इतिहास के पन्नों में हुए दर्ज : अटल जी

जीत और हार जीवन का एक हिस्सा है..,


जिसे समानता के साथ देखा जाना चाहिए ✍️

ये पंक्ति ये शब्द भारत के उस लाल के है जिन्होंने आजादी के सिपाही यानि श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया।
इतना ही नही उन्होंने अंग्रेजों की लाठियां खाईं। जेल भी भेजे गए। उस समय उनकी उम्र कम थी, लेकिन देशभक्ति और साहस से भरपूर।

उनका  मानना था कि छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता।
शायद उनकी यह चन्द लाईने कही न कही हम सभी के जीवन मे खरी उतरती हुई दिखती हैं। जीवन मे हर राह आसान भी है और मुश्किलों से भरपूर।

यदि हम अपने मन को छोटा करले तो शायद जीवन मे कभी आगे नही बढ़ सकते। ओर लाख मुसीबत क्यों न आए लेकिन हमें अपने मन को कभी टूटने नही देना चाहिए वही हमारी शक्ति,हमारी ताक़त,हमारी पहचान है।

आपको बता दे कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ,अटल थे,अटल ही रहेंगे।उनकी हर बातें आज देश के हर एक नागरिक को गूंज रही,किसी को उनके भाषण, तो किसी को उनकी चन्द  कविताएं याद आ रही।

लोगों को जैसे ही उनके निधन की ख़बर मिली सोशल साइट्स से लेकर देश भर में एक शोक की लहर दौड़ गई। हर कोई सोशल साइट्स के माध्यम लिखने लगा..

अटल की वाणी अटल है
अटल की कहानी अटल है
अटल के भाषण अटल है
अटल की भाषा अटल है
अटल के भाव भी अटल है
अटल के विचार अटल है
हर घर में अटल है
हर दिल में अटल है
हर दल में अटल है
अटल अटल ही है
न झुका है , न मिटा है
हिंदुस्तान अटल है
हर भारतीय अटल है।

आमजनमानस के साथ ही प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने भी ट्वीट के माध्यम शोक जताया कहा...मैं नि:शब्द हूं, शून्य में हूं, लेकिन भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा है।
ये वो शब्द है जो एक लगाव सा एक जुड़ाव सा जो सबकुछ कह कर भी न कह पाना। बहुत कुछ दिल के ज्वार में आ रहा मगर मैं उसे व्यक्त नही कर सकता। हर किसी को अटल जी का जाना एक धक्का सा लग रहा है।
उन्होंने अपने अगले ही ट्वीट में कहा...हम सभी के श्रद्धेय अटल जी हमारे बीच नहीं रहे।अपने जीवन का प्रत्येक पल उन्होंने राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। उनका जाना, एक युग का अंत है।

                  भारत के दसवें प्रधानमंत्री

पिता - कृष्ण बिहारी वाजपेयी

माता - कृष्णा देवी

जन्म - 25 दिसंबर 1924

स्थान - ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

शिक्षा - एमए (राजनीति शास्त्र), ग्वालियर के विक्टोरिया (अब लक्ष्मीबाई) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज से

पेशा - पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता।

मृत्यु - 16अगस्त 2018 दिल्ली एम्स।

(प्रथम शासनकाल)

कार्यकाल 16 मई 1996 – 1 जून 1996
पूर्ववर्ती पी. वी. नरसिंह राव
परवर्ती ऍच. डी. देवगौड़ा

(द्वितीय शासनकाल)

कार्यकाल 19 मार्च  1998– 22 मई 2004
पूर्ववर्ती इन्द्र कुमार गुजराल
परवर्ती मनमोहन सिंह

उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के प्राचीन स्थान बटेश्वर के मूल निवासी पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में अध्यापक थे। वहीं शिन्दे की छावनी में  25 दिसम्बर 1924 को ब्रह्ममुहूर्त में उनकी सहधर्मिणी कृष्णा वाजपेयी की कोख से अटल जी का जन्म हुआ था। पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में अध्यापन कार्य तो करते ही थे इसके अतिरिक्त वे हिन्दी व ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि भी थे।

