घर की मुर्गी




क्सर ससुराल में नई बहू के आते ही उसे जिम्मेदारी के नाम पर अकेले ही हजारों कामो के लिए सौप दिया जाता हैं। बिना यह सोचें कि वह अभी इस घर मे नयी है। हर लड़की को मायके की आजादी से निकल ससुराल के शिकंजे में एक ना एक दिन तो बंधना ही होता हैं। लेकिन इन सब के लिए उसे ही खुद को एडजस्ट भी होना पड़ता हैं।……और इन सब के बीच तो समय लगता ही हैं।

सबके साथ घुलने- मिलने में थोड़ा समय,बात -व्यवहार में थोड़ी परेशानी, अच्छाई-बुराई, पसंद-नापसंद सबको समझने में एक माह तो लग ही जाता हैं। लेकिन इस तरह उसकी खामोशी का फायदा उठाना शायद ही ठीक हो,क्योंकि कोई भी लड़की जब अपना घर परिवार छोड़ आपके नए घर मे प्रवेश करती है तब वो हजारों सपनो को बुनकर आती हैं। लेकिन ससुराल और स्वप्न में जमीन आसमान का अंतर है। बेटी-बेटी ही रहती है, और बहू -बहू ही लेकिन उसके साथ नौकरानी की तरह व्यवहार करना कहा तक ठीक माना जा सकता हैं। यदि उसके साथ भी ना बेटी की तरह बहू ही समझ दो लफ्ज़ प्रेम से बात की जाए तो बहू भी खुद को जल्द ही अपने इस नए घर मे खुद को सेट कर ही लेगी।

इन्ही सब बातों के बीच मुझे एक मुहावरा याद आ रहा,”घर की मुर्गी,दाल बराबर” आज हमारे समाज मे ऐसे अनेको घर है। जहाँ औरतो को महज “घर की मुर्गी”के बराबर ही समझा जाता है। जहां उसका नाता सिर्फ़ रसोई घर से लेकर परिवार के पेट पूजा का ख्याल रखना ही मुख्य भूमिका होती है। लेकिन शायद यह पूरी तरह गलत धारणा है। क्योंकि जहां देश मे पुरुष प्रधान को सदियों से यही शिक्षा दी गयी है,कि उन्हें घर के काम में हाथ बंटाने की जरूरत नही।तो मैं उन पुरषों को ये याद दिलाना चाहूँगी;जब सब काम में आज महिलाएं कदम से कदम मिलाए आपका साथ दे रही है तो आप क्यों  महिलाओं के ही मत्थे सारे काम थोप रहें।

माना पुरूष कमा कर लाते है मगर आज औरते भी कहा किसी से कम है। घर के काम से लेकर ऑफिस हो या निजी बिजनेस सम्भालना,परिवार बच्चों को सम्भालना,उनकी हर छोटी-छोटी खुशियों में खुद की खुशी को अनदेखा करना इतना त्याग कौन सा पुरूष प्रधान करता है,लेकिन फिर भी वे कभी ना ही उफ्फ्फ करती है ;ना ही कोई उनके बारे में सोचता हैं। पूरे घर की जिम्मेदारी सम्भालते – संभालते औरते मानसिक और शारीरिक रूप से अक्सर बीमार हो जाया करती है। इस हालत में भी कोई उन्हें दवा के लिए पूछ ही ले यही बहुत बड़ी बात!

शकुंतला जी के बड़े बेटे की शादी आखिकार बड़े ही धूमधाम से सीता देवी की बड़ी लड़की राशि से तय हुई। कुछ ही दिनों में शादी हो  बहू राशि ने शकुंतला जी के घर कदम रखा। राशि एक ओर जहां मायके में घर की सबसे बड़ी लड़की थी,वही खुदा ना खास्ता ससुराल में भी बड़ी बहू बन गयी। इसे ही कहते है रब ने बना दी जोड़ी। शकुंतला जी का बेटा व्योम बैंक में कार्यरत था,तो उनकी बहू भी कहा बेटे से कम थी,पढ़ी लिखी बीएड है बीएड। घर के सभी नाते रिश्तेदार,मुहल्ले की महिलाएं आपस मे बाते कर रही थी, शकुंतला जी की तो किस्मत ही बुलन्द निकल गयी।

जैसा नाम वैसा ही भाव सुंदर,सुशील,शान्त स्वभाव की हमारी बहू राशि शकुंतला जी खुशी से राशि की बलैया लेते हुए कही और उसके माथे को चूम ली।  सभी बहू को देख तारीफ पर तारीफ कर रहे थे। ये देख शकुंतला जी फूले ना समा रही थी। बहू राशि का घर मे चावल से भरे कलश गिरा के आगमन हुआ। कुछ देर तक तो रश्मों रिवाजो कि घड़ी चलती रही। फिर शकुंतला जी ने अपनी दोनों बेटियों के साथ राशि को उसके कमरे में ले जाने को कहा। राशि अपनी दोनों ननद अंकिता और भावना के साथ अपने कमरे में आ गयी। राशि कुछ देर तक तो बिल्कुल असहज महसूस कर रही थी,बिल्कुल नर्वस लेकिन दोनों ननद ने राशि के साथ जमकर ठहाके लगाए।

