सस्पेंस लव

इश्क़ और जुनून एक ऐसी धुरी है जिसमे किसी को पाने का जूनून किस हद तक पहुंच जाए कोई नहीं जानता। इश्क़ तो सस्पेंस का वो एपिसोड है जिसमें एकता कपूर के सीरियल भी पीछे छूट जाए। कब ,कौन सा पल सामने आ खड़ा हो जाए कोई नही जानता। फ़िर क्या ये सिलसिला थोड़ा टकरार,थोड़ा हँसी मज़ाक से ही एक एपिसोड की तरह कड़ी पे कड़ी जुड़ता चला जाता है।

कुछ इसी धुरी पर चल रही इन दिनों मानवी और शिवाए की  सस्पेंस कहानी।जिसकी ख़बर कुछ दिनों तक उन दोनों को खुद भी नही थी।

मानवी जो सूचना विभाग में एक इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर है जो किसी केस के सिलसिले में अपना शहर छोड़ लखनऊ आई हैं। जिस केस को सुलझाने में उसे छः माह बीत चुके है।रोज की तरह जाँच अधिकारियों की हर हफ़्तों में मीटिंग  होती है और मानवी केस में इन दिनों इतनी थक चुकी है की उसे अब केस बोरिंग सा लगने लगा है।

अभी हालिया ही एक मीटिंग के बाद अगली मीटिंग बैठी। मानवी को जैसे पता चला आज मीटिंग उसने मन ही मन बुदबुदाया क्या ये रोज रोज के बेफ़िजूली मीटिंग होती है यार। मानवी भागते दौड़ते जल्दी से वहाँ पहुँची। उफ़्फ़फ़ ....एक लंबी गहरी सांस लेते हुए मानवी मीटिंग हॉल के दरवाजे को आहिस्ता से खोली..;अंदर झांकते हुए उसने अपने दाए कदम आहिस्ता से अंदर किए।मीटिंग हॉल में काफ़ी लोग पहले से ही मौजूद थे। हर बार कि तरह इस बार भी लगभग कुछ नए ऑफिसर आए हुए थे।मानवी तेजी से दाएं-बाएं नजरों से यू कुर्सी को तलाश रही थी मानो शिकारी अपने शिकार के तलाश पर निकला हो।तभी उसकी नज़र हॉल के फर्स्ट सीट के ठीक पीछे वाली कुर्सी पर पड़ी।मानवी मुस्कुराई और कुछ यूं नज़रे झुकाएं अपने क़दम तेज तेज बढ़ा रही थी मानो उस कुर्सी को कोई और न लपक ले।आहिस्ता से कुर्सी पे बैठी,तभी बॉस आ गए और मीटिंग शुरू हुई सब इस केस पर अपने अपने व्यू दे रहे थे। तभी मानवी की नज़र अचानक से उस भरे मीटिंग रूम में एक नज़र आगे वाले चेयर पर बैठे शख्श पे गयी,जो काफ़ी ज्यादा सिंसियर ,सेंसटिव और केस को ध्यान से सुन रहा था।उसके नजदीक पड़े डायरी पे वो यो कलम चला रहा था मानो सारी गुत्थी वो आज ही सुलझा देगा। मीटिंग के आखिरी में निष्कर्ष ये निकला कि मानवी की ड्यूटी शिवाए के साथ पंद्रह दिन के लिए लग गयी।ओह्ह...तो इनका नाम शिवाए है। मानवी अंदर ही अंदर ये सोचने लगी अभी तक कम था जो एक और फंदा मेरे गले आ पड़ा। ख़ैर चलो अच्छा है किसी ने खूब ही कहा है "एक से भले दो" शायद केस की गुत्थी सुलझ ही जाएं। मीटिंग हॉल से मानवी भी बाकि सबके साथ ही बाहर निकल आई। मानवी उस दिन सीधे घर आ गयी। पूरी रात ये  सोचती रही पता नही कल का दिन कैसा बीते?पता नहीं वो कैसा है?मैं तो केस को हैंडल कर ही रही थी पता नहीं क्या है,क्यों .....मन के सवालो के कटघरों में मानवी की आँखे कब लग गयी उसे पता भी न चला।
      जब अचानक से उसकी नीद खुली तो सुबह के करीब 9 बज रहे थे। मानवी हड़बड़ा के उठी और खुद के काम इतनी तेजी में कर रही थी मानो कोई रोबोट हो। लेकिन फिर भी उसे लेट पे लेट हो ता जा रहा था। मानवी अंदर ही अंदर खुद से झुंझला रही थी...ओह गॉड आज ही लेट होना था। रोज तो समय पे रहती हूं और आज। क्या जवाब दूँगी उस जासूस ऑफिसर को। पहले दिन ही इतनी देर भगवान प्लीज़ ऑटो जल्दी दिला दो। हड़बड़-तड़बड़ में मानवी ज्यो आफिस पहुँची उसे दो पल को लगा लगता है शिवाए लेट है मगर केबिन का दरवाजा खोलते ही शिवाए कुर्सी पे बैठकर मोबाइल चला रहा था मुझे देखते ही बिल्कुल सीधे बैठ गया। ऐसा लगा जैसे मानो बेसब्री से इंतज़ार किया जा रहा हो। मानवी ने गहरी सांस लेते हुए कुछ यूं चुपके से शिवाए को नजरअंदाज करते हुए  केबिन में घुसी मानो जैसे बहुत जल्दी आ गयी हो। अभी दो मिनट हुए होंगे मानवी को अपना बैग कुर्सी पर रखते हुए की मानवी के बॉस राउंड पर आ गए। फिर क्या शुरु ही मानवी की क्लास।
बॉस- अभी तक तुम यही हो?
मानवी- ने बिन सोचे समझे झूठ बोल दिया कि सर वो पानी पीने आई थी ।
बॉस- क्या वहाँ पानी नही था।
मानवी- वो मैं .....वो वहाँ साफ पानी नही था।
बॉस- मानवी इस तरह नही चलेगा। आज किसी भी तरह से तुम लोग आज मुझे केस के बारे मे बताओंगे। शिवाए की ओर देखते हुए तुम मुझे बताओगे की यहां कुछ काम भी हो रहा या बस यूं ही....!

मानवी को अंदर ही अंदर शिवाए पर गुस्सा आ रहा था। खड़ूस ये मेरी पड़ताल करने चला है कि इस केस की। इसे तो बताती हूं।जासूसी कही का। इतना घुमाऊंगी,इतना घुमाऊंगी,इतना चलाऊंगी कि थक ही जाएगा।मानवी ने आँखे छोटी और भौहें ऊपर करते हुए कहा...." मिस्टर शिवाए, अभी तो शुरुआत है।" मानवी ने मन ही मन इतना खुद से बड़बड़ा भी लिया।

उधर शिवाए बॉस से शांत हो कर आज क्या क्या करना है उसकी प्लानिंग तय कर रहा था,कि आज हम क्या क्या करने वाले है। मानवी चुपचाप शिवाए को शांत हो कर नजरें चुराए देख रही थी,कहि शिवाए बॉस को ये न बता दें कि मैं मानवी कि बच्ची अभी तुरत आई हूं। मगर शिवाए काफी समझदार था,उसने एक बार भी इस बात की जिक्र भी न किया कि मोहतरमा अभी को पधारी है। बस ठीक है ,सर आज पहले थोड़ा मैं देख लू जैसा मुझे लगेगा मैं बता दूँगा।

बॉस के जाते शिवाए ने मुझसे सीधे कहा, मानवी तुम्हारा हो गया हो तो हम चले। केबिन से बाहर तो निकल ही ली हाथ मे पेन और डायरी ले कर। मगर अंदर ही अंदर ये सोचने लगी। आख़िर शिवाए ने मुझे क्यों बचाया?कही.... बक मानवी शांत हो जा और काम कर। आज मैं और शिवाए पहली ही मुलाकात में इतने क्लोज़ जैसे लग रहे थे जैसे बहुत सालों से एक दूसरे को जानते हो।
काम का इतना प्रेशर था कि सब भूल कर काम मे तल्लीन हो गयी। क्यों कि इस टाइम सर पर टाइम बाउंडेशन की सुई जो घूम रही थी। पहले दिन तो बहुत ही कम बात हुई। मगर मानवी कही भी रहती उसकी नजरे शिवाए पे भी थोड़ी थोड़ी रहती। नोटिस करती शिवाए को कैसे नेचर का है।

शाम को निकलते हुए आफिस से शिवाए ने टोकते हुए  कहा , कि  अरे मानवी..।
मानवी- हा ।
शिवाए- वो ,वो तुम अगर गलत न समझो तो तुम्हारा नम्बर मिल सकता है क्या? दरअसल केस के सिलसिले में अगर कुछ बात करना रहा तो!
मानवी- या स्योर।ब्ला-ब्ला ब्ला....ये मेरा नम्बर है।
शिवाए- थैंक्स।
मानवी- मुस्कुराते हुए नम्बर देकर घर के लिए निकल पड़ी।रास्ते भर वो आज पूरे दिन क्या क्या की केस का वो कम बल्कि शिवाए को सोचे जा रही थी। पता नहीं कब केस पूरा होगा। मानवी घर पहुँचकर थोड़ा फोन को चार्ज पर लगाई और चाय पीकर खाना बनाने में जुट गई। किचन में रोटियां बेलते हुए उसका दिमाग केस पर घूम गया। कैसे हल करे। पता नही ये जासूस केस में क्या ढूंढेगा। फिर मानवी ने कान में हेडफोन लगाया फूल साउंड में मेनू लहँगा ...सुनने लगी। किचन के काम को निपटा कर उसने फटा फट से खाने के बाद थोड़ी बात घर पे की और फिर जुट गयी अपने काम मे।
काम में तल्लीन मानवी की नज़र फ़ोन पर गयी फोन का नोटिफिकेशन लाइट कुछ यूं ब्लिंक कर रहा था मानो कोई आने वाला है।उसने फोन को ज्यो स्क्रीन खोला तभी व्हाट्सअप पर एक और मैसेज आया टुंग, मैने व्हाट्सएपलॉक खोल कर देखा तो.... शिवाए। मानवी की चेहरे पर एक अजीब मुस्कान झलक रही थी। मैसेज में लिखा था;मानवी तुम घर पहुंच गयी।
मानवी- हा कब का,खाना भी हो गया।
शिवाए- ओह गुड।
मानवी ने पूछा - और आप।
मेसेज का जवाब उधर से पूरा आया,जी हो गया।
शिवाए ने मानवी से पूछा- आपका पूरा नाम क्या है?
मानवी शिवाए के इस सवाल से ये सोचने लगी कि पूरा नाम से क्या मतलब है। ख़ैर, मानवी सक्सेना।
शिवाए-ग्रेट।
मानवी -आपका?
शिवाए-शिवाए राजपूत।
मानवी- ओह के।
शिवाए- घर पे और कौन कौन है?
मानवी - सब है क्यों? मानवी की मकड़जाल सवालों ने बुदबुदाया ,इसे मेरे केस स्टडी से क्या लेना देना।
मानवी ने मेसेज का अगला जवाब देते हुए कहा,खैर हम कल बात करते है,गुड नाईट।
शिवाए- थोड़ा रुक कर उसने अगला मेसेज भेजा...मेरे बात को गलत मत लेना, मैं बस यूं ही पूछा।
शिवाए -गुड नाईट मानवी।
मानवी - मुस्कुरा के फोन को बगल रखा और फिर जुट गयीं अगले दिन के तैयारी में। रात काफी हो जाने पर मानवी का ध्यान व्हाट्सएप पर गया अंधेरे शांत कमरे में पँखे की मधम मधम हवा मानवी के बाल फोल्डिंग से यू लटक के लहलहा रहे थे मानो वो भी खुश हो। मानवी की मोबाइल लाइट से उसके चेहरे की मुस्कान साफ़ साफ़ झलक रही थी। मानवी बार बार शिवाए के मैसेज को कुछ यूं रीड कर रही थी,जैसे कल ही तो एग्जाम में ये टॉपिक आने वाला है। मानवी की आँखे कब लगई उसे पता भी न चला।

अगले दिन से मानवी और शिवाए काफ़ी तो नही मगर थोड़े क़रीब शायद जरू आ रहे थे। मानवी चुपचाप काम के दौरान एकात बार शिवाए को घूर ही लेती। उधर शिवाए भी मानवी को नजरे छुपाए देख ही लेता।मानवी की नजरें जब शिवाए पे जाती तो शिवाए चौक कर अपने लेपटॉप में घुस जाता मानो दिल लगा कर केस को सुलझाया जा रहा हो।काफ़ी और केस दोनों अपने जगह पे फिट है  हे ना मानवी ने बोला - शिवाए ने कोई जवाब नही दिया। मानवी टेबल के पास पड़ी कुर्सी को धीरे से अपनी ओर सरकाया और चुपचाप बैठ गयी शिवाए को चुपके चुपके काफी मग से नजरें चुराए देखती रही और दो पल में ही ख़याली पुलाव मे गुम हो गयी।...जेहनसिब जेहनसिब तुझे चाहू बेतहाशा जेहनसिब...मेरे करीब ,तेरे संग बीते हर लम्हे पे हमे नाज है,तेरे संग जो न बीते उसपे एतराज है...इस क़दर हम दोनों का मिलना एक राज है।
शिवाए- अरे मानवी। शिवाए ने मानवी के चेहरे के नजदीक चुटकी बजाते हुए टोका क्या सोच रही हो,कहा खो गयी मैडम आप बैठे बैठें, शिवाए ने हँसते हुए कहा।
शिवाए के बोलते ही मानवी चौक गयी ,उसने हड़बड़ाते हुए जवाब दिया- हाँ।
शिवाए- अरे कितने धीरे कॉफी पीती हो।
मानवी - शांत नजरो से काफी के कप को लब से चिपकाए,चोरी नजरो से शिवाए की बाते सुन कर बस मन ही मन मुस्कुरा रही थी।पन्द्रह दिन के सफ़र में कुछ यूं दोनों नजदीक आ रहे थे कि मानो सालो से दोस्ती हो। हर छोटी बात पे दोनों की छोटी मोटी सी बेफ़िजूली नोकझोक का होना। रूठना-मनाना ,इन्तेजार करना,कभी कभी मानवी को अगर देर हो जाए तो शिवाए उसे घर तक भी ड्रॉप कर देता।
        दिन बीतते गए दोनों की बातचीत करीब होती रही,दोनों लगभग थोड़ी थोड़ी बाते एक दूसरे की जानने और समझने भी लगे थे। कभी मानवी का चेहरा उतर जाए तो शिवाए परेशान हो उठे।और अगर शिवाए का चेहरा फीका पड़ जाए तो मानवी के मन मे भूचाल से आ जाए। दोनों की रोज रात में घण्टो -घण्टो बात हो।

मानवी- शिवाए तुम्हारा जन्मदिन कब है?
शिवाए- बस आने वाला है तीन दिन बाद!
मानवी- अरे वाह। फिर तो एक दिन की छुट्टी बनती है और मस्ती करते है ,घूमते है। अकेले जब तक थी ,केस की वजह से घूम नही पाई।मगर अब तो हम दो है,और दोनों ही नही घूमे है।
शिवाए - मगर दोनों लोग एक साथ छुट्टी लिए तो,बॉस को शक हो जाएगा।
मानवी - तो हम जन्मदिन सेलिब्रेट न करे। बक ....फट्टू । शिवाए - मानवी का ये (बक ...फट्टू) रिप्लाई पढ़ कर  चैट में हँसता हुआ स्माइली भेजा।
मानवी- झेप गयी।
मानवी- अब बोलो भी मिस्टर जासूस।अगर जवाब नहीं दिया तो आज से तुम्हारा नया नाम फट्टू...मानवी ने स्माइल बनाते हुए भेजा।
शिवाए - देखा जाएगा।
मानवी- बड़े आए......!

अब तो बातों का सिलसिला बढ़ ही गया था, दोनों की बात हर खयश देर पर होती। एक दूसरे की फिक्र और गुस्सा इन्तेजार... लगातार बढ़ रहा था अपनी ही रफ़्तार में। दो दिन के बाद ...रोज की ही तरह मानवी ने शिवाए को मैसेज किया- हैप्पी बर्थडे फट्टू।
शिवाए- ने हँसते हुए जवाब दिया- थैंक्यू।
मानवी- कल का क्या सीन है।
शिवाए- ऑफिस।
मानवी- मुँह को सिकोड़ते हुए कहा-  बक यार बोरिंग जासूस। उसने शिवाए को पलट कर बस गुड नाईट लिख भेजा।
अगले दिन- शिवाए ने सुबह उठते ही मानवी को मैसेज किया; गुड मॉर्निंग मैडम।
मानवी - गुड मॉर्निंग।
शिवाए- आज का क्या प्लान है।
मानवी- दबे मन से जवाब दी मुझे क्या पता कौन सा मेरा जन्मदिन है। मेरा होता तो मैं खूब घूमती।
शिवाए- तो चले फ़िर...!
मानवी- सच।
शिवाए - दो मिनट रुक कर हा। आपको नाराज़ कैसे कर सकते है। वैसे पहले आफिस चलते हैं फिर उधर से ही घूमी।
मानवी-...........न! मैं नही आ रही। हम घूमने चल रहे।गन्दी सी बनकर थोडी चलूँगी। सेलिब्रेशन का माहौल है। शिवाए प्लीज ......मान जाओ न!
शिवाए - ओह के!मगर जल्दी से तैयार हो कर कॉल ड्रॉप करना मैं ऑफिस थोड़ी देर हो लेता हूँ।
मानवी- ठीक है।

मानवी और शिवाए आज पहली बार ,पहली बार कहि बाहर केस के सिलसिले में न जा कर खुद के लिए समय निकाल रहे थे। मानवी तो पूरा घर अस्त व्यस्त कर रखी थी। चारो तरफ सैंडल और कपड़े फेंके पड़े थे... बीच मे अलमीरा के दरवाजे से टेक लगाए मानवी हर कपड़ो को इस कदर से देख रही थी मानो कोई रिश्ता लेकर आया हो। ये पहनू या ये....या फिर ये।
शिवाए का मैसेज आया टुंग- मानवी अभी कितना टाइम लगेगा।
मानवी- अभी तो मैं तैयार भी नही हु।
शिवाए- क्या कर रही हो। देर हो रही। जल्दी करो।
मानवी- अच्छा निकल रही हूं।

मानवी ने हार कर अलमीरा से एक मेरुनिश कलर का कुर्ता डाला और उसपे राजस्थानी चुनी। पैर में ऊँची हिल की सैंडल। एक हल्का सा छोटा सा कंधे पे लटकाए बटुआ। हाथ मे मोबाइल लिए मुँह को बांध निकल पड़ी।