पुत्र में काव्य के गुण वंशानुगत परिपाटी से प्राप्त हुए। महात्मा रामचन्द्र वीर द्वारा रचित अमर कृति "विजय पताका" पढकर अटल जी के जीवन की दिशा ही बदल गयी। अटल जी की बी०ए० की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कालेज) में हुई।

छात्र जीवन से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और तभी से राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे।

कानपुर के डी०ए०वी० कालेज से राजनीति शास्त्र में एम०ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उसके बाद उन्होंने अपने पिताजी के साथ-साथ कानपुर में ही एल०एल०बी० की पढ़ाई भी प्रारम्भ की लेकिन उसे बीच में ही विराम देकर पूरी निष्ठा से संघ के कार्य में जुट गये।

डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का पाठ तो पढ़ा ही, साथ-साथ पाञ्चजन्य, राष्ट्रधर्म, दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन का कार्य भी कुशलता पूर्वक करते रहे।

सर्वतोमुखी विकास के लिये किये गये योगदान तथा असाधारण कार्यों के लिये 2014 दिसंबर में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवि भी थे। मेरी इक्यावन कविताएँ अटल जी का प्रसिद्ध काव्यसंग्रह थे।

वाजपेयी जी को काव्य रचनाशीलता एवं रसास्वाद के गुण विरासत में मिले हैं। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत में अपने समय के जाने-माने कवि थे। वे ब्रजभाषा और खड़ी बोली में काव्य रचना करते थे। पारिवारिक वातावरण साहित्यिक एवं काव्यमय होने के कारण उनकी रगों में काव्य रक्त-रस अनवरत घूमता रहा है।

उनकी सर्व प्रथम कविता ताजमहल थी। इसमें शृंगार रस के प्रेम प्रसून न चढ़ाकर "एक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल, हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मजाक" की तरह उनका भी ध्यान ताजमहल के कारीगरों के शोषण पर ही गया। वास्तव में कोई भी कवि हृदय कभी कविता से वंचित नहीं रह सकता।

राजनीति के साथ-साथ समष्टि एवं राष्ट्र के प्रति उनकी वैयक्तिक संवेदनशीलता आद्योपान्त प्रकट होती ही रही है। उनके संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियाँ, राष्ट्रव्यापी आन्दोलन, जेल-जीवन आदि अनेक आयामों के प्रभाव एवं अनुभूति ने काव्य में सदैव ही अभिव्यक्ति पायी। विख्यात गज़ल गायक जगजीत सिंह ने अटल जी की चुनिंदा कविताओं को संगीतबद्ध करके एक एल्बम भी निकाला था।

अटल जी की कुछ प्रमुख प्रकाशित रचनाएँ इस प्रकार हैं :
◆ मृत्यु या हत्या
◆ अमर बलिदान (लोक सभा में अटल जी के वक्तव्यों का संग्रह)
◆ कैदी कविराय की कुण्डलियाँ
◆ संसद में तीन दशक
◆ अमर आग है
◆ कुछ लेख: कुछ भाषण
◆ सेक्युलर वाद
◆ राजनीति की रपटीली राहें
◆ बिन्दु बिन्दु विचार, इत्यादि।
◆ मेरी इक्यावन कविताएँ

अटल जी आजीवन अविवाहित रहे।वे एक ओजस्वी एवं पटु वक्ता (ओरेटर) एवं सिद्ध हिन्दी कवि भी हैं।

परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की संभावित नाराजगी से विचलित हुए बिना उन्होंने अग्नि-दो और परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिये साहसी कदम भी उठाये।

सन् 1998 में राजस्थान के पोखरण में भारत का द्वितीय परमाणु परीक्षण किया जिसे अमेरिका की सी०आई०ए० को भनक तक नहीं लगने दी।

अटल सबसे लम्बे समय तक सांसद रहे हैं और जवाहरलाल नेहरू व इंदिरा गांधी के बाद सबसे लम्बे समय तक गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी।

वह पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने गठबन्धन सरकार को न केवल स्थायित्व दिया अपितु सफलता पूर्वक संचालित भी किया।
अटल ही पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था।

बेशक देश की बात हो या क्रान्तिकारियों की, या फिर उनकी अपनी ही कविताओं की; नपी-तुली और बेवाक टिप्पणी करने में अटल जी कभी नहीं चूके।

"भारत को लेकर मेरी एक दृष्टि है- ऐसा भारत जो भूख, भय, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो।"

वे लिखते है कि ...मेरी कविता जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय-संकल्प है। वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है

जब तांगे के नीचे दब गए थे अटल बिहारी वाजपेयी


सत्तर के दशक में यूपी में मिरहची आए अटल जी कसबा निवासी लाला रामभरोसे के साथ तांगे से मारहरा जा रहे थे। ऊबड़ खाबड़ सड़क पर घोड़ा बिदका और तांगा असंतुलित होकर पलट गया। अटल बिहारी और लाला जी इसके नीचे दब गए। लेकिन किसी को गंभीर चोट नहीं आईं। यह बात खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने तत्कालीन भाजपा सांसद डा. महादीपक सिंह शाक्य को बताई थी।



25 दिसंबर 2014 को भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के कार्यालय ने वाजपेयी को भारत रत्न पुरस्कार, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान की घोषणा की। भारत के राष्ट्रपति ने 27 मार्च 2015 को उनके निवास पर अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न प्रदान किया।

एम्स में पिछले 9 हफ्ते से भर्ती पूर्व प्रधानमंत्री का गुरुवार की शाम निधन हो गया।एम्‍स द्वारा जारी मेडिकल बुलेटिन में यह जानकारी दी गई। एम्‍स की तरफ से जारी मेडिकल बुलेटिन में कहा गया, ‘हमें यह सूचना देते हुए गहरा दुख हो रहा है कि आज (16 अगस्त, 2018) शाम 5.05 बजे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे।

श्री वाजपेयी को एम्स में 11 जून, 2018 को एडमिट कराया गया था। पिछले 9 हफ्ते से उनका स्वास्थ्य स्थिर था और एम्स के डॉक्टरों की एक टीम उनकी देखभाल में लगी हुई थी। दुर्भाग्यवश, पिछले 36 घंटों में उनकी हालत बिगड़ गई और उनको लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया था, लेकिन अथक प्रयासों के बावजूद हमने आज उन्हें खो दिया।

अटल बिहारी वाजपेयी को गुर्दा (किडनी) की नली में संक्रमण, छाती में जकड़न, मूत्रनली में संक्रमण आदि के बाद 11 जून को एम्स में भर्ती कराया गया था।मधुमेह पीड़ित 93 वर्षीय भाजपा नेता का एक ही गुर्दा काम करता था।
हालांकि, इन सबमें डिमेंशिया से भी अटल बिहारी वाजपेयी सबसे ज्यादा पीड़ित थे।बुधवार से ही अटल बिहारी वाजपेयी को देखने जाने वाले नेताओं का सिलसिला जारी था। दरअसल, डिमेंशिया किसी खास बीमारी नहीं, बल्कि एक अवस्था है। डिमेंशिया में इंसान की याददाश्त कमजोर हो जाती है और वह अपने रोजमर्रा के काम भी ठीक से नहीं कर पाता है।

डिमेंशिया से पीड़ित लोगों में लघु याददाश्त जैसे लक्षण भी देखने को मिलते हैं।अकसर लोग डिमेंशिया को सिर्फ एक भूलने की बीमारी के नाम से जानते हैं, और सोचते हैं कि यह मुख्यतर याददाश्त की समस्या है पर डिमेंशिया के अनेक गंभीर और चिंताजनक लक्षण होते हैं, और डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की हालत समय के साथ बिगड़ती जाती है, और सहायता की जरूरत भी बढ़ती जाती है। इसमें मस्तिष्क में हानि होती है।

आइए जानते है क्या है इसके लक्षण-
●  याददाश्त कमजोर होना और लोगों को पहचान पाने में दिक्कत महसूस करना
●बातचीत करने में दिक्कतें होना
●खाने-पीने में भी दिक्कत होना
●चलने-फिरने में दिक्कत होना
●कुछ सोच-विचार नहीं कर पाना