परिवार के और भी बच्चे राशि के कमरे में ही आ कर बैठ गए। समय बीतता जा रहा था, राशि रात भर की थकान से बिल्कुल सुस्त हो चुकी थी ऊपर से भारी लहंगा। तभी शकुंतला जी आई और बोली अरे तुम सब यहाँ क्या जमावड़ा लगाए हो ,अरे भाभी सदैव के लिए यही आई है अब कहि और थोड़ी जाने वाली। चलो निकलो उसको भी आराम करने दो। भावना भाभी की मदद कर दो और लहँगा बदलकर बहू तुम थोड़ा आराम कर लो। जी मम्मी जी राशि ने धीरे से जवाब दिया। सभी शकुंतला जी का आदेश पाकर कमरे से बाहर चले गए और भावना और राशि मिलकर लहँगे को बदल आराम कर ने को लेट गयी। भाभी इतना सुंदर लहँगा कहा से लिया आपने- वही दक्खी लाल जी के यहाँ से राशि ने जवाब दिया। बहुत ही मस्त है मैं भी वही से लुंगी। दोनो के बीच बातचीत होते होते कब आंख लग गयी राशि को पता ही ना चला।

तभी राशि को किसी की आहट कमरे में सुनाई दी राशि हड़बड़ा कर उठ कर बैठ गयी।किसी तरह असहज तरीके से पलँग के एक किनारे खड़ी हो गयी। सामने उसका पति व्योम और उसके दोनों देवर पंकज और रुपेश खड़े थे। व्योम कुछ बोलते उससे पहले पंकज ने मजाक के रूप में हँस कर कहा अरे भाभी इतना सम्मान दोगी ना तो दिनभर बस उठक-बैठक ही करती रह जाओगी क्यों व्योम भैया। उन दोनों ने चुटकी लेते हुए भावना को जगाया अरे ओ मोटी उठ शाम हो गयी है कितना शोना है। व्योम भी अपना सामान लेकर वापस से कमरे के बाहर चले गए। राशि अब थोड़ा रिलैक्स महसूस कर रही थी।

तभी शकुंतला जी अंकिता उसकी छोटी ननद के साथ आई -अरे बहू आराम कर ली हो तो अब जल्दी से तैयार हो कर नीचे आ जाना मुँह दिखाई की रश्म है। जी राशि ने सर हिलाकर जवाब दिया। शकुंतला जी जाते जाते अंकिता को सहेज गयी सुंदर से सजा कर लाना अपनी भाभी ताकि सब लोग देखते ही रह जाए। अरे मम्मी भाभी को क्या सुंदर बनाना भाभी तो पहले से ही बहुत सुंदर है।

राशि कुछ ही देर में चुनरी वाली साड़ी पहन कर घूंघट में नीचे आ गयी। सबके पैर छू कर वही बीच में बैठ गयीं। राशि को सबने ढोलक दे दी कुछ देर तो राशि चुप रही फिर उसे जो आता था उसने थाप सुना दी।थाप के साथ ही गुनगुना भी दी सबने जमकर ताली बजाई। फिर शुरू हुई मुँह दिखाई की रश्म। सब ही राशि की तारीफ कर रहे थे। मगर राशि इतनी थक चुकी थी कि उसे ये सब बिल्कुल रास नही आ रहा था। लेकिन फिर भी सबको मुस्कुरा के जवाब देना और लगातार पैर छुना उसके आज कमर ही टूट रहे हो मानो लगातार। जैसे तैसे रिवाज समाप्त हुई कुछ रिश्तेदार आज ही अपने घर को लौट गए। राशि भी अपने कमरे में आ गयी। सबके चहल पहल के बीच वो पैर को सीधा कर लेट गयी।तभी राशि की ननद भावना कमरे में आई और बोली भाभी कल आपके एग्जाम है और आंख मारते हुए बोली ऑल दी बेस्ट भाभी गुड नाईट। राशि कुछ समझती की भावना दरवाजा बंद करके चली गयी। रात को कमर दर्द से राशि इतना रोने लगी कि उसे घर की याद आ गयी। तभी बगल में लेटे पतिदेव व्योम की नीद खुल गयी क्या हुआ राशि – राशि चुप होकर बोली कुछ नही बस हल्का कमर में दर्द है लेटा नही जा रहा। क्या यहाँ आयोडेक्स या वॉलिनी है। हॉ मैं अभी देता हूँ पतिदेव झट से वार्डरोब से आयोडेक्स निकाल राशि की ओर बढ़ा दिए।राशि लगा कर फिर लेटी तो सो ही गयी। 

अगले दिन राशि सुबह सुबह ही नहा धोकर नीचे आ गयी,मंदिर में हाथ जोड़ वो दो मिनट तक मम्मी जी को शांत हो कर देखती रही। शकुंतला जी गुनगुनाते अंदाज में फूलों की क्यारियों को ऐसे सींच रही थी मानो पूरे घर की देखभाल भी ऐसे ही कि हो। पापा जी बाहर गार्डन में बैठकर पेपर की वॉट लगा रहे थे,सालो के पास खबर कम अब विज्ञापन ज्यादा रहता है,मौसा जी भी हा में हा मिलाए पड़े थे और एक साथ बैठकर चाय की चुस्की के साथ भड़ास निकाल रहे थे।

तभी मम्मी जी की नज़र मुझपर पड़ गयी ” अरे राशि बहू तुम कब आई।सोई की नही ठीक से। मुझे लगा तुम भी भावना और अंकिता की ही तरह सुबह देर से ही उठती हो।” बोलते हुए मम्मी जी मेरे नजदीक आई और हाथ पकड़ते हुए बोली-” बहू आज तुम्हारी पहली रसोई है। वैसे तो मैंने तुम्हारे खाने की तारीफ बहुत सुनी है मगर अब चखने के दिन आ गए है  इतना कहते हुए वो मुस्कुराई। ” मैं चुपचाप उनकी बातो पर सिर हिला दी। मेरा सिर हिलाना की मम्मी जी ने स्ट से कहा बहू आज तुम क्या बनाओगी। शुरुआत तो पहले रसोई की मीठे से होती हैं। जिससे परिवार में सदैव रिश्ता मीठा मीठा रहे। ऐसा करो तुम हलवा या खीर बना दो। जी राशि ने शकुंतला जी को सर हिलाकर जवांब दिया।
  
