ई -रिवोल्यूशन वायरस के लपेट में आज की पीढ़ी





वाह! क्या जमाना आ गया है। हर हाथ मे मोबाइल। जिसे देखो वही ई -रिवोल्यूशन के दौर से गुजर रहा। हमारे जमाने मे त किताबें के अलावा कुछो नाही। तनिको देर से उठा तो घर वाले उंगली उठाते बोले सलवा पढ़त लिखत नाही एकर का होई,ख़ैर अब हमार त जइसन तइसन करके जिंदगियां चल गईल लेकिन ई आजकल का कंपीटिशन में ई -मोबाइल वाले बच्चे का करिए।
का काका अब जमाना मोबाइले से त हव। काका चुप चाप चाय पिहन और पुरवा फेंक उहा से निकल लेनन।वाकई वक़्त मोबाईल पर ही निर्भर सा हो गया है। अब वो चाहें बच्चें हो या बूढ़े हर किसी को फेसबुक, व्हाट्सएप, टेलीग्राम,टिंडर से लेकर बहुतेरे एप्प का ज्ञान है,लेकिन इन्ही बीच कुछ इससे परेशान है कुछ दिन-रात अपने जीवन का अनमोल समय इसी ई-रिवोल्यूशन को सौंप दिया है। देखा जाए तो देश मे फैली महामारी ने इस ई- दुनिया को बेहतरीन सपोर्ट किया है। कल तक जो माँ बाप अपने बच्चों को उच्च शिक्षा लेने की सीख देते थे और उनके हाथों में पड़ा मोबाइल देख कुछ यूं छीनते थे मानो बच्चा मोबाइल नही अपराधिक चीजो को लिए बैठा हो जिसे उसे नही छुना चाहिए। लेकिन अफसोस जिन माँ बापो को ये दहशत था कि बच्चा बिगड़ जाता है मोबाइल से आज वही माँ-बाप इस कोरोना काल मे अपने बच्चों को उच्च शिक्षा लेने के लिए उन्हें मोबाइल थमा रहें। क्योंकि जमाना ई- रिवोल्यूशन वायरस की चपेट में है।

देखा जाए तो आज हर छोटे से छोटे,बड़े से बड़े बच्चो की दुनिया या हम साथी कहना भी ठीक रहेगा उनकी दुनिया मोबाइल है जिसे फ़ास्ट फ्रेंड भी कह सकते है। एक समय हमारे मोहल्ले या कॉलेज के साथी ही लंगोटिया यार हुआ करते थे। लेकिन इस ई दुनिया के पीट-पीटटाता 4g,5g वाला यार है। जिन्हें सुबह से शाम और शाम से रात कब हुई कुछ पता नही चलता इनकी व्यस्तता इतनी हैं।


इस विषय पर जरा सोचकर देखिए...वक़्त के साथ जीना नही गलत है मगर जरा सोचिए कल तक जो माँ-बाप अपने बच्चो के बेहतर भविष्य के लिए उनसे इस ई दुनिया से दूरी बनवाते थे आज वो दूरी घनिष्ठ हो चुकी हैं। अब यहां सवाल उठता है कि क्या इन बच्चों का भविष्य बेहतर करने में सार्थक होगा या इन्हें सिक्के के दो पहलू की तरह आँका जाएगा। क्योंकि जिस कदर इस ई-रिवोल्यूशन वायरस ने इन बीते साल में बच्चो को जकड़ा है वो कही ना कहीं घातक भी साबित हो रहें।



सरकार ने महामारी को देखते हुए व जनता की हित के लिए व देश के बच्चो के भविष्य को सोचते हुए इस ई किताब का निर्माण तो किया साथ ही उन्हें ऑनलाइन पढ़ाई से लेकर एग्जाम देने तक कि सिख दी मगर देश के आधे आबादी वाले बच्चे यानि सिक्के के दो पहलू वाले लोग इसका मिसयूज भी कर रहे। साइबर क्राइम, मोबाइल पर छेड़छाड़, अपशब्द, पोर्नोग्राफी, पोर्न साइट्स के मामले बढ़े। जिसकी रिपोर्ट यानी एक आर्टिकल बीबीसी हिंदी संस्करण में बीबीसी ने आंकड़े प्रस्तुत किए।

अब सवाल है कि हम कोरोना वायरस की चपेट से बचने के लिए टिके तो लगवा सकते है लेकिन इस कम उम्र में ई- रिवोल्यूशन की चपेट में आने वालो को कैसे बचाए। समय रहते यदि इन बच्चो के ओर ध्यान न दिया गया तो देश का भविष्य किस ओर इंकित करता है। क्योंकि पूरी दुनिया आपके लैपटॉप, डेस्कटॉप, व मोबाइल में समाई हुई है। जहां दुनिया की सबसे पॉपुलर सोशल साइट्स फेसबुक हो इसका जिक्र उदाहरण में इसीलिए देना जरूरी है क्योंकि आज घर घर मे मोबाइल है हर हाथ मे मोबाइल है हर किसी को इन तमाम साइट्स से जुड़ना पसंद है। उस पर आने वाले तमाम तरीके की चीजें। अब ऐसे में यदि किसी बच्चे से पूछा जाए उनकी किताबी दुनिया से जुड़े कुछ सवाल तो वो थोड़ा कतरा कर जवाब देते है । मगर वही इन बच्चों से घर का कोई बुजुर्ग फेसबुक या चैट मैसेंजर के बारे में पूछ लें तो वो तपाक से उसके फीचर को इतनी बारिकता से समझाएंगे मानो कितने बड़े हो गए हो।

"जो दिखता है वो बिकता है" यह कहावत सौ टका सच तब साबित हो जाता है जब ई रिवोल्यूशन वायरस में जकड़े हुए इन बच्चो को देखिए। क्योंकि इन बच्चो को एक वीरान जगह चाहिए पढ़ने के लिए लेकिन 100 प्रतिशत में से कुछ ही इस रिवोल्यूशन का सही इस्तेमाल कर रहे अन्यथा बाकी अपने जीवन से खेल रहे। इनका भविष्य क्या होगा। जरा सोचिए। इसे रोकना बहुत जरूरी है उसे सरकार नही उन्ही माता पिता को ध्यान देना है जो कल तक उनके भविष्य के लिए चिंतित थे। क्योंकि इस ई-किताब में भले ही भंडार का सागर क्यों ना हो लेकिन समय के साथ मिलने वाला ज्ञान ही भविष्य को सार्थक बनाता है। शायद अब समय है माँ बाप को एक बार फिर सचेत होने का अपने बच्चो के भविष्य के लिए सीसीटीवी कैमरे बनने का।यदि इस वायरस को समय रहते नही रोका गया तो आने वाला समय क्या होगा। 

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