पंचकोशी से जुड़ा है विग्रहों के दर्शन समस्त कष्टों को हरने वाले मोक्ष प्रदान करने वाले भगवान शिव शम्भू की नगरी काशी अन्नत काल से वर्णित है। जिसके रहस्यों का उल्लेख स्कन्दपुराण के (काशी खण्ड) पन्नों पर अंकित है। यू तो काशी में तैतीस करोड़ देवी-देवताओं का वास है,जिस कारण इसे समस्त संकटो के निवारण की नगरी "मोक्ष"नगरी कही जाती है।देश विदेश से लोग यहाँ पंचकोशी दर्शन करने आते है।कहते है कि जो लोग पंचकोशी का दर्शन करते हैं उन्हें विग्रहों के दर्शन अवश्य करना चाहिए। जिससे तमाम विग्रहों के कष्टो से छुटकारा भी मिलता हैं। उन्ही में से कुछ विग्रहों का जिक्र आज हम आप से कर रहे जिनके पूजन अर्चन से तमाम संकट दूर हो जाते हैं। आइए जानते है "मंगलेश्वर महादेव" व " बुधेश्वर महादेव" के बारे में?क्यों कि जाती है इनकी पूजा? जहाँ काशी खण्ड में ग्रहों द्वारा शिवलिंग का वर्णन पढ़ने को मिलता हैं,वही आत्मा वीरेश्वर महादेव के पुजारी मुनमुन गुरु बताते है कि मंगलेश्वर महादेव को अंगारेश्वर महादेव के नाम से भी जाने जाते हैं। पुराणों में भी इसका इतिहास दर्ज है एक बार भगवान शिव माता पार्वती से विलग होने के कारण काफ़ी अप्रसन्न थे। इसी दौरान,उनके माथे से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी। जिसे पसीने की बूंद व भूमि देवी के संयोग से एक दिव्य पुत्र उत्पन्न हुआ,जिसे उनका नाम भौम कुमार पड़ा। जब वह बड़े हुए तो काशी आए ओर पंचमुद्रा महापीठ में शिवलिंग की स्थापना कर तपस्या में लीन हो गए। काफी समय के बाद भगवान शिव उसके समक्ष प्रकट हुए,उनकी तपस्या से खुश हो भगवान शिव ने उनका नाम अंगारक रखा और उसे महाग्रह की उपाधि दी। भगवान शिव ने नवग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह का स्थान दिया। वही स्थानीय निवासी विठलनाथ बताते है कि स्कंद पुराण के काशी खण्ड अध्याय 18 में लिखा है कि जो भी इनकी पूजा अंगारक चतुर्थी को करता है उसे सम्पति की प्राप्ति होती है। साथ ही जिन लोगो का ग्रह मंगल होता है वो मंगलवार को भगवान मंगलेश्वर की पूजा करे तो मंगल के दुष्प्रभाव से सुरक्षित रहता है। इन्ही से सटे " बुधेश्वर महादेव "का विग्रह है जिसका वर्णन काशी खण्ड में आता है। पुजारी मुनमुन गुरु बताते है कि एक बार चन्द्रमा ,बृहस्पति की पत्नी तारा के ऊपर मोहित हो उठे,देवताओं के चेतावनी के बावजूद उन्हें जबरदस्ती उठा ले गए। तमाम तर्क-वितर्क के बावजूद उन्होंने तारा को कई दिनों तक अपने साथ रखा। जब यह बात रुद्रदेव तक पहुँची तब रुद्रदेव ने चन्द्रमा पर प्रहार कर तारा को छुड़ाके बृहस्पति को सौपा। कुछ समय पश्चात बृहस्पति ने महसूस किया कि तारा को गर्भ ठहर गया है,उन्होंने तारा पे बहुत दबाव बनाया। उसी क्षण तारा ने शिशु को पृथ्वी पर गिरा दिया जिसे समस्त गणों में हाहाकार मच गया,परंतु तारा इस विषय पर चुप रही। इस विषय से बौद्धिक क्षमता वाले शिशु ने काशी आकर भगवान शिव कि आराधना की,जिसे भगवान शिव प्रसन्न हो कर उनके समक्ष प्रकट हुए,उन्होंने भगवान शिव से आग्रह किया कि उनके पिता आख़िर कौन हैं?