फ्रस्ट्रेशन वाला वायरस


"न मैं जानू, न तू जाने
किस घड़ी में होना है क्या??
जिंदगी के इस जुए में पाना है क्या ,खोना है क्या???"

हैरान,परेशान,जीवन से ऊब ,हताश, जितने शब्द उतने कम ....उफ़्फ़ ये क्या जिंदगी है?? कुछ नया पन क्यों नहीं??? कब तक यूही???सब और मेरी जिंदगी में बदलाव क्यों नही??थकान महसूस करती हूं इस जीवन से ,झुंझलाहट होती है तुमसे ???

सवाल आते है तुम्हारे लिए, कि आख़िर कब ,कब मैं और मेरी जिंदगी सैटल होगी,मैं भी तुम्हे उचाईयों के डोरी को थामे चढ़ते हुई देखूं????कब कुछ नया और अच्छा होगा???कब बदलाव होगा ,आख़िर कब???क़िस्मत ,अब ये क्या नया चैप्टर बताया तुमने ?? वो तो खुदक़िस्मत वालो को नसीब होती है ,ज़नाब ??
हार गई हूं,अब रास्ता क्लियर लगता है#सुसाइड#?????ये सही और नायाब रास्ता है इस बेदखल  उधड़ी जिंदगी का.....सुसाइड!

लेकिन क्या ये रास्ता सही है?? क्या हम आप हर रोज के इस  व्यस्त जीवन मे खुद को सुसाइड के हवाले कर देते है। ये कितना सही  कितना गलत  ये आप मुझे मेरे इस लेख के अंत मे जरूर बताइएगा। क्योंकि आज के समय मे तेजी से जो ये वायरस जकड़ रहा,सुसाइड जैसे मामले भी अपनी रफ़्तार तेज कर लिए है। आइए जानते है इसके बारे मे कि आख़िर ये वायरस हम आपको इतनी तेजी से क्यों जकड़ रहा???

आइए जानते है कि "ज़िन्दगी क्या है? ” यही से हमारी चैप्टर शुरू होता ,यही पे ख़त्म??तो क्यों न इसे ही जान ले। ये एक ऐसा सवाल है जिसका आज तक कोई सटीक उत्तर नहीं दे पाया...कोई इसे गम का सागर कहता है तो कोई इसे खुशियों की सौगात।

जब तक हम ये जान पाते हैं कि ज़िन्दगी क्या है तब तक ये आधी ख़तम हो चुकी होती है। हमारा जीवन शैलीयों में नही बंटा बल्कि वो डरावना ,रोमांटिक, दुखद, हास्यपूर्ण, विज्ञान कथा, जासूसी उपन्यास ,और अश्लीलता से भी जुड़ा हुआ होता हैं जो बीच बीच मे अपने आपको भाग्यशाली होने का मुखोटा पहनाता है।

अब आप ये सोच रहे होंगे कि मैं आज कौन सी नई बात कर रही??ये तो हम जानते ही है,फालतू का लेख लिख दिया इन्होंने...लेकिन आपका इतना सोचना ओर मुझे एक और नई ऊर्जा मिलना दोनों बातों में बहुत अंतर है।

क्योंकि हम हमेशा खुद के बारे मे जूझ रहे होते है। कुछ नया चटपटा मिला तो ठीक वरना, पुराना स्टॉक तो फिर से घूम फिर आता है। यही सोच हमारी ऊर्जा को कई पीछे छोड़ देता हैं। आपको ये जानकर कम हैरानी होगी कि 90% सुसाइड इसी फ्रस्ट्रेशन वायरस से ही होता हैं। ये एक ऐसी बीमारी है जो इंसान को अंधा, खोखला, ओर असहाय कर देती हैं।

तो क्यों न हम इस बीमारी से एक लड़ाई लड़े। वैसे मैं इसे बीमारी का दर्जा नही वायरस का दर्जा देना ज्यादा पसंद करूंगी। क्योंकि हम अपने लिए नही आज तक दुसरो के पसन्द न पसन्द के लिए जीते चले आ रहे। दोस्तो के बीच सामंजस्य बनाते चले आ रहे कि उनके बीच हम अच्छे बने रहे??आख़िर क्यों?? क्या हम जैसे है वैसे अच्छे नही?? आप भी सोचिए??