शिवाए- कॉल करके, मानवी बहुत ज्यादा ही देर हो रही कहा हो।
मानवी- कितना बोलते हो आ रही हु न।
मानवी ज्यो ऑटो से उतरी शिवाए गुस्से में हेलमेट ठीक करते हुए बोला - अब बैठो जल्दी,वैसे ही बहुत जल्दी आई हो।
मानवी- गुस्से को मन ही मन निकाली और सोचने लगी कहा से आ गयी ।
शिवाए- अब कहा चले बोलो।
मानवी- जहाँ तुम्हारा मन। वैसे भी आज तुम्हारे हिसाब से चलना होगा।
शिवाए - ओके।अम्बेडकर उद्यान चले।
मानवी- ड्राइवर कौन है।
शिवाए ने सर को हिलाकर कहा ठीक है मैडम।
दोनों अम्बेडकर उद्यान पहुँचे। आज सुबह से ही मौसम भी खुशनुमा सा था। कभी बदली कभी धूप। वहाँ पहुँचते मानवी को उतार शिवाए बाईक स्टैंड में लगाने चला गया। आते ही दोनों साथ अंदर घुसे। मानवी ने ज्यो अपने दुप्पटे से चेहरे पे पड़े नक़ाब को खोला शिवाए चुप चाप मानवी को तिरछी निग़ाहों से देखने की कोशिश करता रहा। मानवी बक बक करती हुई चलती जा रही थी। थोड़ी देर बाद दोनों थक जाने के बाद एक ऐसे जगह खड़े हुए जहाँ चारों तरफ़ हाथियों का झुंड बीच में सिर्फ़ शिवाए और मानवी। धूप की फीकी फ़ीकी सी रोशनी हाथियों के झुंड से टकराते हुए मानवी के गॉगल्स से टकरा रही थी। मानवी अपने गीले बालों को सुखाने के लिए ज्यो खोली शिवाए उसे चुपचाप निहारता रहा। धूप की रोशनी से आज मानवी कुव्ह ज्यादा ही चमक रही थी शायद। उसके खुले बाल यू लहरा रहे थे मानो हवाओं से बातें कर रहे हो। मेरुनिश कलर की कुर्ते में मानवी आज बहुत ही ज्यादा सुंदर लग रही थी। उसपे राजस्थानी दुपट्टा, माथे पर छोटी सी काली बिंदी जो मानो सबकी नजरों पर ध्यान रख रही हो। उठी उठी पलकें, होठों पे गुलाबी कलर की शिमर लिपिस्टिक जो धूप में चमक रही थी। पैरों में ऊँची सैंडल, हाथों में कड़ा। कंधे पर हल्का सा एक छोटा बटुआ।हाथ में मोबाइल। आँखों पर गॉगल्स लगाए आज मानवी किसी हीरोइन से कम नही लग रही थी। शिवाए को बार बार मन की भीतरी दीवार ये कह रही थी कि वे एक बार बस मानवी को गले लगा ले।

