सिंदूर से सप्तरंगी सिंदूर का " सफ़रनामा "

एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानों रमेश बाबू....;अरे घबराइए मत बस ये बताइए कि आपने इस डायलॉग को कितनी बार सुनना है। अक्सर हम इस डायलॉग से रूबरू हो ही जाते है,कभी सिनेमा के ज़रिए तो कभी सीरियल के ज़रिए हम इसे सुन ही लेते है। आजकल तो इस डायलॉग को लेकर न जाने कितने चुटकुले और कितने शेरो शायरी बनी। लेकिन क्या आपने कभी इस ओर सोचा कि महिलाएं सिंदूर क्यों लगाती हैं? आख़िर इस चुटकी भर सिंदूर की कीमत के पीछे मूल्य राज क्या है? आख़िर इस चुटकी भर के सफ़र के पीछे क्या राज छुपा है? आख़िर हिन्दू धर्म मे सिंदूर का क्या महत्व हैं? आख़िर क्यों लगाया जाता है सिंदूर?? सवाल तो लाखों होते है मन मे लेकिन जवाब हमेशा घूम फिर कर वही आता हैं।


      हिन्दू धर्म के मान्यता अनुसार, सिंदूर एक शादीशुदा महिलाओं को वो गहना होता है,जिसे वो बेह्द सम्भाल कर रखतीं है। उसके बिना उनका जीवन अधूरा माना जाता हैं। प्रचलित कथाओं व किदवंतियो अनुसार,सिंदूर का महत्व आध्यात्मिक रूप से भी जोड़ा जाता हैं। लेकिन मन मे एक और सवाल बार बार कौंध रहा कि आख़िर ये सिंदूर सिर्फ सुहागिनों के लिए ही क्यों ख़ास है? इन्ही प्रचलित कथाओं में मुझें मेरे इस सवाल का जवाब भी मिल गया। आपको बता दे कि लाल रंग शक्ति का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं अनुसार लाल रंग देवी सती और माता पार्वती की ऊर्जा को व्यक्त करता है। जहाँ देवी सती को आदर्श पत्नी के रूप में जाना जाता है, वही माता पार्वती ( गौरा ) रूप में पूजी जाने वाली, सिंदूर धारण करने से अखण्ड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद देती हैं।

हिन्दू धर्म मे जब किसी लड़की की शादी होती है तो उसके मांग में सिंदूर, माता गौरी को चढ़ा कर ही ,वर वधू को चुटकी से उठा सिंदूर धारण कराता है। वही से शुरू होती है,पति के लम्बी उम्र की कामना। जिसे एक विवाहिता बखूबी निभाती है। कहते है कि शादी के बाद हर विवाहिता को सिंदूर अवश्य लगाना चाहिए। सिंदूर से ही उसकी पहचान जुड़ी होती है। देखा जाए तो एक विवाहिता का निखार और उसका तेजस स्वरूप उसके सिंदूर से जुड़ा होता है।

सोलह सृंगार में से एक सृंगार सिंदूर है जो कि बेह्द संवेदनशील बिंदु पर धारण किया जाता है। शस्त्रों अनुसार, सिंदूर लगाने से दिमाग हमेशा सतर्क और सक्रिय रहता हैं। सिर के बीचों बीच स्थान में इसकी जगह है जिसे ब्रम्हारन्ध कहते हैं। यह अत्यंत संवेदनशील होता है। इसलिए दिमाग को तनावमुक्त रखने के लिए सिंदूर का इस्तेमाल किया जाता है और सिंदूर में मिले पारा से दिमाग को तेज सक्रिय बनाता है साथ ही ब्रम्हारन्ध बिंदु को मजबूत।
            अब इसके पीछे भी एक कहानी प्रचलित है,देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से स्त्रियों को लेकर चर्चा कर बैठी। चर्चा होते होते,स्त्री के सम्मान तक आ पहुँची,हार कर भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी से इस जिक्र का मुख्य कारण पूछ बैठें ..;देवी लक्ष्मी ने ये कहा कि जिस प्रकार एक स्त्री पति के जीवन के लिए वो हर संघर्ष करती है तो उसे पहला स्थान भी ग्रहण होना चाहिए। भगवान विष्णु मुस्कुराए ओर बोले बिल्कुल,तब  उन्होंने भगवान शिव और ब्रम्हा के आगे ये बात रख दी। तब ब्रम्हा जी ने कपाल के बीच भाग यानी ब्रम्हारन्ध बिंदु के बारे में बताया जो कि स्त्रियों में सबसे संवेदनशील बिंदु होता है। तब देवी को पहला सम्मान दिलाने के लिए उन्हें ब्रम्हारन्ध बिंदु पर स्थान दिया गया। जिसके कारण देवियों को कुमकुम या सिंदूर लगा तभी स्त्रियां सिंदूर को धारण करती है, जिसे उन्हें तेजस रूपी माना जाता हैं।

