आत्मनिर्भर वाले सुनहरे सपनें

हर महिला आत्मनिर्भर होना चाहती है लेकिन सभी के लिए नौकरी कर पाना संभव नही। मगर कैसे पूरे हो ये आत्मनिर्भर वाले सपनें। इस महामारी ने तो हमें बस किचन का ही हो कर बना दिया है। हमारे भी कुछ सपने ख्वाब है। सिर्फ़ जिम्मेदारी ही थोड़ी की बस दिन रात पति की सेवा बच्चो की धमाचौकड़ी और चटपटे स्नैक्स बनाओ,सास ससुर की सेवा करो बदले में रिश्तेदारों के मुँह से खुद की बुराई सुनो। भला हमारे जीवन मे क्या बस यही है। ये भी कोई जीवन है जहां खुद के लिए तो कुछ है ही नही। ऐसा कब तक चलेगा रोकना तो पड़ेगा ही। वरना जीवन भर आत्मनिर्भर बनने का सपना सपना ही रह जाएगा और ये बोझिल जीवन समय के साथ बोझ बनता जाएगा।

 

शीला शीला- शीला चौक कर आँखे खोली तो पतिदेव आफिस से आ चुके थे और चाय की डिमांड रख चुके थे।
शीला कुछ पल ठहरते हुए बोली- ऐसा है अब मुझसे ये सब नही हो पाएगा। बहुत हुआ मेरी भी कोई जिंदगी है या मैं सिर्फ खटने आई हूं।

प्रदीप शिला के पति अभी तक समझ नही पाए कि अचानक शीला को हुआ क्या।

शीला- घूर क्या रहे हो एक सुबह से रात तक दौड़ती रहती हूँ आराम तो हराम है। आंखे खुली नही की वो बन्द रात के दो बजे के पहले नही बन्द होएगी।

प्रदीप ने झुंझलाहट में कहा- ऐसा है तुम्हे जो कहना है सेफ साफ कहो। तुम्हे नही बनाना मत बनाओ मगर मुझे बिना मतलब चाटो मत। प्रदीप झुंझुला कर बिस्तर पर शर्ट तौलिया फेंक लेट गए।

ये देखते शीला को और गुस्सा आया उसने पूरे दोपहर की उधेड़बुन को बांध लिया और बिफरते हुए बोली- " ये क्या तरीका है । पूरा दिन क्या मेरा काम घर और आपलोग को संभालना है।

प्रदीप - तो और क्या काम है तुम्हारा मैं भी आज सुन ही लू।

शीला- चार पैसे कमा के लाते है इसका मतलब ये नही की घर वाले काम नही करते मजा करते है। जितना काम हम पत्नियां करते है उतना आप पति आधा भी नही कर सकते।


प्रदीप वाह नही नही बहुत खूब कहा आपने । इतना ज्ञान आया कहा से। इतना ही चूल है तो जाकर नौकरी ही क्यों नही कर लेती। खुद पर डिपेंड हो जाइए। तब जानू इतना ज्ञान वही दे जो खुद के बल पर हो।

शिला को प्रदीप की बात और खटक गयी और उसने प्रण कर लिया कि वो आत्मनिर्भर बन कर दिखाएगी। उसने किचन में चाय बनाते बनाते तय कर लिया कि कुछ भी हो जाये प्रदीप जैसे पतियों और ऐसे ससुराल वालों को जवाब देना जरूरी है। बस उसने तय कर अगले दिन से ही ऑनलाइन काम ढूढना शुरू किया। इसबीच उसे तमाम दिक्कत हुई लेकिन शिला अडिग रही और मिशो के जरिये उसने खुद को अपने पैर पर खड़ा कर ही लिया। शुरुआती वक्त में उसने तमाम संकट और खवाबो को कुचलते हुए देखा लेकिन वक़्त के साथ आज वो अपने पैरों पर आत्मनिर्भर हो गई और घर बैठे कमाई का जरिया ढूंढ ली। 

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