   तभी ननद भावना आई और मेरा हाथ पकड़कर बोली गुड मॉर्निंग भाभी।चलिए आपको  आपकी रसोई से परिचित कराती हु। ये है आपकी रसोई और ये रहा सारा सामान सूजी का हलवा बनाने वाला और खीर बनाने वाला।आल द बेस्ट भाभी! इतना बोलते हुए भावना किचन से बाहर चली गयी राशि बिल्कुल अकेले ही किचन में कुछ पल तो खड़ी थी मगर मानो उसे लाइटर भी चलाने ना आता हो। किसी तरह गैस जला कर उसने ज्यो ही कड़ाही चढ़ाई उन्ही बीच शकुंतला जी रसोईघर में झाँक कर बोली अरे बहू घी कम डालना तुम्हारे ससुरजी को कम देना है। उनका इतना बोलना की कड़ाही में घी थोड़ा ज्यादा ही गिर गया। हे भगवान ये क्या हो रहा। अब क्या करूँ। सब क्या कहेंगे मुझसे। आजतक तो सिर्फ चार लोगों का ही खाना नाश्ता बनाई हु और यहाँ दस लोगो का कैसे बनाऊ। उसने अग्नि देवता को प्रणाम करते हुए वापस से शुरुआत की।पहले खीर चढ़ाई और फिर दूसरे तरफ हलवा। इतना सा करने में उसे आधा एक घण्टा लग गया। फिर दुबारा शकुंतला जी आई और  बोली कोई चीज चाहिए तो नही। कोई मदद चाहिए तो बोलो शकुंतला जी ने मुस्कुराते हुए बोला। अब मैं नई नवेली क्या बोलती भला किसी से, की मदद नही चाहिए, मगर एक लोग तो यही रहिए । लेकिन ससुराल में पहले दिन कौन लड़की भला बोल पाती है।राशि अंदर ही अंदर ऐसा महसूस कर रही थी कि जीवन मे उसने कभी भी काम नही किया है। हाथ शुरू में तो काँपने लगे,लेकिन फिर राशि पूरे हिम्मत के साथ किचन में खुद का माइंड मेकअप की और किसी तरह दोनो चीजे बनकर तैयार कर दी।

सासूमाँ और दोनो ननद किचन में आई और बोली वाह क्या खुशबू है माँ। शकुंतला जी दोनो चीज बना देख खुश हो कर बोली अरे वाह दोनो ही चीज बना दी।मुझे लगा पता नही तुमसे होगा कि नही।वाकई,जैसा नाम वैसा ही काम। ये सब देख दिल प्रसन्न हो उठा।  अच्छा अंकिता भावना दोनो मिलकर जल्दी जल्दी सबके लिए प्लेट में हलवा और कटोरी में खीर निकाल दो। इन्ही बीच शकुंतला जी ने अपने गले मे डली हुई चैन को निकाल बहू राशि को पहनाते हुए बोली ये खानदानी चैन है मेरी सास ने मुझे पहली रसोई पर दी थी। और उनकी सास ने उन्हें। अब ये तुम्हारे लिए है। क्योंकि अब से रसोई की मालकिन तुम हो। बाकी कामो के लिए तो नौकर चाकर लगे है मगर खाना हम बहू के हाथ का ही खाएंगे। राशि उनकी बात सुनकर मुस्कुरा दी।

अच्छा बहू जाओ तुम ऊपर आराम करो,अभी भावना तुम्हे नाश्ता ऊपर ही पहुँचा देंगी। जी राशि सर हिलाकर ऊपर आ गयी। राशि का सारा दिमाग हलवा और खीर पर लगा था न जाने सबको कैसा लगा। पतिदेव व्योम राशि को देखकर बोले अरे तुम्हारा दर्द कैसा है अब ठीक है। हा तो आराम करो घूम क्यों रही। राशि दो पल को व्योम को देखती रही और व्योम सीढी से नीचे उतर गए। नीचे से सभी की आवाज आ रही थी,अरे वाह !क्या लाजवाब रबड़ी जैसी खीर बनी है मजा आ गया। तभी भावना आई और हलवा खीर ले कर बैठ गयी और गाल को खीचते हुए बोली लाजवाब बनाया है आपने। इतना सुन राशि मुस्कुरा दी। 

यही से शुरू हुई राशि के जीवन का नया सफर। जिस पहले सफर में वो पास हो जाने से थोड़ी खुद को सहज महसूस कर रही थी। वक्त बीतता गया और दिन हँसते बतियाते निकल गया। तभी माँ ने बताया बहू कल दावत है।तुम्हे सबके लिए अपने चटख हाथो से खाना बनाना होगा। राशि मन ही मन सोची दस पंद्रह ही लोग होंगे ज्यादा से ज्यादा। लेकिन शकुंतला जी ने जब बताया कि कुल पच्चीस लोग दावत पर आ रहे है हमारी बहु के हाथ का खाना खाने। ये सुनते राशि के होश उड़ गयी पच्चीस लोग का खाना। फिर उसे लगा जब इतने लोग आ रहे तो सब उसके साथ मिलकर हाथ भी बटाएंगे ही।


राशि पूरी रात इसी में बात में उलझी रही कि इतने लोगो के लिए क्या बनाए वो। अगली सुबह राशि जब नहा धोकर आई तो राशि मंदिर में हाथ जोड़कर ज्यो पलटी शकुंतला जी बोली-कितनी संस्कारी बहू है हमारी। राशि ज्यो पैर छुई तो आशीर्वाद देते हुए शकुंतला जी बोली, अरे बहू कल बताई थी ना आज घर पर कुछ मेहमान आ रहे है। तुमने क्य- क्या सोचा बनाने को। राशि बिल्कुल समझ नहीं पा रही थी कि अब क्या बोले वो सासु माँ से। उसने दो पल रुक कर बोला मम्मी आप बता दीजिए वही बना दूंगी।

शकुंतला जी ने शुरू किया खाने का मेन्यू बताना- सब्जी में दमालु, मटर-पनीर की सब्जी,पूरी,पुलाव,बूंदी का रायता,सलाद औरररर…. मीठे में तुम चाहो तो खीर बना लो या रहने दो मीठे में हमलोग रसगुल्ला चला देंगे बहुत सारा रखा हुआ है। जी राशि इतना सब सुनकर चौंक गयी, फिर सोची इतना चाहने वाला ससुराल मिला है। इतने लोग के खाना बनाने के लिए कम से कम दोनो ननद में से एक भी साथ रहेंगी तो सब झटपट हो जाएगा।

राशि किचन में गयी और सारे सामान ढूढने की कोशिश करने लगी। राशि सोचने पर मजबूर हो गयी कि कैसे वो इतना कुछ बनाएगी। राशि अभी सोची रही थी कि कैसे किसी को आवाज दू ,तभी राशि की ननद भावना किचन में आ गयी। भाभी क्या खोज रही हो आप। वो खाना बनाना है न तो वही सारा सामान ढूंढ रही। अच्छा हुआ आप आ गयी मुझे तो कुछ मिल ही नही रहा। ह्म्म्म क्योंकि अभी आप नई है ना भावना मुस्कुराते हुए बोली। और झट से सारा सामान उसने दो मिनट में रैक पर रख दिया । क्या क्या बनना है। राशि ने बताया उसकी ननद ने तुरन्त सारे सामान इकट्ठा कर निकाल दिया। और किचन से चलती बनी। हर कुछ मिनटों पर राशि की दोनो ननद आकर किचन के दरवाजे से पूछती अरे भाभी कोई काम हो तो बताइए,राशि के बिन जवाब सुने मुस्कुरा कर चल देती। राशि में ही मन सोचती की कैसा परिवार है। अगर इन लोगो को मेरी मदद ही करनी होती तो बिन पूछे ही मिलकर काम करा देती। लेकिन इन लोगो को तो फॉरमैलिटी करनी है। करते करते राशि लगभग सारे खाने बना चुकी थी,बस पूरी बेलने को था। तभी घर पर पतिदेव व्योम आ गया और राशि को अकेले किचन में देखकर अपनी बहनों से बोले अरे कम से कम अपनी भाभी का हाथ तो बटालो। भाई की बात सुनते ही दोनो बहनों ने एक सुर में कहा हमे तो बड़ी अच्छी भाभी मिली है जो कोई काम ही नही कराती। इतनी प्यारी भाभी किसको मिलने वाली। ये सब सुन राशि दुखी हो गयी कि कैसी बहने है जो भाई के आगे भी मुकर  गयी।

सबको अब बस खाना – खाने की बारी थी,और राशि की दोनो ननद सबको सर्व करती गयी; सभी लोग खाने की तारीफ कर रहे थे। इधर राशि किचन में खड़ी खड़ी बिल्कुल थक चुकी थीं। उसे अब सिर्फ़ बैठने की इच्छा थी। लेकिन कहा आसान होता है ये सब ससुराल में,उन्ही बीच बीच मे कभी मासी ,चाची,कभी कोई कभी कोई आ ही जाता और उन्ही बीच में सबका पैर छूना सबकुछ एक आजाद घर की लड़की के लिए मुश्किल होता जा रहा था। आखिरकार ,किसी तरह वक़्त बीतता गया,सासूमाँ बड़ी खुश की उनकी बहू की तारीफ हुई। लेकिन बहू की स्थिति का अंदाजा महज सिर्फ और सिर्फ राशि ही लगा सकती थी कि वे कितनी थक चुकी हैं। इस समय राशि को बिस्तर की याद आ रही थी। सासूमाँ ने राशि को 501 थमाते हुए बोला तुम्हारा नेग बहू। राशि को लगा कि जैसे महराजिन को घर पर पैसे मम्मी दिया करती थी,आज ठीक वैसे ही उसे उसकी सास ने उसे दे दिया। सबके जाने के बाद राशि थोड़ा बहुत खाना खाकर अपने कमरे में चली गईं। बिस्तर पर पड़ते उसके आंखों से आँसू छलक गए। कैसा परिवार है। फोन उठाकर देखी तो घर से छः मिस्डकॉल पड़े हुए थे। उसने फोन मिलाकर बात किया। सबका हालचाल लेकर रख दी। राशि समझ चुकी थी जिंदगी की असली राह ससुराल है, जहाँ हजारो लोग के होते हुए भी अकेली हूं। सोचते सोचते कब सो गई उसे पता ही ना चला।

अब राशि की हर सुबह इन्ही सब मे कब बीत जाता उसे महसूस भी ना होता। ऊपर से शकुंतला जी हर बात पर ये कहती ये घर अब सिर्फ तुम्हारा है। इसे तुम्हे ही अब सवारना है। राशि बिना जवाब दिए काम करती रहती। रोज जब हर कोई सोता रहता तभी राशि की सुबह हो जाती।देवर का कॉलेज, पतिदेव का आफिस,ननद का स्कूल, और सुबह का सबका नाश्ता।हर रोज राशि अपने परिवार के लिए जल्दी उठती और अपने कार्य मे जुट जाती। अब आप कहेंगे इसमें नया क्या है? यह तो हर गृहिणी की कहानी है।

जिसकी दिनचर्या ही परिश्रम से शुरू होती हो और परिश्रम पर बन्द।  यही तो है महिलाओं का काम जो मर्द प्रधान को बहुत ही आसान लगता है।मगर कभी निभा कर तो देखिए जनाब एक दिन में ही एक महिला का परिश्रम समझ आ जाएगा। रोज सुबह का कार्य पूरा करने के बाद, घर में झाड़ू-पोछा,धूल को झाड़ना-पोछना,कमरे को ठीक करना,घर के राशन खरीदने की लिस्ट बनाना,सबके कपड़े धोना और उसे सुखाने के लिए छत तक कि दौड़, यही तो है अब राशि की जिंदगी का हिस्सा। वक्त की सूई अपने हिसाब से दौड़ लगा रही तो वही,राशि के शादी को देखते देखते एक साल गुजर गए।

उन्ही बीच घर मे एक साथ दो खुशिया आई पहली राशि प्रेग्नेंट थी तो दूसरी भावना की शादी। राशि को लगा शायद अब तो आराम कुछ दिन कर ही लूंगी मगर उन्ही बीच घर मे भावना की शादी पड़ने से  राशि के लिए पूरा दिन ही बिल्कुल हैट्रिक हो जाता है। लेकिन कौन सा घर पोते की आस में बहू को आराम नही देता। शकुंतला जी ने भी राशि के कामो को कम करने का प्रयास किया कुछ दिन के लिए बाई और महराजिन लगा ही दिया। लेकिन बिन महिला आँगन सुना है वाकई यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है राशि पर दिनभर की दौड़ अभी भी कहा कम थी घर की बड़ी बहू जो ठहरी।
              वक़्त बिता और भावना की शादी भी किसी तरह राशि ने बिता ही डाला।वक़्त भी अपनी रफ्तार पकड़े दौड़ रहा था,कुछ ही महीनों में राशि का माह पूरा होने को हो ही गया और उसकी डिलीवरी हुई मुबारक हो बेटी हुई है। राशि यह सुन उदास हो गयी कि मम्मी जी को तो चिराग चाहिए था।

बेटी की आने की खुशी जहाँ एक ओर सबको थी वही शकुंतला जी को बिल्कुल नही। वक़्त बिता और शकुंतला जी का गुस्सा भी बदला आखिर उन्होंने एक हफ्ते वाद अपनी लक्षमी को स्वीकार ही लिया वो भी ये बोलते हुए की जल्दी अपनी मम्मी को बोलना कि तुम्हारे लिए एक भैया लेती आए। सभी उनकी ये बात सुनकर खिल खिला दिए मगर राशि सिर्फ मुस्कुरा कर मम्मी जी की वो फरमाइश सुन रही थी जो उसके हाथों में नही बल्कि भगवान के हाथो में होती है।  बेटा बेटी तो एक स्वरूप है।ना तो बेटी कम है ना बेटा कम है शकुंतला जी ससुरजी ने सासूमाँ को टोकते हुए कहा। हमारी भावना अंकिता व्योम या इन दो नालायको से कम है क्या। अरे बहू अच्छा हुआ नालायक जन्म न लिया वरना ये तीन मिलकर उसे भी खराब कर देते।

देखिए जी पोती होने का घमंड ज्यादा ना करो,पोती भी तो मेरे नालायक की वजह से हमारे आँगन में है सासूमाँ ससुरजी से ठुनकते मिजाज में बोली और पोती का नाम झट से रख दिया, गौरी। गौरी गौरी गौरी यही गूंज रहती हर जगह घर के हर कोनो से।

समय के साथ गौरी बड़ी होती गयी और मेरी आफ़ते बढ़ती गयी। अब घर में एक हिस्सा ऐसा था जिस का ख्याल जायद से ज्यादा मेरे ऊपर ही डिपेंड था। गौरी को दूध पिलाना,उसका ख्याल रखना खाना पीना। सब कुछ मुश्किल था। गौरी की पूजा पाठ पे भी सबकुछ मुझे ही तो निभाना था। निभाते निभाते सासूमाँ की हर बात को अमल करते करते में भी थक सी रही थी। शादी होने के बाद सुनती आई थी सबकुछ बहुत अच्छा होता है लेकिन उस अच्छे की कड़ी ये है। जिसे मैं निभाई जा रही मगर निभ ही नही रही।

काश घर के किसी कोने से मेरे लिए पुकार आए की बहू तुम भी आराम कर लो। ना नीद पूरी होती है ना गौरी की भूख।पूरे दिन जगना रात रात भर गौरी का जगना उसके पीछे मुझे भी जगना उसके बाद सुबह के काम,परिवार कितना मुश्किल का सफर है लड़कियों का । फिर भी सबको उसमे कमी दिख ही जाती हैं।

वक़्त के साथ गौरी भी बड़ी होने लगी। और मैं बिल्कुल निःसहाय।
जहाँ एक ओर बाकी घरवाले चैन की नींद सोते होते वही राशि ना तो नीद पूरी ले पाती ना ही आराम। उसके पूरे दिन की भूमिका महज कमरे से किचन,किचन से कमरा हो गया था। कभी  कभी राशि जब किचन में खाना बनाती रहती तो तभी गौरी सो कर उठ जाती और उसे ना पाकर रोने लगती। ज्यो राशि किचन को जैसा तैसा छोड़ गैस को कम कर कमरे में गौरी के पास भागती त्यों ही उसे ध्यान आ जाता कि गैस बंद करना था और वो गैस बंद करने के लिए दौड़ पड़ती। यही कारण है कि जब तक गौरी सोती रहती राशि खटाखट अपने कामो को निपटाने में जुटी रहती लेकिन कहा इतना आसान होता है अकेले सुपर व्यूमन बनना।

वक्त बीतता गया,गौरी भी समय के साथ बड़ी हो गयी। राशि की परेशानियां थोड़ी कम नही बल्कि और दिन पर दिन बढ़ती गयी। गौरी के पसन्द का लंच बनाना। उसकी पसन्द को ध्यान देना,उसकी हर छोटी छोटी बातों को पूरा करना जैसे राशि का ही तो काम हो। घर के बाकी सदस्य सिर्फ फरमाइश करते। शादी के बाद भावना अक्सर यही पड़ी रहती दो- दो, तीन – तीन महीने। उसपे भी कभी कोई यह नही सोचता कि भाभी भी थक जाती होगी। बल्कि भावना ये जरूर गौरी से कहती तुम्हारी मम्मा सुपर व्यूमन है। गौरी खिलखिला पड़ती।

व्योम उन्हें तो कोई फर्क ही नही कि मैं कैसे महसूस करती हूं। या मैं भी थक जाती हु। या मुझे भी आराम की जरूरत है बल्कि उल्टा कहते- फिरते ,ओफ्फोहह…राशि तुम हर काम में निहायती ढीली होती जा रही हो। कछुए से भी ज़्यादा सुस्त!  हो क्या गया है तुम्हे एक समय तुम हर काम मे एक्टिव रहती आज तुम बिल्कुल सुस्त होती जा रही। व्योम ने पोंछे की बाल्टी को पाँव से धकेलते हुए बाहर निकलते हुए कहा- अच्छा आज मुझे देर होगा आने में तुम गौरी को स्कूल से लेती आना। राशि सोचने लगी क्या गौरी सिर्फ और सिर्फ मेरी अकेले की जिम्मेदारी है। व्योम अपने दोनों भाईयों को भी तो लाने को सौप सकते है। लेकिन राशि ने कुछ भी जवाब नही दिया। अब राशि की जिम्मेदारिया दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी। उन्ही बीच शकुंतला जी सीढ़ियों से फिसल कर गिर पड़ी अब क्या हुआ सोने पर सुहागा। राशि के लिए अब एक और आफत बढ़ गयी। शकुंतला जी की मालिश और रोज हर काम से खाली हो कर उन्हें एक्सरसाइज करवाती। यही सब करते कराते राशि के शादी को अब तक नव साल गुजर गए। लेकिन राशि ने कभी उफ्फ भी ना कि,हर कोई उसे सुना कर निकल जाता लेकिन राशि चुपचाप सुनती रहती।

एक रोज उसने व्योम से इस बात पे बात करने की कोशिश भी की तो व्योम ने उल्टा जवाब दिया तो कौन करेगा ये सब माँ। अरे जब उन्हें ही करना था तो शादी ही क्यों करती। तुम्हे किस चीज की जरूरत है बोलो मैं तुम्हे दिला दी। राशि ने व्योम से कुछ भी कहना ठीक नही समझा। वो समझ चुकी थी अब उसकी जिंदगी इन्ही बंधनो में बंध चुकी थी।राशि एक रोज खुद को बिल्कुल बीमार महसूस कर रही थी। उसने सब काम निपटा गौरी को सुला कर अपने घर अपनी बहन से बात करने लगी। बात ही बात में राशि फूट फूट कर रोने लगी। ये देख उसकी बहन ने उसे एक रास्ता दिया क्यों नही तुम कुछ दिन के लिए यहाँ आ जाओ। राशि जानती थी इतना आसान नही इस घर से बाहर निकलना।

एक रोज फिर उसने व्योम से कहा व्योम में थक जाती हूं, मुझे भी आराम चाहिए। व्योम ने शकुंतला जी की तरह ताने मारते हुए कहा काम ही क्या है तुम्हे। करती ही क्या हो जो रोज एक ही बात लेकर बैठ जाती हो राशि। “शादी के दस साल गुजर गए व्योम मगर आप अभी तक ये नही जान पाए कि मैं करती क्या हु “राशि ने व्योम से कहा। हा वैसे भी आप कहा से जानेंगे ये सब। जब करना पड़े तब समझ आता है कि मैं करती क्या हूँ, राशि ने तय कर लिया आज जो भी हो जाए वो व्योम को समझा के रहेगी कि वो क्या करती आ रही है इन दस सालों से।

तो सुनिए व्योम आपकी बीवी करती क्या है। जब पूरा घर सोता है तब आपकी पत्नी उठ कर सारा काम पूरा करना शुरू करती है। घर के नाश्ता पानी से लेकर खाना पीना तक ,इतना ही नही सबकी फरमाइश को भी पूरा करती है। गौरी को स्कूल से लाना छोड़ना ,घर पे उसके होमवर्क पूरा कराना,और सासूमाँ की मालिश। और आपके जाने के बाद …का दॄश्य पता है कैसा होता है नही पता जानिए वो भी की क्या होता है उसके बाद…!

उसके बाद जिस वक़्त आप  उलाहना देते हुए घर से आफिस के लिए निकलते है। आपकी गाड़ी की चाभी ,खाने का डिब्बा और रोज के तरह ये याद दिलाना गौरी को आप लाएंगे या मैं । आपके जाने के बाद घर में छूटा हुआ कार्य पता है क्या होता है टेबल पर पड़ा फड़-फड़ाता अख़बार जिसके ऊपर चाय का कप रखा होता है। बाथरूम में पड़े आपके और गौरी के  गीले चड्डी-बनियान और ठीक से बंद ना किया हुआ नल जिसकी टोंटी से बूँद-बूँद गिरता पानी। बिस्तर पर पड़ा गीला तौलिया और  हेयर-ऑयल का ढक्कन खुला हुआ बोतल फेका रहता है जिससे ना जाने कितना तेल हर रोज बिस्तर पर गिरा रहता है। जिसे साफ करने में घण्टो मेहनत लगती है। अलमारी से निकाली हुई तीन-चार जोड़ी पैंट-शर्ट जिनमें से एक जोड़ा ही आप पहन कर जाते है बाकी बिस्तर पर ही फेंक निकल जाते है।गौरी के द्वारा चलाई गयी तेज़ आवाज़ में टी.वी. जिसपर गौरी के पसन्द के कार्टून नेटवर्क चलता रहता है।

और मैं राशि आपकी पत्नी जिसे ये सब रोज़ की तरह व्यवस्थित करती आ रही इन दस सालों से जिसे आज तक किसी को ना दिखा। कभी सोचा आपने की कैसे ये घर हर दम व्यवस्थित दिखता है। नही सोचा क्यों सोचियेगा ये तो औरतो का काम है ना बोल दीजिए। राशि की आँखे इतना सबकुछ बोलते बोलते गला भर आया और आँखें छलक पड़ी।
अभी इतना ही नही है और सुनिए…..हर रोज आपके जाने के बाद फर्श पर घण्टो की मेहनत कर आपके घर को चमकाती हूँ। सबके जूतों के बने निशानों पर घण्टो पोंछा लगा कर पोछती हू।क्या आपने कभी सोचा है कि बिस्तर से आपका गीला तौलिया कैसे गायब हो जाता है, हर शाम आपका गन्दा कमरा कैसे साफ होता है, हर सुबह फ्रिज को साफ करना व दूध  दही  और घर के बाकी राशन को देखते रहना उनकी लिस्ट तैयार करना बाजार से आए सामान को चेक करना कि कुछ छूटा तो नही। फिर पाई पाई पैसे को जोड़ना कितना किसमे लगा क्या बचा। उसमे गौरी की पढ़ाई को भी ध्यान देना। कभी सोचा आपने या आपके परिवार ने हर दिन अलग अलग फरमाइश का नाश्ता, दोपहर और रात का खाना कैसे बदलता है। मेज को खाने से कैसे अकेले सजाती है राशि नही ना क्यों क्योंकि आपके सारे कार्य जो बने बनाए है। खुद को कहा कुछ करना है। ओह्ह करते तो है एक बहुत बड़ा काम आप सभी मिलकर मुझे हर पल सुननाने का काम। हर काम मे कमी निकालने का काम। बस व्योम मैं आपसे इतना कहना चाहती हूँ कि मैं घर जा रही हु कुछ दिनों के लिए। मैं भी रिलैक्स होना चाहती हूँ, व्योम ने राशि की बात को काटते हुए कहा तो घर कौन देखेगा। हमारे सारे काम ,टाइम पर नाश्ता खाना, गौरी का स्कूल भी तो छूट जाएगा। मैं अकेले जाउंगी व्योम गौरी यही रहेगी। उतनी छोटी बच्ची कौन सम्भालेगा। क्यों गौरी आपकी बेटी नही या इस परिवार की बेटी नही। देखिए व्योम मैं कुछ दिनों के लिए जाना चाहती हु आप माँ से बात कर लीजिए। रही बात गौरी तो मैं उसे साथ लिए जाउंगी मगर मैं अपने घर जाना चाहती हूं। व्योम इतना सबकुछ शांत होकर सुनता रहा और उसने सुबह होते ही राशि से माफी मांगी मगर राशि भी अडिग रही। व्योम की बातों में इस बार वो जरा भी ना पिघली। व्योम समझ चुका था राशि इस बार नही मानने वाली ।

माँ माँ… हा बोल व्योम से शकुंतला जी ने पूछा । अरे माँ राशि कुछ दिनों के लिए अपने घर जाना चाहती है। अरे क्यों अचानक से ,राशि यहाँ कौन देखेगा।अरे माँ राशि से क्या पूछ रही हो अगर जाना चाहती है तो क्या दिक्कत है व्योम ने मॉ को टोकते हुए कहा। राशि किचन में खड़ी हो मुस्कुरा रही थी। एक लम्बे अरसे के बाद राशि अपने घर जाने वाली थी। बहुत खुश थी।
          तभी सासूमाँ ने व्योम से पूछा अरे ठीक है तो कब तक आना है। राशि बहू कल चली जाओ और एक दिन रह आ जाना। राशि यह सुनते उदास हो उठी,लेकिन मन ही मन ये सोचने लगी कि आप पहले जाने तो दीजिए मैं जल्दी आऊंगी ही नही मम्मी कुछ दिन आप लोग भी जानिए की राशि इस घर की क्या है। व्योम के आग्रह करने पर और ससुरजी ने सुनते ही कह दिया अरे जाने दीजिए ना शकुंतला जी बहू भी तो एक जगह रहते रहते बोर हो गयी होगी। अजी आप भी खूब है मैने मना कब किया बस बहू जल्द ही आ जाए वरना घर कौन देखेगा। क्या बात करती है आप शकुंतला जी बहू के पहले इस घर की बहू आप भी तो रही है और अपने घर को बखूबी सम्भाला है इतना क्या रोक टोक बहु तू अपना सामान पैक कर ले कल ही व्योम तुझे पहुचायेगा। जी पापा राशि ने जवाब दिया। राशि आज बहुत खुश थी। कि कितनो सालो के बाद अपने घर के दहलीज पर कदम रखेगी। खुलकर हँसेगी बोलेगी। सोएगी,सास लेगी। राशि ने रात में ही चना भिगो दिया और सुबह उठते ही चने की दाल का भरवा पराठा, खीर,आलू टमाटर की सब्जी बना दी। सबको एक एक वार चाय भी पिला दी और तैयार हो गयी। भावना ने राशि को इतना खुश होते देख पूछा अरे भाभी आज तो आप बहुत खुश हो कोई खुशी की बात है क्या। हा मैं अभी घर निकल रही अपने कितने सालो बाद अरे अचानक । नही कल मम्मी जी से पूछी तब जा रही हु। ह्म्म्म भावना ने दुखी मन से कहा कब आएंगी आप। देखिए दो दिन रुक कर। भावना खुश हो गयी राशि भावना की भावनाएं समझ गयी कि उसके मन मे क्या चल रहा है। तभी पतिदेव ने आवाज लगाया अरे राशि निकलो भाई देर हो रहा। जी आई,राशि ने शकुंतला जी का चरण स्पर्श किया और पापा जी का तो शकुंतला जी ने तुरंत कहा जल्दी आना बहु तुम्हारे बिन ये घर सुना हो जाएगा; जी मम्मी राशि ने जवाब दिया।

इधर राशि अपनी बेटी के साथ अपने घर आ गयी और सबसे सालो बाद मिल बहुत खुश हो गयी। व्योम के जाते राशि बहुत खुश हुई और फिर क्या शाम के खाने पर उसने इन दस सालों की कहानी दस मिनट भी ना लगाते हुए सुनाने लगी। सभी चकित रह गए। इतना सीधा परिवार और इस तरह की हरकत। राशि ने दो दिन रहकर जाना चाहा रुकना तो वो भी चाहती थी लेकिन उसने फॉरमैलिटी में फोन करके पूछा कुछ दिन और रुक जाऊ अब बिचारे पतिदेव व्योम शांत थे ठीक है रह जाओ। लेकिन घर को तुम्हारी बहुत जरूरत है राशि इन दिनों। अरे ऐसे कैसे आप सब तो वही है मैं नही हु तो भी क्या बिगड़ रहा। घर पे सब ठीक है। व्योम ने दबे मन से कह दिया हा। ठीक या बाद में बात करती हूं। राशि इन दिनों इतनी कमजोर हो चुकी थी कि सबने उसका हीमोग्लोबिन चेक करवाया तो हीमोग्लोबिन बहुत ही कम निकला डॉक्टर ने आराम को लिखा और खूब खाने को कहा। राशि बताने लगी वहां तो मैं पानी तक सही से पी नही पाती हूँ,भूल जाती हूं सारे कामो मे। इतना बोल उसकी आंखें छलक गयी। करते करते राशि एक हफ्ते किसी तरह अपने घर रुकी रही।

एक दिन राशि को लेने उसके घर से व्योम और देवर जी आ गए अब तो राशि चाह कर भी रुक ना सकी दबे मन से वापस अपने ससुराल आ गयी। इधर जब वह ससुराल आई तो उसने देखा पूरा घर अस्त-व्यस्त बिखरा पड़ा है। किचन में उसकी छोटी ननद अंकिता खाना बना रही थी और शकुंतला जी लगातार उसकी मदद कर रही थी। राशि ने चुपचाप अपने कमरे से ये सारा दृश्य देखती रही । अगली सुबह राशि जल्द ना उठी और उसे किचन से भावना के बड़बड़ाने की आवाज आई। अरे जब भाभी गयी तो ठीक ठाक थी वहां जाते ही बीमार पड़ गयी। तभी ससुरजी टोकते हुए बोले क्यों वो इंसान नही। तीन सौ पैसठ दिन तो इस घर मे राशि ही दिखती है हर जगह बीमार है तो आराम कर लेने दो कुछ दिन। भावना चुप हो गयी और शकुंतला जी के साथ मिलकर खाना बनाने लगी। दो दिन तक घर का यह स्वरूप राशि को सकून दे रहा था कि तभी पापा जी ने बड़ी जोर से बरामदे में वैठे बैठे कहा- अजी शकुंतला जी जरा पकौड़े तल दीजिए तो मजा ही आजाएगा। शकुंतला जी ने तेज से गुस्साते हुए पापा जी को जवाब दिया- अजी यहाँ गर्मी में खड़े खड़े पसीना टपक रहा और इनको पकोड़े चाहिए। पकौड़े की तरह तलने की मुझे जरूरत नही। खड़े खड़े पैरों में दर्द।अरे भग्यवान पकोड़े और आपके पसीने से क्या लेना देना। अच्छा तो जरा किचन में खड़े हो कर आधे घण्टे  काम कर लीजिये समझ आ जाएगा पकौड़े की कीमत। शकुंतला जी ने पापा जी को जवाब देते हुए कहा। पापा जी जोर से ठहाके लगाते हुए बोले वाह भाई वाह दो रोज खड़े होने पर तुम सब इतनी उफ़्फ़ह.. कर लिए लेकिन क्या किसी ने राशि बहू के बारे में सोचा बिल्कुल नही। या कभी राशि बहू ने ये कहा किसी से की खुद के फरमाइश को खुद से पूरा करिए। या कभी बहु ने ये कहा कि मुझे गर्मी लग रही ।बल्कि सदैव उसे सबकी पसन्द का ख्याल रखते हुए बढ़िया भोजन बना कर खिलाते देखा है। कभी भी उसे कुसी को ताना मरते बड़बड़ाते नही देखा। ना ही कभी उसे किसी की बुराई करते पाया। सदा जी जी मे सर हिलाने वाली बहु सबको नही मिलती शकुंतला जी। आज आप की बेटियां किचन में खड़ी हो गयी तो आपको समझ आया कि किचन में पसीना भी टपकता है। अगर इस घर मे अब मिलकर कार्य करे तो बहु भी भला क्यों बीमार हो। राशि ये सब अपने कमरे से सुन रही थी उसकी आंखें भर उठी। तब शकुंतला जी ने तय किया आज से सभी लोग मिलकर कार्य को निपटाएंगे ताकि बहू पर बोझ ना बना रहे। राशि ने उसी दिन पापा जी के पसंद के पकौड़े तल उन्हें खिलाया।  उस दिन से सभी को समझ आ गया कि राशि भी इस घर का वो हिस्सा है जिसने पूरे घर को सँवार रखा है। बस इतनी सी थी ये लघु कहानी जिसमे घर घर की मुर्गी की व्यथा  दिखाने की कोशिश की हु। राशि जैसी अनगिनत बहुए इस मकड़जाल में पिसती रहती है मगर राशि जैसी बहु मिलना सबके नसीब में नही।

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