पूर्ण हुई माता माई की पूजा

निमिया के डार मैया झुलेली झुलनवा से भक्तों ने चौख पुर कर कलश को आम के पालो से सजा,दीया जला कर माता रानी का आगमन किया। रात भर देवी गीत के साथ माँ की आराधना ओर इम्तिहान की दूसरी पारी में शुद्ध देशी घी में गुलगुला,हलवा पूरी,दलभरी पूरी,कोहड़े की सब्जी,चने की सब्जी,बखीर,आदि पकवानों की शुरूआत की।तीसरी पारी भोरे में होला मइया के धरवा,भोरे में होला मइया का धरवा धरवा से पूर्ण होल्ला माइ का पूजनवा....
जगह जगह चैत्र नवरात्र व्रतियों के अलावां शनिवार को अष्टमी तिथि लग जाने से चढ़ती-उतरती के मान के तहत भी तमाम भक्तों ने व्रत रखा। गौरी एवं देवी दर्शन के विधानों के तहत मन्दिर में दर्शन करने के साथ ही टोले मोहल्ले देवी गीत से गूंजते रहे। श्रद्धा की फुआर ऐसी की महिलाओं ने बसीयउरा यानी महानिशा पूजन किया।विधि-विधान से भक्तों ने घर पर साफ-सफाई कर पूरी रात नाना प्रकार के पकवान बनाये। भगवती का सविधि पूजन कर भोग अर्पित किया।घरों-घरों में बसीयउरा पूजन कि तैयारियां सुबह से शुरू कर दी गई थीं। इसके लिए पूजन समाग्री की जमकर खरीददारी हुई और घरों ने नए गेंहू का आटा पिसवाया गया। घर की रसोई की रच-रच के सफाई की गई।

रात्रि में हर घर पकवान बनना शुरू हुआ। लोगो ने सादी व दाल भरी पूड़ी, गुलगुला, आटे का हलवा, चौराई की साग,बखीर,चने की सब्जी,कोहड़े की सब्जी सहित कई तरह के पकवान बनाये। फिर जलापूर्ति कलश को वस्त्र धारण कराकर देवी की प्रतिष्ठा की गई। सिंधुर-रोरी से टिका कर पूजन पूर्ण किया। नीम के पतवा से संक्रामक रोग से वर्ष भर रक्षा के लिए टोले-मोहल्ले में निकासी की गई। इसमें घरों की महिलाओं ने तिराहे-चौराहे पर पानी से भरा घड़ा व झंडा रखकर धार दी। भक्तों ने घरों में बसीयउरा पूजन करने के बाद माँ ललिता के दरबार मे जाकर हाजिरी लगाई। वही नवमी तिथि लग जाने से भक्तों ने राम दरबार मे भी हाज़री लगाए।

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