मानवी- शिवाए क्या सोच रहे कबसे। इतनी देर से बोल रही फ़ोटो खीचों सुनी नही रहे।
शिवाए - सॉरी मानवी सुन नही पाया।
मानवी ने छेड़ते हुए कहा, सुन नही पाया या.....!
शिवाए- मानवी।
मानवी - अच्छा ठीक है।
फ़ोटो सेंसेशन के बाद दोनों खूब चर्चा किए, मस्ती किया। शिवाए कम चलने के वजह से थक गया था थोड़ा। मगर मानवी को पैदल चलने की आदत थी,उसने शिवाए को तंग कर दिया प्लीज़...... ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज् चलो न वहाँ; वहाँ से आधा लखनऊ दिखेगा।
शिवाए- मानवी फिर कभी। सब आज ही घूम लोगी क्या?
मानवी - दबे हुए मन से बोली ठीक है मत चलो। वहाँ से मैं देखना चाहती थी और तुम्हे दिखाना। चलो घर चलते हैं।
शिवाए- मानवी का उदास चेहरा देखकर शिवाए ने कहा, अच्छा बाबा चलो।
मानवी- मुझे नहीं जाना, नखराते हुए।
शिवाए- अब बोल रहा न चलो।
मानवी- नही।
शिवाए- अब मेरा मन है।
मानवी- लेकिन अब मेरा बिल्कुल मन नही है। ये बोलते हुए ज्यो मानवी आगे बढ़ी, शिवाए ने मानवी का हाथ पीछे से यू पकड़ कर अपनी और खींचा की मानवी कुछ यूं गोल गोल घूमते हुए उसके इतने नजदीक आ गयी कि दोनों को ही पता न लगा कि हुआ क्या। थोड़ी देर को ऐसा महसूस हो रहा था ,मानो चमकदार संगमरमर गुनगुना रहे हो.... "सुनो ना संगेमरमर कि ये मीनारें
कुछ भी नहीं है आगे तुम्हारे आज से दिल पे मेरे राज तुम्हारा बिनतेरे मद्धम मद्धम भी चल रही थी धड़कन जब से मिले तुम हमे आँचल से तेरे बंधे दिल उड़ रहा है सुनो ना आसमानों के ये सितारे
कुछ भी नहीं है आगे तुम्हारे .!मानवी और शिवाए एक दूसरे को देखते रहे।
मानवी- शिवाए छोड़ो। दुख रहा है।
शिवाए- मानवी के बाजू को कुछ यूं तेज से पकड़ा था कि,उसने धीरे से छोड़ते हुए कहा,ओह सॉरी।
मानवी- मुस्कुरा के जवाब देते हुए बोली,अब चले भी।
शिवाए- हाँ।
दोनों वहाँ सबसे ऊंची इमारत पर पहुंच गए जहाँ से पूरा तो नही मगर मानवी की नज़र से पूरा लखनऊ दिख रहा था। शिवाए- मानवी की खुशी सिर्फ देख रहा था जो इस समय मानवी को और खूबसूरत बना रही थी।
उधर मानवी भी इसलिए खुश थी कि फाइनली शिवाए ने उसकी बात मान ही ली। वो भी शिवाए को गले लगाना चाहती थी। उधर शिवाए भी। दोनों की ख़ुशी एक ही बटखरे पे नप रही थी। मानवी ने बैग से चॉकलेट निकाला और शिवाए को देते हुए कहा, हैप्पी बर्थडे । सोची थी केक ले लू,मगर देरी होने की वजह से ले नही पाई। मानवी ने सर को हल्का सा झुकाते हुए कहा- सॉरी शिवाए मैं तुम्हारे लिए कोई गिफ़्ट भी नही ले पाई।
शिवाए- तुमने आज जो दिया वो किसी गिफ्ट्स से कम नही।
मानवी- मैंने कब गिफ्ट्स दिया।
शिवाए- तुम नही समझोगी । अभी तुम बच्ची हो।
मानवी - हॉ, तुम तो बुजुर्ग हो गए हो। खैर छोड़ो।दोनों ने चॉकलेट खाया,थोड़े चटपटे स्नैक्स लिया और फिर फोटोशूट शुरू हुई जब भी मानवी अपने खुले बालों को क्लच से बांधती, शिवाए चुपके से पीछे से खोल देता।
मानवी - क्या है शिवाए, बार बार।
शिवाए- खुले रहने दो न बाल कितने अच्छे लग रहे।
मानवी- मुस्कुराते हुए कहा क्या,मुझे ठीक से सुनाई नही दिया। दोनों मस्ती के बाद नीचे आ गए।
शिवाए - मानवी मेरे दोस्तो के फ़ोन आ रहे ,तुमको कैब कर दु।
मानवी- शिवाए तुम आराम से जाओ। मैं ऑटो ले लूँगी।
शिवाए- बोला न ,कैब।
मानवी- मैं भी तो बोल रही ,ऑटो।
शिवाए-मानवी तुम उससे सेफ्टी से घर पहुँच जाओगी।
मानवी-अच्छा क्या गारेंटी है?
शिवाए-तुम सवाल जवाब बहुत करती हो। अब कैब कर रहा हूं चुपचाप शांति से घर जाओ।
मानवी- शिवाए बोल रही न तुम जाओ मैं सेफ्टी से घर पहुँच जोउंगी।
शिवाए-तुम न कोई बात नही मानोगी। चलो बैठो बाइक पे।
मानवी- क्यों?
शिवाए- मानवी अब तुम डाँट खाने वाली हो।
ममवी चुपचाप शिवाए के बाइक पर बैठ गई। शिवाए ने उसे आधी रास्ते ड्राप कर दिया।

एक अल्हड़ सी लड़की.....
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तो कभी अल्फाज़ो के स्याह से सरोबोर, तो कभी आकांक्षिक अंदाज में ही, कम शब्दों के मोतियों से हम-आपको पिरो बाँध लेती हैं। मिलिए अपनी कॉफ़ी-चक्कलस दोस्त आकांक्षा से....!

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