ससुराल के व्यंग्यबाण | कहानी - 10


बड़ा आया जोरू का गुलाम । कोई कहेगा कि यह हमारा ही बेटा है,हाय देखो तो भला कैसे बहू की गुलामी कर रहा। जरको शर्म लिहाज ना है इसको। दुनिया देखेगी तो क्या कहेगी। मम्मी जी बरामदे में बैठे बैठे तब तक बड़बड़ाती रही जब तक पतिदेव किचन में चाय बनाते रहे। मेहरा कहि का। देखो तो कितना मेहर भता है। सुन कर भी माँ को अनसुना कर दे रहा। इसी माँ ने जन्म दिया है तुझे तभी तू आज उस करमजली की सेवा कर रहा।

अरे माँ बस भी करो अब। कितना बोलोगी श्रापोंगी। ऐसे ही तुम बहु को भी गाली देती होगी रोज। पतिदेव किचन से ही गुस्से के कड़क आवाज में बोले। बड़ा आया! माँ ने नाराजगी से बोला - बोली बोलने वाला। तुम्हारे बाप कभी जोरू के गुलाम ना रहे एक तू है। माँ अगर वो आज बीमार है तो मैं किचन में सिर्फ चाय बना रहा तो मैं जोरू का गुलाम हो गया।तुम भी ना माँ हद ही करती हो। दिमाग बिल्कुल खराब हो गया है तुम्हारा। पागलो की तरह बतिया रही। पतिदेव ट्रे में चाय लेकर निकले और एक कप चाय मा की ओर बढ़ा दिए। ये लो माँ बेटे के हाथ की चाय।इतना बोलते हुए पतिदेव कप माँ के पास रख दिये।
        तू ही पी। वैसे भी तेरे जवाब से जी बिल्कुल हल्का हो गया है। जीभ जल गई मेरी।माँ ने जवाब दिया। माँ तुम भी ना छोटी छोटी बातों को लेकर बतंगड़ बना देती हो। रोज तो बहु ही करती है।पतिदेव एक बार फिर समझाने का प्रयास किये। हा तो कर्तव्य है उसका,उसी लिए आई है ब्याह करके। देख बेटा एक दिन यही बीवी ना मेरे मर जाने पर तुझे घर की नौकरानी बना देगी तो कहना गुस्से में सासूमाँ बोली। सासूमाँ लगातार सौ तरह की बाते बड़बड़ाती रही।मेरा तेज बुखार अब खुद ब खुद उतर रहा था। उनके बोली भाषा से जी तक ठंडक पहुँच चुकी थी। किसी तरह चाय पीकर मैं ज्यो बिस्तर से उठी। पतिदेव बड़ी ही तेज डाँटते हुए बोले माँ बस। वो भी तो इंसान है कितना काम करेगी । क्या वो बीमार नही हो सकती। क्या वो इस घर की बेटी नही है।सासूमाँ बिना जवाब दिए उठकर अपने कमरे में चली गयी।मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी कम से कम मुझे मेरे पतिदेव तो समझते है फिर क्या तब से आज तक मैं उन्हें अकेले ने चिढ़ाया करती हूँ, जोरू का गुलाम!

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