वही स्वास्थ्य संबंधी देखे तो सिंदूर लगाने से रक्तचाप ठीक रहता है,और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सिंदूर एक महिला के मन को शांत रखने में मदद भी करता है।

एक महिला का सिंदूर तब उसे दूर होता हैं जब पति उसके जीवन से दूर हो जाता है, यानी हिन्दू धर्म ग्रन्थों अनुसार, विधवा औरतों को सिंदूर धारण नही करना होता।
             लेकिन ये तो सफर था सिंदूर का ...आइए चलते है उस सप्तरंगी सिंदूर के सफर के तरफ़ जहाँ महिलाएं सिंदूर को सिर्फ फैशन के रूप में जगह देती हैं। आज स्वयं को शिक्षित और मजबूत होने से कुछ महिलाएं इस सृंगार को तवज्जों कम देती है। उनका मानना है कि ये सिर्फ एक गुलामी की जंजीर है जिसे गुलामी का प्रतीक मान कुछ औरतें औपचारिकता बस लगा लेती हैं।  वही कुछ महिलाएं सिंदूर धारण तो करती है मगर उसे बालों द्वारा या तो ढक लेती है या पेंसिल से एक लाइन मात्र छोटी सी लकीर खिंच देती हैं। आख़िर क्यों ऐसा जिस सिंदूर की कीमत भगवान द्वारा वर्णित हो तो उसे बचाए जाने के जगह छिपाना या ढकना क्यों??
जब हिन्दू धर्म मे सिंदूर का इतना महत्व हो तो ,वही आधुनिक दुनिया मे उसका निरादर क्यों?? आज महिलाएं सिंदूर पर सवाल उठाती है,कि सिर्फ हम ही क्यों रक्षा करें हमारी किस चीज से रक्षा की जाती है?जहाँ एक ओर ये सवाल उठाया जाता है तो वही दूसरी ओर यह भी सवाल उठता है कि आखिर इस ग्लैमर दुनिया मे सप्तरंगी सिंदूर का क्या महत्व है??? आख़िर क्यों हम उसे तेजी से अपना रहें ??? देखा जाए तो आज फैशन ने हमें कुछ यूं जकड़ लिया है कि हम अपने पुरानी परंपरा को त्याग नए परम्परा को जन्म दे रहें। कहने का तात्पर्य यह है कि आज सप्तरंगी सिंदूर ने महिलाओं पर धावा बोलना शुरू कर दिया है। जिसकी शुरुआत स्टार भारत पर आने वाले सीरियल जीजी माँ से शुरू हुई। जिसमें फाल्गुनी की सास पल्लवी प्रधान जिस रंग के साड़ी उस रंग के सिंदूर को धारण किया है,इस फैशन को देख इन दिनों मेट्रो जैसे शहरों में महिलाओं ने तेजी से लुक को आजमाया। लेकिन क्या फैशन से जुड़कर रह गया है ये सिंदूर?जब मैंने इस पर कुछ लोगो से चर्चा की तो जवाब कुछ इस तरह सामने आए, सिंदूर महिलाओं का गहना है,जिसे उनको एक अलग पहचान मिलती है। कुछ ने बताया कि सिंदूर ये क्या होता है,रोज घर से ऑफिस ,ऑफिस से घर इतना समय कहा कि इस चोंचलेबाजी ढकोसला को सहा जाए। कुछ ने स्पष्ट रूपी बोला लगाती हूँ ,क्योंकि घर पर सास ससुर जो टोकने को बैठें है मगर आज के समय मे इसे लगाता ही कौन है? मैं तो हल्का सा लगा बाल से ढक देती हूं। इसी तरह कई लोग मिले जिनके जीवन मे सिंदूर मायने रखता भी है वो भी जिनके लिए नही रखता वो भी। कुछ महिलाओं ने तो इस सप्तरंगी सिंदूर की बखूबी चर्चा की ।

सवाल उठता है कि क्या आज जिस सिंदूर की जगह सप्तरंगी सिंदूर ने अपनी पैठ बनानी शुरू कर ली है ,वह कितना सही और कितना गलत है ,आप भी सोचिए ओर हमें जरूर बताइए इस " सिंदूरी सफ़रनामा " को।

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट