हाय राम ! बहू नही साढ़ेसाती घर आ गयी

किचन से काँच फूटने की ज्यो आवाज़ आई अन्तिमा की सांस ने बरामदे में बैठे बैठे ही श्रापना शुरू कर दिया। करमजली कही की सत्यानाश हो इसका हर रोज घर का एक समान तोड़ के रख देती है जैसे पैसे तो इसके बाप देंगे। ये सुन अन्तिमा के आंखों में आंसू आ गए और खुद को कोसने लगी भला क्यों मेरे साथ ही ऐसा होता है।क्यों हर रोज पापा को मेरी वजह से गाली सुननी पड़ती है। सच मैं कितनी अभागन हु।ये कोई नया नही था,शादी के एक साल होने को थे,हर रोज किसी ना किसी बात पर पिता को गाली और अन्तिमा को श्राप मिलना तय था। 

लेकिन कहते है ना लाख दुःख हो मगर मायके का एक कॉल भी आ जाए तो मानो दुनिया की सबसे बड़ी खुशी आ गयी हो। अन्तिमा कि माँ बचपन मे ही गुजर गई थी,अन्तिमा और उसके पापा दोनों ही एक दूसरे की जिंदगी थे।बचपन से ही अन्तिमा को हर चीज काली ही पसंद आती बल्कि परिवार के बाकी जना सब उसे यह कह कर चिढ़ाते की अरे देखों शनिचरी आई है। जय हो शनि भवानी की।उस समय उसे सबकी बाते सुन हँसी आती और मजे भी। उसने कभी नही सोचा था कि जीवन की डोर आसान नही होती। एक रोज अन्तिमा के लिए रिश्ता आया। अन्तिमा के पिता बेहद ही खुश थे,उन्होंने अपने रहते अन्तिमा की शादी करना ठीक समझा। अन्तिमा कि माँ ना होने से अन्तिमा को आज बेह्द खल रहा था क्योंकि आज उसे देखने वाले आ रहे थे। अन्तिमा खुशी में ये समझ ही नही पा रही थी कि वो क्या पहनें क्या करे जो खूबसूरत लगे। उसने झटसे अलमीरा खोला और अलमीरा में रखी माँ की कीमती साड़ियों में से उसे एक साड़ी बेह्द प्रिय थी,क्योंकि ये उसका पसंदीदा रंग जो था। अन्तिमा ने उसे ही डाल लिया,लम्बे काले घने गूंथे बाल,कद काठी में भी लम्बी ,गेंहुआ रंग,उस पर होंठों पर हल्की गुलाबी लिपस्टिक, माथे पर गोल काली बिंदी,किसी मधुबाला से कम नही लग रही थी।जब पहली नजर उसकी राजीव से मिली तो दोनों एक दूसरे को छुप छुप कर देखे ही जा रहे थे। अन्तिमा कि सास ने बेटे की रजामंदी जानी तो हा निकला अन्तिमा को बेहद खुशी हुई और वो अपनी माँ की सबसे अजीज साड़ी मानने लगी। कुछ ही दिनों में दोनों एक दूजे के दाम्पत्य जीवन मे बंध गए। अब कुछ भी पड़ता राजीव उसे काली साड़ी पहली मुलाकात में उलझा के रख देता फिर क्या अन्तिमा काली साड़ी निकाल पहन लेती। अब तो उसके पास काले रंग की साड़ी - सूट के भरमार थे। कुछ भी पड़ता वो झट से पहन खड़ी हो जाती ये सब अन्तिमा की सास को जरा भी ना भाता। हाल ही में अन्तिमा की एनिवर्सरी पड़ी राजीव अन्तिमा के लिए एक सरप्राइज गिफ्ट दिया ,डिब्बा खुलते अन्तिमा खुश होते हुए बोली- अरे वाह काली साड़ी ! अन्तिमा की खुशी का ठिकाना ना रहा।क्योंकि उसे काला रंग बेह्द पसंद था। सब उसे घर मे शनिचरी बुलाया करते मगर अन्तिमा का हर चीज काला ही होता। काला पर्स ,काला मोबाइल, काला नेलपॉलिश, काली बिंदी,काली साड़ी, काली गाड़ी इतना जुड़ाव था उसे इस रंग से । एक रोज सास बहू में कहा सुनी हो ही गई। अरे तेरी माँ नही है तो तेरे बाप ने तुझे कोई और रंग पहनना ना सिखाया। मेरी ही किस्मत की मारी थी जो इस शनिचरी को घर ले आई। पूजा पाठ ,सब मे काली साड़ी। अरे हद हो गयी है। मगर माँ काला रंग मुझे क्या राजीव को भी पसन्द है अन्तिमा ने जवाब देते हुए कहा। चुप कर तू सत्यानाश कर रखा है इस शनिचरी ने। अरे मुझे तो लगता है बहु नही शनि ग्रह लाने गयी थी। जबसे आई है घर का हर सामान तोड़ती रहती है। मगर माँ चुप कर तू । अन्तिमा की सास चीखते हुए अपने कमरे में चली गयी ये सब सुन उसे बेहद तकलीफ हुई और अलमीरा में रखी माँ की साड़ी निकाल उससे लिपट रोने लगी।मुझे लगता था माँ तुम मेरे अब साथ हो। तुम्हारी साड़ी पहनने से मुझे इतना अच्छा घर मिला,आपका आशीर्वाद साथ है । मगर आज लगता है वो आर्शीवाद नही था,ना मैं इस रंग को पहनती ना ही मेरा इस रंग और आपकी इस साड़ी से लगाव होता। अन्तिमा यही कह कह कर सिसकती रही। उसे आज माँ की पापा की बेहद याद आ रही थी,क्योंकि आज तक उसे इस रंग को लेकर इतना खरीखोटी किसी ने भी नही सुनाया। 

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