बहू क्या जानें खिचड़ी का स्वाद !

"खिचड़ी"एक ऐसा त्यौहार है जो पूरे भारत मे धूमधाम से मनाया जाता है।खासतौर पर उत्तर प्रदेश में खिचड़ी के अलग - अलग रूप है।कही मूंग के दाल की खिचड़ी प्रचलित है..तो कही चने के दाल की। लेकिन मकर संक्रांति के दिन काली दाल,चावल,नमक हल्दी,मटर ,फूलगोभी डालकर खिचड़ी बनाने का एक अलग ही मजा है।दअरसल पुराणों के अनुसार चले तो कहा जाता है कि इस दिन खिचड़ी खाने से राशि मे ग्रहों की स्थिति मजबूत होती हैं। चावल चन्द्रमा का प्रतीक है और काली दाल शनि का। वही यह भी कहा जाता है कि इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता हैं। साथ ही ससरौती बेटियों के घर खिचड़ी जाने का भी बेह्द खास महत्व है। रेखा चुपचाप टीवी पर आ रहे खबरों को सुन रही थी और अपने काम मे व्यस्त थी। तभी शकुंतला जी ने रेखा को बरामदे में देखा तो पूछ बैठी अरे बहू आज खिचड़ी का उत्सव है तुम्हें याद तो है ना।

रेखा दो पल रूकते हुए बोली - जी मम्मी जी याद है और बना भी दी हूँ। बस आप सभी अपने - अपने कामों से छुटकारा पा ले तो मैं भी लगा दू। तो किचन समेट कर तिल के लड्डू वगैरह ....अनिल बीच मे जोर से टोकते हुए - माँ तुम्ही बताओ ये दिनभर करती ही क्या है जो इसे खाना खिलाना भी एक काम लगता है कि बस कितनी जल्दी काम निपट जाए। यहाँ पूरा पूरा दिन कुर्सी और लैपटॉप के साथ ही बीत जाता है एक ये है इन्हें तो बस निपटारा ही लगा रहता है। अनिल बड़बड़ाते हुए तौलिया कंधे पर रख बाथरूम की ओर बढ़ गए। रेखा को आज अनिल की ये बात चुभ गयी कि क्या एक घर मे रहने वाली महिला के पास कम काम होता है जो इन लोगो को लगता है कि घर मे मैं महारानी बन आराम कर रही रेखा सर को झटकते हुए वापस से अपने काम मे तल्लीन हो गयी।


मगर कहावत है ना जहाँ चार बर्तन होते है वहाँ आवाज बुलंद ही रहती है। रेखा की सांस शकुंतला जी मेज पर आ कर बैठ गयी और रेखा को आवाज लगाने लगी। रेखा जी मम्मी जी आप बुला रही थी हा हा मुझे ही परोस दो खा कर आराम से रजाई में जाकर लेटु वैसे भी यहाँ करना ही क्या है। रेखा ज्यो खिचड़ी परस के शकुंतला जी को दी अनिल भी मेज पर आ गए। रेखा ने अनिल का भी खाना लगा दिया। सभी मेज पर बैठकर खा ही रहे थे कि रेखा का भाई रेखा से मिलने आ गया। रेखा अपने छोटे भाई को देख अत्यंत खुश हो गयी। उसने झट से एक और थाली परस कर अपने भाई के ओर बढ़ा दी।

अरे जीजी ,आप लोग खाइए लगता है मैं ही गलत समय पर आ गया। रेखा ज्यो बोलने चली सासु माँ ने तुरंत जवाब दिया, अरे नही नही बिल्कुल सही समय पर आए हो।आज त्यौहार का दिन है और वैसे भी इस शहर में तुम्हारी बहन के अलावा रहता ही कौन है। आ जाया करो। रेखा मन ही मन खुश हो गयी कि चलो माँ जी ने कुछ उल्टा पुलटा नही सुनाया। यही सोचते हुए उसने अपने भाई की ओर खिचड़ी से सजी थाली आगे बढ़ा दी। ज्यो ही रेखा के भाई ने खाना शुरू किया शकुंतला जी टप से बोली - अरे राजीव इस बार तुम्हारे घर से खिचड़ी नही आया। अरे ये तो रिवाज है कि ब्याही बहन के घर इस दिन भाई खिचड़ी लेकर आता है।यू ही छूछे हाथ थोड़े ही आता है शकुंतला जी ताने कसते हुए बोली। ये बात राजीव और रेखा को चुभ गयी।मगर कहते है ना ससुराल ससुराल ही होता है। रेखा ने इशारे में भाई को खाने को कहा कि तभी शकुंतला जी बोली" वैसे राजीव तुम दो साल तो खिचड़ी लाए थे इस बार क्या भूल गए। शकुंतला जी की बात सुनकर राजीव को थोड़ा बुरा थोड़ा शर्मिंदगी लगी कि वो कहा से आ गया। रेखा को ये सब बहुत बुरा लगा क्योंकि अब उसका मायका ,मायका जैसा ना रहा। अब माँ के बिना सारा तीज त्यौहार था तो रीति-रिवाज कौन निभाने वाला। भला सबकुछ जानते हुए मम्मी जी का यो व्यंग्य बोलना ठीक नही। रेखा सोच में पड़ गयी कि तभी अनिल जोर से बोले- अरे कुछ तो सिखाया होता यार अपनी बहन को दिनभर घर मे पड़ी रहती है और ठीक से कंकड़ तक बिनने का समय नही है इसे। मगर अनिल ऐसा नही है कुछ गलती हर किसी से हो ही जाती है। पूरा दिन आपको दिखता है, मगर यहाँ पूरा दिन कैसे बीतता है वो मैं जानती हूं।

ठीक है ठीक राजीव के आगे अनिल खाना छोड़ते हुए बोले। तुम्हे तो हर चीज का जवाब देने आता है। पूरे दिन यही तो करती हो। रेखा को बहुत बुरा लगा कि पूरे छ माह बाद आज राजीव घर आया था और उसके आगे ही इतना कुछ। रेखा के आंखों में आंसू डबडबा पड़े तभी शकुंतला जी बोली - वैसे अनिल ठीक ही तो कह रहा कि कुछ तो ठंग से किया करो। अरे कम से कम त्यौहार तो सुकून से बीतता। ना तो त्यौहार मनाने आता है ना ही त्यौहार में बनने वाले वयंजन। अरे खिचड़ी तो हर कोई बना लेता है लेकिन हमारी बहू को तो जैसे खिचड़ी का स्वाद भी नही पता है बोलते हुए शकुंतला जी भी अपने कमरे की ओर बढ़ गयी।

राजीव से रहा नही गया और अपनी बहन रेखा को संभालते हुए बोला - जानने दो। तुम भी अब कुछ खा लो। रेखा राजीव की इतनी सी बात सुनकर मोम के भांति पिघल गयी और रोते हुई बोली-पूरा दिन कैसे निकलता है पता ही नही चलता।ऊपर से यहां के नखड़े। थक जाती हूं सबकी सुनते सुनते मगर कोई ये नही कहता कुछ काम हो तो बताओ हाथ बटवा लू। ताने देने के लिए सब है। मुझे संस्कार रीति रिवाज के मायने बताती है मगर खुद सब कुछ भूल चुकी है। राजीव रेखा के आंसू को पोछते हुए बोला- धत पगली चुप हो जा देख तो मेरी बहन ने कितनी स्वादिष्ट खिचड़ी बनाई है।रेखा राजीव के गले से लग पड़ी।
आज की यह लघुकहानी घर घर की कहानी सी है। उसी पर आधारित यह लघु कहानी है,उम्मीद है हर सखी को अपनी खिचड़ी याद आ गयी होगी।

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