लो चली मैं यूपी से उत्तराखंड के कोटद्वार

ये हसीं वादियां, ये खुला आसमां 
आ गये हम कहाँ, ऐ मेरे साजना ,इन बहारों में दिल की कली खिल गयी, मुझको तुम जो मिले हर खुशी मिल गयी ..नमस्कार दोस्तों,आज मुझे मशहूर संगीतकार ए आर रहमान जी का ये गाना याद आ गया तब जब मैं इन पहाड़ियों के बीच सर्द की ठंडी ठंडी हवाओं से रूबरू हो रही हूँ।बेह्द लम्बे समय के बाद मैं एक बार फिर कही दूर की डेस्टिनेशन पर निकली हूँ। सबसे पहले सर्द काफी है इसीलिए आप सभी अपने और अपने पूरे परिवार का ख्याल रखें।उम्मीद है आप सभी स्वस्थ और मस्त होंगे।आजकल कोरोना काल मे हर कोई घर पर ऊब रहा,लम्बे लम्बे समय तक एक ही लेपटॉप पर समय गुजार रहा वर्क फ्रॉम होम के नाते। ऐसे में मैं घुम्मकड़ लड़की भी बहुत ही बोर हो चुकी थी इसीलिए निकल पड़ी हूँ एक नए ट्रिप पे .... उत्तर प्रदेश के सीमा को लाँघ कर पहाड़ियों के उन चोटियों पर खुलकर साँस लेने,कोटद्वार!

आपको बता दू कि कोटद्वार उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल मण्डल में स्थित पौड़ी जिले का एक मुख्य नगर है।वही खोह नदी के तट पर बसा होने कि वजह से यह नगर इतिहास में 'खोहद्वार' के नाम से भी जाना जाता था। कोटद्वार उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है।इसीलिए इसे 'गढ़वाल का प्रवेशद्वार' भी कहा जाता है।इतना ही नही कोटद्वार से दुगड्डा और लैंसडौन होते हुए पौड़ी भी आप जा सकते है। यह जगह बेह्द ही खूबसूरत है।ये मैं दावे के साथ इसीलिए कह रही क्योंकि मेरे होटल यानी होटल हील्स से ये पहाड़ की चोटिया बिल्कुल सामने है। कोटद्वार का अपना रेलवेस्टेशन व बस अड्डा भी है। यहाँ से (सिद्धबली मंदिर) तक पहुँचने के लिए आप बस व टैक्सियों द्वारा पहुँच सकते है।रास्ते मे ही जिम कार्बेट नेशनल पार्क भी है जो कि मंदिर के समीप है।तो फिर अब देर कैसी चलिए फटाफट से बैग उठाएं निकल पड़ते है मैं और आप इस खूबसूरती को टटोलने उतराखंड के कोटद्वार।

कहते है कोटद्वार कि मुख्य खूबसूरती वहां की प्राचीन मंदिर है जो कि अत्यंत ही रहस्यमयी है। यह मंदिर कोटद्वार कस्बे से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर कोटद्वार पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग पर भव्य सिद्धबली मंदिर स्थित है। यह मंदिर खो नदी के किनारे पर स्थित है व मंदिर लगभग 40मी ऊचे पहाड़ी टीले पर बना हुआ है।जिसकी खूबसूरती मैंने अपने होटल से देखी थी। राजमार्ग से मंदिर तक पहुँने के लिए खो नदी पर पुल बना है पुल पार करने पर  मंदिर का द्वार  बना द्वार से मुख्य मंदिर तक टीले पर सिढियां बनी है।द्वार के आसपास ही प्रसाद व चाय नाश्ते की दुकानें है।आपको खास बात बताते चलू जो लोग मेरे तरह चाय के चक्कलस है तो यहां की चाय बेहद ही लाजवाब है।  खास बात यह है कि यहां की मुख्य खूबसूरती या यूं कह सकती हूं कि मन को मोह लेती है यहां पर मुख्य द्वार पर चारो तरफ लगें नारंगी गदे। ये गदे हनुमत लला से मिलने व सीढियो पर चढ़ने का हौसला देती है।सच कहूं तो वाकई यह गदे दिल को छू लेते है। 


 



 


 


यहां के पंडित नरेंद्र जी बताते है कि  यहाँ प्रतिवर्ष श्रद्धालुओ द्वारा मेले का भी आयोजन किया जाता है। कोटद्वार को गढ़वाल का प्रवेश द्वार भी माना जाता है तथा यह सिद्धबली मंदिर पौड़ी गढ़वाल का प्रसिद्ध देव स्थल भी।
इसकी स्थापना के बारे में कहा जाता है कि यहाँ तप साधना करने के बाद एक सिद्ध बाबा को हनुमानजी की सिद्धि प्राप्त हुई थी।सिद्ध बाबा ने यहाँ बजरंगबली की एक विशाल पाषाणी प्रतिमा का निर्माण किया था।इससे इसका नाम सिद्धबली पड़ गया अथार्त् सिद्ध बाबा द्वारा स्थापित बजरंगबली।

 

       वह सिद्धबाबा कोई और नही गुरु गोरखनाथ जी ही थे।इसके पीछे भी छोटी सी कहानी है कि कहा जाता है कि बजरंग बली ने यहां रूप बदलकर गुरु गोरखनाथ का मार्ग रोका था।जिसके बाद दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब दोनों में से कोई पराजित नहीं हुआ तो हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में आए और गुरु गोरखनाथ से वरदान मांगने को कहा। तब गुरु गोरखनाथ ने हनुमानजी से यहीं रहने की प्रार्थना की । गुरु गोरखनाथ व हनुमानजी के कारण ही इस स्थान का नाम ‘सिद्धबली’ पड़ा। आज भी ऐसा माना जाता है कि हनुमानजी प्रहरी के रूप में भक्तों की मदद को साक्षात रूप से यहां विराजमान हैं।ऐसी मान्यता है कि कलयुग में शिव का अवतार माने जाने वाले गुरु गोरखनाथ को इसी स्थान पर सिद्धि प्राप्त हुई थी। जिस कारण उन्हें सिद्धबाबा भी कहा जाता है। गोरखपुराण के अनुसार, गुरु गोरखनाथ के गुरु मछेंद्रनाथ पवन पूत्र बजरंग बली की आज्ञा से त्रिया राज्य की शासिका रानी मैनाकनी के साथ गृहस्थ जीवन का सुख भोग रहे थे। जब गुरु गोरखनाथ को इस बात का पता चला तो वे अपने गुरु को त्रिया राज्य के मुक्त कराने को चल दिए। 

 


 


इस मंदिर का स्वर्णिम इतिहास की अनेको मान्यता भी प्रचलित है कि ब्रिटिश शासन काल में एक मुस्लिम ऑफिसर इस क्षेत्र से गुजरा जो यहीं सिद्धबली मंदिर में ही रूका था। उस ऑफिसर को सपना आया कि सिद्धबली बाबा की समाधि के पास ही मंदिर बनाया जाए। जिसके बाद क्षेत्र के लोगों ने यहां मिलकर मंदिर बनवा दिया। ऐसे पहले ये मंदिर ज्यादा बड़ा नहीं था। मगर धीरे-धीरे श्रद्धालुओं के सहयोग से ये मंदिर भव्य होता गया ।
देश के देवभूमि उत्तराखंड पौराणिक खोह नदी के किनारे स्थित बसे होने के कारण चर्चित है साथ ही श्री सिद्धबली धाम को लेकर अपने आप मे ये कस्बा मशहूर है। इस मंदिर की मान्यता इतनी है कि हर समय यहां देश-विदेश से आए भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। ऐसे भी माना जाता है कि कलियुग में सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले भगवान श्री हनुमानजी है इसीलिए इस मंदिर में पुरुषों की लंबी कतार लगती है। पौराणिकता और शक्ति की महत्वता के कारण श्रृदालुओ ने इसे भव्यता प्रदान कर दी है।उम्मीद करती हूं आप भी कुछ पल खुद के लिए जरूर निकालेंगे और इन पहाड़ियों के बीच खुद को एक नई ऊर्जा देंगे।

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