तब भगवान शिव ने बतलाया कि आप चन्द्र के पुत्र है जिन्होंने बृहस्पति की पत्नी को जबरदस्ती उठा ले गए जिसे उन्होंने आपको जन्म दिया। लेकिन आपकी तेज बुद्धि पराकाष्ठा से ही आपका नाम बुध पड़ा। इस लिंग की स्थापना करने से अब लोग आपको "बुधेश्वर महादेव" के नाम से जानेंगे। जो समस्त बुद्धि जीवियों को बौद्धिक क्षमता प्रदान कराएंगे। काशी खण्ड अध्याय 15 में भी इसका वर्णन है जिसमे स्पष्ट लिखा है कि जिसका भी बुध ग्रह कमजोर हो इनकी आराधना मात्र से ही उसके कष्ट दूर हो जाएंगे।ये दोनों ही मन्दिर आत्मविरेश्वर महादेव मंदिर के प्रांगण में स्थित है,जो कि पंचकोशी यात्रा से जुड़ा हुआ है। आखिर कौन है "ब्रह्स्पतेश्वर"क्यों की जाती है इनकी पूजा पुराणों व काशी खण्ड के अध्याय -18 में इसका उल्लेख पढ़ने को मिलता हैं,साथ ही मन्दिर के पुजारी काली चरण मिश्रा बताते है कि ब्रह्स्पतेश्वर महादेव बृहस्पति (गुरु)अंगिरा के पुत्र थे,जो सज्जनता नेतृत्व व बुजुर्गों का सम्मान करते थे। समस्त शुभ गुणों से युक्त थे। उन्होंने काशी में शिवलिंग स्थापित कर लगातार कई वर्षों तक भगवान शिव की आराधना में लीन रहें। भगवान शिव बृहस्पति के तपस्या से खुश हो दिव्य ज्योति रूप से लिंग में प्रकट हो ब्रहस्पति को दर्शन दिए। भगवान शिव के दर्शन प्राप्त होते ही बृहस्पति देव भाव विभोर हो उठे। उनका गुणगान करने लगें। इसी दौरान उन्होंने भगवान शिव की स्तुति की जिसे भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हो उठे। उनकी इस तपस्या व स्तुति आराधना से प्रसन्न हो भगवान शिव बोले कि आज से आपके इस शिष्टाचार से बृहस्पति से दूसरा नाम वाचस्पति (वाक्चातुर्य)होगा और बृहस्पति द्वारा स्थापित लिंग " ब्रह्स्पतेश्वर महादेव "के नाम से विख्यात होगा,जो सभी देवों-विग्रहों में प्रमुख माना जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि बृहस्पति समस्त गुणों से युक्त जिसे भगवान शिव ने समस्त देवताओं के आगे वर्णन किया कि जो भी इनकी आराधना करेगा उनके तमाम तरह के कष्ट हर जाएंगे। जिसका वर्णन पुराणों में भी वर्णित है कि भगवान शिव समस्त देवी देवताओं के समक्ष यह स्पष्ट किया कि वाचस्पति सभी देवों के गुरु होंगें। मन्दिर के पुजारी काली चरण मिश्रा बताते है कि जो इनकी पूजा अर्चना करता है वो धन ,विद्या,पुत्र प्राप्ति व विवाह बाधाएं जैसी तमाम कष्टों से दूर रहता हैं।साथ ही जो बच्चे पढ़ने में कमजोर होते है,वो इनकी पूजा करे तो फलदायी होता हैं। इसी मंदिर के प्रांगण में नव ग्रहों के द्वारा नव लिंगो की स्थापना भी है,जो आज भी मौजूद हैं।कहते है जो व्यक्ति लगातार छः माह इनकी आराधना करता है वो मनुष्य समस्त संकटों से मुक्त हो जाता हैं। कैसे पहुंचे इन देवालय में? सिंधिया घाट के समीप आत्मा वीरेश्वर महादेव का मंदिर है जिसके प्रांगण में "मंगलेश्वर महादेव ", " बुधेश्वर महादेव "का विग्रह है, उसी के विपरीत "ब्रह्स्पतेश्वर महादेव" का मंदिर है।

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