बकलोल

बकलोले हुआ का....अमा यार तू तो एक दम बकलोले ठहरा...,कस्बे बकलोले हैवे का....,अबे तू ठहरा नीरा बकलोल...,बकलोले समझे हुआ का...ब्ला-ब्ला। ये बकलोल शब्द आपके जीवन से आज तक कितनी बार जुड़ा? या जुड़कर आपकी दिनचर्या में कितनी बार शामिल हो गया???क्या हुआ,आपने इसे हल्के में ले लिया,हाहाहा...!जनाब देखा जाए न तो " ई बकलोलवा "हमन लोग का सबसे बड़ा दोस्त और दुश्मन बा;का समझला,नाही समझला चला समझा जाए।

           अगर आप को कभी इस बकलोल से मिलना हो तो चंद टिकट कटा यूपी आ जाइए,फिर मिलिए तदादो में "बकलोलोसे"। ये यूपी की वो खास भाषा है जिसे लोग बड़े मोहब्बत के साथ आपको बकलोल बना निकल लेंगे।

          कुछ लोग बकलोल इतने प्यार से बुलाते है मानो जैसे कोई निक नेम बुला रहे हो। अब आप सोचिए कि आपके अपनो ने आपको कितनी बार बकलोल बनाया। यह याद दिलाया कि आप बकलोल है। ख़ैर छोड़िए;  हो सकता है आप मेरे इस लेख को पढ़ या तो झुंझला रहे हो या ये याद करने की कोशिश कर रहे हो उसने मुझे कब बकलोल पुकारा था।

आप बताइए,कि आप मेरा ये लेख इतनी देर से पढ़े जा रहे तो आपको कुछ तो दिमाग मे आया होगा न ?? अरे नही नही...वो बकलोल कब बुलाया गया आपको वो आराम से याद करिएगा। अभी तो ये सोचने वाली बात है कि इन्ही बकलोल बोलने और सुनने वालों में से लोग सोशल साइट्स पर अपनी बकलोलियता की एक क्रिएटिविटी की छाप छोड़ जाते हैं।

नही सोचें,अरे यार मुझे लगा अब तक तो आप बहुत कुछ क्या मुझसे भी तेज सोच रहे होंगे। कोई न मैं ही आपको थोड़ा बहुत याद दिला देती हूँ। जैसे - बकलोल जोक्स,बकलोल वीडियो/ऑडियो। जिसे हम बड़ी ही दिलचस्पी से देखते सुनते है और खूब ठहाके लगाते है। इतना ही नही कभी कभी हमें ये इतने भाते है कि हम उसी चीज को बार बार देख कर खूब हँसते है। देखा हुआ न फायदा।

चलिए अब आगे बढ़ते हैं, आपको ये जानकर आश्चर्य तो नही होगा मगर कुछ कुछ समझ जरूर आएगा। आपको बता दू कि ये बकलोल शब्द जो मैं आपको बार बार सुनना रही वो कोई मामूली नही है। न ही इसका खिताब इतनी आसानी से मिलता हैं। ज़रा सी चर्चा छिड़ी नही ,जुबान फिसली और बस कुछ भी पौना ऊपर नीचे हुआ आप समझ लीजिए शुरू हो गया।

वैसे अब ज्यादा घुमाने का मन नही है,मानती हूं मैं घुमक्कड़ जरूर हूँ,लेकिन अब मुद्दे पर आती हूँ और आपको इस बकलोल शब्द की पूरी गुत्थी सुलझाती हूँ। इस शब्द से हजारों अर्थ निकलते है प्यार से...? जैसे -

" बुरबक " अअअ आपको याद आगया ,अरे नही तो कोई नही इस शब्द को सुनने बिहार चले जाइए। या अपने किसी बिहारी मित्र से कुछ चर्चा पे अड़ जाइए फिर देखिए कैसे आपको वो प्यार से बुरबक बनाता है।नही तो लालू यादव जी का कोई डायलॉग याद करिए।वो तो बखुबी प्यार दुलार से बुरबक बुलाते हैं।

अब आते है " मूर्ख " पे?? ये सुनते तो आप भी मुँह बना लिए होंगे। अब यदि कोई हमें हजार आदमी के आगे मूर्ख बोले तो सोचिए क्या होता है। उसने आपकी जान न ले ली तो मेरा नाम नही...हाहाहा।

वैसे आपने " अनाड़ी " तो खूब सुना होगा। हे न ,शर्माइये नही । अब अगर जीवन मे अनाड़ी न बने तो जीवन पे चलना कैसे सीखेंगे। कोई नही इस बार भी मैं ही बता दे रही,गोविंद जी की फिल्में अगर आप देखे होंगे तो याद जरूर आएगा। जिसमे वो कुली की भूमिका निभा रहे,ओर मैडम के कुछ कहने पर उनको जवाब देते है,प्यार से...अरे ...आप हमको बिल्कुल से अनाड़ीये समझी है क्या??अक्सर हम आम बोलचाल में कह भी देते है देखो ,कितना अनाड़ी है साला?

अब ये तो तभी कुछ हद तक चला ,लेकिन आप ने जरा सा कहा " एकदम गदहे हो का " बम न बिस्फोट हो गया तो बोलये न ?

या " बैल / गवांर " निकला नही जबान से की बस भाई साहब आपको पक्का हॉस्पिटल पहुचाये के ही रहेगा। ऊपर से धमकियां के कहेगा। " गवांर किसको बोला बे???"/"साले तुझें मैं बैल दिखता हूँ" ।ऐसे करते करते वो आपको हजारों की बीप ... सुना देगा, तो भइया काहे न बड़े आराम से ,प्यार से दुलार से पुचकार के सिर्फ और सिर्फ " बकलोल " ही बुलाए।
अब आगे बढ़ते है ...,क्या आपने कभी "बुद्धू बक्सा"  देखा है। आपसे ये उम्मीद न थी अरे,ये वही बक्सा है जहाँ आप तदादो के कॉमेडी चैंनल देखा करते हैं। इस बक्से के सहारे न जाने आप कितनी ठहाके मार लेते है। ऐसे ही हम व्हाट्सएप पर भी तमाम वीडियो के मद्दे नज़र जमकर हँसते है। यूट्यूब के हजारों बकलोलियता वाले चैनल को देखते है,जैसे- कनपुरिया बकैत। आप इस चैंनल पर ढेरो बकलोलियता देख सकते है।  अब आप ही सोचिए जिन्हें हम बकलोल समझते है वो तो असल मे मास्टर माइंड निकलते है,और हम बे मस्ती सराफत में ऑफिस से घर घर से ऑफिस के हो जाते हैं।
अब आज से इस शब्द को हल्के में मत लीजिएगा,क्योंकि ये वही लोग है जिन्होंने अपने बकलोलियता से एक क्रिएटिविटी को जन्म दे दिया।


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