क्योंकि फ्रस्ट्रेशन वायरस हमें इन्ही छोटी छोटी बातों से घेरना शुरू कर देता है। चाहे वो जीवन के कैरियर से जुड़ा हो या प्यार रोमांस से, या एक सफलता कुंजी को पाने में...!

मुझे लगता है कि सबसे आवश्यक चीज है कि हम अपने जीवन का आनंद लें खुश रहे बस यही मायने रखता है।न कि ज़िन्दगी खुद को खोजने के बारे में। बल्कि ज़िन्दगी खुद को बनाने के बारे में जरूर है।
          अगर देखा जाए न तो ज़िन्दगी साइकिल चलाने के जैसे है....जितना बैलेंस बनाकर आप चलाना सिख गए,उतना ही आप को जीवन को भी अच्छी तरह मैनेज कर के चलते रहना होता है। मैं ये आज इसलिए कह रही, आप ही नही मैं भी इस वायरस से कई बार रुख कर चुकी हूं। जिसे बाहर निकलना मुश्किल बेह्द मुश्किल है। दुख की भूलभुलैया से बाहर जाने का एकमात्र तरीका माफ करना है।किसी ओर को नही खुद को ,उसे हिम्मत देना बेह्द जरूरी है। गिरो फिर गिरो,कभी न कभी तो दौड़ना आ ही जाएगा।

कहते है नजर से नजरिया बदलता है, मेरे भी नज़रिए से;
"ज़िन्दगी एक किताब है और ऐसे हजारों पन्ने हैं जो मैंने अभी तक नहीं पढ़े "

रॉबर्ट फ्रोस्ट कहते है कि ,जीवन की लम्बाई नहीं गहराई मायने रखती है।हताश होना या निराश होना मानव की प्रवृत्ति तो नहीं, लेकिन इससे बचना भी बेहद मुश्किल।आज के इस दौर में हम सभी खो से कही गए है, रोज के काम और लक्ष्य को हासिल करने की होड़ में कई बार हम असफल हो जाते हैं और बार-बार प्रयास करने के बावजूद जब सफलता नहीं मिलती है तब हताश होना स्वाभाविक हो जाता है।

जिसे देखा जाए तो हताश होने पर हमारे मन में नकारात्मक विचार आते हैं और कई बार इनके कारण लोग गलत कदम भी उठा लेते हैं। लेकिन निराश दूर करना कोई मुश्किल काम नहीं है, बस छोटे से बदलाव से आप इनसे मुक्ति पा सकते हैं।

◆ हताश होने पर हमारे मन में फिजूल के विचार आते हैं और हमें हर जगह असफलता ही दिखाई देती है। ऐसे में अपनी वर्तमान की स्थिति के बारे में सोचें, भले ही आप कितनी बार असफल हुए हों लेकिन निराश होने पर सकारात्मक सोच आपको इससे बाहर निकालने में बेह्द मददगार साबित होगी।

◆ दूसरा हताश होने पर सबसे पहले अपने मन को शांत करें। इसके लिए सबसे पहले आप जो भी काम कर रहे हैं उसे करना बंद कर दें। शांत जगह पर आराम से बैठ जायें और अपनी आंखों को बंद करके लंबी सांस लें। इससे आपका मन शांत हो जायेगा और आप दोबारा अपने काम पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।

◆ आप ऐसे कई मौके पर खुद को दोष देने की बजाय खुश किस्मत समझें, क्योंकि आपके पास जो है वह सभी के पास नहीं है। आपके पास जो भी है उसमें ही खुश रहें, क्या पता अभी जो आप हासिल करना चाहते हैं उसके लिए सही समय नहीं आया है। क्योंकि दुनिया में कई ऐसे लोग हैं जिनके पास छोटी-छोटी चीजों का अभाव है। किसी के पास खाने के लिए दो वक्त की रोटी नहीं तो किसी के पास पीने का पानी नहीं। ऐसे में आप खुश किस्मत हैं कि आपके पास ये सब चीजे हैं।

◆ इंसान हताश तभी होता है जब वह ऐसा काम करने की कोशिश करता है जिसे वह कर नहीं पाता और असफल हो जाता है। इसलिए जब भी आप हताश हों तो ऐसा करने की कोशिश करें जिसमें आपको महारत हासिल हो। हालांकि दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं जिसे आप नहीं कर सकते, लेकिन सफलता तभी मिलती है जब आपको इसमें महारत हासिल हो। इसलिए ज्यादातर ऐसे काम करें जो आपके लिए आसान हो।जिसमे आपका मन लगे। वो कभी न करे जहाँ मन उथल पुथल कर फस्ट्रेट हो जाए।

◆हम देखते है कि इंसान अपने आसपास के माहौल से प्रेरित होता है। ऐसे में जब भी आप हताश हों तो खुद को प्रेरित करने के लिए ऐसे लोगों के बारे में सोचें जिन्होंने बार-बार असफल होने के बाद नाम कमाया।
दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो रातों-रात प्रसिद्ध नहीं हुए बल्कि इसके लिए उनको बहुत कठिन मेहनत करनी पड़ी साथ ही साथ वे कई बार असफल हुए फिर सफलता उनको मिली।

हम हर चीज़ अपने हिसाब से चाहते हैं, जो हो रहा है उसे बदलने के पीछे पड़े रहते हैं, और जब हमारे मन का नहीं होता तो फ्रस्टेट होने लगते हैं। ऐसा क्यों ???
इसी पर आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित ,हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार
रामधारी सिंह दिनकर लिखते है कि ...

रेशमी कलम से भाग्य–लेख लिखने वाले
तुम भी अभाव से कभी ग्रस्त हो रोए हो?
बीमार किसी बच्चे की दवा जुटाने में
तुम भी क्या घर भर पेट बाँधकर सोये हो?

मैं इनकी यह कविता पूरी नही लिख रही मगर आप पढ़े जरूर इसे ये स्प्ष्ट है कि जीवन से हार जाना यानी आप जीवन को देखे नही। यदि संघर्ष नही किया तो जीवन क्या??यदि संघर्ष में ही जीवन बिताया तो वो जीवन नही जीवन के रास्ते है जो हमे सही गलत की पहचान, अपने परायो की पहचान कराते है।

मेरा यही मानना है कि जीवन के इस वायरस से लड़ने के लिए हमें खुश रह के लड़ना है और खुद को वहाँ ले जाने की कोशिश करनी है जहाँ हम जाना चाहते है। आप हमेशा उस चीज़ पर फोकस करें जो आप अभी कर सकते हैं, न की उसपर जो आप करना चाहते थे। क्योंकि बीता हुआ वक्त कभी नही आता, जिसका जीता जागता उदाहरण हमारा बचपन है।

खुश रहिए ओर फेस कीजिए मुश्किलों से तभी हम इस वायरस से छुटकारा पा सकते है। सुसाइड कर लेना महारत हासिल कर लेना नही। मैंने ये लेख लिखने की इसलिए कोशिश कि क्योंकि आज यूथ ओर महिलाएं इस वायरस से पीड़ित है जो हारकर सुसाइड को गले लगती हैं।
फ्रस्ट्रेशन हमें हर छोटी छोटी बातों में हो ही जाता है ,हम उसके आंकड़े करने की कोशिश में जदोजहद कर देते है कि कैसे हम इसे सही ठहरा के रहे। अगर गलत हुआ तो फ्रस्ट्रेशन।
इसे बचे क्योंकि इसी वायरस से माइग्रेन जैसी बीमारियों को दावत मिलता है।


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