परिवर्तन जीवन का सच

#परिवर्तन जीवन का सच
परिवर्तन ही संसार का नियम है
हर वर्ष ही संघर्ष की एक सीढ़ी है
जब पैदा हुए तो 
चलना मुश्किल सा लगता था
जब थोड़े बड़े हुए तो
पढ़ना मुश्किल सा लगता था
जब थोड़े और बड़े हुए तो
शौख के महफ़िल में जूझ गए
थोड़े और बड़े हुए तो 
जिम्मेदारी उठाना मुश्किल सा लगता था
जिम्मेदारी के सफर में 
अब तो नौकरी का बोझ उठाना मुश्किल सा लगता था
एक रोज याद आया पिता की मेहनत 
तब आंखों में कतरा भी रोक पाना मुश्किल सा लगता था
हाथ खुले थे जेब खाली थे
पर हर जिद्द को पूरा करने वाले अपने पैर पर खड़े थे
आज जब जिम्मेदारी ने कन्धे बदल लिए 
तो अब पिता का बोझ उठाना भी मुश्किल सा लगता था

वक़्त बिता .. 
एक नया दौर शुरू हुआ 
जो कल तक जिम्मेदारी से डरता था 
आज वो खुद जिम्मेदारी का डबल बोझ लेकर चलता था
कुछ छूट जाने पर पत्नी कहती आज तो नही लाए मगर आगे ऐसा ना चलेगा
माँ होती तो कहती
बेटा क्या जरूरत फिजूल खर्चे की 
अपना घर तो कम पैसों में भी चलता था

वक़्त बिता ... 
फिर एक दौर आया 
अब तक पिता को पिता कहने वाला पिता बन चुका था
अब तो उसकी हर फरमाइश को पूरा करना मुश्किल सा लगता था
हर वर्ष बीतते गए मगर मंहगाई और फरमाइश कम ना हुई
अब तो मेहनत करते करते खुद का शौख भी भारी सा लगता था
बड़ा ही कठिन है ये जीवन का चक्र 
क्योंकि अब तो अंतिम शैय्या को भी कौन चिता देगा
 ये कहना अब मुश्किल सा लगता था! 


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