mis you .... "पापा "

रात के तकरीबन बारह बज रहे थे,सुमित को न जाने क्यों आज नींद नही आ रही थी ,तभी उसके फोन की घण्टी ने उसकी नींद पूरी खोल दी। सुमित ने फोन उठाकर देखा तो कोई अननोन नंबर से कॉल थी, सुमित ने फोन उठा के ज्यूँ ही हेल्लो कहा, उधर की आवाज काफी स्पीड पकड़ें हुए अपनी बात कहने में जुटी रही। सुमित के ये सब सुनते फोन हाथ से छूट गया,और उसकी आँखों से फुट फुटकर आंसू बहने लगे। मानो धरती फट गई हो जैसे।

सुमित की माँ दौड़ती हुई आई ,सुमित क्या हुआ ,सुमित क्या हुआ बोलो बेटा क्यों रो रहे। किसका फोन था। तभी फ़ोन से फिर आवाज आई माँ ने तुरंत फ़ोन पर जानना चाहा कि किसका फ़ोन है,तभी फोन की बाते सुन सुमित की माँ धरती पे गिर पड़ी। एक अजीब सी हलचल हो रखी थी। चारो तरफ सिर्फ सन्नाटा छाया नजर आ रहा था। घर के कोहराम ने सुमित को हिला कर रख दिया था,सुमित शांत हो चुका था। रिश्तेदारों को खबर देने की शुरुआत उसने अपनी करीबी से की,उससे कहते मानो सुमित थोड़ा खुल कर रो सका। लेकिन खुद को संभालते हुए सुमित ने बोला मैं रखता हूं अभी सबको फोन करना है ,पापा तक पहुँचना है। सुमित के फ़ोन से फिर आवाज आई,पागल हो क्या ऐसा नही हो सकता,तुम फिर से फ़ोन करलो उनको किसी भी फोन से आई कॉल पर विश्वास नही करना चाहिए। सुमित ने रोते हुए कहा ,स्निग्धा सच है ये बस भरोसा नही हो रहा। कुछ समझ नहीं आ रहा। फोन कट हो गया।
इधर स्निग्धा भी बैचेन थी। रात में सुमित कैसे , पता नही ये खबर कितनी सच है। सुमित को वहाँ तक पहुँचने में भी पूरी रात बीत जाएगी। क्या वो सम्भाल लेगा ,खुद को और अभी की  सिचुएशन को । कैसे क्या करूँ मैं बहुत बेचैनी हो रही। सुमित अकेला है और ...और वो तो बहुत कमजोर है। कैसे सब संभलेगा। कैसे भगवान उनके साथ आप रहना। हो सके तो ऐसा कुछ न हुआ हो ,वो फोन कॉल झूठी हो। स्निग्धा रुंधे गले से भगवान से बात करने की कोशिश करने लगी, अपनी बात को कहने में जुटी रही। खुद की हिम्मत भी न थी उसमे कि वो सुमित को पलट फोन कर ले। यू तो स्निग्धा के पास हर रोज इतनी बाते हुआ करती थी, की सुमित परेशान हो कर स्निग्धा को अक्सर घुड़क देता था। आज उसके पास बोलने को कुछ न था।

उधर सुमित अपने चचरे भाई के साथ दिल्ली निकल पड़ा, अचेत अवस्था मे, मानो जैसे संसार में आज अंधेरा छा गया हो , रात की वो कड़कती ठंड ओर हवाएं सुमित से कुछ कह के गुजर रही हो। इस समय तो सुमित को सिर्फ वो हर पल याद आरही थी जो उसे न चाहते हुए भी खुद को अपनी ओर खींच रही हो।
पापा की वो सारी बातें, हरकतें, उनका लाड़ प्यार,दुलार,फटकार सब कुछ। मानो जैसे कोई सुमित का दम तोड़ रहा हो। तभी फोन की घण्टी बजी, फोन पर स्निग्धा थी। उसने सुमित से पूछा कहा तक पहुँचे आप सब। सब ठीक है न , बहुत देर के बाद जवाब मिला अब ठीक ही कहा रहा। रुंधे आवाज से सुमित ने जवाब दिया। स्निग्धा ने सुमित को साहस देते हुए कहा सुमित तुम तो सबसे स्ट्रांग हो न अब तुम्हे सब देखना है अगर तुम यू बिखर जाओगे तो कैसे चलेगा सब। सारी जिम्मेदारी का पलड़ा तुम पर इकट्ठा गाज की तरह गिर पड़ा है। मत रो हिम्मत रखो , जानती हूं समझती हूँ, मगर हम किसी को वापस नही ला सकते,तभी सुमित ने फोन कट कर दिया। आज स्निग्धा को बुरा न लगा जान रही थी ,समझ रही थी इस पल जो हो रहा उसने सुमित को तोड़ कर रख दिया।

किसी तरह रात बीतती रही सुबह के 5 बज चुके थे, सुमित अभी दिल्ली तक नही पहुँच पाया था। मगर उसकी हिम्मत जो घर पे थी शायद वह हिम्मत दिल्ली पहुँच टूट रही हो। किसी तरह ट्रैन वहाँ पहुँची। स्टेशन पर अफरातफरी का माहौल था। हर कोई के चेहरे पे उलझन घबराहट शोर।

ये सब देखते ही सुमित के साये ने भी मानो हिम्मत छोड़ दी। वो घड़ी आ चुकी थी शायद जो सुमित ने कभी सपने में भी न सोचा।
स्टेशन मास्टर ने सुमित को देखते गले से लगा लिया। हिम्मत के साथ उसे पोस्टमार्टम हाउस की ओर लेकर बढ़े। सुमित के मानो कदम उठ न पा रहे हो। सुमित होशोहवास में मानो था ही नही जैसे दुनिया का हर शख्स उसे अकेला कर छोड़ा हो। वो घड़ी आ ही गयी , हिम्मत की लरी भी खत्म हो चुकी थी। उसने आंखों को बंद करते खुद को कहि सौपते हुए कुछ भी न बोलते हुए आंखे खोली तो उसकी बोलती बंद सिर्फ आंसू के लड़ी ने सारी बातें कहना शुरू कर दिया।

सुमित के सामने उसके पिता की बॉडी रखी हुई थी जो कई टुकड़े में हो छोटी सी पैकेट में रखा हो । सुमित चित हो जमीन पर गिर गया। मानो जिंदा ही मर गया हो। न तो वो उन्हें अपनी गोद मे रख सहला सकने की हिम्मत रख पा रहा था न ही किसी से कुछ कहने में। सुमित का फोन और उसकी सिसकियां पोस्टमार्टम हाउस में गूंज रही थी। मानो वह अचेत अवस्था मे हो ,तभी जूतों की आवाज आई , ओर सामने रेलवे के कुछ अधिकारियों की फौज सामने खड़ी नजर आयी। आश्वासन के साथ ही घटना का बयान शुरू हुआ।

पूरी घटना सुनने की हिम्मत तो न बची थी सुमित के भीतर लेकिन सुनना भी मजबूरी सी हो चुकी थी। पिता की इतनी बुरी मौत जो उसकी जान को निकाल रहा था। अधिकारियों की आवाजें मानो उसके सीने को चीर रही हो , सुमित तुम्हारे पिता जी की मौत , बेह्द दर्दनाक हुई। ट्रैन से कट जाने से उनकी बॉडी का हिस्सा कुछ समझ नही आ रहा। हम सभी दुखी है , वो स्वभाव के बहुत सरल बहुत अच्छे ईमानदार इंसान थे उन्होंने कभी किसी को कुछ न कहा। सुमित को उन बातों से ज्यादा घर की चिंता हो रही थी वो ये सोच रहा था कि कैसे वो पिता को इस हालत में माँ के आगे ले जाए। उसने खुद को तो सम्भाल लिया और अब घर को संभालने की सोच रहा था। किसी तरह पिता की बॉडी ले घर पहुँचा राश्ता भर उसकी आवजो ने खुद को ताला मार लिया हो । सुमित टूट चुका था, लेकिन खुद को मजबूत बनाने की कोशिश में भी नाकाम न होने दिया।

घर पँहुचते माहौल ओर भी गम्भीर रूप ले चुका था। आज सुमित बिल्कुल अकेला महसूस कर रहा था। अपने भी छुआछूत मान दूर जा खड़े हुए। किसी तरह माँ को पिता के पास लाया गया, ये देखते माँ बेहोश होकर गिर गयी। सुमित ने काम क्रिया की तैयारियों की शुरुआत की। घर पर रिश्तेदारों की भीड़ तो जरूर थी लेकिन कहि न कही सुमित टूट चुका था, उसे स्निग्धा की याद आई सिर्फ लिपट कर रोने की अपनी बातों को सौपने के लिए। किसी तरह सब तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी थी । निकल पड़ा पिता को लेकर कांधे पर आंसू तो मानो कहि छूट गए हो।

अस्मशान घाट पँहुचते सुमित शांत पड़ गया,पिता के ऊपर रखती लकड़ियां भी सुमित की जान नही निकली। लेकिन जब सुमित के हाथों में अग्नि के ज्वाला को थमाया गया मानो सुमित चौक गया हो नही , मैं ये नही कर सकता मैं अपने पिता को जला नही सकता उन्हें बहुत तकलीफ होगी। हिम्मत के साथ सबके ढांढस ने सुमित के कदम आगे बढ़ाया ओर आंखों को मूंदते हुए उसने पिता को इस दुनिया से अलविदा कर दिया। और वही चित हो दहाड़ मार कर रोने लगा, खुद को बहुत अकेला महसूस करने लगा। पिता जी वापस आ जाइए मैं अभी इतना बड़ा नही की आपने बिन समझाए मुझे इतना बड़ा काम सौप दिया। माँ का तो ख्याल कीजिये। घर का खर्च हमारी परवरिश का तो......।शांत हो गया सुमित  के आंसू को चिताओं के चटख ने समझाने की कोशिश की कि देखो इस दुनियावालो को हर कोई तुमसे दूर खड़ा है यही असल दुनिया है जहाँ तुम्हे खुद अपनी राह , अपनी पहचान ,अपने परिवार को संभालना है। तुम अकेले नही हो सुमित तुम खुद के साथ हो चुके हो आज से, तुम सब संभालोगे बस समय के साथ।

सुमित ने पीछे पलट कर देखा सबकुछ साफ था। सुमित सब कुछ समझ गया था। उसने आँसू को श्मशान में ही दफन कर दिया। किसी तरह काम क्रिया का पाठ आगे बढ़ा, वो तेरह दिन ही उसकी जिंदगी के सबसे बड़े दिन थे, कौन उसके अपने कौन उसके पराए उसे सब साफ साफ दिखाई दे रहा था। सुमित मानो उन्ही तेरह दिनों में ही बहुत बड़ा समझदार हो चुका हो।

वक्त बदला , लोग भी बदले, समय भी भागने लगा लेकिन कोई भी सुमित के साथ नही। स्निग्धा सुमित के साथ चल तो रही थी मगर उसकी चाह कर भी हेल्प न कर सक पा रही थी। लेकिन सुमित के हर पल में उसके साथ खड़ी रहना चाहती थी। वक्त बदलता गया और आज पिता जी के स्मृति पर सुमित को वो पल याद आगये कौन किसका कितना होता हैं। आज सुमित अपनी मेहनत में जुटा हुआ है, जिम्मेदारी को निभाने में सफल भी हो रहा, दो बहनों की शादी कर पिता की जिम्मेदारी को पूरा करने की  कोशिश पूरी कर दी । लेकिन खुद को चुप्पी लगा अपने जीवन को आज खोखला कर दिया है। न जाने क्यों आज वही सुमित स्निग्धा से कुछ क्यों नही कहना चाहती। न जाने क्यों वही सुमित अपनी परेशानियों को शेयर करने के बजाय उसे अपने तक ही समेट घुट रहा। हर छोटे बड़े मोड़ पर पिता को याद कर उनसे कुछ कहना चाहता है। घर वालो का भी नेचर बदला बदला से हो चुका है, आज सुमित पूरी तरह से टूट गया है, खुद को फ्रस्ट्रेशन में गुजार रहा।

क्या माँ बाप के न होने पे ये रिश्ते ओर रिश्तेदार झूठे हो जाते है उनका हमारे जीवन मे कोई मायने नही रखता। अगर हाँ तो फिर ये उनके रहते ही क्यों नही दूर हो जाते जिसे हम ढांढस की भी उम्मीद न करे। माँ बाप वो होते जिनके जरिए हमारी जीवन की पहिया चलती है। कहानी नही असलियत है ये, मेरे पास लिखने की हिम्मत नही मगर इतना जरूर लिखना चाहूँगी इंसान को कभी भी इंसानियत नही खोना चाहिए। क्योंकि ये एक ऐसा वक्त है जो हर किसी के जीवनमे प्रहार कर सकता है। बस किसी के भीतर सहने की छमता होती है किसी के भीतर नही। आप अपनी राय अवश्य दे।

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