इश्क बन्दिश नही

इश्क़ बंदिश नही आजाद है
प्रेम किसी को मोह सकता है
प्रेम किसी को जकड़ सकता है
लेकिन बंदिश पसन्द नही उसे
ये भले ही कृष्णा अपने उपदेश में कहता है
हमें तो अंधेरों में चीख के रोने का मन करता है
याद आती है उनकी हर एक पल
अब तो घुट घुट कर जीने का मन करता है
बेवज़ह इश्क कर बैठे
अब तो हँसने का भी जी नही करता है
कमबख्त ये कैसी बीमारी है
जो हुई खुद पर भारी है
ना मर्ज है ना मलहम लगाने वाला
अब तो जिंदगी सुना सुना सा लगता है!

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