आख़िर मूर्खता दिवस विशेष दिन क्यों ?

यू तो बात-बात पर हमें मूर्ख बनाने की परम्परा सदियों से कूट कूट कर चली आ रही है,तो फिर एक दिन ही विशेष क्यों????पड़ गए न सोच में आप भी,कहि इसलिए तो नही कि जब हमारे देश मे मूर्खो की संख्या ज्यादा है तो क्यों न इनको भी प्रमुखता दी जाए। क्यों न इनके लिए भी एक विशेष दिन बनाया जाए।
आइए जानते हैं क्यों मनाया जाता है "मूर्खता दिवस"????आख़िर कैसे हुई इसकी शुरुआत????क्या वाक़ई मूर्खता दिवस के कोई संस्थापक भी थे या यूं ही चलन चल पड़ा???आख़िर क्यों हर वर्ष हमें अप्रैल का महीना बड़ा रोचक,चुभनदार,नोक-झोंक ,हास्य ठिठौली वाला ही याद रहता है???...सच कहिए तो ज़नाब हर किसी को इस दिन का बड़ी बेसब्री से इन्तेजार रहता हैं।
बातों बात में आपको बता दे कि मूर्ख बनाना जितना आसान है उसे पेश करना उतना ही नामुमकिन, मूर्खता दिवस पर कई शहरों में " मूर्खता सम्मेलन " आयोजित किया जाता हैं। जिसमे बड़े-बड़े मूर्ख कलाकार बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते है और अपनी व्यंग्यात्मक भाषा से लोटपोट कर देते हैं।
अब आप जरा ये सोचकर देखें, कि दुनिया में सबसे पहले किसने किसे बुद्धू बनाया।ये सवाल बिल्कुल वैसा है, मानो जैसे किसी ने पूछ लिया हो “बताओ भैय्या पहले मुर्गी आई की अंडा ?” पहले मुर्गी...अंडा...मुर्गी...! पहले कुछ भी आया हो, लेकिन एक बात तो पक्की है,ज़नाब “अंडे का ही फंडा”। अब आप याद कीजिए कि आपने अपने खास दोस्तों पर यह फंडा कब आजमाया?जरूर कुछ ध्यान आ रहा होगा कि, पहले आपने उसे बनाया था, कि उसने आपको बनाया।

आइए जानते है कैसे चली चलन मूर्ख बनाने की???

प्राचीनकाल में रोमन लोग अप्रैल में अपने नए वर्ष की शुरुआत करते थे, तो वहीं मध्यकालीन यूरोप में 25 मार्च को नववर्ष के उपलक्ष्य में एक उत्सव भी मनाया जाता था। लेकिन 1852 में पोप ग्रेगरी अष्ठम ने ग्रेगेरियन कैलेंडर (वर्तमान में मान्य कैलेंडर) की घोषणा की, जिसके आधार पर जनवरी से नए वर्ष की शुरुआत की गई।फ्रांस द्वारा इस कैलेंडर को सबसे पहले स्वीकार किया गया था।
जनश्रुति के आधार पर यूरोप के कई लोगों ने जहां इस कैलेंडर को स्वीकार नहीं किया,तो वहीं कई लोगों को इसके बारे में जानकारी ही नहीं थी।जिसके चलते नए कैलेंडर के आधार पर नववर्ष मनाने वाले लोग पुराने तरीके से अप्रैल में नववर्ष मनाने वाले लोगों को मूर्ख मनाने लगे, और तभी से निकल पड़ी यह प्रथा....और इस तरह " अप्रैल फूल " या " मूर्ख दिवस " का प्रचलन धीरे - धीरे बढ़ता चला गया।

कब से मनाया जाता है अप्रैल फूल? 

आपको बता दे कि 19वीं शताब्दी से, अप्रैलफूल प्रचलन में है। हालांकि इस दिन कोई छुट्टी नही होती। अंग्रेजी साहित्य के पिता ज्योफ्री चौसर की कैंटरबरी टेल्स (1392) ऐसा पहला ग्रंथ है जहां 1 अप्रैल और बेवकूफी के बीच संबंध स्थापित किया गया था।
अप्रैल फूल का नाम जुबान पर आते ही सभी के दिमाग पर एक अप्रैल की तारीख छा जाती है। भले ही आप सभी अपने दोस्तों या करीबियों के साथ कोई मजाक कर उन्हें मूर्ख बनाने की कोशिश हर रोज करते होंगे, लेकिन एक अप्रैल का यह दिन कुछ खास ही होता है।
यूं समझिए कि यह दिन खास इसलिए ही रखा कि आप अपनों के साथ कुछ मजाक कर उन्हें मूर्ख बना सकें और उनके चेहरे पर कुछ समय के लिए हंसी ला सके। लेकिन ध्यान रहे कि कही आपका यह मजाक किसी के लिए नुकसानदायक साबित न हो जाए। लेकिन यहां पर एक बात सोचने वाली यह है कि आखिर एक अप्रैल की ही तारीख मूर्ख दिवस के लिए क्यों रखी गई??? आइए जानते हैं इसकी ख़ास वज़ह,दरअसल अप्रैल फूल का इतिहास बहुत ही पुराना है। 1392 में चॉसर के कैंटबरी टेल्स में यह पाया जाता है। ब्रिटिश लेखक चॉसर की किताब द कैंटरबरी टेल्स में कैंटरबरी नाम के एक कस्बे का जिक्र किया गया जिसमें इंग्लैंड के राजा रिचर्ड द्वितीय और बोहेमिया की रानी एनी की सगाई की तारीख 32 मार्च, 1381 को होने की घोषणा की गई थी जिसे वहां के लोग सही मान बैठे और मूर्ख बन गए, तभी से एक अप्रैल को "मूर्खता दिवस" मनाया जाने लगा।

    वही कुछ अन्य बातें भी दरकते इतिहासों में नज़र आए....   प्राचीन काल में चीन में 'डींग दिवस' मनाया जाता था। इस दिन चीनी लोग लंबी-लंबी डींगे मारते थे। चीन के यांगसी प्रांत में प्रतिवर्ष नदी देवता का विवाह एक कुंवारी कन्या से होता था। कन्या को पकवान आदि खिला कर उसका साज-श्रृंगार करके लड़की को एक तख्ते को सुहाग सेज बना कर उस पर लिटाया जाता था और उस तख्ते को नदी में प्रवाहित कर दिया जाता था,जो कन्या सहित नदी में डूब जाता था। देखा जाए तो यह एक तरह से क्रूरता का परिचायक था।
        वही दूसरी ओर भारत में मूर्ख दिवस को मासूमियत भरे तरीके से मनाया जाता है। शिकार को पता न चले और वो बुद्धू भी बन जाए। लेकिन  यदि दुनियाभर की बात करें तो फ्रांस और इटली में अप्रैल फूल के दिन बच्चे ही मजाक कर सकते हैं। वो कागज की मछली बनाते हैं, और मजा करते हैं। इसी तरह स्कॉटलैंड में सार्वजनिक स्थल पर बैठे हुए कोई भी आप पर लेबल चिपका सकता है, जिसपर लिखा होगा ‘किक मी’।वही ईरानी कैलेंडर में 13वें दिन का पर्व इसी दिन आता है। घटना 536 ई.पू. की है, जो मजाक करने की प्रथा से ही जुड़ी है, जिसे लोग ‘जोक डे’ के रूप में मनाते हैं। कुछ जानकारों का मानना है कि, अप्रैल फूल की शुरुआत प्राचीन रोम के हिलारिया त्योहार से हुई होगी। इस दौरान कई तरह के खेल मजाकिया अंदाज में खेले जाते थे और खूब ठहाके लगते थे।
लेकिन आज के समय मे लोग समय मे ही बंध जरूर चुके है,लेकिन सोशल दुनिया ने उनका पीछा यहाँ भी नही छोड़ा।मूर्खता दिवस विशेष ...चुटकुले,शायरी,लेख,चुटीला अंदाज़,व्यंग्यात्मक चर्चाएं हमें कही न कही आज भी इस मूर्ख दिवस से जोड़ रहें। तो क्यों न हम यह कहे कि " बात गयी रात गयी....और शुरुआत हो एक बार फिर मूर्ख बनाने की प्रथा" ।




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