मैं हूं नारी?अंत भी ,आरम्भ भी

 गर्व है मुझे कि मैं नारी हूँ,जीव को जन्म देने की अधिकारी हूँ। हॉ मैं नारी हूँ...अंत भी,आरम्भ भी।अपने हक की अधिकारी हूँ,क्योंकि मैं आज की नारी हूँ। आज नारी का सफर चुनौतीपूर्ण जरूर है,पर उसमे चुनौतियों से लड़ने की छमता भी भरपूर है। अपने आत्मविश्वास,बल पर आज वह दुनिया की मिशाल है।          लेकिन क्या महिलाएं सचमुच मजबूत बनी?क्या उसका लंबे अरसे का संघर्ष खत्म हो चुका शायद नही....!क्योंकि आज भी नारी अपने परिवार के साथ,बाहरी समाज के बुरे बर्ताव से पीड़ित है। भारत मे महिलाओं को सशक्त बनने की जरूरत हैं,उससे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाले उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरूरी हैं जैसे: दहेज़ प्रथा,घरेलू हिंसा,यौन हिंसा,भ्रूण हत्या,बाल हत्या,बाल विवाह,बलात्कार,वेश्यावृत्ति,मानव तस्करी,अशिक्षा..........जिस दिन ये हालात सुधरेंगे उस दिन देश को कोई पीछे धकेल नही सकता। आज नारी सुरक्षा एक विषय मात्र सा हो चुका है,जिसका जब जी चाहा उस पर आवाज उठाई लेकिन क्या  आज वाकई नारी सम्मान जिंदा है?क्या नारी अपने आपको सुरक्षित मानती हैं?आज बेटियों को बचाने के लिए तमाम अभियान चल रहे,हज़ारो सवाल जहन में कौंध रहे लेकिन उन सवालों का क्या?यदि क्रूर प्रथा समाप्त नही हुई तो ऐसे ही नारियों का तिरस्कार होगा शायद यू ही हर बेटी जिंदा होते हुए भी मर जाएगी। आख़िर हम कब ये समझेंगे कि अंत भी यही आरम्भ भी यही ..जिसे ये सृष्टि चलती हैं। आज वो भी सवाल करती है मैं कौन हूं।शायद मैं वही हूं आपकी बेटी,अरे आपकी बहन,अरे अभी भी आपने पहचाना नही मैं आपकी पत्नी..अरे अभी भी नही पहचाना बहुत भुल्लकड़ हो खैर अब तो पहचान ही जाओगे मैं हूं माँ?  एक नारी की पहचान सदियों से यही है न। इन्हीं रिश्तों से पहचानी जाती हूं।नाम तो बहुत थे इस लाडो के मगर पहचान तो इन्ही रिश्तों से है न। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी एक कविता वाक्यांश में जोड़ा था,शायद आपको याद हो.लोगो को जगाने के लिए"महिलाओं को जागृत होना जरूरी हैं। एक बार वो जब कदम आगे बढ़ाती है तो एक परिवार ही आगे नही बल्कि गाँव,शहर ,कस्बा का ही नही राष्ट्र का विकास होता हैं। लेकिन क्या आज राष्ट्र के लोग उसी नारी को पहचान रहे या पहचानते हुए भी मुकर रहे।हर रोज नारी चेतना ,सशक्तिकरण पर सवाल उठते है लेकिन अफसोस कि बात यह है आज नारी को खुद की रक्षा करने का समय आ चुका है। जहाँ एक ओर जगत जननी के नाम से पूजी जाती है वही किसी के घर की बेटी होने का बहु बनने का तिरस्कार सहती है।  

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