचे झुक गया। और आपके ये दामाद जी सामने खड़े है, हमारे पति जी कहते है कि शार्ट ड्रेस पहनो,सिंदूर छिपा के लगाओ आज कल कौन ऐसे रहता है।इन्हें तो मैं जाहिल गवार नजर आती हूँ। सास के हिसाब का पहन के इनके सामने आ गयी तो  बोलेंगे ये क्या बहन जी टाइप्स तैयार हो गयी। सूट पहन लो तो तुम्हे कोई ड्रेसिंग सेंस है भी या नही। तुम आरव त्रिपाठी की पत्नी हो,कुछ तो सोचो और सिखों।ऐसे साड़ी सूट पहन कर चलोगी मेरे साथ। इससे अच्छा तो मैं अकेला ही चला जाऊ। कौन अपनी बेज्जती कराएगा। सब मज़ाक बनायेगा मेरा।आख़िर मैं किसके हिसाब से जियूँ। माँ कभी कभी ऐसा लगता है कि मैं यहाँ एक कैदी की तरह जी रही हूं।आप ही बताओ माँ क्या पहनू मैं । मेरी तो कोई वैल्यू ही नही है जैसे। न ही मेरी कोई मर्जी। जिसको जो सुनना हुआ सुना कर निकल लिया।किसी ने यह नही सोचा कि मेरी क्या मर्जी है। मैं तो सबकी मर्जी से जीने की कोशिश करती जा रही हूं मगर मेरी कौन?

क्या छोटे कपड़े पहनने से हाई प्रोफाइल मेंटेन रहता है। या साड़ी पहन लेने से समाज मे इज्जत बरकरार रहता है। या सूट पहन लेने से दोस्तो के आगे भाभी बहन लगने लगती है। सोच मुजगे नही इन लोगो को बदलने की जरूरत है। बहु कुछ भी पहने क्या फर्क पड़ता है फर्क तो ये पड़ना चाहिए कि चार व्यक्ति के आगे वो हमारी इज्जत करती है कि नही।ऐसा तो नही कुछ ऐसा बोल दे कि बेजत हो जाए। लेकिन यहां तो बात ही अलग है। 
सभी के सर आराध्या के आगे झुक गए। बात विचार के बाद सभी को यह महसूस हुआ कि उनसे गलती हुई जो शायद नही होनी चाहिए। सासुमां ने कहा तुम जो भी पहनो मुझे दिक्कत नही।ननद आप हर चीज में ही खिलती हो।अब तो बारी थी पतिदेव की जिनके वजह से मेरे जीवन मे सभी जन चरस बो रहे थे। सॉरी आराध्या ये सभी रायता मेरी वजह से ही फैला है। ये मेरे कारनामे की वजह है। मुझे तुम आज से घर पोशाक में पसंद हो। ख़ैर आज तुमने सच ही कहा तुमने हम सब की मर्जी से ख़ुद को रखा मगर सोचना तो हम लोग को बदलना चाहिए था।तुम्हारी भी जिंदगी है तुम आज से स्वच्छंद हो जैसे चाहो रहो। आज आराध्या को रिलैक्स महसूस हो रहा था। समय बीतता गया आराध्या रोज के दिनचर्या में कभी सूट कभी साड़ी पहनती। तीज त्योहार पर साड़ी ही पहनती। अब तो पतिदेव के साथ भी कही जाती तो साड़ी पहन लेती। वक्त के साथ कठपुतली की तरह जिंदगी गुजारना बन्द हो गया। आराध्या ने एक बात सच ही कहा कि इंसान दिल से साफ पाख होना चाहिए। आपका सम्मान करें वही है। उसे कठपुतली मत समझिए न ही गुड़िया कि जिसे जिस तरह जी चाहा पहना दिया। 

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट