आखिर तुम्हारी समस्या क्या है??
हे प्रभु उठा ले मुझे। तंग आ गयी हु इस रोज रोज के कारनामे से देखिए जी कान में से खूंट निकाल कर मेरी बात को सुन लीजिए इस तरह आते ही घर को गंदा करना फैलाना बन्द करिए। अरे मेरी माँ ने यहाँ बहू बनाकर भेजा था।मगर ऐसा लगता है नौकरानी बन चुकी हूँ। पूरे दिन इधर उधर करते करते कमर की मरम्मत हो जाती है। ऊपर से आप ,आप तो कोई लायक नही शिवाए मुंशी बनने के । ऐजी सुनिए,मेरी तो कोई सुनता ही नही है।
अरे श्रीमती जी आपकी समस्या आखिर क्या है जब भी कुछ करता रहू वही मक्खी की भाँति भिनक ने लगती हो।क्यों हर रोज सुबह सुबह अलार्म की तरह चालू होती है । अरे भाई काम धाम के बीच मे भला कौन- सी धर्मपत्नी खरी-खोटी सुनाती है। तुम भी ना चुनाव ही क्यों नही लड़ लेती। अरे मेरी भी कुछ मदद हो जाती और तुम्हारा भी समय कट जाता। कम से कम ये रोज रोज का किस्सा तो नही बन्द होता ।।।मगर हा किस्सा में कुछ नया पन जरूर आ जाता। नरेश जी हँसते हुए वापस से कान पर फसी कलम को उतार जोड़-घटाने में मन लगा बैठे।
हो गया आपका । बक लिए तो उठिए और बिस्तरा को झटकिये पूरे दिन चादरों की हालत खराब कर देते है। अरे कम से कम धोने वाले पर दया नही आती तो बिस्तरा पर तो दया करिए। रेखा जी खिसियाते हुए बोली। अरे अब तो पचास की हो रही।माँ बाप ने यही करने के लिए थोड़ी भेजा था। उनकी भी भला क्या गलती,उन्होंने ने तो हजार वर में से देखकर इनको चुना था। मगर वो क्या जाने की ये आदमी ही मलिच्छ है।
भून भून करने वाली मक्खी के भांति क्यों भून भुना रही है श्रीमती जी। अरे मेरी राय मान लीजिए और चुनाव के मैदान में उतर ही लीजिए।नरेश जी कमरे में बैठे बैठे ही जोर से बोले।
आपकी जो ये मंशा है ना जी हम जरूर पूरा कर देंगे और साथ ही बाकी महिलाओं को भी ये बहु बनकर आने वाले खवाब से बाहर निकाल देंगे। बड़े आये मैदान में उतारने वाले। अम्मा बोल दे तो फट पड़ती है बीवी बोले तो - आखिर आप क्या चाहती हैं।
देखिए श्रीमती जी जो बात करना है स्पष्ट करिए।नरेश जी गुस्साते हुए लहजे में बोले। अच्छा अच्छा गुसियाते काहे को है जी। इतनी ही समस्या की पड़ी है तो क्यों नही आखिर बेटे का ब्याह कर देते अरे मरने से पहले कम से कम दो रोज की मुफ्त की रोटी तो तोड़ लेती। अरे एकदम बुरबक के तरह काहे बात कररही। अरे अभी उसकी उम्र ही क्या हुई है। गजब का बतियाती है आप भी।
हा हा पूरे घर मे सबकी उम्र नही हुई है सब तो कल ही पैदा हुए है एक मैं ही हु जो पचास की हो रही। अरे भगवान आप शांत हो जाइए श्रीमती जी ,मीठी मीठी वाणी आपको ही भाए समझे। घर के हर काम को जब खुद संभालना पड़े तब समझ आएगा कि आपके नौकर भी थक जाते है। ओहहफ्फो, अब समझा तो आपकी मंशा ये है कि पति घर के कार्य करे, नरेश जी बोले ।। जी...रेखा जी बड़ी तेज आवाज में बोली।
अरे श्रीमती जी आपकी समस्या आखिर क्या है जब भी कुछ करता रहू वही मक्खी की भाँति भिनक ने लगती हो।क्यों हर रोज सुबह सुबह अलार्म की तरह चालू होती है । अरे भाई काम धाम के बीच मे भला कौन- सी धर्मपत्नी खरी-खोटी सुनाती है। तुम भी ना चुनाव ही क्यों नही लड़ लेती। अरे मेरी भी कुछ मदद हो जाती और तुम्हारा भी समय कट जाता। कम से कम ये रोज रोज का किस्सा तो नही बन्द होता ।।।मगर हा किस्सा में कुछ नया पन जरूर आ जाता। नरेश जी हँसते हुए वापस से कान पर फसी कलम को उतार जोड़-घटाने में मन लगा बैठे।
हो गया आपका । बक लिए तो उठिए और बिस्तरा को झटकिये पूरे दिन चादरों की हालत खराब कर देते है। अरे कम से कम धोने वाले पर दया नही आती तो बिस्तरा पर तो दया करिए। रेखा जी खिसियाते हुए बोली। अरे अब तो पचास की हो रही।माँ बाप ने यही करने के लिए थोड़ी भेजा था। उनकी भी भला क्या गलती,उन्होंने ने तो हजार वर में से देखकर इनको चुना था। मगर वो क्या जाने की ये आदमी ही मलिच्छ है।
भून भून करने वाली मक्खी के भांति क्यों भून भुना रही है श्रीमती जी। अरे मेरी राय मान लीजिए और चुनाव के मैदान में उतर ही लीजिए।नरेश जी कमरे में बैठे बैठे ही जोर से बोले।
आपकी जो ये मंशा है ना जी हम जरूर पूरा कर देंगे और साथ ही बाकी महिलाओं को भी ये बहु बनकर आने वाले खवाब से बाहर निकाल देंगे। बड़े आये मैदान में उतारने वाले। अम्मा बोल दे तो फट पड़ती है बीवी बोले तो - आखिर आप क्या चाहती हैं।
देखिए श्रीमती जी जो बात करना है स्पष्ट करिए।नरेश जी गुस्साते हुए लहजे में बोले। अच्छा अच्छा गुसियाते काहे को है जी। इतनी ही समस्या की पड़ी है तो क्यों नही आखिर बेटे का ब्याह कर देते अरे मरने से पहले कम से कम दो रोज की मुफ्त की रोटी तो तोड़ लेती। अरे एकदम बुरबक के तरह काहे बात कररही। अरे अभी उसकी उम्र ही क्या हुई है। गजब का बतियाती है आप भी।
हा हा पूरे घर मे सबकी उम्र नही हुई है सब तो कल ही पैदा हुए है एक मैं ही हु जो पचास की हो रही। अरे भगवान आप शांत हो जाइए श्रीमती जी ,मीठी मीठी वाणी आपको ही भाए समझे। घर के हर काम को जब खुद संभालना पड़े तब समझ आएगा कि आपके नौकर भी थक जाते है। ओहहफ्फो, अब समझा तो आपकी मंशा ये है कि पति घर के कार्य करे, नरेश जी बोले ।। जी...रेखा जी बड़ी तेज आवाज में बोली।
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