वाजपेयी काफी दिनों से बीमार थे और वह करीब 15 साल पहले राजनीति से संन्यास ले चुके थे। अटल बिहारी वाजपेयी ने लाल कृष्ण आडवाणी के साथ मिलकर भाजपा की स्थापना की थी और उसे सत्ता के शिखर पहुंचाया।

भारतीय राजनीति में अटल-आडवाणी की जोड़ी सुपरहिट साबित हुई। अटल बिहारी देश के उन चुनिन्दा राजनेताओं में से एक थे, जिन्हें दूरदर्शी माना जाता था।
       उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में ऐसे कई फैसले लिए जिसने देश और उनके खुद के राजनीतिक छवि को काफी मजबूती दी।
इस दुख की घड़ी में हम देश के साथ हैं। अटल जी का पार्थिव शरीर एम्‍स से कृष्‍ण मेनन मार्ग स्थित उनके आवास पर ले जाया गया।

● केंद्र सरकार ने सात दिन का राजकीय शोक घोषित किया। इस दौरान आधा झंडा झुका रहेगा।     
● उत्‍तर प्रदेश, उत्‍तराखंड झारखंड और बिहार ने सात दिन का राजकीय शोक घोषित किया।
● पंजाब ने तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया।   
●उत्‍तर प्रदेश, दिल्‍ली, झारखंड, बिहार, तमिलनाडु, उत्‍तराखंड और पंजाब में कल स्‍कूल, कॉलेज और सरकारी कार्यालय बंद रहेंगे।  
●वाजपेयी का अंतिम संस्‍कार स्‍मृति स्‍थल पर किया जाएगा। केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने इसके लिए डेढ़ एकड़ जमीन मुहैया कराई है।   
 ●भारतीय उद्योग व्‍यापार मंडल ने कल दिल्‍ली के बाजार बंद करने का निर्णय लिया है। 
●पूर्व प्रधानमंत्री का शव उनके निवास स्‍थान पर तिरंगे में लपेटा गया। 

आवास पर श्रद्धांजलि देने वालों का तांता 

अब तक....प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्‍ट्रपति वेंकैया नायडू, भाजपा अध्‍यक्ष अमित शाह, लालकृष्‍ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, पूर्व राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, सुषमा स्‍वराज, किरन रीजिजू ने उनके आवास पर श्रद्धांजलि अर्पित किया।  
      गुजरात के मुख्‍यमंत्री विजय रूपानी, हरियाणा के मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल, बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतिश कुमार, उड़ीसा के मुख्‍यमंत्री नवीन कुमार, पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी, छत्‍तीसगढ़ के मुख्‍यमंत्री रमन सिंह ने भी श्रद्धांजलि अर्पित किया।     

  

 पत्रकार से नेता तक का सफ़र _अटल बिहारी वाजपेयी

भारत के राजनीतिक इतिहास में अटल बिहारी वाजपेयी का संपूर्ण व्यक्तित्व शिखर पुरुष के रूप में दर्ज है।उनकी पहचान एक कुशल राजनीतिज्ञ, प्रशासक, भाषाविद, कवि, पत्रकार व लेखक के रूप में हमेशा अमर रहेगा।

अटल जी ने एक बहुत ही दिलचस्प बात कही थी कि :

लोकतंत्र एक ऐसी जगह है जहां दो मूर्ख मिलकर एक ताकतवक इंसान को हरा देते हैं।

शायद यह बात सोलह आना सच है...;लेकिन यह भी सच है कि भारतीय जन संघ से भारतीय जनता पार्टी और सांसद से देश के प्रधानमंत्री तक के सफ़र में अटल बिहारी वाजपेयी ने कई पड़ाव तय किए। 

आपको बता दे कि नेहरु-गांधी परिवार के प्रधानमंत्रियों के बाद श्री अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भारत के इतिहास में उन चुनिंदा नेताओँ में शामिल होगा जिन्होंने सिर्फ़ अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बूते पर सरकार बनाई।

जनसंघ से शुरू हुई राजनीति


आजादी की लड़ाई के दौरान ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी के संपर्क में आए। 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की। अलग पहचान बनाई। संगठन को मजबूत बनाने की दिशा में काम किया। 1957 में दूसरी लोकसभा के लिए बलरामपुर सीट से सांसद बने। युवा थे। ओजस्वी भाषणों और विभिन्न विषयों पर पकड़ की वजह से विपक्ष की मजबूत आवाज बनकर उभरे।


लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष


जनाधार बढ़ा, लेकिन भारतीय जनसंघ समेत विपक्षी दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को सत्ता से हटा पाने में असफल रहे। 1975 में इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया। भारतीय जनसंघ ने देश की कई पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव और नागरिक अधिकारों के निलंबन जैसे कदम का कड़ा विरोध किया। वाजपेयी समेत कई वरिष्ठ नेता जेल में डाल दिए गए। लंबी लोकतांत्रिक और कानूनी लड़ाई के बाद इंदिरा गांधी ने इस्तीफा दिया। 1977 में आम चुनाव हुए। भारतीय जनसंघ (बीजेएस) ने कई केंद्रीय और क्षेत्रीय दलों-समूहों के साथ मिलकर जनता पार्टी का गठन किया। चुनाव में जनता पार्टी को जीत मिली। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। नई दिल्ली लोकसभा सीट से जीतकर अटल बिहारी वाजपेयी मोरारजी देसाई कैबिनेट में विदेश मंत्री बने।


कुशल रणनीतिकार


1962 के चीन के साथ युद्ध के बाद हिंदी-चीनी भाई का नारा गुम हो गया था। दोनों देशों के संबंध बेहद तनावपूर्ण थे। लंबे समय तक यह तनाव चला। विदेशमंत्री के तौर पर 1979 में अटल बिहारी वाजपेयी चीन की ऐतिहासिक यात्रा पर गए। उनकी कुशल रणनीति से संबंध सामान्य होने लगे। पड़ोसी देशों से मधुर संबंधों के पैरोकार अटल बिहारी वाजपेयी ने विदेश मंत्री के रूप में पाकिस्तान की भी यात्रा की। 1971 के युद्ध में बुरी तरह से हारे पाकिस्तान से सारे संवाद टूट गए थे। कारोबार ठप था। यहां भी दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य करने में कुशल रणनीति का परिचय दिया। उनकी विदेश नीति सराही गई।


परमाणु शक्ति की वकालत की


वह निशस्त्रीकरण सम्मेलन में भी गए। शीत युद्ध का युग था। वाजपेयी ने भारत के परमाणु शक्ति से लैस होने की वकालत की। उन्होंने साफ कहा कि जब पड़ोसी देश चीन परमाणु हथियार से लैस है, तो भारत अपनी रक्षा के लिए इससे वंचित क्यों रहे? इस सम्मेलन में उन्होंने इस संबंध में जो दलीलें दीं, वह दमदार थीं। बाद में जब वह प्रधानमंत्री हुए, तो दूसरी बार बुद्ध मुस्कुराए, यानी परमाणु परीक्षण हुआ। भारत ने दूसरी बार पोखरण में यहपरीक्षण किया। भारत की सामरिक शक्ति की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी।

पड़ोसी कहते हैं कि एक हाथ से ताली नहीं बजती, हमने कहा कि चुटकी तो बज सकती है।
(मित्रता के लिए पाकिस्तान द्वारा हाथ बढ़ाने पर वाजपेयी की चुटकी)

पत्रकारिता


कूटनीतिक सूझबूझ के बूते इंदिरा गांधी को भी अपना कायल बनाने वाले पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने जर्नलिज्म का ककहरा बनारस से सीखा था।


उनके अंदर के कवि को भी बनारस में ही सबसे पहले प्रतिष्ठा मिली थी।तकरीबन छ: से साढ़े छह दशक पहले बनारस से ‘समाचार’ नाम का न्यूजपेपर पब्लिश हुआ करता था।


एक आना के इस मॉर्निंग के न्यूजपेपर के संपादक मोहनलाल गुप्त ‘भैया जी बनारसी’ हुआ करते थे। कल्चर और पॉलिटिक्स विषयक उनके आलेख सबसे पहले ‘समाचार’ न्यूजपेपर में ही पब्लिश हुए।


न्यूजपेपर के वीकली अंक में अटल जी की कई आरंभिक कविताओं को भी भैया जी बनारसी ने ‘समाचार’ में स्थान दिया था।


इसके बाद अटल जी ने ‘स्वदेश’ नाम के न्यूजपेपर के लिए बकौल संवादाता भी काम किया। उस दौर में ‘स्वदेश’ बनारस का एकमात्र इवनिंग न्यूजपेपर था। ‘स्वदेश’ के लिए ही अटल जी ने टाउनहाल में होने वाले संगीत परिषद के राष्ट्रीय आयोजन का कवरेज भी किया था।


भविष्य में अटल जी खुद भी एक सफल और सशक्त संपादक के रूप में भी प्रतिष्ठित हुए। उन्होंने राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन जैसी राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत पत्रिकाओं का संपादन किया।


राजनीति में बड़े मुकाम पर पहुंचने के बाद भी अटलजी ने भैया जी बनारसी को याद रखा। भैया जी के पुत्र राजेंद्र गुप्त के मुताबिक एक दफा उनके चाचा के दोनों बच्चों संजय और संगीता को डिप्थीरिया बीमारी हो गई थी। उन दिनों बनारस में डिप्थीरिया का इंजेक्शन मौजूद नहीं था। बिना इंजेक्शन के दोनों बच्चों की जान बचना संभव नहीं था। ऐसे में काफी संकोच करते हुए भैया जी ने अटलजी से संपर्क किया।


       तब अटल जी विदेशमंत्री हुआ करते थे। अटल जी ने उसी दिन अपने एक करीबी को विमान से 12 इंजेक्शनों के साथ बनारस भेजा। जिसके बाद दोनों बच्चे ठीक हुए। संगीता का करीब पांच वर्ष पूर्व बीमारी से निधन हो गया जबकि संजय रेलवे में अभी भी नौकरी करते हैं।

RSS से जुड़ने का क़िस्सा

अटल बिहारी वाजपेयी के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS से जुड़ने का किस्सा भी दिलचस्प है। उन दिनों आर्य समाज के यूथ विंग आर्य कुमार सभा का बोलबाला था, जिसका उद्देश्य युवाओं का चरित्र निर्माण का था।

अटल जी राजनीति में शुचिता और पारदर्शिता के समर्थक थे।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बतौर स्वयंसेवक शुरुआत कर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के बावजूद आमजन से उनका जुड़ाव बना रहा

उन दिनों आर्य समाज के यूथ विंग आर्य कुमार सभा का बोलबाला था, जिसका उद्देश्य युवाओं का चरित्र निर्माण का था.


देश के तमाम गांव-कस्बों में आर्य कुमार सभा की सप्ताहिक बैठकें हुआ करती थीं. नौजवान इन बैठकों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। यह साल 1939 था। किशोर अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में एक रविवार अपने दोस्तों के साथ आर्य कुमार सभा की साप्ताहिक बैठक में हिस्सा लेने पहुंचे


बैठक शुरू हुई और 15 वर्षीय अटल बिहारी वाजपेयी ने चंद मिनटों में ही सभा के वरिष्ठ कार्यकर्ता भूदेव शास्त्री का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। अटल जी की वाकपटुता से वे मंत्रमुग्ध हो गए और उसी समय उन्होंने मन में ठान लिया कि यह लड़का तो संघ में होना चाहिए। बैठक खत्म हुई और भूदेव शास्त्री खुद अटल जी के पास गए। उन्होंने पूछा, 'तुम शाम में क्या करते हो? अटल जी ने कहा, कुछ खास नहीं'. भूदेव शास्त्री ने कहा, फिर क्यों नहीं शाम को तुम संघ की शाखा में आते हो!

मुख्य बातें

उन्होंने दक्षिण भारत के सालों पुराने कावेरी जल विवाद का हल निकालने का प्रयास किया। स्वर्णिम चतुर्भुज योजना से देश को राजमार्ग से जोड़ने के लिए कॉरिडोर बनाया। मुख्य मार्ग से गांवों को जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री सड़क योजना बेहतर विकास का विकल्प लेकर सामने आई। कोंकण रेल सेवा की आधारशिला उन्हीं के काल में रखी गई थी



मैं हमेशा से ही वादे लेकर नहीं आया, इरादे लेकर आया हूं, 




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